कोरोनाः तांड़व मचा रही आपदा, प्रबंधन हुआ लापता…

"मार्गदर्शक मंडलों" में छिपी है कोरोना डिजास्टर मैनेजमेंट की राह

हिन्दुस्तानी रिवाज रहा है कि जब भी कोई लड़का ब्याहने जाता तो कुछ खडूस माने जाने वाले बुजुर्ग उसकी बारात का हिस्सा जरूर होते…! जनमासे सजते तो इन सलबटी चमड़ी वालों का खास ख्याल रखा जाता… औहदा जो भी हो, जिस कौने में इनका कब्जा होता उसी में कीमती साजो सामान और खास लोग जमे मिलते…! वक्त के साथ रवायतें बदलीं… जनमासों की जगह धर्मशालाओं और फिर गेस्ट हाउस और होटलों ने ले ली…! ऐसे में न वो कौने बचे और ना ही जनमासों की शान वो बुजुर्ग…! हां, फूफा-मामा के रूठने और नशे में धुत्त यारों का मजमा जरूर हावी होता चला गया…! – विनीत सिंह 

कोरोना की बेलगाम होती दूसरी लहर का असर नहीं है ये  और ना ही इस दरमियां दफ्तर से लेकर घर तक की कैद का असर है ये… ना ही सठिआया हूं और ना ही किसी अवसाद के दौर से गुजर रहा हूं… पूरे होशो हवास में कोरोना के कहर से निपटने के लिए कारगर डिजास्टर मैनेजमेंट की तलाश में जुटा हूं… जिसकी राह अब भी मुझे इसी ”मार्गदर्शक मंडली” में ही छिपी नजर आ रही है…। अच्छा एक चीज बताइए… कोरोना का कहर अंग्रेजी में कहें तो मेडिकल डिजास्टर ही है न…? और आपका जवाब हां में है तो जरा बताइए आपके सूबे या इस देश का डिजास्टर कमिश्नर कौन है… और मंत्रालय किसके पास है… कौन कबीना या कौन उनका मातहत राज्य मंत्री है…!

ऐसे हुआ गठन
गूगल ही करोगे जिंदगी भर… क्योंकि इतना तक नहीं पता कि सिविल डिफेंस कमिश्नर ही आपदा आयुक्त होता है… जिसके पास पूरे साल एक ही काम होता है संभावित आपदाओं का पता लगाना और उनसे निपटने के लिए टीम और संसाधन जुटाना… लेकिन, राज्यों की बात तो छोड़िए इस देश का दुर्भाग्य है कि कोरोना काल में भी हम इस अहम विभाग को याद नहीं कर पा रहे हैं…! साल 1962… चीनी हमले ने चंद साल पहले आजाद हुए हिंदुस्तान की कमर तोड़ कर रख दी थी… युद्ध की विभीषिका बढ़ने लगी तो आम आदमी को सुरक्षित बचाने और और उसका मनोबल बढ़ाने के लिए एक अहम व्यवस्था जन्मी… नाम रखा गया सिविल डिफेंस…! बकायदा 24 मई, 1968 को “नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968” लागू हुआ और इस स्वयं सेवी संगठन का काम तय हुआ… आपदा के दौरान जीवन की रक्षा, सम्पत्ति की हानि को कम करने, उत्पादन की निरन्तरता को बनाए रखने और जनमानस के मनोबल को ऊंचा रखना…!

गली के आखिरी छोर तक पकड़
सिविल डिफेंस… सरकारी मुलाजिमों का जमावड़ा नहीं था… इसे सरकारीकरण से बचाने के लिए ही पूरी तरह स्वयंसेवकों के हवाले किया गया… स्थानीय क्षेत्र का ठोस एवं सही ज्ञान रखने वाले, प्रभावपूर्ण, साहसी व्यक्तित्व वाले सक्षम एवं समाजसेवी व्यक्तियों को इसका हिस्सा… यानि स्वयंसेवक बनाया गया… जिन्हें उनके कार्य एवं दायित्व के अनुसार चीफ वार्डेन, डिप्टी चीफ वार्डेन, डिवीजनल वार्डेन, डिप्टी डिवीजनल वार्डेन, पोस्ट वार्डेन, डिप्टी पोस्ट वार्डेन, सेक्टर वार्डेन पदनाम दिए गए…! सुखद बात यह थी कि इससे वाकई में ऐसे लोग जुड़े जिनकी समाज ही नहीं लोगों पर अच्छी पकड़ थी… जिनकी बात लोग सुनते और समझते ही नहीं थे, बल्कि मानते भी थे…!

