कोरोना का कहर : कल आंगन में खुशियों का बसेरा, आज चीत्कारों से दहला कलेजा

कोटा. कोरोना की दूसरी लहर ने ऐसा कहर बरपाया कि परिवार के परिवार तबाह हो गए। कल तक जिस आंगन में खुशियों का भसेरा था आज वहां अपनों की मौत से सन्नाटा पसरा है। हंसती खेलती जिंदगी पलभर में ऐसे उजड़ गई, मानो कोई सपना सा हो। वायरस की काली छाया कहीं बुजुर्गों की लाठी तोड़ गया तो कहीं मासूमों को यतीम बना गया। पिता का साया और मां का आंचल छीन गया। कोरोना कुछ परिवारों को जिंदगी भर न भूल पाने वाला गम दे गया।
केवशपुरा निवासी 80 वर्षीय केशर बाई के परिवार की दर्दभरी दास्तां सुन आपकी रूह कांप जाएगी। एक भरापूरा परिवार देखते ही देखते कोरोना की बलि चढ़ गया। 11 दिन में ही जवान बेटे और बहू की मौत हो गई। परिवार में केवल नाती ही बचा है। अब बूढ़े कंधों पर उसकी जिम्मेदारी है।
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11 दिन में बेटा-बहू की मौत
बुजुर्ग केशर बाई ने बताया कि 22 अप्रेल को बेटा राजेंद्र सेन व बहू सुनीता की कोरोना से तबीयत खराब हो गई। दोनों को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती करवाया था। जहां दोनों का इलाज चल रहा था लेकिन तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। 1 मई को बेटा राजेंद्र की मौत हो गई। इसके 11 दिन बाद ही बहू सुनीता भी चल बसी। देखते ही देखते मेरा परिवार तबाह हो गया।
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टूट गई बुढ़ापे की लाठी
केसरबाई ने बताया कि बेटा उनके बुढ़ापे का सहारा था। जैसे-तैसे घर खर्च चल रहा था। भगवान ने मेरा इकलौता बेटा मुझसे छीन लिया। अब परिवार में केवल पोता ही बचा है, वो भी बेरोजगार है। मुझे सिर्फ 500 रुपए की पेंशन मिलती है। मकान पर ढाई लाख का लोन बकाया है। बूढ़े कंधों पर अब नाती की जिम्मेदारी आ गई। अब परिवार कैसे चलेगा।
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जमा पूंजी इलाज में हो गई खर्च
नाती गौरव ने बताया कि घर की जमा पूंजी मां के इलाज में खर्च हो गई। पिता के लिए दवाइयां अस्पताल में मिलती रही। लेकिन, मां के इलाज के लिए बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ी। पिता ने अब तक जो भी पैसे जोड़े थे वह इलाज में खर्च हो गए।