प्रहार: सीधे मानवता को चुनौती, ये नरसंहार से कमतर पाप नहीं !
TISMedia@RajeshKasera. बीते दिनों देश ने जो कुछ देखा और सहा वह हृदय विदारक, बर्बर और खौफनाक मंजर था। पहले उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों को रौंदने के भयावह दृश्य सामने आए तो हाल ही के एक दिन में दो-दो दिल दहलाने वाली तस्वीरों ने संवेदनशील और मानवीय मूल्यों में भरोसा रखने वाले लोगों के दिलो-दिमाग में चिंता व डर पैदा कर दिया। सिंघु बॉर्डर पर एक युवक की नृशंस हत्या के फोटो और वीडियो सामने आए तो उसी दिन शाम को छत्तीसगढ़ के जशपुर में कार से रौंदने का वीडियो वायरल हुआ। इन सबको देखकर पल भर में तो यही अहसास हुआ कि सभ्य समाज में कितने खूंखार दरिंदे इंसान की शक्ल में घूम रहे हैं, इंसानियत का खून बहाकर सुकून मिल रहा है।
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इन तीनों ही दुर्दान्त घटनाओं ने कुत्सित तालिबानी विचारधारा के साक्षात दर्शन करा दिए। क्योंकि बरसों से इस तरह की बर्बरता तालिबानियों की तरफ से देखते आए हैं। जिनको इंसानियत को पैरों तले कुचलने में आनंद की अनुभूति होती रही है। लेकिन, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में ऐसे जघन्य अपराधों की परिकल्पना शायद ही किसी ने की होगी। दुखद पहलू तो यह भी है कि तीनों घटनाओं पर जमकर राजनीति खेली जा रही है।
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लखीमपुर खीरी में नौ लोगों की गाड़ी से कुचलकर की गई हत्याओं पर इंसाफ की मांग राजनीतिक दलों और दिग्गज नेताओं के शोर में खो गई। सत्ता पाने की ख्वाहिश रखने वाले लोलुप नेताओं ने इस दुखद घटना को चुनावी मुद्दा बना लिया। उत्तर प्रदेश की सरकार को घेरने के लिए प्रमुख एजेंडा बना दिया, जिससे कि कुर्सी हथियाने की राह आसान हो। किसी भी पार्टी या नेताओं को उन परिजनों के दर्द से रत्ती भर भी सरोकार नहीं है, जिन्होंने असमय अपनों को खो दिया।
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ऐसा ही तमाशा जशपुर और हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर हुई निर्मम हत्या के मामलों में भी हुआ। सोनीपत में एक घर के चिराग को संवेदनहीन और जहरीली मानसिकता रखने वालों ने बुझा दिया तो जशपुर में बेकाबू रफ्तार कार ने कई ग्रामीणों को कीड़े-मकोड़ों की तरह कुचल दिया। अहंकार और ताकत के नशे में चूर ऐसे ‘शैतानों’ को कैसे इंसानों की उपमा दी जा सकती है?
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ये सभी नराधम हैं, जिन्होंने नरसंहार जैसा महापाप किया है। सबकी नजरों में इनके लिए समान सजा तय होनी चाहिए, जिससे कि दोबारा ऐसी आपदाएं देखने को न मिले। ये जघन्य और अक्षम्य अपराध है, जिस पर इंसाफ दिलाने के लिए सबको राजनीति और स्वार्थसिद्धि से ऊपर उठना होगा। मानवीय मूल्यों, संवेदनाओं और इंसानियत की रक्षार्थ सबको एक सुर में सुर मिलाने होंगे, तब कहीं जाकर एकता, अखंडता, सहिष्णुता, मानवता और आपसी भाईचारे का मूल अर्थ साकार होता दिखाई देगा। नहीं तो मानवीय संवेदना इसी प्रकार से तिल तिल कर दम तोड़ती रहेगी और हम सिवाय बेजान जिस्मों के कुछ नहीं बचेंगे।
(राजेश कसेरा राजस्थान के जाने-माने पत्रकार हैं। राजस्थान पत्रिका सहित कई प्रमुख हिंदी समाचार संस्थानों में पत्रकार से लेकर संपादक के तौर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं।)