राष्ट्रीय कला मयूख प्रदर्शनीः कैनवास पर उतरीं इंद्रधनुषी रंगों में लिपटी संवेदनाएं
कला दीर्घा में शनिवार को हुआ समापन
TISMedia@Kota कहीं ईश्वरीय सत्ता के रंग बिखरे थे तो कहीं इंसानी भरोसा फैला हुआ था… कहीं निरंतरता के झरने तैर रहे थे तो कहीं सिक्के तस्वीरों का रूप अख्तियार कर रहे थे… बनारस के घाट, आदिवासी महिलाओं के माडने से लेकर अन्नदाता के संघर्ष और मजदूरों की मशक्कत तक तमाम रंगों से तीन दिनों तक कोटा की कला दीर्घा सराबोर रही। मौका था तीन दिवसीय कला मयूख राष्ट्रीय प्रदर्शनी का। जिसका आयोजन प्रतिरूप आर्ट फाउंडेशन ने किया था।
संरक्षण की मुखर आवाजों के बीच 25 से 27 फरवरी तक कला दीर्घा कलाकर्मियों के रचना संसार में डूबी रही। प्रदर्शनी मे नासिक के मुंजा बी.नरवाडे के चित्रों ईश्वरीय सत्ता पर इंसानी भरोसे को बड़ी ही व्यापकता के साथ उतारा गया था। वहीं अलीगढ़ की स्नेहा गौड ने अपनी सोच सीरिज में कोरोना काल की दुरूह परिस्थितियों को बड़ी संजीदगी से उकेरा था। वहीं यामिनी ने आदिवासी महिलाओं को मांडला आर्ट के जरिए अपने कैनवास पर उतारा था। बूंदी की हर्षा तंबोली ने तो सिक्को के जरिए ही कलाकृतियां बना डाली। ईनु कुमारी ने आत्म चित्र, टाइपोग्राफी के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए। शिवानी शर्मा ने वॉटर कलर के माध्यम से बनारस के घाट , भारतीय संस्कृति की सुंदरता को दर्शाया है। देश के जाने माने फोटो टारटिस्ट ने अन्नदाता की मेहनत को तस्वीरों का विषय बनाया था। उनके साथ ही चिन्मय गुलवाणी (महाराष्ट्र), हैदराबाद, प. बंगाल, भोपाल, आजमगढ़, रांची, मुम्बई, वाराणसी, नासिक, अमरावती, दिल्ली, मेरठ, कोलकाता व राजस्थान के 57 कलाकारों ने 117 चित्रों का प्रदर्शन किया। के कई जिलों के कलाकारों ने भाग लिया है।
प्रदर्शनी की संयोजक डॉ. मुक्ति पारासर ने बताया कि कोरोना काल के बाद यह पहली बार है जब देश भर के हर कोने से चित्रकार एक जगह जुड़े और 10 महीनों में कैनवास पर उतारी गई अपनी कला का प्रदर्शन किया। प्रदर्शनी के निदेशक अमित विजय व सचिव शिवानी शर्मा ने बताया कि इस दौरान चुनी हुई कलाकृतियों को 3 स्वर्ण पुरस्कार, 5 रजत पुरस्कार और 5 ही कांस्य पुरस्कार प्रदान किए गए। इसके साथ ही एक सर्वश्रेष्ठ कृति के लिए मुंजा कलाकार नासिक को ” बेस्ट आर्टिस्ट अवार्ड” प्रदान किया गया।