महाभ्रष्टः 56 लाख का जीएसएस डकार गए इंजीनियर और ठेकेदार, 5 साल तक जेल में पीसेंगे चक्की
निर्माण तो दूर वर्क ऑर्डर जारी किए बिना ही तीन अभियंताओं ने कर डाला ठेकेदार को पूरा भुगतान
– कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी, ठोका 50-50 हजार का जुर्माना
– सवाईमाधोपुर के खंडार व भाडोती में जीएसएस निर्माण का मामला
TISMedia@Kota. अब तक आपने चारे से लेकर सीमेंट और सरिया खाते हुए तो तमाम भ्रष्टों की फेहरिस्त पढ़ी होगी, लेकिन हम आज आपको मिलवाते हैं ऐसे महाभ्रष्टों से जो बिजली सप्लाई करने वाला 132 केवीए का पूरा ग्रिड सब स्टेशन (जीएसएस) ही डकार गए। भ्रष्टाचार का आलम यह था कि निर्माण कार्य पूरा होना तो दूर काम करने के लिए वर्क ऑर्डर दिए बिना ही इन महाभ्रष्टों ने ठेकेदार को 56 लाख का भुगतान कर डाला। जब राजस्थान एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की नजर पड़ी तब जाकर इस खेल का खुलासा हुआ। एसीबी कोर्ट ने इन महाभ्रष्टों को पांच साल तक जेल में चक्की पीसने के आदेश दिए हैं।
कोटा के भ्रष्टाचार निवारण न्यायालय (एसीबी कोर्ट) ने बुधवार को महाभ्रष्टाचार के 14 साल पुराने इस मामले में 3 महाभ्रष्ट अभियंताओं और एक ठेकेदार को सजा सुनाई है। न्यायाधीश प्रमोद कुमार मलिक ने तत्कालीन राजस्थान विद्युत प्रसारण निगम के इंजीनियर रामसेवक मिश्रा, ओम प्रकाश, अशोक दुबे को 5-5- साल की सजा व 50-50 हजार के अर्थदण्ड से दंडित किया। जबकि, ठेका फर्म कम्पनी के ठेकेदार को 5 साल की सजा व 25 हजार का जुर्माना लगाया है।
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यह है मामला
लोक अभियोजक अशोक जोशी ने बताया कि वर्ष 2007 में कोटा एसीबी के एडिशनल एसपी देवेन्द्र शर्मा को शिकायत प्राप्त हुई थी। जिसमें बताया गया कि सवाईमाधोपुर के खंडार व भाडोती में जीएसएस का निर्माण कार्य यूबी इंजीनियरिंग लिमिटेड दिल्ली व मेसर्स एंजेलिक इंटरनेशनल लिमिटेड नई दिल्ली को दिया गया था। जीएसएस निर्माण में अभियंताओं ने अधूरे काम के बाद भी ठेका कंपनी को 56 लाख रुपए का भुगतान कर दिया। जांच में पाया गया कि तत्कालीन अधिशासी अभियंता आरएस मिश्रा, सहायक अभियंता ओमप्रकाश मीणा और कनिष्ठ अभियंता अशोक दुबे ने मिलीभगत कर दिल्ली की कंपनी यूएवी कंस्ट्रक्शन के प्रतिनिधि संतोष कुमार को अंतिम बिल में 56 लाख रुपए से अधिक का भुगतान वर्क ऑर्डर जारी किए बिना ही कर दिया, जबकि कंपनी ने काम ही नहीं किया था।
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वर्तमान में यहां कार्यरत हैं आरोपी
आरोपियों में ओमप्रकाश मीणा वर्तमान में बीकानेर आरवीपीएनएल में ही सिविल गुणवत्ता नियंत्रण शाखा में कार्यरत है। अशोक दुबे सहायक अभियंता बन गए हैं और वह भी आरवीपीएनएल की सिविल गुणवत्ता नियंत्रण में बाड़मेर में कार्यरत हैं। जबकि, तत्कालीन अधिशासी अभियंता रामसेवक मिश्रा सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
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कोर्ट ने की टिप्पणी
फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। जिसमें लिखा कि जनतांत्रिक प्रशासन में किसी भी व्यवस्था को संचालित करने का दायित्व लोकसेवक पर होता है। यदि लोकसेवक भ्रष्ट हो जाए, तो राष्ट्र की जड़ें कमजोर हो जाती है। जिसका असर राष्ट्र के विकास पर पड़ता है। न्यायालय ने फैसले में लिखा कि धीमी व कठिन नौकरशाही की प्रक्रिया अनावश्यक लालफीताशाही और अस्पष्ट नियम कानूनों के कारण आमजनता को घूसखोरी या व्यक्तिगत संबंधों का सहारा लेना पड़ता है। इससे वर्तमान में समाज में भ्रष्टाचार के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।
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सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भारत में
न्यायालय ने फैसले में यह भी लिखा है कि भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने एशिया में भ्रष्टाचार को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। जिसके अनुसार एशिया में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भारत में ३९ फीसदी है। यहां सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार महामारी की तरह तेजी से फैल रही है, जो बहुत बड़ी समस्या है।