Navratri Special: राम की शक्ति पूजा: शक्ति की मौलिक कल्पना
“होगी जय ,होगी जय ,हे पुरुषोत्तम नवीन |
कह महाशक्ति , राम के बदन में हुई लीन ||“
(राम की शक्तिपूजा – निराला)
महाशक्ति का राम के बदन में लीन होना – शक्ति की मौलिक कल्पना से जुड़ा है | शक्ति के लिए साधना करनी पड़ती है | यह साधना दिये गये रूप तक सीमित नहीं होती न ही केवल उसी रूप में की जाती है जो परम्परा से चली आ रही है | हर युग में नये सिरे से साधना व संकल्प करने पड़ते हैं | मनुष्यता के लिए , संस्कृति के उत्थान के लिए हर युग में , युग साधक को साधना करनी पड़ती है | यह आसान रास्ता नहीं है | यहां सब कुछ को दांव पर लगाना पड़ता है |
शक्तिपूजा मूलतः शक्ति साधना की एक प्रक्रिया है जिसमें शक्ति की देवी इस बात की परीक्षा करती हैं कि साधक साधु उद्देश्य से ही शक्ति की आराधना कर रहा है कि नहीं | इसी के साथ यह भी देखना जरूरी है कि जो साधक है वह अपनी साधना भूमि में कहां तक जा सकता है ? कितने कष्ट , कितने कंटकाकीर्ण पथ को पार कर सकता है ? राम की शक्ति साधना इसी परिप्रेक्ष्य में दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़ती है | राम के सामने यह प्रश्न साफ है कि जब अधर्मरत होकर रावण यदि शक्ति को अपने पक्ष में कर सकता है तो मैं तो धर्म के साथ हूं | शुभ शक्तियों के साथ हूं , शुभ पथ पर चलना चाहता हूं | फिर मार्ग में इतनी बाधाएं क्यों है ? यह चिंता हर समय सत्य के साथ चलने वाले साधक की होती है | राम की भी यहीं चिंता है और स्वयं निराला की भी चिंता कुछ इसी मनोभूमि पर है |
निराला के राम व हर शुद्ध संवेदन के व्यक्ति को इन्हीं परिस्थितियों में से गुजरना पड़ता है | यहां राम का दृढ़ संकल्प है …..सामने शक्ति की मौलिक साधना व कल्पना जिस पर युग का नायक चलता है | शक्ति को मेरी साधनाभूमि में आना होगा | मेरी साधना भूमि तो रावण की साधना भूमि से उच्च भाव की है | जब रावण साधना के बल पर देवी को अपने पक्ष में कर सकता है तो मैं तो धर्म के साथ हूं ….इस क्रम में राम देवी की साधना करते हैं | पूर्ण निश्चय के साथ भले इस क्रम में राम को अपना नेत्र ही क्यों न बेधना पड़े | यह दृढ़ निश्चय ही राम का है जो अपने आगे ब्राम्हाण्ड को भी झुकाता है | राम का पूरा संघर्ष अन्यायी शक्तियों के खिलाफ है | उन्हें आराधन का दृढ़ आराधन से उत्तर देना है | यह दृढ़ आराधना ही शक्ति की साधना है | यहां राम अपने समय की उच्चतर भावबोध की शक्तियों के साथ अपने को रख , राम-रावण संघर्ष में मनुष्यता की विजयगाथा को लिखने के लिए आगे बढ़ते हैं |
