ये हौसला कैसे झुकेः कोरोना के आगे हथियार डाल चुके लोगों को लड़ना सिखा रहे “कर्मवीर”
कोरोना की भयावहता के आगे मानसिक रूप से टूट चुके लोगों के लिए हौसले की किरण बने मनोचिकित्सक
- जिन कोविड मरीजों को अपनों तक ने छोड़ दिया, उनके साथ हर वक्त खड़े हैं यह कोरोना कर्मवीर
कोटा. कोरोना के कहर ने सिर्फ जिस्म पर ही वार नहीं किया, हिम्मत तक तोड़ कर रख दी है! बीमारी का खौफ मरीजों पर बीमारी से ज्यादा भारी पड़ रहा है। आलम यह है कि आधे लोग बीमारी के शिकंजे में फंसते ही हिम्मत खो देते हैं और जो बाकी के अस्पताल तक पहुंचते हैं उनके हौसले, अपने चारों ओर एक-एक सांस के लिए छटपटाते लोगों को देख कर पस्त हो जाते हैं। जीने की आश खो चुके ऐसे ही लोगों को दिन रात हौसले की डोज देने में जुटे हैं न्यू मेडिकल कॉलेज कोटा के कोरोना कर्मवीर मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक।
कोरोना की दूसरी लहर का अचानक हुआ हमला लोगों को संभलने का मौका ही नहीं दे रहा है। संक्रमण की चपेट में आने के बाद हालात इस कदर खराब हो रहे हैं कि एक एक सांस के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। मरीजों की तादाद में तेजी से हुए इजाफे के कारण अस्पतालों में तिल रखने तक जगह नहीं बची। वहीं मरीज को ठीक होने में लंबा वक्त लगने के कारण अवसाद भी तेजी से घेरने में जुटा है। परिजनों की परेशानी और अस्पतालों से लेकर कोविड केयर सेंटर्स तक जिंदगी के लिए छटपटाते लोगों को देखकर मरीज के मानसिक हालात दिनों दिन बिगड़ते चले जाते हैं। तमाम मामलों में देखने को मिला कि कोरोना की चपेट में आया व्यक्ति इलाज मिलने के बाद भी आसानी से ठीक नहीं हो पाता और ठीक होने के बाद भी उनकी हालत में बेहद धीमी रफ्तार से सुधार हो पाता है। जिसकी वजह है उसकी वह मानसिक अवस्था जो उसे कोरोना के कहर के आगे लाचार साबित कर देती है।
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सरकार ने गठित की तनाव प्रबंधन कमेटी
ऐसी ही लाचारी को खत्म करने के लिए और कोरोना संक्रमितों को हौसले की डोज देने के लिए राजस्थान सरकार ने जिला स्तर पर मनोचिकित्सकों एवं मनोवैज्ञानिकों की तनाव प्रबंधन कमेटी गठित की है। यह कमेटी न सिर्फ कोरोना की चपेट में आए लोगों बल्कि बीमारी और मरीज की हालत देखकर अवसाद से घिरे तीमारदारों तक की हिम्मत बंधाने और उपचार देने में जुटी है। कोटा में न्यू मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ आचार्य एवं मनोचिकित्सक डॉ. बीएस शेखावत के नेतृत्व में तनाव प्रबंधन कमेटी का गठन किया गया है। इस कमेटी में मनोचिकित्सा विभाग की सह आचार्य डॉ. मिथिलेश खींची, चिकित्साधिकारी डॉ. राजमल मीणा और मनोवैज्ञानिक पूर्ति शर्मा एवं योगिता यादव को शामिल किया गया है।
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जहां अपने छोड़ रहे हाथ, वहां मिल रहा इनका साथ
न्यू मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल के कोरोना वार्ड से लेकर सुपर स्पेशलिटी विंग और कोटा विश्वविद्यालय मे स्थापित किए गए कोविड केयर सेंटर में भर्ती कोरोना के गंभीर मरीजों के हालात देखकर जहां एक ओर उनके परिजन तक साथ खड़े होने से कतराने लगते हैं, वहां मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की यह टीम मरीजों को हौसले की डोज दे रही है। एक एक मरीज तक जाना, उन्हे देखना और फिर काउंसलिंग करने जैसा दुरूह काम यह टीम कर रही है। बड़ी बात यह है कि मरीजों से ज्यादा उनके तीमारदारों को समझाने और उनकी हिम्मत बांधे रखने के लिए तनाव प्रबंधन कर रही इस टीम को जूझना पड़ रहा है।
