बच्चों की मौत से फिर दहला कोटा का जेकेलोन हॉस्पिटल, 8 घंटे में 9 बच्चों की मौत
– परिजनों का आरोप: बच्चे रोते रहे और मेडिकल स्टाफ सोता रहा
कोटा. जेकेलोन अस्पताल में 8 घंटे में 9 बच्चों की मौत हो गई। मौत का सिलसिला बुधवार देर रात 2.57 से शुरू हुआ जो गुरुवार सुबह 10.24 बजे तक चला। एक साथ इतने बच्चों की मौत होने से चिकित्सा विभाग में हड़कम्प मच गया। आक्रोशित परिजनों ने हंगामा कर दिया। परिजनों का आरोप है कि देर रात अचानक बच्चों की तबीयत खराब हो गई। अस्पताल स्टाफ को बुलाने गए तो वे ड्यूटी समय पर सोते रहे। बार-बार जगाने पर भी ठस से मस नहीं हुए। इस बीच बच्चों की तबीयत गंभीर होती रही और स्टाफ पूरी रात गहरी नींद में ही रहे। परिजन बच्चों की जिंदगी बचाने की गुहार लगाते रहे लेकिन अस्पताल में कोई ध्यान देने वाला नहीं था।
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जानकारी के अनुसार, बुधवार रात में ही 5 नवजातों की मौत हो गई। परिजनों ने अस्पताल स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए हंगामा कर दिया। यहां तक कि परिजन दो नवजात के शव को लेकर अस्पताल परिसर में ही बैठे रहे। परिजनों का कहना है कि रात को रहने वाला स्टाफ ड्यूटी टाइम पर सोता रहता है। बच्चे की तबीयत बिगड़ी तो वे उनके पास गए, लेकिन उन्होंने हमारी बात सुनने के बजाए सुबह चिकित्सकों के आने पर दिखाने की बात कहकर गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाया।
बच्चे रो रहे थे और स्टाफ सो रहा था
परिजनों ने कहा कि रात को अचानक बच्चों की तबीयत खराब होने पर वे जोर-जोर से रो रहे थे, इसके बावजूद मेडिकल स्टाफ की नींद नहीं टूटी। समय पर इलाज नहीं मिलने से आखिर नवजातों की सांसे ही थम गई। परिजनों ने कहा कि अस्पताल में नवजातों की ठीक से देखभाल नहीं की जाती। बार-बार कहने के बावजूद स्टाफ और चिकित्सक लापरवाही बरतते हैं। जिन पांच बच्चों की मौत हुई है, उनमें गावडी सिविल लाइंस कोटा, कापरेन बूंदी, कैथून रोड रायपुरा के दो नवजात शामिल है। इनमें से तीन प्रसव जेके लोन में ही हुए थ।
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अस्पताल अधीक्षक बोले-मुझे नहीं पता
बच्चों की मौत पर अस्पताल अधीक्षक डॉ. एससी दुलारा का कहना है कि देर रात यहां क्या हुआ, इस संबंध में मुझे कुछ पता नहीं है। शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अमृतलाल बैरवा से मामले की जानकारी लेंगे और मौत का कारण क्या रहा, यह जानना जरूरी है। विभागाध्यक्ष से जांच रिपोर्ट लेंगे।
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950 से ज्यादा बच्चों की हुई थी मौत
जेकेलोन अस्पताल में नवजातों की मौत का यह मामला नया नहीं है। वर्ष 2019 में यहां 963 बच्चों की मौत हुई थी। इतनी संख्या में बच्चों की मौत का मामला पूरे देशभर में गर्मा गया था। इसको लेकर काफी हंगामा हुआ था। इसके बाद राजस्थान सरकार को भी बार-बार सफाई देनी पड़ी थी।