OMG! तो बादल भी होते हैं प्रेग्नेंट! इन्हें गुस्सा दिलाने पर क्यों मचती है तबाही
जानिए, क्यों गिरती है आसमान से बिजली और कैसे कर सकते हैं जान-माल की सुरक्षा
TISMedia@Kota. आसमान से गिरी आफत ने रविवार को राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जमकर तबाही मचाई। हजारों वोल्ट के झटके वाली इस बिजली ने 70 लोगों को मौत की नींद सुला दिया। तीनों राज्यों से दुख के बादल अभी छंटे भी न थे कि सोमवार को हिमाचल प्रदेश में “प्रेग्नेंट क्लाउड” के गुस्से ने जमकर तबाही मचाई। उत्तराखंड में तो यह आए दिन की बात हो गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस तबाही की वजह क्या है? और क्या वाकई में क्लाउड यानि बादल भी प्रेग्नेंट होते हैं? उन्हें क्यों गुस्सा आता है और फिर क्यों बिजली गिरती है?
कैसे बनते हैं बादल
चाहे आसमान से टूटने बिजली हो या फिर धम्म से जमीन पर फैंक दिए जाने वाले हजारों गैलन पानी की जल प्रलय, इसके लिए जिम्मेदार होता है सिर्फ बादल। ऐसे में सबसे पहला सवाल तो यही उठता है कि आखिर बादल बनता कैसे है? दरअसल, वायुमंडल (Atmosphere) की संरचना में बेहद अहम भूमिका निभाने वाले यह बादल आसमान में जलवाष्प के संघनन (Condensation) का नतीजा होते हैं। आसान शब्दों में कहें तो बादल, कोहरे का विशालतम रूप होते है। ये धरातल से काफी ऊंचाई पर विकसित होते हैं। उष्ण (Warm) तथा आद्र (Moist) वायु जब वायुमंडल में ऊपर की तरफ उठती है तो तेजी से ठंडी होती चली जाती है। कुदरत की इसी करिश्माई क्रिया को संघनन (Condensation) कहा जाता है। संघनन के उपरांत पानी की भाप जल कण या हिम कण के रूप में बदलकर बड़ी संख्या में एक दूसरे से जुड़ जाते हैं। जो बादल कहलाते हैं।
क्या आप जानते हैं? कितने तरह के होते हैं बादल
जमीन पर बैठे एक आदमी के लिए बादल का मतलब सिर्फ आसमान में उड़ता रूई का सा वह गोला होता है जो अपने अंदर पानी भरकर लाता है। कवियों की मानों तो उसकी मर्जी हो तो बरसे और न हो तो उड़ जाए, लेकिन जनाब! ऐसा नहीं है। वैज्ञानिकों की नजर में हवा का रुख नहीं बादलों की जमीन से ऊंचाई मायने रखती है। इसी आधार पर अन्तरराष्ट्रीय ऋतु विज्ञान परिषद (International Council of Meteorology) ने बादलों चार श्रेणियों में बांटा है। हालांकि, इन चार श्रेणियों की भी दस उप श्रेणियां होती हैं।
(i) उच्च मेघ (धरातल से औसत ऊँचाई 5-13 किलोमीटर)
(a) पक्षाभ मेघ (Cirrus clouds),
(b) पक्षाभ स्तरी मेघ (Cirro-stratus clouds),
(c) पक्षाभ कपासी मेघ (Cirro-cumulus clouds)
(ii) मध्य मेघ (धरातल से औसत ऊँचाई 2-7 किलोमीटर)
(d) स्तरी मेघ (Alto-stratus clouds),
(e) कपासी मध्य मेघ (Alto-cumulus clouds)
(iii) निम्न मेघ (धरातल से औसत ऊँचाई 0-2 किलोमीटर)
(f) स्तरी कपासी मेघ (Strato-cumulus clouds),
(g) स्तरी मेघ (Stratus clouds),
(h) वर्षा स्तरी मेघ (Nimbostratus clouds)
(iv) उध्ध्वाधर विकासवाले मेघ (आधार से शीर्ष तक की ऊँचाई 18 किलोमीटर अथवा अधिक)
(i) कपासी मेघ (Cumulus clouds)]
(j) कपासी-वर्षी मेघ (cumulonimbus clouds)।
तो बादल भी होते हैं “प्रेग्नेंट”
किस्से, कहानी और कविताओं में बादलों के बारे में आपने खूब पढ़ा होगा, लेकिन कभी विज्ञान की किताबें भी उतनी ही दिलचस्पी से पढ़ी होतीं तो पता चलता कि जिन बादलों को साहित्य की दुनिया में पुरुष प्रधान माना जाता है, वह विज्ञान की दुनिया में नारी प्रधान होते हैं। दरअसल, गर्म और नमी से भरी हवा के कण जब तक भारी मात्रा में इकट्ठे नहीं होते, तब तक वह जमीन नहीं छोड़ पाते। कुदरत के इस करिश्मे को हम और आप कोहरा कहते हैं। लेकिन, जैसे ही इनका झुंड बनता है और यह झुंड लगातार बड़ा होते हुए आसमान की ओर उठने लगता है, बादलों का स्वरूप धारण कर लेता है। ऐसा नहीं है कि हर बादल बारिश लेकर ही आए। पानी सिर्फ ‘प्रेग्नेंट क्लाउड’ में भरा होता है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक ‘प्रेग्नेंट क्लाउड’ वह होते हैं जिनके अंदर कई गैलन पानी भरा होता है और यही बादल बारिश लेकर आते हैं। मानसून के सीजन में जब साउथ-वेस्ट मानसून तेजी से आगे बढ़ता है तो उस वक्त ‘प्रेग्नेंट क्लाउड’ की संख्या काफी ज्यादा होती है
क्यों फटते हैं बादल?