राम का पूरा संघर्ष ही उच्चभावबोध के लिए , मानव मूल्य व जीवन मूल्य के लिए है | राम के संघर्ष में साम्राज्य विस्तार की बात नहीं है , वल्कि सृष्टि में जो रावण जय-भय की चिंता है उससे संसार को मुक्त कराने के लिए राम युद्ध की भूमि में आगे बढ़ते हैं | राम के संघर्ष में सीता के उद्धार से ज्यादा चिंता पृथ्वी पर रावण के हो रहे अट्टहास से …..पृथ्वी को मुक्त कराना ही , राम की केन्द्रीय चिंता है | यह चिंता विशुद्ध रूप से मानवीय भावबोध के साथ आगे बढ़ती है | राम का पूरा संघर्ष ही जीवन जी रहे आम आदमी का संघर्ष है | इस संघर्ष में राम के साथ सामान्यजन हैं | राम का पूरा संघर्ष ही एक मानव का / महामानव का है न कि राजा राम का | राम अपने मूल्यों की प्रतिष्ठाके लिए अकेले ही दुनिया भर की अन्यायी अत्याचारी शक्तियों से संघर्ष करते हैं | यह अलग बात है कि राम के इस विराट संकल्प में आम आदमी का स्वप्न है | यह वहीं स्वप्न है जिसमें आम आदमी यह देखता है कि पृथ्वी को रावण के क्रूर अट्टहास से मुक्त कराना है | जिस क्षण राम इस कार्य के लिए आगे बढ़ते हैं – और राम के संघर्ष को देखकर यह विश्वास हो जाता है कि राम का पूरा संघर्ष लोक के साथ है तो स्वतः लोक की सत्ता राम के साथ हो जाती है | हर युग में जब राम लोकरक्षार्थ आगे बढ़ते हैं तो उस समय की जनशक्तिया राम के साथ हो जाती हैं |
युग नायक राम को विराट स्वप्न व संकल्प के साथ आगे बढ़ना होता है | इसी भूमि पर वह शक्ति साधना के लिए दृढ़ होकर बैठता है | शक्ति हमेशा अपने साधक की परीक्षा लेती है – सामने जो साधक है उसका निश्चय कितना बड़ा है | वह अपने पथ पर कितना अटल है | उसके धैर्य की परीक्षा ली जाती है | साधक यदि कमजोड़ स्नायुतंत्र का हुआ तो वह कैसे शक्ति को साध पायेगा ? यह प्रश्न साधना के क्षेत्र में हमेशा बना रहता है कि कौन साधना कर रहा है ? कितनी दूर तक साधना कर पायेगा ? साधक की संकल्प शक्ति कैसी है ? दृढ़ निश्चय कितना है ? यानि इतनी बड़ी दृढ़ता की पूरा ब्राम्हाण्ड ही कंम्पायमान हो जाये यह तभी संभव है जब कोई साधक अपना सब कुछ न्योवछावर करने को तैयार हो | जैसे कि शक्तिपूजा के राम नीलकमल की जगह अपनी आँख को ही अर्पित करने को उद्धत हो जाते हैं | साधक कहां तक चल सकता है ? यह स्वयं में हर साधक की परीक्षा का क्षण होता है | यहां पर साधक की परीक्षा के बाद ही महाशक्ति साधक के साथ होती है | यह भी देखा जाता है कि साधना किस अभिप्राय से की जा रही है |
यदि साधना निजी लाभ- हानि की है तो शक्ति का साथ किसलिए ? इसलिए शक्ति हमेशा उसी साधक के साथ खड़ी होती है जो लोक कल्याण के लिए शक्ति की साधना कर रहा है | मनुष्य के कल्याण हेतु ही शक्ति काम्य है अन्यथा शक्ति को अंह में पर्यवसित होते कितनी देर लगती है | राम की पूरी शक्ति साधना लोक हितार्थ है | इस हेतु राम मौलिक संकल्प के साथ साधना के क्षेत्र में उतरते हैं | क्योंकि राम की साधना पूरी तरह से नवीन है | मौलिक है | राम यहां पुरुषोत्तम नवीन है | रावण से युद्ध के लिए राम शक्ति की साधना करते हैं | राम ने संकल्प लिया था कि देवी को 108 ‘नीलकमल’ चढ़ाकर अपने पक्ष में करेंगे | साधना क्रमशः पूरी होती रही कि अंतिम 108 वां ‘नीलकमल’ चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ाते हैं ‘नीलकमल’ नहीं है | पर राम का ही यह दृढ़ निश्चय है कि वे अंतिम 108 वां ‘नीलकमल’ चढ़ायेंगे | भले इसके लिए अपनी ही आँख क्यों न बेधनी पड़े ..