राजस्थान में बिजली संकट: जानिए बिजली प्रबंधन में क्यों फेल हुई गहलोत सरकार?
- राजस्थान सरकार ने नहीं किया था कोयला कंपनियों को 2600 करोड़ से ज्यादा के बकाए का भुगतान
- चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की बिजली देने की घोषणा पड़ी भारी, सरकार ने वितरण निगम को नहीं चुकाए 33,500 करोड़
TISMedia@Kota राजस्थान में बिजली संकट कोई एक दिन में खड़ा नहीं हुआ। सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों की महीनों की लापरवाही इसके लिए जिम्मेदार है। राजस्थान सरकार ने खदानों से कोयला तो ले लिया, लेकिन कोल कंपनियों को उनके 2600 करोड़ रुपए से ज्यादा का उधार ही नहीं चुकाया। नतीजन, कोल कंपनियों ने कोयला देना बंद कर दिया। सरकार तब भी नहीं चेती और केंद्र सरकार का दवाब डलवा कर कोयला सप्लाई शुरू कर दी, लेकिन हालात तब और ज्यादा खराब हो गए जब सरकार ने चुनावी फायदा उठाने के लिए लोगों को मुफ्त में बिजली देने के नाम पर 14,500 करोड़ की सब्सिडी ही वितरण निगम को नहीं दी। कंगाल हो चुके निगम पर दूसरी मार तब पड़ी जब सरकारी विभाग 19,000 करोड़ के बिल दबाकर बैठ गए। अब हालात यह हैं कि खजाना लुटाकर बैठी सरकार के पास न 35 हजार करोड़ रुपए हैं और ना ही बिजली।
राजस्थान में बिजली संकट गहराता जा रहा है। गांव-कस्बों के साथ-साथ शहरी इलाके भी अघोषित विद्युत कटौती की चपेट में आ रहे हैं। राजस्थान सरकार को बिजली खरीद में रोजाना 80 करोड़ का अतिरिक्त भार उठाना पड़ रहा है, क्योंकि राजस्थान के सरकारी पावर प्लांट में कोयले का स्टॉक खत्म होने के कारण 2000 मेगावाट बिजली का उत्पादन ठप है। जुलाई व अगस्त में राजस्थान विद्युत उत्पादन कंपनी कोल इंडिया को पेमेंट नहीं कर पाई। ऐसे में राजस्थान के बिजलीघरों में कोयला का पर्याप्त स्टॉक नहीं किया जा सका। अब कोयला खदानों में पानी भर गया। इससे मुश्किलें और बढ़ गईं।
रोजाना 20 रैक कोयला चाहिए, मिल रहा सिर्फ 13 रैक
मौटे तौर पर राजस्थान के सरकारी बिजली घरों को चलाने के लिए रोजाना 20 रैक कोयला चाहिए, लेकिन इन्हें पिछले सप्ताह तक 13 से 14 रैक कोयला ही मिल रहा था। हालात तब और ज्यादा बिगड़ गए जब उधार न चुकाने पर कोयला कंपनियों ने कोयला देना ही बंद कर दिया। कोल इंडिया से राजस्थान सरकार का रोजाना 11 रैक कोयला देने का एग्रीमेंट हुआ था, लेकिन वह सिर्फ पांच-छह रैक कोयला ही दे रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि कोयला कंपनियों ने राजस्थान को कोयला देना क्यों बंद किया था तो उसका जवाब खुद राजस्थान विद्युत उत्पादन कंपनी के सीएमडी आरके शर्मा देते हुए कहते हैं कि कोरोना काल में राजस्थान के वित्तीय हालात इतने खराब थे कि कोल कंपनियों को पेमेंट नहीं कर पाए। नतीजन, राजस्थान सरकार पर कोल इंडिया का 900 करोड़ और पीकेसीएल का करीब 1700 करोड़ रुपए का उधार चढ़ गया। जब कोयला कंपनियों ने पैसे की वसूली के लिए कोयला देना ही बंद कर दिया तब जाकर सरकार को होश आया और इन कंपनियों का भुगतान किया गया। हालांकि, अभी तक सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है कि पूरा भुगतान कर भी दिया है या नहीं।
भारी पड़ा चुनावी लालच और सरकारी हेकड़ी
सोचकर देखिए कि आप अपना बिजली का बिल एक महीने नहीं चुकाते तो दूसरे महीने बिजली वाले आपका कनेक्शन काट देते हैं, लेकिन विद्युत वितरण निगम सरकारी हेकड़ी के सामने बौना साबित हो जाता है। आलम यह है कि राजस्थान में सरकारी विभागों ने एक दो हजार रुपए नहीं बल्कि 19000 करोड़ रुपए की बिजली के बिल का ही भुगतान नहीं किया है। लेकिन, हेकड़ी का आलम यह है कि बिजली बंद की तो बवाल मचा देते हैं। बाकी बची कमी चुनाव जीतने के लिए मतदाताओं को दिए गए लालच ने पूरी कर दी। कांग्रेस ने चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए गरीबों और किसानों को मुफ्त बिजली देने का वायदा कर दिया। जिसे निभाने के तो आदेश जारी कर दिए लेकिन अब राजस्थान सरकार कृषि व बीपीएल कनेक्शनों की सब्सिडी के करीब 14 हजार 500 करोड़ रुपए जयपुर, जोधपुर, अजमेर डिस्कॉम को नहीं दे रही है। नतीजन, कर्जे में डूबे डिस्कॉम सरकारी व प्राइवेट बिजली उत्पादन कंपनियों को 30 हजार करोड़ का भुगतान नहीं कर पा रही है।
निजी कंपनियों ने झाड़ा पल्ला
राजस्थान को बिजली संकट से उबारने की कवायद में निजी कंपनियों ने पल्ला झाड़ लिया है। तमाम फायदे लेने के बाद सूबे में पॉवर प्लांट लगाने वाली यह कंपनियां अब मुश्किल वक्त में सरकार का साथ नहीं दे रही। प्रदेश में निजी कंपनियों में अडानी पावर कंपनी और राजवेस्ट सहित अन्य से 35 सौ मेगावाट बिजली देने का एग्रीमेंट है। सरकार इन कंपनियों को फिक्स चार्ज का पेमेंट करती है। इनसे में कुछ प्लांटों ने कोयले की कमी बताते हुए और पेमेंट नहीं होने के कारण बिजली सप्लाई में हाथ खड़े कर दिए हैं। इन हालातों में दूसरी मुश्किल अब विपक्ष खड़ा करने लगा है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने तो पूरे मैनेजमेंट पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान में बिजली प्रबंधन पूरी तरह से धराशाई हो गया है। इसके लिए मौजूदा सरकार का वित्तीय प्रबंधन जिम्मेदार है, क्योंकि कोयला कंपनियों को ना तो समय पर पैसा दिया जा रहा और ना ही विद्युत वितरण निगमों का बकाया चुकाया जा रहा है। जबकि भाजपा सरकार में हालात इसके उलट थे।