Story By Munshi Premchand
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Art and Literature
प्रायश्चित… आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद 1 दफ्तर में जरा देर से आना अफसरों की शान है। जितना ही बड़ा अधिकारी होता है,…
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बूढ़ी काकी… आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद 1 जिह्वा-स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी और न अपने कष्टों की ओर आकर्षित…
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बड़े घर की बेटी… पढ़िए आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद 1 बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमींदार और नम्बरदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धन-धान्य संपन्न…
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क़ातिल… आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद 1 जाड़ों की रात थी। दस बजे ही सड़कें बन्द हो गयी थीं और गालियों में सन्नाटा…
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बड़े भाई साहब… आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद 1 मेरे भाई साहब मुझसे पॉँच साल बडे थे, लेकिन तीन दरजे आगे। उन्होने भी उसी उम्र…
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नमक का दारोगा… आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वरप्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो…
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लॉटरी… पढ़िए आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद जल्दी से मालदार हो जाने की हवस किसे नहीं होती ? उन दिनों जब लॉटरी के टिकट…
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जुलूस… पढ़िए आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद 1 पूर्ण स्वराज्य का जुलूस निकल रहा था। कुछ युवक, कुछ बूढ़े, कुछ बालक झंडियाँ और झंडे…
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पछतावा… पढ़िए आज की कहानी
~मुंशी प्रेम चंद 1 पंडित दुर्गानाथ जब कालेज से निकले तो उन्हें जीवन-निर्वाह की चिंता उपस्थित हुई। वे दयालु और…
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