सुनो, ये चिट्ठियां नहीं हैं! कागज पर रख दिया है निकाल कर कलेजा…
भारतीय सेना डाक सेवा: सबसे दुर्गम इलाके में भी दुनिया की सबसे तेज डाक सेवा
मेरे साथियों अंत समय है,कर दो मुझ पर यह उपकार
मेरे घरवालों को लिख दो,चिट्ठी में बातें दो चार
लिख दो, मैने देश की खातिर अपनी जान गंवाई है
लिख दो,यह तो हर फौजी की सबसे बड़ी कमाई है.
यह रचना कपोल कल्पना मात्र नहीं, एक फौजी कवि के जीवन की वास्तविक घटना है. सोनीपत (हरियाणा) निवासी फौजी मेहर सिंह ने बहुत सी रचनाऐं लिखी हैं, जो हरियाणा के ग्रामीण इलाको में बहुत लोकप्रिय हैं. पर, यह उनकी आखिरी रचना है, जो 1944 में युद्ध के मैदान में उनकी शहादत के पूर्व रची गयी थी.
चिट्ठियां और फौजी
फौजी अपने कठिन जीवन के हर मोरचे पर चिट्ठी को सीने से लगा कर रखता है और तो और शहादत के बाद अगर उसके पास कुछ अपना निजी सामान उसकी जेब से निकलता है तो वह चिट्ठी ही होती है. युद्ध का मैदान हो या शांतिकाल फौजी के लिए चिट्ठी रोटी से भी अधिक महत्वपूर्ण है। टेलीफोन, मोबाइल या ईमेल सैनिको को अपने प्रियजनो के हाथ से लिखी पाती जैसा सुख- संतोष दे ही नहीं सकता. घर-परिवार से आया पत्र जवान को जो संबल देता है, वह काम कोई और नहीं कर सकता. माहौल कैसा भी हो,सैनिक को तो मोरचे पर ही तैनात रहना पड़ता है. ऐसे में पत्र उसका मनोबल बनाए रखने में सबसे ज्यादा मददगार होते हैं.
इस जैसा कोई नहीं
इसी नाते सेना के डाक घरों का बहुत महत्व है. भारतीय जवानों की तैनाती सरहद पर हो या देश-विदेश के किसी भी कोने में हो, उनके पास अधिकतम तेजी से डाक सेवा सुलभ कराने का काम भारतीय सेना डाक सेवा कर रही है. भारतीय सेना डाक सेवा कोर की सेवाऐं भले ही तमाम कारणों से सीमित प्रचार पा सकी हों, पर वास्तविकता यह है कि यह दुनिया की सबसे तेज और समर्पित डाक सेवा का संचालन करती है. सेना के बेस डाक घर पूरे साल चौबीसों घंटे काम करते हैं और सैनिको की सभी डाक जरूरतों को पूरा करते हैं. 1856 से लगातार व्यवस्थित शक्ल में सैनिक अभियानो के साथ ये डाक घर दुनिया के तमाम हिस्सों में सेवाऐं प्रदान कर रहे है.
अत्याधुनिक संसाधनों से लैस सेना डाक सेवा कोर
01 मार्च 1972 से सेना डाक सेवा कोर के रूप में इसे मान्यता मिली. अपनी सैनिक भूमिका के मुताबिक सेना डाक घर पूरी तरह मोबाइल और सभी साधनो से लैस हैं. तंबू, ट्रक, खुले मैदान और बंकर से भी ये अपने काम को अंजाम देते हैं. इस कोर का अपना झंडा सफेद और लाल, उड़ता राजहंस और नारा है मेल- मिलाप. युद्द हो या शांतिकाल इस सेवा का काम हमेशा चलता रहता है. सेना डाकघरों और भारतीय डाक के बीच बहुत गहरा नाता है. दो संगठन एक दूसरे के अनुभवों के आधार पर लगातार विकसित, पल्लवित हो रहे हैं. भारतीय डाक प्रशासन में सेना डाक सेवा को बेस सर्किल नाम से जाना जाता है. बेस सर्किल की अध्यक्षता मेजर जनरल की रैंक में अपर महानिदेशक, सेना डाक सेवा द्वारा की जाती है. दुनिया के सबसे ऊंचे रणस्थल सियाचिन से लेकर विदेश तक फैले ये डाक घर सेना के विभिन्न अंगों के लिए ही नहीं, भारतीय अर्धसैन्य बलों का भी सहारा हैं. 12 लाख से अधिक सैनिको और लाखों की संख्या में अर्धसैन्य बलों के बीच ये लगातार समर्पित सेवाऐं प्रदान कर रहे हैं. सेना डाक सेवा थल सेना, भारतीय वायुसेना, असम रायफल्स, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस जैसे संगठनों तथा सीमित आधार पर भारतीय नौसेना को अपनी सेवाऐं प्रदान कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र सेना की भारतीय सैन्य टुकडिय़ों को भी सेना डाक सेवा सुविधा प्रदान कर रही है.
