#UPElection2022: यूपी में हो गया चुनावी खेला! जानिए अब ये 2.58 फीसदी वोटर लगाएंगे किसकी लंका

UP assembly election first phase 11 जिलों की 58 सीटों पर तगड़ी हुई लड़ाई

  • साल 2017 से साल 2022 में हुई 2.58 फीसदी कम वोटिंग, दिग्गजों के हलक में अटकी वेस्ट यूपी की लड़ाई 
  • साल 2017 में सिर्फ 2 फीसदी मतदाताओं ने ढहा दिए थे कई किले , इस बार भी दिखेगा नया रंग  

TISMedia@VineetSingh उत्तर प्रदेश के पहले चरण का मतदान हो गया है। मेरठ से लेकर आगरा तक फैली क्रांति भूमि हमेशा ही सियासी इबारतें लिखती आई है। 1857 में फूके जंगे आजादी के पहले बिगुल से लेकर साल 2017 तक लोकतंत्र के हवन में दी गई मतदान की आहुति इस बात की गवाह रही है। इस जमीन पर चलने वाले सियासी हल की फाल की जरा की लोच अच्छे अच्छे सियासतदारों को जमींदोज, तो धूल फांक रहे मामूसी बंदे को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा देती है। यकीन न आए तो पिछले दो चुनावों के नतीजे ही उठाकर देख लीजिए।

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सबसे पहले बात करते हैं साल 2012 की। शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा और आगरा समेत इन 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर 61.03 फीसदी मतदान हुआ था। जानते हैं इसका नतीजा क्या हुआ था? 2012 में इन 58 सीटों में भाजपा को सिर्फ 10 सीटें ही मिली थीं। जबकि सपा को 14 और बसपा को 20 सीटें मिली। इतना ही नहीं इस सबसे उपजाऊ जमीन ने निर्दलीयों को भी निराश नहीं किया था। साल 2012 में भाजपा से ज्यादा यानि 11 सीटों पर तो निर्दलियों ने ही जीत हासिल कर ली थी।

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जरा सी करवट कर डालती है सूपड़ा साफ 
जिन लोगों को इस इलाके के बारे में नहीं पता उनके लिए इतना जानलेना भर काफी है कि यहां के लोग जरा सी करवट लेते हैं तो अच्छे अच्छों का सूपड़ा साफ हो जाता है। यकीन नहीं आता तो देख लीजिए साल 2017 का चुनाव। साल 2017 में इन 58 सीटों पर 63.75% मतदान हुआ था। यानि साल 2012 से सिर्फ 2.72 फीसदी ज्यादा। और अंजाम पता है क्या हुआ? साल 2012 में इस इलाके की सिर्फ 10 सीटें जीतने वाली भाजपा की झोली में यहां के मतदाताओं ने एक झटके में 43 सीटें डाल दी थीं। वहीं बसपा को 18 और सपा को 12 सीटें मिलीं। कुल मिला कर निर्दलीय दिग्गजों का मैदान साफ। जबकि सपा और बसपा की भी 2-2 सीटें घटा दी।

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तो इस बार किसकी लगेगी लंका 
10 फरवरी को इन 11 जिलों की 58 सीटों पर फिर चुनाव हुआ और इस बार फिर वही ढाई फीसदी की उठापटक। गुरुवार को हुए मतदान में 58 सीटों पर इस बार 61.17 प्रतिशत वोटिंग हुई है। यानि साल 2017 से 2.58 फीसदी कम। जी हां ये जो “कम” है न इसी का तो गम है। इसी कम ने अच्छे अच्छे चाणक्यों का हलक सुखा दिया है, क्योंकि आमतौर पर चुनावी पंडितों का यही कहना है कि ज्यादा मतदान हुआ तो भगवा खेमे को फायदा और कम हुआ तो… “जयश्रीराम”। फिलहाल शामली से लेकर मुजफ्फरनगर तक में बही सांप्रदायिक हवा कुछ बहकी-बहकी थी। जबकि जाट लेंड के ठेकेदार किसके “खिलाफ” थे, यह आखिर तक तय नहीं हो सका। वहीं आगरा और अलीगढ़ में घंटे घड़ियाल बज रहे थे। जबकि बसपाई हाथी बेसुध “मदमस्त” पड़ा था। ऐसे में हवा का असल रुख किस ओर था, यह कहना फिलहाल तो प्रकांड पंडितों के लिए भी खासा मुश्किल हो रहा है। लेकिन, एक चीज है जो तय है और वह यह कि ये ढाई परसेंट का झोल रोंगटे खड़े कर रहा है और लोग कहने को मजबूर हो गए हैं कि इस बार पेंच फंस गया। लेकिन, आएगा तो….। हैं! जी। कुछ कहा क्या? जी, कुछ कह ही तो नहीं पा रहे at-casinos.com!!!

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