यहां राम को याद आता है कि ‘माता कहती थी राजीव नयन ‘ फिर नेत्र को चढ़ा कर करता हूं पूजन | दृढ़ संकल्प के साथ जब राम नेत्र को बेधने के लिए दीप दीप दीपित फलक उठाते हैं कि स्वयं ‘ मां , महाशक्ति राम का हाथ पकड़ लेती हैं और साधु …साधु कहकर कहती हैं – “होगी जय , होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन | कह महाशक्ति राम के बदन में हुई लीन ||”
यहां स्वयं शक्ति का होना और बदन में लीन होना यहीं स्थापित करता है कि जब किसी बड़ी ताकत से लड़ना है तो उसी के अनुरूप हमारी तैयारी और शक्ति की साधना भी होनी चाहिए | तभी हम अपने समय में स्थापित होंगे जब कुछ नवीन व मौलिक होगा | यह नवीन और मौलिक होना ही हर युग में नायक को अपने समय के जन से जोड़ता है | अपनी पूरी संकल्पना में एक नवीन उद्भावना व नई संकल्प शक्ति के साथ | राम के साथ शक्ति का जुड़ना लीन होना मूलतः शक्ति की साधना की चरम निष्पत्ति का परिणाम है | राम के लिए जीवन का संघर्ष एक आधुनिक संदर्भ में यहां यों बनता है कि जो कुछ सोचा जाये …..जो हमारी संभावना हो वह किन्हीं अन्यायी अत्याचारी शक्ति के हाथ में हो तो सहज रूप से जीवन संघर्ष में रत एक आदमी क्या करेगा ? कैसे वह पहाड़ से भी बड़ी अन्यायी युगीन शक्तियों से लड़ेगा ? वह किस आधार पर संघर्ष करेगा ? जब सामने साफ – साफ दिख रहा है कि सब कुछ अधर्मरत है और उसी अधर्ममय शक्तियों के साथ साक्षात देवी / शक्ति का रूप झिलमिल करता है तो जो भी युग संघर्ष में होगा उसकी स्थिति बड़ी ही संकटमय हो जाती है कि वह क्या करें ? कैसे अपने युग संकट के साथ अपना धर्म निभाये और किस तरह से अपने अस्तित्व को प्रमाणित करें | इस मनोभूमि पर जो भी युग नायक है उसको अपने समय के जन को साथ लेना होगा , सबकों साथ लेकर ही अधर्मरत शक्तियों से लड़ा जा सकता है और उनके उपर विजय प्राप्त की जा सकती है |
अस्तित्व का यह संकट हर युग में युग संदर्भ से जुड़े नायक के सामने रहता है | वह कैसे कर ? किस तरह से अन्यायी व अत्याचारी शक्तियों के साथ संघर्ष में आम जन का साथ दे , किस तरह से आम जन को नेतृत्व देकर वह समय के धर्मयुद्ध का भागीदार बने व इन सबके साथ ही जीवन का सही निर्णय कर सकें | राम इस अन्याय व अधर्म के युद्ध में भले अकेले हों पर पूरे समय की आम आदमी की शक्तियां उनके साथ हैं | समय का जनमत उनके साथ है …फिर अधर्म व अन्याय का कैसा भी पहाड़ हो उसको एक पल में अपनी मौलिक सत्ता व साधना से , संकल्प से प्राप्त किया जा सकता है | युग का राम संघर्ष करता है | हर युग में राम के सामने अंधेरी शक्तियों का विशालकाय पहाड़ होता है जिसे विराट स्वप्न व संकल्प से युग का राम पूरा करता है | इस संघर्ष में राम की जय होती है | लोक की जय होती है | पूरे युग की जय होती है |