फैसलाः 7 साल की भांजी के साथ रेप करने वाले मामा को पॉक्सो कोर्ट ने सुनाई फांसी की सजा

पॉक्सो न्यायाधीश ने मात्र 30 दिन में सुनाया फैसला, कोर्ट बोली- दोषी को जिंदा नहीं रख सकते

TISMedia@Nagaur राजस्थान (Rajasthan) में नागौर (Nagaur) के पॉक्सो (The Protection Of Children From Sexual Offences) कोर्ट ने 7 साल की मासूम बच्ची से रेप और हत्या के मामले में उसके मुंहबोले मामा को फांसी की सजा सुनाई है। बच्ची के साथ दरिंदगी के 30 दिन में कोर्ट ने यह फैसला सुना दिया है।

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नागौर के एक गांव में 20 सितंबर 2021 को मुंहबोले जीजा के घर आए दिनेश जाट ने नशे में होने का नाटक कर कुत्तों से डर का बहाना बनाया और मुंह बोली बहन की 7 साल की मासूम बेटी को घर तक छोड़ने के लिए साथ ले गया। लेकिन, घर जाने के बजाय वह मासूम बच्ची को पास के खेत में खड़ी बाजरे की फसल में ले गया। जहां उसने मासूम के साथ रेप किया। दिनेश ने पोल खुलने के डर से बच्ची की हत्या कर दी और शव को खेत की कंटीली झाड़ियों में फेंककर भाग गया।

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पुलिस ने दिखाई फुर्ती 
घटना की शिकायत मिलते ही पुलिस ने तुरंत बाद दिनेश को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ के दौरान आरोपी दिनेश पुलिस की सख्ती देख टूट गया और उसने अपना अपराध कबूल कर लिया। पुलिस ने 21 सितंबर को अपहरण, पॉक्सो, मर्डर और रेप की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू की थी। इसके बाद सिर्फ छह दिनों में प्रकरण से जुड़े सभी गवाहों के बयान और दस्तावेज तैयार कर 27 सितंबर को जुर्म प्रमाणित मान मेड़ता स्थित पॉक्सो कोर्ट में चार्जशीट पेश कर दी थी।

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11 दिन की सुनवाई में सुनाई सजा
गुरुवार को पॉक्सो विशेष कोर्ट ने 7 साल की मासूम बच्ची से रेप के बाद हत्या के मामले में आरोपी मुंहबोले मामा दिनेश को दोषी करार दिया था। विशिष्ट लोक अभियोजक एडवोकेट सुमेर सिंह बेड़ा ने बताया कि 11 दिन तक रोज सुनवाई चली। इस दौरान मामले में पीड़िता पक्ष की तरफ से 29 गवाहों के और बचाव पक्ष की तरफ से एक गवाह के बयान करवाए गए थे। इसके अलावा बचाव पक्ष के वकील की डिमांड पर डॉक्टर्स टीम के द्वारा आरोपी की मेंटल कंडीशन की जांच भी करवाई गई।

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यह तो राक्षस प्रवृत्ति है
पॉक्सो विशेष कोर्ट की जज रेखा राठौड़ ने दोषी दिनेश जाट (25) को फांसी की सजा सुनाते हुए टिप्पणी की कि यह क्रूूरतापूर्ण अपराध है और राक्षस की प्रवृत्ति को दर्शाता है। बच्चों को बिना भय व असुरक्षा के समाज में प्रसन्नतापूर्वक जीने का अधिकार है। यदि बच्चे घर और घर के बाहर सुरक्षित नहीं हैं तो यह चिंता का विषय है। बच्चों की रक्षा माता-पिता के लिए चुनौतीपूर्ण काम हो चुका है। दोषी समाज के लिए कलंक है। यदि उसे जिंदा रखा गया तो उसके भविष्य में अपराध करने की आशंका रहेगी और अन्य अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। विशिष्ट लोक अभियोजक एडवोकेट सुमेर सिंह बेड़ा ने कहा कि न्यायालय ने इस मामले को जघन्य अपराधों की श्रेणी में रखते हुए फांसी की सजा सुनाई है।

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