56 एपीओः नाम ही काफी है
सैनिक डाक घर रोज जवानों के बीच सात लाख से ज्यादा पत्रों का वितरण तो करते ही हैं, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को पहुंच कर देश दुनिया से उनको हमेशा करीब से जोड़े रखते हैं. सेना की यूनिटें जहां जाती हैं, जवानो को डाक सेवा उनकी जगह पर ही प्रदान की जाती है. असैनिक डाक घरों की तरह उनको घर या ठिकाना बदलने पर बार-बार अपना पता बदलने की जरूरत नहीं है. 56 एपीओ तथा 99 एपीओ भारतीय सैनिको के लिए डाक का पर्यायवाची बन चुका है. किसी भी साधन से डाक सैनिको तक पहुंचानी हो,पहुंचायी ही जाती है. भारतीय सेना डाक घरों के बचत बैंक खातों मे 1600 करोड़ रूपए से अधिक की राशि जमा है. सेना डाक सेवा (आर्मी पोस्टल सर्विस कोर) के जवानों को एक जमाने में लिफाफा फौजी के नाम से संबोधित कर उनका उपहास किया जाता था. पर इस सेवा के जवानों ने समय-समय पर यह दिखला दिया कि बहादुरी में भी इनकी कोई मिसाल नहीं है. तमाम जंगों मे इन्होने जो शौर्य और बहादुरी दिखायी, उसी के चलते इस कोर के जवानों को वीर चक्र तथा शौर्य चक्र से लेकर तमाम सम्मान हासिल हुए.
तारीख गवाह है
आज सेना डाक सेवा कोर के जवान अन्य नियमित सैन्य टुकडिय़ों जैसी ही हैसियत रखते हैं. भारतीय सेना 1778 के पहले तक अपनी डाक व्यवस्था हरकारों के मार्फत ही संचालित करती थी. 1778 मे सेना प्रमुख को अपने हरकारों को नियुक्त करने का अधिकार मिला. 1805 में सेना के लिए अलग से पहली बार पोस्टमास्टर की नियुक्ति हुई. पर उस समय सेना पोस्टमास्टर का काम मुख्यतया सिविल डाक घरों के साथ तालमेल बैठाने तक ही सीमित था.इसके बाद से हर सैन्य अभियान में पलटन के साथ पलटनी डाक घर जाते थे.पर फील्ड पोस्ट आफिस का जन्म वास्तव में 1856 में हुआ,जब भारत की सैन्य टुकडिय़ां फारस के युद्द में भाग लेने बंबई से बुशायर गयी थी . तब पहला पूर्ण आत्मनिर्भर डाक घर भेज कर एक व्यवस्थित सेवा की शुरूआत हुई थी. इसके बाद से सेना डाक घर और बेस डाक घर भारत और भारत के बाहर भेजे गए. विदेशी भूमि पर शौर्य प्रदर्शन का भारतीय सेना का गौरवशाली इतिहास रहा है.
