कौन हैं भारत के वो 21 परमवीर जिनके नाम पर रखे गए अंडमान-निकोबार के 21 द्वीपों के नाम

TISMedia @NewDelhi पराक्रम दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 सबसे बड़े द्वीपों का नामकरण किया। इन द्वीपों का नाम 21 परमवीर चक्र से सम्मानित 21 परमवीरों के नाम पर रखा गया है। पहले इन द्वीपों का कोई नाम नहीं था, लेकिन अब ये द्वीप देश के महानायकों के नाम से जाने जाएंगे। आइए जानते हैं परमवीर चक्र से सम्मानित इन योद्धाओं के बारे में।


1. मेजर सोमनाथ शर्मा
मेजर सोमनाथ शर्मा देश पहले परमवीर हैं। मेजर शर्मा ने आजादी के बाद जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ लड़ते हुए शहादत दी थी। बात, तीन नवंबर 1947 की है। मेजर सोमनाथ शर्मा की कमांड में 4 कुमाऊं की एक कंपनी को वडगाम जाने का आदेश मिला। इस दौरान करीब 500 दुश्मन सैनिकों ने, श्रीनगर हवाई पट्टी पर मेजर शर्मा की टुकड़ी पर तीन तरफ से हमला बोल दिया। मेजर सोमनाथ शर्मा अत्यंत बहादुरी के साथ खुले मैदान में दौड़-दौड़ कर अपनी टुकड़ियों के पास जाते रहे, कुशलतापूर्वक दुश्मनों पर गोलाबारी करते रहने का निर्देश देते रहे। इसी दौरान उनके नजदीक एक मोर्टार शेल आकर फटा जिससे वे वीरगति को प्राप्त हो गए। मेजर सोमनाथ शर्मा के इस प्रेरणादायी नेतृत्व ने उनके सैनिकों को उनकी मृत्यु के कई घंटो बाद भी लड़ते रहने के लिए प्रेरित किया और शत्रु के आक्रमण को रोके रखा।


2. नायक जदुनाथ सिंह
नायक जदुनाथ सिंह जम्मू और कश्मीर में नौशेरा के नजदीक तैन धार में चौकी कमांडर थे। छह फरवरी 1948 को दुश्मन सैनिकों ने उनकी चौकी पर हमला बोल दिया। वह और उनकी टुकड़ी दुश्मन द्वारा लगातार किए गए तीन हमलों से अपनी चौकी को बचाने में कामयाब रहे। तीसरे हमले के अंत तक चौकी पर मौजूद 27 जवानों में से 24 जवान शहीद अथवा घायल हो चुके थे। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, एक स्टेन गन के साथ, उन्होंने अकेले ही शत्रुओं का सामना किया जिससे डर कर हमलावर भाग खड़े हुए। अदम्य साहस और अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की बिल्कुल परवाह न करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए।


3. सेकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे
आठ अप्रैल 1948 को बॉम्बे सैपर्स के सेकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे नौशेरा-राजौरी रोड के माइल 26 पर बारूदी सुरंगों और सड़क के अवरोधों को हटाने वाले दल की कमान संभाले हुए थे। दुश्मन ने उस क्षेत्र में भारी गोलाबारी शुरु कर दी जिसके कारण बारूदी सुरंग हटाने वाले दल के दो सदस्य वीरगति को प्राप्त हुए और पांच घायल हो गए। घायल होने के बावजूद सेकंड लेफ्टिनेंट राणे कुशलतापूर्वक एक विशालकाय स्टूअर्ट टैंक के नीचे गए और उसके साथ-साथ रेंगने लगे। वे टैंक के खतरनाक पहियों के अनुरूप रेंगते रहे और टैंक के ड्राइवर को एक रस्सी द्वारा संकेत देते हुए उसे बारूदी सुरंगों से सुरक्षित निकाल ले गए। इस तरह उन्होंने आगे बढ़ते भारतीय टैंकों को एक सुरक्षित रास्ता प्रदान किया। दुश्मन के सामने विशिष्ट बहादुरी और अदम्य वीरता प्रदर्शित करने के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


4. कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह
18 जुलाई 1948 को 6 राजपूताना राइफल्स के सी एच एम पीरू सिंह को जम्मू कश्मीर के तिथवाल में शत्रुओं द्वारा अधिकृत एक पहाड़ी पर आक्रमण कर उस पर कब्जा करने का काम सौंपा गया। हमले के दौरान उन पर एम एम जी से भारी गोलीबारी की गई और हथगोले फेंके गए। उनकी टुकड़ी के आधे से अधिक सैनिक मारे गए या घायल हो गए। सी एच एम पीरू सिंह ने अपने बचे हुए जवानों को लड़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया और घायल होने के बावजूद दुश्मन के एम एम जी युक्त दो बंकरों को बर्बाद कर दिया। अचानक उन्हें पता चला कि उनकी टुकड़ी में इकलौते वे ही जीवित बचे हैं। जब दुश्मनों ने उन पर एक और हथगोला फेंका, वे लहुलुहान चेहरे के साथ रेंगते हुए आगे बढ़े और अंतिम सांस लेने से पहले उन्होंने दुश्मन के ठिकाने को नष्ट कर दिया।


5. लांस नायक करम सिंह
13 अक्तूबर 1948 को 1 सिख रेजीमेंट के लांस नायक करम सिंह जम्मू-कश्मीर की रिचमर गली में एक टुकड़ी की कमान संभाले हुए थे। दुश्मन ने बंदूकों और मोर्टारों से भारी गोलाबारी द्वारा हमला शुरु किया जिससे पोस्ट के सभी बंकर बर्बाद हो गए। बुरी तरह घायल होते हुए भी लांस नायक करम सिंह एक से दूसरे बंकर में जाकर अपने साथियों की मदद करते रहे और उन्हें लड़ने के लिए प्रेरित करते रहे। दुश्मन ने उस दिन आठ बार आक्रमण किया। हर एक हमले के दौरान लांस नायक करम सिंह ने अपने साथियों को प्रोत्साहित किया और उनका जोश बढ़ाया। रीछमार गली को बचाने के लिए उनकी टुकड़ी ने दुश्मनों पर जवाबी हमला करते हुए गुत्थम-गुत्था की लड़ाई में अपने हथियार के बैनट से प्रहार किया। अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में विशिष्ट साहस और अदम्य वीरता के लिए लांस नायक करम सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


6. कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया
पांच दिसंबर 1961 को 3/1 गोरखा राइफल्स को संयुक्त राष्ट्र संघ मिशन कार्य के दौरान एलिजाबेथविले में कटंगी सैनिकों द्वारा लगाए गए सड़क के अवरोधों को हटाने का आदेश मिला। जब कैप्टन सलारिया ने गोरखा कंपनी के साथ मिलकर अवरोध को हटाने का प्रयास किया तो उन्हें दुश्मन के भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। दुश्मन ने उनके दल पर स्वचालित हथियारों से भारी गोलाबारी की। कैप्टन सलारिया के सैनिकों ने दुश्मन पर संगीनों, खुखरी और हथगोलों से आक्रमण कर 40 दुश्मनों को मार डाला और उनकी दो कारों को नष्ट कर दिया। कैप्टन सलारिया ने गर्दन पर गंभीर जख्म होते हुए भी तब तक लड़ाई जारी रखी जब तक कि वे अपने जख्मों के कारण वीरगति को प्राप्त नहीं हो गए। उनकी बहादुरी और साहसपूर्ण कार्रवाई से दुश्मन बुरी तरह हतोत्साहित हो गया और अधिक संख्या में होने के बावजूद वहां से भाग खड़ा हुआ। इस तरह एलिजाबेथविले में स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय को बचा लिया गया।


7. मेजर धन सिंह थापा
1/8 गोरखा राइफल्स के मेजर धन सिंह थापा लद्दाख में एक अग्रिम चौकी की कमान संभाले हुए थे। 20 अक्तूबर 1962 को चीन के सैनिकों ने उनकी चौकी पर तोपों और मोर्टारों से बमबारी शुरु करने के बाद भारी सैन्यबल के साथ आक्रमण कर दिया। उनके नेतृत्व में, दुश्मनों की तुलना में बहुत कम संख्या में होते हुए भी भारतीय सैनिकों ने आक्रमण को नाकाम कर दिया और दुश्मनों को भारी क्षति पहुंचाई। दुश्मन ने दूसरी बार आक्रमण किया और इस बार भी उनका हमला विफल रहा। चीनी सैनिकों ने तीसरी बार आक्रमण किया, इस बार उनकी इन्फैंट्री की सहायता के लिए टैंक भी थे। भारतीय सैनिकों की संख्या काफी कम रह गयी थी, फिर भी उन्होंने अंतिम दम तक मुकाबला किया। मेजर धन सिंह थापा ने चीनी सैनिकों द्वारा काबू में किए जाने से पूर्व आमने-सामने के मुकाबले में अनेक दुश्मन सैनिकों को मार गिराया।