बेहद अहम जिम्मेदारी
हिंदुस्तान ने तीन बड़े युद्ध… बाढ़ और भूकंप जैसी सैकड़ों प्राकृतिक आपदाएं देखी… आपदा और राहत के इस अहम दौर में सिविल डिफेंस सेवा लोगों की जिंदगी बचाने के लिए बेहद अहम समझी जाने लगी… नतीजन, दौर बदला तो स्वयंसेवकों की भर्ती प्रक्रिया तय हुई… उन्हें प्रतिक्षण दिया जाने लगा और इसके बाद जन सामान्य के बीच हवाई हमले की चेतावनी का प्रसारण, आश्रय की व्यवस्था, हवाई आक्रमण से हुई क्षति का अनुमान लगाने, फायर ब्रिगेड एवं नियंत्रण/उपनियंत्रण केन्द्रों को क्षति की सूचना देने, अफवाहों का खण्डन करने, बचाव एवं राहत से जुड़े व्यक्तियों को सहायता एवं मार्गदर्शन देने, बिना फटे बमों की सूचना देने, प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराने तथा स्थानीय स्तर पर जन-सहयोग प्राप्त करने, ब्लैक आऊट/प्रकाश प्रतिबन्ध लागू कराने तथा शासन द्वारा दिये गये निर्देशों को जनता तक पहुंचाने व क्रियान्वयन कराने जैसे अहम काम सौंपे गए…!

प्रशिक्षण का इंतजाम
सिविल डिफेंस सेवा की अहमियत को देखते हुए देश और सूबे की राजधानी से लेकर गांव और शहर की गली के आखिरी छोर तक मौजूद स्वयं सेवकों के लिए बकायदा प्रशिक्षण का इंतजाम किया जाने लगा… इन्हें सिविल डिफेंस ओरिएन्टेंशन कोर्स, सिविल डिफेंस बेसिक वार्डेन कोर्स, सिविल डिफेंस बेसिक कम्यूनिकेशन कोर्स, सिविल डिफेंस इंसिडेण्ट कन्ट्रोल आफिसर्स कोर्स, सिविल डिफेंस बेसिक रेस्क्यू रिस्पोन्स कोर्स, सिविल डिफेंस न्यूक्लियर, बायोलाजिकल एंड कैमिकल ओरिएन्टेशन जैसे अहम कोर्स कराए जाने लगे…! लेकिन…. लेकिन क्या… देश में धार्मिक उन्माद के पैर पसारते ही इन स्वयं सेवकों को गैर जरूरी समझा जाने लगा… सियासत ऐसी हावी हुई कि गली के आखिरी छोर तक मुस्तैद रहने वाली सरकार, प्रशासन और आमजन के बीच की यह अहम कड़ी धीरे धीरे घिसकर टूट गई…!!

कोरोना काल में खली कमी 
फिलहाल डिजास्टर मैनेजमेंट का आधार यानि सिविल डिफेंस तकरीबन दम तोड़ चुका है… गली मुहल्लों की बात तो छोड़िए जिले के स्तर पर भी स्वयं सेवक ढ़ूढ़ने से नहीं मिलते… और मिल भी जाएं तो वह इतनी जगह जुटे होते हैं कि मूल रूप से स्वयं सेवक नहीं रह पाते…। कोविड 19 के अनायास हुए हमले से लोगों को बचाने के लिए जब देश भर की सरकारों ने व्यवस्थाओं का रोना रोया… कदम कदम पर टूटते लॉक डाउन की सिसकियां सुनाई पड़ी तो एक बार फिर सिविल डिफेंस के स्वयंसेवकों की कमी खली…। लोगों को कोरोना की भयावहता का आभास कराने… उससे बचने और रोजी छिनने के बाद उन तक रोटी का इंतजाम कराने के लिए जब पूरा पुलिस अमला झौंक दिया गया तब जाकर महसूस हुआ कि सिविल डिफेंस की क्या अहमितयत थी…।।