इन जैसा कोई नहीं
पहली बार डाक विभाग द्वारा द्वितीय विश्वयुद्द के दौरान उपलव्ध कराए गए कार्मको को सैनिक का दर्जा प्रदान किया गया। इस तरह से देखें तो पता चलता है कि भारत में सैनिक डाक संगठन बीते दो सदियों से अधिक से सेना की सेवा कर रहा हैं. 1856 में खास सेना डाक घरो की शुरूआत के बाद 1860-61 में चीन युद्द के दौरान हांगकाग से बड़ी कठिन हालत में जवानो तक डाक पहुंचायी। भूटान फील्ड फोर्स (1864-66 ) के साथ तो अभियान के दौरान कोई प्रशिक्षित सैन्य डाक स्टाफ तक नहीं था। 1867 में एबीसीनिया में जानेवाली सैनिक टुकड़ी के साथ भी सैनिक डाक घर भेजा गया.इस दौरान कई अभियान में डाक हरकारे और खच्चर गए.माल्टा तथा दूसरे अफगान युद्द में 1882 में सेना डाक की बहुत छोटी टीम ने बड़े कामों को अंजाम दिया. 1896 में सूडान तथा 1903 में सोमालिया में ये डाक घर रहे. 1900 -1904 तक चीन और तिब्बत में सैनिक डाक घरों ने सराहनीय सेवाऐं दीं. प्रथम विश्वयुद्द में तो सेना डाक सेवा के कई जवान शहीद हुए. उस दौरान पनडुव्बियों के आतंक के चलते कई जगहों पर डाक सेवाऐं काफी बाधित रही थी. लेकिन द्वितीय विश्वयुद्द तक सेना डाक सेवा को सेना परिवार मे बहुत ठोस जगह नही मिल पायी थी. पहले विश्वयुद्द तक फील्ड पोस्ट आफिस का संचालन भारतीय डाक -तार विभाग ही कर रहा था और लंबे समय तक तदर्थ आधार पर ही काम चला.
हासिल हुआ लड़ाकू बल का दर्जा
नियमित सेना डाक सेवा के गठन का मामला लंबे समय तक टाला जाता रहा. 1937 में इस दिशा में ठोस पहल हुई और डाक नियमावली में सेना डाक सेवा को लड़ाकू बल का दर्जा प्रदान किया गया। पर तब भी सेना डाक का प्रशासनिक नियंत्रण महानिदेशक डाक-तार विभाग के अधीन युद्ध शाखा के पास रहा. युद्द शाखा के पास वैसे तो लंबा- चौड़ा नेटवर्क था पर सेना की नियम प्रक्रिया आदि के बारे में यह तंत्र बहुत कम जानकारी रखता था.सेना डाक संचालन में कई व्यावहारिक दिक्कतों को देखते हुए सेना मुख्यालय में क्वार्टर मास्टर जनरल ब्रांच के अधीन मार्च 1941 में एक डाक सेक्शन बनाया गया। इसने साल भर में ही निदेशालय का रूप ले लिया । ले.जनरल जी.एन.नायडू इसके पहले निदेशक बने.दिसंबर 1942 में भारत सरकार ने सेना डाक सेवा समिति का गठन करके सारे तथ्यों की समीक्षा की. समिति ने फरवरी 1943 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसके आलोक में सेना डाक को और व्यवस्थित बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ. बंबई में 1945 में सेना डाक सेवा का रिकार्ड ऑफिस भी बना, पर 1946 में 90 सालों तक विभिन्न सैन्य अभियानों में शामिल रहे सेना के डाक घरों को बंद करने का फैसला भी अचानक कर लिया गया। आजादी के बाद सारे तथ्यों की समीक्षा के बाद यह फैसला हालाँकि रोक दिया गया.पहले सेना डाक सेवा, सेना सेवा कोर की एक विंग के रूप में कार्य करती थी और इसका नाम इंडियन आर्मी पोस्टल सर्विस था.