8. सूबेदार जोगिंदर सिंह
23 अक्तूबर 1962 भारत-चीन युद्ध के दौरान सूबेदार जोगिन्दर सिंह की 1 सिख बटालियन की प्लाटून ने बूमला, अरुणाचल प्रदेश में चीनी सैनिकों के दो आक्रमणों को विफल कर दिया। इसमें दुश्मनों को भारी क्षति पहुचीं। उनकी प्लाटून के तब तक आधे जवान शहीद हो चुके थे। सूबेदार जोगिन्दर सिंह बुरी तरह घायल हो गए थे लेकिन उन्होंने अपना मोर्चा छोड़ने से इनकार कर दिया। जब उनकी प्लाटून पर चीनी सैनिकों ने तीसरी बार आक्रमण किया तब भी उनके प्रेरणादायक नेतृत्व में उनकी प्लाटून अपने स्थान पर ही डटी रही। सूबेदार जोगिन्दर ने खुद एक मशीन गन को संभाला और अनेक दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। आखिर में उनका गोला-बारूद समाप्त हो गया। सूबेदार जोगिन्दर ने अपने जवानों को प्रेरित किया और संगीनों की लड़ाई में उनका नेतृत्व किया। इस महासंग्राम में संख्या में अधिक शत्रु सैनिकों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।


9. मेजर शैतान सिंह
मेजर शैतान सिंह जम्मू कश्मीर के लद्दाख सेक्टर में लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर रेजांग ला में कुमाऊं रेजिमेंट की तेरहवीं बटालियन की एक कंपनी की कमान संभाले हुए थे। 18 नवंबर 1962 को बहुत बड़ी संख्या मे चीनी सैनिकों ने उनके ठिकाने पर जबरदस्त हमला किया। मेजर शैतान सिंह इस ऑपरेशन के दौरान पूरी तरह हावी रहे और इस विकट स्थिति में व्यक्तिगत खतरा उठाते हुए एक प्लाटून पोस्ट से दूसरे तक जाकर अपने सैनिकों का मनोबल बनाए रखा। गंभीर रूप से जख्मी होने के बावजूद वह अपने सैनिकों को प्रेरित करते हुए उनका नेतृत्व करते रहे। सैनिक भी अपने अफसर के बहादुरीपूर्ण उदाहरण का अनुकरण करते हुए वीरतापूर्वक लड़े और दुश्मनों को भारी क्षति पहुंचाई। जब उनके सैनिकों ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाने का प्रयास किया तो उन्होंने मना कर दिया और अपनी अंतिम सांस तक उन्हें लड़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करते रहे।


10. लेफ्टिनेंट कर्नल ए बी तारापोर
लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशीर बुरजोरजी तारापोर 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान स्यालकोट सेक्टर में पूना हॉर्स रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर थे। 11 सितंबर 1965 को 17 पूना हॉर्स पर दुश्मन के बख्तरबंद टैंको द्वारा भारी जवाबी हमला किया गया। रेजिमेंट ने शत्रु के हमले को नाकाम कर दिया और अपनी जगह डटे रहकर वीरतापूर्वक फिल्लौरा पर आक्रमण कर दिया। घायल होने के बावजूद लेफ्टिनेंट कर्नल तारापोर ने सुरक्षित स्थान पर ले जाए जाने से मना कर दिया और वजीरवाली, जसोरन तथा बुतुर-डोगरांडी पर कब्जा करने में अपनी रेजिमेंट का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व से प्रेरित होकर पूना हॉर्स ने 60 पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त कर दिया। इस लड़ाई के दौरान, लेफ्टिनेंट कर्नल तारापोर के टैंक पर एक गोला आकर टकराया जिससे टैंक में आग लग गई और वे शूरवीर की तरह वीरगति को प्राप्त हुए।


11. सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद
सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान खेम करन सेक्टर में चौथी ग्रेनेडियर्स में सेवारत थे। 10 सितंबर 1965 को पाकिस्तानी सेना ने पैटन टैंकों के साथ खेम करन सेक्टर पर हमला कर दिया। एक जीप पर लगी आर सी एल गन टुकड़ी की कमान संभाले सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद बगल में पोजिशन लेने के लिए बढ़े। दुश्मनों की भीषण गोलाबारी और टैंकों की बमबारी के बीच उन्होंने दुश्मन के अग्रिम टैंक को ध्वस्त कर दिया और फुर्ती से अपनी पोजिशन बदलते हुए दूसरे टैंक को भी नष्ट कर दिया। तब तक वे दुश्मन के टैंकों की नजर में आ चुके थे और उनकी जीप पर भीषण गोलीबारी होने लगी। सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद बिना किसी डर के अपने स्थान पर डटे रहे और गोलाबारी करते रहे तथा अपनी टुकड़ी को प्रेरित करते रहे। गंभीर रूप से घायल होने से पहले उन्होंने सात पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त कर दिया।


12. लांस नायक अलबर्ट एक्का
1971 के भारत-पाक युद्ध में गंगासागर मे दुश्मन के प्रतिरक्षा ठिकानों पर आक्रमण के दौरान लांस नायक अलबर्ट एक्का चौदहवीं गार्ड्स की अग्रिम कंपनी में तैनात थे। चार दिसंबर 1971 को लांस नायक एक्का ने देखा कि दुश्मन की मशीनगन की गोलीबारी से उनकी कंपनी को बहुत नुकसान हो रहा है। अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की पूरी तरह उपेक्षा करते हुए उन्होंने दुश्मन के बंकर पर धावा बोल दिया और दो दुश्मन सैनिकों को ढेर कर दिया। अचानक एक इमारत से मीडियम मशीनगन से गोलीबारी होने लगी। बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद वह रेंगते हुए आगे बढ़े और हथगोला फेंककर एक सैनिक को मार डाला। एम एम जी से गोलीबारी जारी थी लेकिन लांस नायक एक्का ने उत्कृष्ट वीरता का प्रदर्शन करते हुए बंकर में घुसे और दुश्मन को मार गिराया। इस तरह उन्होंने आक्रमण की सफलता सुनिश्चित की।


13. फ्लाइंग अफसर निर्मल जीत सिंह सेखों
14 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध के दौरान दुश्मन के छह सेबर वायुयानों ने श्रीनगर एअरफील्ड पर भारी गोलाबारी की। आक्रमण के दौरान उड़ान भरने के प्रयास में अपनी जान जोखिम मे डाल कर 18वीं स्क्वाड्रन के फ्लाइंग अफसर निर्मल जीत सिंह सेखों, जो एक लड़ाकू विमान पायलट थे, ने उड़ान भरी और दो आक्रमणकारी सेबर लड़ाकू जहाजों से भिड़ गए। उन्होंने एक विमान पर अविश्वसनीय कुशलता दिखाते हुए प्रहार किया और दूसरे विमान को क्षतिग्रस्त कर दिया। इस समय तक पाक वायुसेना के चार सेबर विमान अपने साथियों के बचाव में आ गए। इस हवाई लड़ाई के दौरान उनके वायुयान को एक सेबर ने मार गिराया और वे वीरगति को प्राप्त हुए।


14. मेजर होशियार सिंह
15 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध के दौरान मेजर होशियार सिंह तीसरी ग्रेनेडियर्स की एक कंपनी की कमान संभाले हुए थे और उन्हें जरपाल में दुश्मन के एक ठिकाने पर कब्जा करने का आदेश मिला। हमले के दौरान उनकी कंपनी पर भीषण गोलाबारी हुई। उन्होंने निडरता से हमले का नेतृत्व किया और एक भयानक मुठभेड़ के बाद लक्षित ठिकाने पर कब्जा कर लिया। दुश्मन ने जवाबी कार्रवाई मे एक के बाद एक कई आक्रमण किए। घायल होने के बावजूद वे एक मोर्चे से दूसरे मोर्चे तक कार्रवाई करते हुए अपने सैनिकों को प्रेरित करते रहे और दुश्मनों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया। तभी दुश्मन का एक गोला, मध्यम मशीन गन वाली पोस्ट के पास आकर फटा जिससे वहां के सैनिक जख्मी हो गए और मशीन गन निष्क्रिय हो गई। मशीन गन के महत्व को समझते हुए मेजर होशियार सिंह तुरंत वहां पहुंचे और उसे स्वयं संचालित कर दुश्मन को गंभीर क्षति पहुंचाई। हमले का मुंह तोड़ जवाब दिया गया और दुश्मन वहां से भाग खड़े हुए।


15. सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल
16 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध के दौरान पूना हॉर्स ‘ए’ स्क्वाड्रन के सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल मदद के आकस्मिक आव्हान पर शकरगढ़ सेक्टर में ‘बी’ स्क्वाड्रन की मदद के लिए बढ़े। मजबूत ठिकानों और आर सी एल गन वाले मोर्चों से उनके टैंको पर भारी गोलाबारी की गई। दुश्मन के आक्रमण को विफल करते हुए वे ‘बी’ स्क्वाड्रन के पास पहुंचे और दुश्मन के साथ घमासान युद्ध में शामिल हो गए। इस युद्ध में शत्रु के दस टैंक ध्वस्त हो गए जिसमें से चार टैंकों को स्वयं सेकंड लेफ्टिनेंट खेत्रपाल ने ध्वस्त किया। इस कार्रवाई में वे बुरी तरह से घायल हो गए और उन्हें पीछे हटने का आदेश दिया गया परंतु उन्होंने आदेश को मानने से मना कर दिया। उनके सेंचुरियन टैंक ‘फामागुस्ता’ पर दुश्मन का दूसरा गोला गिरने और उनके वीरगति को प्राप्त होने से पूर्व उन्होंने शत्रु के एक और टैंक को ध्वस्त कर दिया।


16. नायब सूबेदार बाना सिंह
26 जून 1987 को जम्मू एवं कश्मीर लाइट इंफेंट्री की आठवीं बटालियन के नायब सूबेदार बाना सिंह स्वेच्छा से उस कार्यबल में शामिल हुए जिसे 21,000 फीट की ऊंचाई पर दुश्मन द्वारा सियाचिन ग्लेशियर में पाक सेना के कब्जे में कैद चौकी को छुड़ाने का कार्य सौंपा गया था। सियाचिन की भयंकर जलवायु के साथ तीव्र बर्फीले तूफान, -50 डिग्री सेल्सियस के लगभग तापमान और ऑक्सीजन की कमी जीवित रहने के लिए सबसे बड़ा खतरा थे। नायब सूबेदार बाना सिंह और उनके जवानों ने शून्य दृश्यता की स्थितियों में जोखिमपूर्ण मार्ग से बर्फ की 457 मीटर ऊंची दीवार पर चढ़ाई की, चोटी पर पहुंचे और हथगोले फेंककर दुश्मन के बंकर को ध्वस्त कर दिया। वह और उनके दल ने संगीनों के साथ आक्रमण किया और कुछ पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया जबकि बाकियों ने डर कर चोटी से छलांग लगा ली।


17. मेजर रामास्वामी परमेश्वरन
25 नवंबर 1987 को ऑपरेशन पवन के दौरान जब महार रेजिमेंट की आठवीं बटालियन के मेजर रामास्वामी परमेश्वरन श्रीलंका में एक तलाशी अभियान से लौट रहे थे। इसी दौरान परमेश्वरन के सैन्य दल पर आतंकवादियों ने घात लगाकर आक्रमण किया। धैर्य और सूझ-बूझ से उन्होंने आतंकवादियों को पीछे से घेरा और उन पर हमला कर दिया जिससे आतंकी पूरी तरह से स्तब्ध रह गए। आमने-सामने की लड़ाई में एक आतंकवादी ने उनके सीने में गोली मार दी। निडर होकर मेजर परमेश्वरन ने आतंकवादी से राइफल छीन ली और उसे मौत के घाट उतार दिया। गंभीर रूप से घायल अवस्था में भी वे निरंतर आदेश देते रहे और अपनी अंतिम सांस तक अपने साथियों को प्रेरित करते रहे। उनकी इस वीरतापूर्ण कार्रवाई के परिणाम स्वरूप पांच आतंकवादी मारे गए और भारी मात्रा में हथियार और गोला बारूद बरामद किए गए।


18. लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे
आपरेशन विजय के दौरान 11 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को जम्मू कश्मीर के बटालिक में खालूबार रिज को दुश्मनों से खाली कराने का काम सौंपा गया। तीन जुलाई 1999 को उनकी कंपनी जैसै ही आगे बढ़ी दुश्मन ने उन पर भारी गोलाबारी शुरु कर दी। उन्होंने निडरतापूर्वक दुश्मन पर आक्रमण कर चार सैनिकों को मार डाला और दो बंकर तबाह कर दिए। कंधे और पैरों में जख्म होने के बावजूद वे पहले बंकर के निकट पहुंचे और भीषण मुठभेड़ में दो अन्य सैनिकों को मारकर बंकर खाली करा दिया। मस्तक पर प्राणघातक जख्म लगने से पहले एक के बाद एक बंकर पर कब्जा करने में वह अपने दल का नेतृत्व करते रहे। उनके अदम्य साहस से प्रोत्साहित होकर उनके सैनिकों ने दुश्मन पर हमला जारी रखा और अंततः पोस्ट पर कब्जा कर लिया।


19. ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव
आपरेशन विजय के दौरान अठारहवीं ग्रेनेडियर्स के ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव घातक प्लाटून के सदस्य थे। इस प्लाटून को जम्मू कश्मीर के द्रास में टाइगर हिल टॉप पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। तीन जुलाई 1999 को दुश्मन की भारी गोलाबारी के बीच अपनी टीम के साथ योगेंद्र ने बर्फीली खड़ी चट्टान पर चढ़ाई की और वहां स्थित बंकर को ध्वस्त कर दिया जिससे प्लाटून उस खड़ी चट्टान पर चढ़ने में कामयाब हो गई। पेट के निचले हिस्से और कंधे में तीन गोलियां लगने के बावजूद अतुलनीय ताकत का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने दूसरे बंकर पर हमला कर उसे भी ध्वस्त कर दिया और तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला। उनके शौर्यपूर्ण कारनामे से प्रेरित होकर प्लाटून को नया साहस मिला तथा उसने अन्य ठिकानों पर हमला कर दिया और अंततः टाइगर हिल टॉप पर वापस कब्जा कर लिया।


20. राइफलमैन संजय कुमार
ऑपरेशन विजय के दौरान, राइफलमैन संजय कुमार चार जुलाई 1999 को जम्मू-कश्मीर की मुशकोह घाटी में खड़ी चट्टान क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए 13 JAK RIF की एक कंपनी के प्रमुख स्काउट थे। चट्टान पर चढ़ने के बाद, वह एक बंकर से दुश्मन की गोलाबारी की चपेट में आ गए। आमने-सामने की लड़ाई में, उन्होंने तीन घुसपैठियों को मार गिराया और खुद गंभीर रूप से घायल हो गए। अचानक, दुश्मनों ने एक यूनिवर्सल मशीन गन पीछे छोड़ कर भागना शुरू कर दिया। राइफलमैन संजय कुमार ने यूएमजी को उठाया और भाग रहे दुश्मन को मार गिराया। उनकी बहादुरी भरी कार्रवाई ने उनके साथियों को दुश्मन पर हमला करने और ऊंची चोटी पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया।


21. कैप्टन विक्रम बत्रा
आपरेशन विजय के दौरान 13 जैक राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा को प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया। दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होंने निडरतापूर्वक आमने-सामने की लड़ाई मे चार शत्रु सैनिकों को मार गिराया। सात जुलाई 1999 को उनकी कंपनी को प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया। आमने-सामने की भीषण मुठभेड़ में उन्होंने पांच शत्रु सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। गंभीर रूप से जख्मी हो जाने के बावजूद, उन्होंने जवाबी आक्रमण मे अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। वीरगति प्राप्त करने से बत्रा ने पहले दुश्मनों की भीषण गोलाबारी के बीच सैन्य दृष्टि से असंभव कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। उनके इस निडरतापूर्ण कार्य से प्रेरित होकर उनके जवानों ने दुश्मनों का सफाया करते हुए प्वाइंट 4875 पर कब्जा कर लिया।

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