फिर खड़ी करनी होगी मृत पड़ी संस्थाएं 
संस्थाओं के खत्म होने का दौर है… लेकिन, जिसने काम के बूते अपनी जगह बनाई होती है उनकी मुसीबत में हर किसी को याद जरूर आती है…।। सिविल डिफेंस… एनसीसी… एनएसएस और स्काउट गाइड जैसे संगठन इस देश में यूं ही खड़े नहीं किए गए थे… इनकी अहमियत को समझा और जरूरत को जाना गया था… लेकिन यह बात दीगर है कि तकनीकी के दौर में इनके प्रशिक्षण और इस्तेमाल का तरीका इतना पुराना पड़ चुका था कि यह स्टोर रूम में पड़े आरी, छैनी और हथोड़े सरीखे लगने लगे…।।

कोरोना काल में महत्व
सिविल डिफेंस को तवज्जो दी गई होती तो कोरोना काल में वायरस के हमले से लोगों को बचाने के लिए हमारे पास प्रशिक्षित योद्धा होते… ऐसे लोग जिनका सिक्का उनकी गली से लेकर शहर तक में चलता … और लोग बात सुनने, समझने के साथ मानते भी…। इनके साथ एनसीसी. एनएसएस और स्काउट गाइड के स्वयं सेवक लगाए जाते ताकि गली के हर नाके पर लॉक डाउन की कड़ाई से पालना कराई जा सकती… लोगों को इस महामारी से बचने के लिए समझाया जा सकता…।। इन्हीं लोगों के हाथ में जरूरतमंदों तक राहत सामग्री पहुंचाने से लेकर दूध, अखबार और आटा-सब्जी का वितरण भी सौंपा जा सकता था…। जिससे इन्हें रोजगार भी मिलता… और अपराधियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित पुलिस कर्मियों को काल के गाल में समाने से बचाया जा सकता था… सिर्फ पुलिस कर्मी ही क्यों चिकित्सकों एवं पैरामेडिकल स्टाफ को भी क्वारेंटाइन होने से बचाया जा सकता था… ऊपर से हर एक व्यक्ति की जांच और स्कैनिंग कराने में मदद मिलती सो अलग…।

आगे क्या…
अब भी वक्त है… डिजास्टर मैनेजमेंट की पुरातन व्यवस्था को जीवंत कर इसका सदुपयोग किया जा सकता है… क्योंकि कोरोना ने अभी सिर्फ दस्तक दी है… जब तक काट नहीं तलाश ली जाती तब तक इसके साथ रहने की आदत डालनी होगी… जिसमें कब और कहां कितने दिनों के लिए लोग होम आइसुलेट होंगे… लॉक डाउन लगेगा कोई नहीं जानता…। और ऐसे में सिविल डिफेंस के प्रशिक्षित स्वयं सेवक आम जन की मुश्किलें कम करने में खासे कारगर साबित हो सकते हैं….।।।
देखने की बात यह होगी कि कोरोना की बारात हर शहर में जनमासा सजा चुकी है… ऐसे में हुकमरान और हाकिम ”मार्गदर्शक मंडल” में शामिल की जा चुकी इस व्यवस्था को पुनः मुख्य धारा में ला भी पाते हैं या नहीं… और उससे भी बड़ी बात यह कि इस व्यवस्था में छिपी मुसीबत से लड़ने की राह उन्हें कभी दिखाई भी पड़ेगी… या फिर फूफा बने रायता फैलने तक मुंह फुलाए बैठे ही रहेंगे…।

(लेखक- विनीत सिंह  द इनसाइड स्टोरी (TIS Media) के संपादक हैं। उत्तर प्रदेश आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में बतौर विशेषज्ञ अपनी सेवाएं दे चुके हैं। ) 

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