आजादी के बाद छिड़ी मुहिम
1947 में और बेहतर तंत्र खड़ा करने का प्रयास हुआ. जम्मू-कशमीर में जब सेना बहुच कठिन मोर्चे पर तैनात थी तो जापान से लौटे सेना डाक सेवा के जवानों को वहां तैनात किया गया. तभी से एक स्थाई संगठन बनाने की मुहिम चली. आजादी के बाद सेना डाक सेवा को व्यवस्थित बनाया गया. भारतीय डाक विभाग द्वारा चलायी जा रही सारी सेवाऐं और अतीत में सेना सिग्नल कोर द्वारा दी जा रही सभी सेवाऐं सेना डाक घरों के द्वारा प्रदान की जा रही है. 1969 में अनुसूचित प्रेषण सेवा के तहत भेजी जानेवाली सैनिक डाक को सिग्नल कोर के नियंत्रण से हटा कर सेना सेवा कोर के हवाले किया गया. चीन युद्द तथा 1965 और 1971 के पकिस्तान के खिलाफ युद्द के दौरान सेना डाक सेवा ने बहुत सराहनीय कार्य किया। भारत सरकार ने 1 मार्च 1972 को सेना डाक सेवा कोर (एपीएस) नाम से इस संगठन को स्वतंत्र दर्जा प्रदान किया.
ब्रिगेडियर विर्क ने रखी नींव
अलग कोर बनने के बाद सेना डाक को बड़ी भूमिका में आने का मौका मिला. यह नियमित सेना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गयी.इसके पहले इस सेवा के जवान अपने कंधे पर सेना सेवा कोर का चिन्ह पहनते थे ,जो सेना डाक सेवा हो गया. सेना डाक सेवा मे 25 फीसदी जवान ही नियमित सेना के होते हैं, जबकि 75 फीसदी डाक विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आते है. बेस पोस्ट आफिस यानि मैदानी डाक घर हर पलटन में चिटठी तार या मनीआर्डर पहुंचाते हैं. संयोग से अरसे से सेना डाक का नेतृत्व कर रहे ब्रिगेडियर डी.एस.विर्क को ही सेना डाक सेना कोर का पहला नायक बनने का भी इतिहास लिखने का अवसर मिला. हालाँकि वह इस पद पर मात्र 10 रोज रहे पर कोर के मौजूदा प्रभावी स्वरूप के पीछे असली दिमाग उनका ही रहा है. ब्रिगेडियर विर्क 13 दिसंबर 1947 से 10 मार्च 1972 तक सेना डाक संगठन के प्रमुख रहे. वह लगातार सरकार के समक्ष इसके स्वतंत्र अस्तित्व के लिए पैरोकारी करते रहे.12 जुलाई 1997 को दिवंगत होने तक हर मौके पर वह सेना डाक संगठन को दिशा और हौंसला देते रहे.
मेजर जनरल को मिली कमान
10 मार्च 1972 को ब्रिगेडियर विर्क ने ब्रिगेडियर ओ.पी.राघव को अपना दायित्व सौंप कर आराम करना चाहा था, पर 20 जून 1972 को सरकार ने उनको कोर का पहला कर्नल कमांडेंट नियुक्त कर दिया। कोर के भीतर से कर्नल कमांडेंट के नियुक्ति की नीति 1991 में बदल दी गयी और सेना मुख्यालय ने यह फैसला लिया कि क्वार्टर मास्टर जनरल ही सेना डाक सेवा कोर का कर्नल कमांडेट होगा। इसके तहत ले.जनरल शेर अमीर सिंह 1 अक्तूबर 1991 को कोर के कर्नल कमांडेंट बने .सेना डाक सेवा कोर का निदेशक क्वार्टर मास्टर जनरल के अधीन सेना तथा वायुसेना अध्यक्ष का डाक मामलों के सलाहकार की भूमिका में भी होता है. कमांड और कोर मुख्यालयों पर उसके प्रतिनिधि अपने-अपने दायरे में इसी प्रकार की भूमिका निभाते हैं. 1984 से पहले सेना सेवा कोर के निदेशक के रेंक ब्रिगेडियर का था जिसे बढ़ा कर मेजर जनरल कर दिया गया. ब्रिगेडियर विर्क की पहल पर एपीएस एसोशिएसन बनी तथा कई महत्वपूर्ण सेवाऐं शुरू की गयीं.
