शिक्षा की अलख जगा रही “रागिनी” की कहानी, जिसने अपने दम पर बदल डाली स्कूल की सूरत
रागिनी का शिक्षामित्र के लिए चयन हुआ था। जिस गांव के बच्चों को शिक्षित करने का दायित्व उसे सौंपा गया था, वह एक पिछड़ा क्षेत्र था। यहां अभी तक शिक्षा का दीप प्रज्जवलित नहीं हुआ था, इसलिए इस गांव को लोग ‘ पिछड़ा गांव ‘ के रूप में जानते थे। यहां के लोगों का मुख्य पेशा गौ-पालन व खेतीबाड़ी था। यही कारण था कि यहां के लोग अपने बच्चों को पढ़ाने में कोई रुचि नहीं रखते थे।
पूरे क्षेत्र में एकमात्र प्राथमिक सरकारी स्कूल था। इसमें शिक्षक और हेड मास्टर के नाम पर एकमात्र शर्मा जी तैनात थे। बच्चों की संख्या शून्य थी, लेकिन हेड मास्टर साहब हमेशा अपने रजिस्टर में 10-12 बच्चों का नाम दर्ज रखते थे, ताकि उनकी रोजी-रोटी चलती रहे। इसी प्राथमिक विद्यालय में रागिनी की नियुक्ति हुई थी। रोज शहर से गांव आना-जाना संभव नहीं था, इसलिए रागिनी ने गांव को ही अपना ठौर बनाना उचित समझा। उसने इस संबंध में हेड मास्टर साहब से बात की तो उन्होंने स्कूल के बगल में ही एक साफ-सुथरा कमरा रागिनी को दिलवा दिया। रागिनी जब वहां पहुंची तो यह देखकर दंग रह गए कि कमरे के साथ शौचालय तो था ही नहीं। उसने हेड मास्टर साहब से बात की तो उन्होंने बड़े सहज भाव से कह दिया, अरे भई गांव की सभी महिलाएं पास के खेत में बड़े सबेरे जाती हैं, तुम भी चली जाना।
यह बात रागिनी को बहुत नागवार गुजरी। उसने हेड मास्टर साहब को सीधे लफ्जों में धमकी दे दी कि यदि उसके लिए अलग से टॉयलेट नहीं बनवाया गया तो वह न केवल शहर लौट जाएगी, बल्कि शिक्षा अधिकारी से शिकायत कर उनके स्कूल की मान्यता भी समाप्त करा देगी। हेड मास्टर साहब बड़े पसोपेश में पड़ गए। आखिर उन्होंने मकान मालिक से अनुरोध कर आनन-फानन में घर से जुड़ा शौचालय और स्नानघर भी बनवा दिया। बेशक इसमें उन्हें कुछ पैसे खुद की जेब से भी खर्च करने पड़े। फिर क्या था, रागिनी खुशी-खुशी उस घर में रहने आ गई। अब उसके सामने समस्या यह थी कि स्कूल में बच्चे कैसे लाए जाएं ? तो रागिनी ने घर-घर जाकर लोगों को न केवल शिक्षा का महत्व समझाना शुरू किया, बल्कि उन्हें सफाई का महत्व भी समझा कर कहा कि सभी लोग अपने घर में शौचालय अवश्य बनवाएं, क्योंकि महिला-पुरुषों का खुले में शौच करना अमर्यादित होने के साथ-साथ घृणित भी है। यह एक प्रकार से महिलाओं की अस्मिता पर चोट है, वहीं इससे गंदगी फैलती है जो कि विभिन्न बीमारियों को जन्म देती है।
शुरू-शुरू में तो रागिनी की यह बात किसी के गले नहीं उतरी और उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल भेजने से साफ़-साफ़ इनकार कर दिया। गांव के बुजुर्गवार तो इस बात को ही मानने को तैयार नहीं थे कि खेतों में शौच जाने से बीमारी फैलती है। बल्कि उनका मानना था कि इससे खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। रागिनी के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया। फिर भी उसने हार नहीं मानी। रागिनी ने सोचा कि यदि शहर से बुला कर कुछ लड़के-लड़कियों की एक टोली तैयार कर ली जाए तो निश्चित रूप से वे गांव वालों को इस बारे में समझा सकेंगे। इसी के साथ रागिनी ने गांव में मुनादी करा दी कि स्कूल में हर रोज