क्रूरतम तानाशाह की बरसीः बस यही खामोशी मेरा उत्तर है…
विशेष लेखः रुसी तानाशाह जोसेफ विस्सारवियानोविच स्टालिन की 68वींं "मुक्ति" तिथि पर
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- के. विक्रम राव, अध्यक्ष, इंडियन फैडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट
एकदा राजधानी मास्को के सत्ताभवन क्रेमलिन में सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठतम अधिनायकों की बैठक हो रही थी। महासचिव निकिता खुश्चोव बता रहे थे कि: ”जोसेफ स्टालिन रुसी इतिहास में क्रूरतम तानाशाह रहा। इसने लाखों निर्दोष जनों का कत्ल कराया।” इस पर पीछे से आवाज आई : ”कामरेड, तब आपने विरोध क्यों नहीं किया ?” खुश्चेव ने पूछा: ”किसका प्रश्न है यह?” सभागार में एकदम शांति पसर गयी। खुश्चेव ने कहा: ”बस यही खामोशी मेरा उत्तर है।”
आज (5 मार्च 2021) रुसी तानाशाह जोसेफ विस्सारवियानोविच स्टालिन की 68वीं पुण्य (मुक्ति) तिथि है। एक अनुमान में उसने अपने राज में डेढ़ करोड़ को मौत दी। द्वितीय विश्वयुद्ध में 90 लाख रुसी सैनिकों की बलि चढ़ाई। इसी युद्ध में स्टालिनग्राद में पकड़े गये नाजी सेना के पराजित जवानों में थे इतालवी तानाशाह तथा हिटलर के हमराही बेनिटो मुसोलिनी के एक सिपाही। उनका नाम था स्टिफानो मियानों। उनकी पुत्री है सोनिया मियानो—गांधी, अब भारतीय कांग्रेसी नेता।
संसद में शोकसभा (6 मार्च 1953) के दौरान स्टालिन को श्रद्धांजलि देते हुये जवाहरलाल नेहरु ने कहा था: ”इस रुसी नेता ने अपना वजन और प्रभाव विश्वशांति के पक्ष में डाला था।” स्टालिन ने कभी भी अपने विरोधियों को जीवित नहीं छोड़ा था। महान विचारक और लेनिन के विशेष अनुयायी लियोन ट्रॉट्स्की को देश से निकाला। मेक्सिको में वे शरणार्थी थे जब स्पेनी कम्युनिस्ट जेइम मर्काडर ने हथौड़े से ट्रॉट्स्की का सिर फोड़कर हत्या (अगस्त 1948) कर दी थी। स्टालिन ने भेजा था।
स्टालिन के सर्वाधिक निष्ठावान अनुगामी थे चीन के माओ जेडोंगे और उत्तर कोरिया के किम इल सुंग। दोनों के नाम असंख्य हत्याओं का कीर्तिमान दर्ज है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी में बीटी रणदिवे, पीसी जोशी, श्रीपाद अमृत डांगे, ज्योति बासु आदि स्टालिन के कट्टर अनुयायी थे।
यह सोवियत और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टियों के मौकापरस्ती का दृष्टांत है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले दौर में हिटलर से स्टालिन ने ”शाश्वत” मित्रता की संघि पर हस्ताक्षर किये। तब भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने साम्राज्यवादी युद्ध का नाम देकर गांधीजी और कांग्रेस का ब्रिटेन के विरुद्ध जनान्दोलन में साथ दिया। कुछ समय बाद नाजी जर्मनी ने रुस पर आक्रमण किया तो स्टालिन ने ब्रिटेन से मित्रता की संधि कर ली। इस पर तत्काल भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने ब्रिटिश—विरोधी साम्राज्यवादी जंग को बंद कर ब्रिटेन का समर्थन किया। कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। ”भारत छोड़ो” आन्दोलन की मुखालफत की। रातों—रात जनयुद्ध कहकर ये भारतीय कम्युनिस्ट ब्रिटिश राज और उसकी पुलिस के मुखबिर बन गये। स्वाधीनता आंदोलन के साथ द्रोह किया। ज्योति बसु तब नेताजी सुभाष बोस हिटलर—टोजो का कुत्ता कहते थे। नई दिल्ली के गोलमार्केट में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का मुख्यालय ए.के. गोपालन भवन है। वहां माओ तथा स्टालिन के बड़े चित्र अभी भी लगे हैं।