दरअसल, जब कुदरती तौर पर आसमान में उड़ रहे बादलों का कोई चीज रास्ता रोकने की कोशिश करती है तो वह गुस्सा हो उठते हैं। एक तरह से कहें तो बादल फटने का अर्थ हम ‘प्रेग्नेंट क्लाउड’ का गुस्सा फूटना भी मान सकते हैं। ऐसा तब होता है जब आसमान में उड़ रहे पानी से भरे हुए बादल का कोई अप्राकृतिक चीज रास्ता रोकने की कोशिश करती है। बरसने से पहले जब कोई चीज ‘प्रेग्नेंट क्लाउड’ के रास्ते में रुकावट बनती है तो बड़ी तेजी से संघनन की क्रिया होने लगती हैं और ये फट जाते हैं। जिसकी वजह से और भारी बरसात होने लगती है या फिर यूं कहें कि प्रलय बनकर बरसने लगते हैं। बादलों के फटते ही इनमें भरा हजारों गैलन पानी एक साथ एक सीमित दायरे में जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ता है। जिसका बहाव काफी तेज होता है और इसी वजह से जो भी इसकी चपेट में आता है उसे यह अपने साथ बहा ले जाते हैं।
क्या होती है आकाशीय बिजली?
आकाशीय बिजली को हिंदी में ‘तड़ित’ या ‘वज्रपात’ भी कहा जाता है। जो इसकी प्रकृति की वजह से रखे गए नाम लगते हैं। दरअसल, बारिश के दिनों में आकाश में बादलों के बीच काफी टकराव होता है। गर्मी और पानी से भरे यह बादल ऊर्जा उत्पन्न करने लगते हैं और बादलों के बीच टक्कर होने से इस ऊर्जा जिसे हम इलेक्ट्रिक भी कह सकते हैं का डिस्चार्ज होने लगता है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बादलों में ऊर्जा बनती कैसे है? दरअसल, ऐसा तब होता है, जब बादल में मौजूद हल्के कण बादल के ऊपरी हिस्से की ओर जाकर पॉजिटिव चार्ज हो जाते हैं। वहीं भारी कण बादल के निचले हिस्से में जमा होकर निगेटिव चार्ज बना लेते हैं। जिससे ऊर्जा पैदा होने लगती है। अक्सरकर यह इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज बादलों के बीच में ही सीमित होता है। वहीं बनता और खत्म हो जाता है, लेकिन जब आपसी टकराहट और प्रेग्नेंट क्लाउड का आकार बड़ा होने के कारण बहुत ज्यादा मात्रा में ऊर्जा बनने लगती है तो यह यह बादलों से निकल कर डिस्चार्ज पाइंट तलाशने लगती है। जो इसे हमारे वायुमंडल में सिर्फ जमीन पर मिलता है।
क्यों गिरती है आकाशीय बिजली?
बादल में जब बिजली बन रही होती है, तब जमीन पर मौजूद चीजें भी उसके प्रभाव में आकर प्रतिक्रिया करने लगती हैं। इस प्रतिक्रिया के दौरान जमीन का ऊपरी हिस्सा पॉजिटिव चार्ज हो जाता है और भीतरी हिस्सा निगेटिव चार्ज। वायुमंडल में हो रही गतिविधि की प्रतिक्रिया स्वरूप जमीन की ऊपरी सतह पर स्थापित ऊंची चीजों जैसे पेड़, टॉवर, खंभों और मीनारों आदि के साथ-साथ वहां रखी हर चीज चाहे वह कार हो या इन्सान सभी को पॉजिटिव चार्ज कर देता है। आसमान में हो रही हरकतों के लिए बादलों से ज्यादा जमीन जिम्मेदार होती है। क्योंकि जैसे ही बादलों में इलेक्ट्रिक चार्ज बनने लगता है, वैसे ही जमीन भी प्रतिक्रिया स्वरूप बने इलेक्ट्रिक चार्ज को संभाल कर रखने के बजाय बादलों की ओर भेजने लगती है। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिकों की भाषा में स्ट्रीमर कहते हैं। जमीन से उठकर आसमान की ओर आने वाले स्ट्रीमरों को देख बादलों में नीचे की ओर मौजूद निगेटिव चार्ज उसकी ओर आकर्षित हो नीचे की ओर गिरने लगता है। तेज रोशनी और आवाज के साथ बादलों से निकल कर जमीन की ओर गया यही इलेक्ट्रिक चार्ज आकाशीय बिजली कहलाता है। बादलों में बनी ऊर्जा एक साथ भारी मात्रा में जमीन की ओर गिरने लगती है और भूमि की शतह के ऊपर बने ऊंचे स्थानों पर गिर कर जमीन के अंदर समा जाती है।
क्यों होती है बिजली गिरने से मौत?