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हर दूसरा मरीज एन्जाइटी का शिकार
कोरोना पीड़ितों और उनके परिजनों के मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाने में जुटी इस कमेटी की सदस्य डॉ मिथलेश खिंची बताती हैं कि हर दूसरा मरीज इस वक्त मानसिक अवसाद का शिकार है। महामारी के प्रकोप से जूझ रहे मरीजों के परिजनों की मानसिक हालत तो और भी ज्यादा खराब हो रही है। इसकी वजह बताते हुए वह कहतीं हैं कि कोरोना भय और तनाव उत्पन्न कर रहा है। जिसका सीधा असर मरीज की मानसिक स्थिति पर पड़ता है। नतीजन, मरीज ही नहीं उसके परिजन तक हिम्मत हारने लगते हैं। डॉ. राजमल कहते हैं कि “हमारी टीम की पूरी कोशिश है कि हम कोविड पेशेंट की हर संभव मानसिक मदद कर उसे उचित उपचार दे पाए।“
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दवाओं के साथ “हौसले की डोज” जरूरी
कोविड पॉजिटिव मरीजों के बीच पहुंच कर उनकी हिम्मत बंधा रही मनोवैज्ञानिक पूर्ति शर्मा कहती हैं कि लोगों पर कोरोना से ज्यादा कोरोना का खौफ तारी है। कोरोना के पहले दौर मे लोगों को कठिनाइयों का सामना तो करना पड़ा था, लेकिन मृत्यु का खतरा न के बराबर था। ऐसे में लोगों ने लॉक डाउन से लेकर कोरोना से लड़ने के लिए इस्तेमाल किए गए हर मौके और तरीके को इंज्वाय किया था, लेकिन दूसरी लहर न सिर्फ बेहद तेजी से आई, बल्कि पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा घातक कोविड वायरस के वेरिएंट ने लोगों की जान लेना शुरू कर दिया। नतीजन, लोग संभलने के बजाय बुरी तरह हड़बड़ा गए। जिसकी वजह से कोरोना के खिलाफ छिड़ी जंग खासी मुश्किल हो गई। ऐसे में हर कोई खुद को बचान के लिए ऑक्सीजन और दवाओं पर टूट पड़ा। नतीजन, चीजों की कमी हुई और ऑक्सीजन की बात तो छोड़िए अस्पतालों में भर्ती होने तक के लिए संघर्ष करना पड़ा। बस यही वह पड़ाव था, जब तनाव ने अवसाद का रूप धारण कर लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कोरोना की चपेट में आए लोग जो आसानी से ठीक हो सकते थे, लेकिन अवसाद का शिकार होने के कारण हिम्मत हार गए।
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रंग ला रही अनूठी पहल
पूर्ति शर्मा कहती हैं कि इसी हिम्मत को बांधे रखने के लिए राजस्थान सरकार ने तनाव प्रबंधन कमेटी गठित करने की अनूठी पहल की है। जो खासी सफल भी हो रही है। वह कहती हैं कि “सोचकर देखिए, जिस व्यक्ति के पास उसका परिवार वाला तक जाने के तैयार नहीं है। उसके पास मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की पूरी टीम न सिर्फ पहुंच रही है, बल्कि तब तक उसके साथ जूझती है, जब तक कि उसका तकरीबन लुप्त हो चुका हौसला फिर से हिलोरें न मारने लगे। कोरोना के संक्रमण को खत्म करने के लिए बीमारी से लड़ने और फिर से जी उठने की जब तक हिम्मत न आ जाए तब तक यह टीम उसे हौसले की डोज देती रहती है। खुशी की बात यह है कि यह कोरोना वॉरियर अपनी जान जोखिम में डालकर जिंदगी के लिए लड़ रहे हर एक कोरोना पॉजिटिव को सलाह और उपचार के जरिए फिर से जीने की राह दिखा रहे हैं। ऐसे कर्मवीरों को #TISMedia का सलाम…!