स्टालिन की कुछ मशहूर उक्तियां दिलचस्प हैं। उन्होंने कहा था : ”सत्ता की शक्ति लम्बी बन्दूक से आती है।” (माओ ने भी मिलती—जुलती बात कही थी : ”राजशक्ति का स्रोत बन्दूक की नाल में है”)। स्टालिन ने आम चुनाव पर कहा था : ”जनता बस जान ले कि मतदान हो रहा है। जो वोट डालते है वे कुछ भी तय नहीं करते। जो मतगणना करता है, वे ही हर बात तय करते हैं।” स्टालिन के समय ईवीएम नहीं था। इस सोवियत पुरोधा की अवधारणा थी कि रेशमी दस्तानों से क्रान्ति नहीं की जाती। वे कहते थे कि ”इतिहास ही हीरो बनाता है, न कि हीरो इतिहास को।” स्वयं को वे सोवियत इतिहास की देन मानते थे। मौत पर बड़ा उदार नजरिया था। उनकी राय थी कि एक आदमी मारा गया तो सिर्फ त्रासदी है। लाखों मारे गये तो बस आंकड़ों का विषय है।
क्रीमिया में सागरतटीय याल्टा द्वीप में हिटलर—विरोधी मोर्चे के नेताओं की बैठक (4—11 फरवरी 1945) हुयी थी। एजेण्डा था कि विश्वयुद्ध में जीत के बाद इन तीनों विजेता राष्ट्रों से कब्जियायी जमीन का बटवारा कैसे होगा? तभी नाश्ते पर भेंट में ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा कि, ”कल रात मैंने एक सपना देखा। वैश्विक सरकार बनी है। मैं उसका प्रधानमंत्री बना हूं।” राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट ने कहा : ”ठीक ऐसा ही सपना मैंने भी देखा। फर्क बस इतना था कि मैं विश्व का राष्ट्रपति बना।” अब बारी थी स्टालिन के बोलने की। उन्होंने अपने पाइप से राख झाड़ते हुये कहा : ”और किसने आप दोनों को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नामित किया ?” फिर मुस्करा दिये।
भले ही स्टालिन क्रूरतम जल्लाद कहलाये पर एशिया और अफ्रीकी गुलाम राष्ट्रों के स्वाधीनता—संघर्ष् में मददगार थे। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी को अकूत वित्तीय सहायता तो बेतहाशा मिलती थी। ”सोवियत भूमि” पुरस्कार और फ्री रुसी यात्रा का करीब सारे प्रमुख कम्युनिस्ट नेता लुत्फ ले चुकें हैं। चिकित्सा लाभ भी। एक हमारे कम्युनिस्ट पत्रकार साथी थे। स्टालिन के अनन्य प्रशंसक। उन्हें कब्ज की शिकायत थी। वे चिकित्सा हेतु मास्को गये। लौटकर भारत आये तो उन्हें पेचिश हो गयी थी। दस्त थमते नहीं थे। फिर भी हमारे साम्यवादियों को वोल्गा के उस पार स्वर्ग ही नजर आया करता था। इन सब को पकड़ कर मिखाइल गोर्बाचोव ने उनके गोड़ तोड़ को दिये। सोवियत साम्राज्य खत्म् कर डाला। तो हमारी आज ऐसे जोसेफ स्टालिन को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि।
यह लेखक के अपने विचार हैं…। लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।