आकाशीय बिजली का तापमान सूर्य की ऊपरी सतह से भी ज्यादा होता है। इसकी क्षमता 300 किलोवॉट अर्थात 12.5 करोड़ वॉट से ज्यादा चार्ज की होती है। यह बिजली मिली सेकेंड से भी कम समय के लिए ठहरती है। आसमानी बिजली कई तरीकों से हमला कर सकती है। डायरेक्ट स्ट्राइक उतनी ज्यादा नहीं होती, मगर यह सबसे जानलेवा मानी जाती है। अगर किसी इंसान पर सीधे बिजली गिरे तो वह डिस्चार्ज चैनल का हिस्सा बन जाता है। अधिकतर डायरेक्ट स्ट्राइक्स खुले इलाकों में होती हैं। ऐसे हालात में वो इंसान उस बिजली के लिए शॉर्ट सर्किट का काम करता है। ऐसा तब होता है जब वो इंसान बिजली गिरने की जगह के एक या दो फुट के फासले पर होता है। सबसे ज्यादा प्रभावित वो लोग होते हैं, जो बारिश के दौरान किसी पेड़ के नीचे शरण लेते हैं। पेड़ के नीचे शरण लेने वालों के ऊपर बिजली गिरने का ज्यादा खतरा रहता है। इस घटना को ‘साइड फ्लैश’ कहते हैं। ऐसा तब होता है जब बिजली पीड़ित के नजदीक की किसी लंबी चीज पर गिरती है और करंट का एक हिस्सा लंबी चीज से होते हुए पीड़ित तक पहुंचता है। भारत में एक-चौथाई मौतें पेड़ के नीचे या पास खड़े लोगों की हुईं। ग्राउंड करंट दूसरा तरीका है। जिस जगह बिजली गिरती है उसके आसपास करंट फैल जाता है। अमेरिका की वेदर सर्विस के अनुसार, सबसे ज्यादा मौतें इसी की वजह से होती हैं। कंडक्शन (चालकता) की वजह से भी मौतें होती हैं।बिजली गिरने की घटनाएं आमतौर पर तय पैटर्न के हिसाब से होती हैं। पूर्वी भारत में कालबैशाखी नाम के तूफान आते हैं जिनके साथ बिजली गिरती है। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में मॉनसून से पहले बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा होती हैं। CROPC के अनुसार, किसानों, चरवाहों, बच्चों और खुले में मौजूद लोग इसकी चपेट में ज्यादा आते हैं।
ऐसे बचाएं अपनी जान
तेज बारिश के साथ यदि बिजली चमक रही है और आप खुले आसमान के नीचे खड़े हैं तो जितना जल्दी हो सके वहां से हट जाएं। डिस्चार्ज की तलाश में आकाशीय बिजली सबसे पहले जमीन की सतह पर बनी ऊंची चीजों को तलाशती है। ऐसे में बारिश के दौरान पेड़ों, बिजली के खंभों, मोबाइल या वाच टॉवर के अलावा मीनारों से दूर हट जाएं। बिजली कड़कते समय आप सफर कर रहे हैं तो कार या जो भी वाहन हो उससे नीचे बिल्कुल न उतरें। क्योंकि जैसे ही बिजली कार आदि वाहनों पर गिरेगी तो उसकी ऊपरी सतह से होते हुए सीधे जमीन में चली जाएगी, न कि कार के अंदर। अक्सरकर बारिशों में छातों का इस्तेमाल हमारे यहां आम होता है, लेकिन कड़कड़ाती बिजली के दौरान छाते का इस्तेमाल जानलेवा हो सकता है। दरअसल, बिजली छाते के बीच में लगी लोहे या स्टील की स्टिक की ओर आकर्षित हो सकती है। ऐसे ही बारिश के दौरान मोबाइल का इस्तेमाल भी न करें। बालकनी या छत पर बिजली कड़कने के दौरान मोबाइल ही नहीं बल्कि, किसी भी तरह के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से दूर रहें। हां एक खास चीज और। यदि आपको लगता है कि आपका घर आकाशीय बिजली से सुरक्षित है तो यह भी एक बड़ी गलतफहमी होगी। क्योंकि आपका घर तब तक सुरक्षित नहीं हो सकता जब तक कि उसके निर्माण के दौरान या बाद में तड़ित चालक यानि कि लाइटनिंग कंडक्टर न लगा हो।