#RTU राष्ट्र को विश्वगुरु बनाने के लिए फिर करना होगा “दांडी मार्च”: कुलपति
भविष्य संवारना है तो पुरखों के बलिदानों को याद रखना होगाः विनीत सिंह
TISMedia@Kota. सवाल नमक का नहीं था। और, ना ही सवाल सिर्फ कर चुकाने का था। सवाल इससे कहीं बड़ा था और वह था आने वाली पीढ़ियां गलत को गलत और सही कहना सीख सकें। वह अत्याचारों के विरोध में खड़ी हो सकें। वह आजादी की कीमत समझ सकें। महात्मा गांधी आम हिंदुस्तानियों को संकल्प लेना और उसे हर कीमत पर पूरा करना सिखाना चाहते थे। दांड़ी मार्च के जरिए उन्होंने यह कर दिखाया। राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत करते हुए यह बात कुलपति प्रो. आरए गुप्ता ने कही।
निकाली दांडी स्मृति यात्रा
आजादी के अमृत महोत्सव के पहले दिन 91 साल पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आव्हान पर किए गए दांडी मार्च की स्मृति में राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के छात्रों, शिक्षकों एवं कर्मचारियों ने कैंपस मार्च निकाला। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आर. ए. गुप्ता, डीन संकाय प्रो. अनिल माथुर, डीन फैकल्टी ऑफ इंजीनयिरंग प्रो. बीपी सुनेजा, एनसीसी अधिकारी प्रो. अरविन्द कुमार द्विवेदी, डीन एनएसएस अधिकारी डा. अशोक शर्मा तथा कुलसचिव नरेश मालव सहित सभी संकाय सदस्यों, कर्मचारियों, विद्यार्थियों तथा होमगार्ड के जवानों ने प्रातः साढ़े नौ बजे डीन संकाय कार्यालय से कुलपति कार्यालय तक स्मृति यात्रा निकाली। एक किलोमीटर की इस प्रतीकात्मक यात्रा के पश्चात सभी प्रतिभागी कुलपति कार्यालय स्थित सभा भवन में करोना निर्देशों की पालना करते हुए एकत्रित हुए। जहाँ दांडी यात्रा तथा गाँधीवाद के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता पत्रकार एवं “द इनसाइड स्टोरी” के संस्थापक विनीत सिंह थे।
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सहेजनी होगी पुरखों की थाथी
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विनीत सिंह ने कहा कि आजादी हमें अंग्रेजों ने थाली में सजा कर नहीं दी। इसके लिए हमारे पुरखों ने असंख्य बलिदान दिए हैं। खेलने की उम्र में लोगों ने गोलियां खाईं, फांसी चढ़े। अंडमान निकोबार के सेल्युलर जेल की बैरकों में कालापानी की कभी खत्म न होने वाली बेरहम सजाएं भुगती। लेकिन, 15 अगस्त 1947 के बाद हम ऐसे आजाद हुए कि कमाने खाने की आपाधापी में पुरखों के बलिदानों को ही भुला बैठे। चाणक्य ने कहा था कि जो पीढ़ियां अपने पुरखों की विरासत और उनकी थाथी को भुला देती हैं भविष्य उन्हें कभी याद नहीं रखता।
आजादी की कीमत जानो
राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति सभागार में मौजूद शिक्षकों, विद्यार्थियों और कर्मचारियों को संबोधित करते हुए विनीत सिंह ने कहा कि जंग-ए-आजादी की कीमत यदि किसी से पूछनी हो तो दुर्गा भाभी से पूछो। जिन्होंने अपने पति भगवती चरण बोहरा को राष्ट्र पर न्यौछावर कर दिया। भगत सिंह को छुड़ाने के लिए रावी के तट पर बम का परीक्षण करने के दौरान बोहरा शहीद हो गए, लेकिन दुर्गा भाभी ने उनके अंतिम दर्शन करने से ज्यादा जरूरी चंद्रशेखर आजाद तक आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए हथियार और पैसे पहुंचाना जरूरी समझा। पति की मौत के बाद कोई सरपरस्त नहीं बचा तब भी उन्होंने अपने सात मकान और गहने बेचकर सारे पैसे क्रांतिकारियों को सौंप दिए। महज 11 साल की उम्र में अंग्रेज सिपाहियों को मारकर ठाकुर राम सिंह ने अजमेर ठिकाने को लात मार दी। भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के साथी रहे इस बच्चे को अंग्रेजों की पूरी फौज पकड़ तक नहीं पाई।
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दोबारा मौका मिला तो क्रांतिकारियों के लिए काल बन चुके अंग्रेज कप्तान एसपी डोगरा को भरी नुमाइश में गोली मार मौत के घाट उतार दिया। असेमबली बंम ब्लास्ट, दिल्ली कांसप्रेसी केस से लेकर हार्डी बम कांड तक इनका नाम जुड़ा। और जब पकड़े गए तो मिली सीधे कालेपानी की सजा। जो मौत से भी बदत्तर थी। 35 साल जेल की काल कोठरियों में बिताने के बाद भी वह जिंदा बच कर आ गए। आलम यह था कि आजादी के बाद भी सरकार उन्हें छोड़ने को राजी न थी। बलिदानों के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है, लेकिन आजादी हासिल करने के बाद हम इतने दिशा हीन हो गए कि महज 75 साल बाद आज की पीढ़ी को 75 बलिदानियों के नाम तक याद नहीं है। हमें बलिदानों की कीमत समझनी होगी और देश की तरक्की के लिए, भावी पीढ़ी के लिए सकारात्मक रास्तों का चुनाव करना होगा।
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75 सप्ताहों तक होगा आयोजन
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. गुप्ता ने कहा कि राष्ट्र को विश्व गुरु बनाने के लिए फिर से एक दांडी मार्च निकालना होगा। इस मार्च की मंजिल स्वयं के साथ राष्ट्र का विकास होगी और इस मार्च का रास्ता किसी सड़क या कैंपस से नहीं खुद आपके अंदर से गुजरेगा। तभी हम शायद अमर बलिदानियों के नमक का कर्ज चुका सकेंगे। इस मौके पर कुलपति प्रो. गुप्ता ने घोषणा की कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ से पहले 75 सप्ताहों तक विश्वविद्यालयों में समारोहों का निरंतर आयोजन किया जाएगा। ताकि, विवि के छात्र उनसे प्रेरणा ले सकें। समारोह के अंत में कुलसचिव नरेश मालव ने धन्यवाद ज्ञापन किया तथा बताया कि इसी कड़ी में अगला कार्यक्रम बैसाखी के अवसर पर जलियाँवाला बाग काँड की स्मृति में आयोजित किया जायेगा।