मजबूत होती गई नींव
सेवा की गुणवत्ता सुधारने के साथ दिल्ली तथा कोलकाता हवाई अड्डों के करीब दो बेस पोस्ट आफिस की स्थापना, समाचार पत्र और पत्रिकाओं के वितरण की ठोस व्यवस्था, सैनिको के लिए फील्ड तक डाक घर के साथ बचत बैंक और अन्य सुविधाऐं प्रदान करायी गयी. ब्रिगेडियर विर्क ने भारतीय सेना डाकघरों के इतिहास पर न केवल बहुत स्तरीय पुस्तके लिखी, बल्कि सेना में फिलैटली के भी वे शिखर पुरूष माने जा सकते हैं. सेना डाक सेवा कोर को ब्रिगेडियर ओम प्रकाश राघव, मेजर जनरल एस.·के.आनंद, मेजर जनरल एस.पी.चोपड़ा, मेजर जनरल बी.पी.दास, मेजर जनरल के . के .श्रीवास्तव , मेजर जनरल आर.एस.करीर आदि ने ठोस दिशा प्रदान की. इसी का असर है, एपीएस का काफी मजबूत ढांचा खड़ा हो चुका था.
मेडल भी कम नहीं
शौर्य के लिए सम्मान-असाधारण सेवाओं और पराक्रम के लिए सेना डाक सेवा कोर के जवानों को अब तक एक वीर चक्र ,एक शौर्य चक्र ,चार अति विशिष्ट सेवा मेडल,6 विशिष्ट सेवा मेडल , 3 मेंशन इन डिस्पैच और 51 से अधिक सेनाध्यक्ष के प्रसंशापत्र मिल चुके हैं। कई अन्य सम्मान भी इसको सराहनीय सेवाओं के बदले हासिल हुए हैं।आजादी के बाद इस कोर के लांस नायक इसका पेरिंबम तथा कर्नल आर.के .बंसल को को पराक्रम म और शौर्य के लिए वीर चक्र तथा शौर्य चक्र से सम्मानित किया जा चुका है. अति विशिष्ट सेवा मेडल से ब्रिगेडियर डी.एस. विर्क (1969), ब्रिगेडियर ओ.पी .राघव(1977 ), मेजर जनरल एस. के .आनंद (1986) तथा मेजर जनरल बी. पी.दास (1995 ) को भी सम्मानित किया गया. इसी प्रकार विशिष्ट सेवा मेडल तथा अन्य पदको से से भी कई अधिकारी और जवान सम्मानित हो चुके हैं। सेना डाक सेवा कोर का कोर गीत भी बहुत सुंदर है. यह यह गीत कोर के ही वारंट आफिसर एच.एस.परवाना ने लिखा और पहली बार कामपटी में हुए एपीएस दूसरे पुनर्मिलन (4-5 दिसंबर 1980 ) के शुभारंभ के मौके पर गाया गया था. सेना में डाक व्यवस्था की एक गौरवशाली गाथा है.
साभारः भारतीय डाकः सदियों का सफरनामा, पुस्तक लेखकः अरविंद कुमार सिंह
(अरविंद कुमार सिंह, राज्यसभा टीवी के राजनीतिक संपादक, रेल मंत्रालय में सलाहकार एवं संपाकद रेल सेवा पत्रिका, जनसत्ता, अमर उजाला, चौथी दुनिया और हरिभूमि जैसे प्रमुख हिंदी अखबारों के संपादक रह चुके हैं। फिलहाल वह राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के मीडिया सलाहकार हैं।)
भारतीय डाक सेवा के इतिहास और रोचक जानकारियों एवं किस्सों के लिए जरूर पढ़ें बेहद खास पुस्तक “भारतीय डाक: सदियों का सफरनामा” प्रकाशकः नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया, 5 ग्रीन पार्क , नयी दिल्ली, मूल्य सिर्फ 125 रूपए।