बच्चों के लिए खेलों का आयोजन किया जाएगा और बीच-बीच में जादू भी दिखाया जाएगा। इसके लिए रागिनी ने शहर से अपने परिचित एक जादूगर और खेल क्लब के कुछ सदस्यों को गांव बुला लिया। फिर क्या था, जब बच्चों को पता लगा कि स्कूल में खेल खिलाए जाते हैं और जादू दिखाया जाता तो वे रोज स्कूल आने लगे। रागिनी ने भी बिना देर किए खेलों का समय निर्धारित कर दिया, ताकि बच्चे समय पर स्कूल आएं। इसी के साथ उसने अपने साथियों व जादूगर से कहा कि वह बच्चों को जादू के साथ-साथ अक्षर ज्ञान कराना भी शुरू कर दें। धीरे-धीरे स्कूल में लगभग 50 बच्चे आने लगे। उनका नाम रागिनी और हेड मास्टर साहब ने रजिस्टर में दर्ज कर लिया और रोज उनकी हाजिरी होने लगी।
अगले कदम के तौर पर रागिनी ने बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन की व्यवस्था करानी चाही तो हेड मास्टर साहब ने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि बजट ही नहीं है। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि रागिनी चाहे तो शिक्षा अधिकारी को आमंत्रित कर बच्चों के लिए इसकी व्यवस्था भी करा सकती है। फिर क्या था, शहर जाकर रागिनी ने शिक्षा अधिकारी महोदय को स्कूल का निरीक्षण करने के लिए आमंत्रित कर लिया। जब अधिकारी महोदय स्कूल आए तो 50 बच्चों को देखकर चकित रह गए। सभी लोगों ने उन्हें बताया कि यह रागिनी के प्रयासों से ही संभव हो सका है। फिर दोपहर में बच्चों के अभिभावकों को भी स्कूल आमंत्रित किया गया था और उनके लिए भव्य भोजन की भी व्यवस्था की गई थी। इस दौरान शिक्षाधिकारी ने सभी अभिभावकों से आग्रह किया कि वे गांव के अन्य लोगों को भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करें। उन्होंने अभिभावकों को बताया कि बच्चों के लिए दोपहर में मध्याह्न भोजन की भी व्यवस्था की जाएगी। उनके बच्चे पढ़-लिख कर अफसर बनेंगे। यह बात काफी हद तक गांव वालों को समझ आई और उन्होंने शिक्षा अधिकारी को आश्वासन दिया कि अगली बार जब वे स्कूल आएंगे तो बच्चों की संख्या सौ से भी ज्यादा होगी।
देखते-देखते एक साल बीत गया और गांव वालों के प्रयासों से स्कूल में भी बच्चों की संख्या सौ से अधिक जा पहुंची। रागिनी ने फिर एक बार शिक्षा अधिकारी महोदय को स्कूल आमंत्रित किया तो वो सौ से भी ज्यादा बच्चों की संख्या देख कर बहुत खुश हुए। उन्होंने तत्काल ही बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की समस्या को देखते हुए खेल खिलाने वाले युवाओं को उनकी शैक्षिक योग्यता के अनुरूप शिक्षामित्र के रूप में नियुक्ति प्रदान कर दी। अब वे सब बच्चों को जी-जान से साक्षर करने में जुटे थे। शिक्षा अधिकारी ने रागिनी को भी शिक्षक के रूप में प्रमोट कर दिया। अब अन्य गांव वाले भी न केवल अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे थे, बल्कि उन्होंने साफ-सफाई को ध्यान में रखते हुए घर में शौचालय बनवाने भी शुरू कर दिए थे। रागिनी के प्रयासों से गांव में शिक्षा की अलख जग चुकी थी।
लेखकः रवि शर्मा, वरिष्ठ साहित्याकार हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में चार दशक से भी ज्यादा का अनुभव रहा है। बाल कहानियों के लिए उन्हें देश और दुनिया भर से कई सम्मान मिल चुके हैं।