क्या आप जानते हैं! दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद किसने बनवाई थी…
एक थी बेगम शाहजहां! जिसने भोपाल में तामीर कराया था ताजमहल
कोटा. मुगल बादशाह शाहजहां को कौन नहीं जानता। जिन्हें, शानदार इमारतें तामीर करने (बनवाने) का शौक था। ताजमहल , लालकिला समेत आगरा, दिल्ली, लाहौर और कश्मीर में बहुत से भवन उनकी यादगार हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इतिहास में एक और शाहजहां का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इनकी शौहरती भी पूरी दुनिया में फैली हुई है। न सिर्फ, बेहतरीन तरीके से सल्तनत चलाने वाले कामयाब शासक के तौर पर बल्कि दुनिया की मशहूर इमारतों का निर्माण कराने के लिए। फर्क इतना है कि इस शाहजहां का मुगलिया सल्तन से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं और यह पुरुष नहीं एक महिला शासक थीं। जी हां, हम बात कर रहे हैं भोपाल की नवाब बेगम शाहजहां की।
महज 6 साल की उम्र में बनीं नवाब
नवाब शाहजहां बेगम का जन्म 30 जुलाई 1838 में मध्यप्रदेश के भोपाल में हुआ। इनके पिता नवाब जहांगीर मोहम्मद खान बहादुर भोपाल के शासक थे। जब बेगम शाहजहां के पिता का इंतकाल इनके बचपन में ही हो गया था। दस्तूर के मुताबिक शाहजहां को भोपाल का नवाब बना दिया गया। उस वक्त उनकी उम्र महज छह साल ही थी। ऐसे में शाहजहां के होश संभालने तक सारा सरकारी कामकाज उनकी मां नवाब सिकंदर बेगम ने संभाला।
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30 साल की उम्र में संभाली सल्तनत
साल 1868 में जब बेगम शाहजहां तीस वर्ष की हुईं तो, मां का भी इंतेकाल हो गया। उसके बाद वह पूरे अधिकारों के साथ भोपाल की नवाब बनीं और 1901 में अपनी मृत्यु के समय तक भोपाल की नवाब रहीं। मुश्किल हालातों ने कभी भी बेगम शाहजहां का पीछा नहीं छोड़ा। उनकी शादी 1855 में बाकी मोहम्मद खां नुसरत जंग बहादुर से हुई। जिनका 1867 में इंतकाल हो गया। उस वक्त उनकी उम्र महज 29 साल थी। यानि 30 साल की उम्र तक कुदरत ने मां और पिता के साथ साथ पति भी छीन लिया, लेकिन बेगम शाहजहां के मजबूत इरादे कभी भी नहीं तीन साल बाद खानदान वालों के दबाव में दूसरी शादी का फैसला किया और विश्व स्तरीय आलिम नवाब सिद्दीक हसन खां कन्नौजी से इनकी शादी हुई। नवाब सिद्दीक हसन खां कन्नौजी बहुत बड़े आलिम व लेखक थे। उन्होंने 250 से ज्यादा किताबें लिखीं। जिनका लोहा पूरी दुनिया मानती है।
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नामचीन शायर और कुशल प्रशासक
नवाब शाहजहां बेगम फारसी भाषा की नामचीन शायरा थीं। ताजूर व शीरीं इनके तखल्लुस थे। मसनवी सिद्कुल बयान, ताजुल कला और दिवाने शीरीं, इनके शेर के दीवान रहे। इसके अलावा उन्होंने कई किताबें भी लिखीं। जिनमें तहजीबुन्निसवां ( महिलाओं के संस्कार ) काफी मशहूर हुई। वह बहुत ही अच्छी शासनाध्यक्षा थीं। उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनगिनत काम किए। एक तरह से कहें तो आज के भोपाल की नींव उन्होंने ही रखी। उन्होंने सिर्फ स्कूल और अस्पताल ही नहीं बनवाए, बल्कि अपनी रियाया को जागरुक करने के लिए कई बड़े जोखिम भी उठाए। उस दौर में चेचक जानलेवा बीमारियों में शुमार थी। इसके टीके का नया-नया अविष्कार हुआ। जिसे लेकर जनता के बीच तमाम तरह की अफवाहें फैली हुई थीं। इन अफवाहों को दूर करने और भोपाल के लोगों को इस जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए उन्होंने सबसे पहले अपने बच्चों को चेचक का टीका लगवाया। तब जाकर जनता को यकीन हुआ और लोग चेचक के टीके लगवाने के लिए आगे आए। बेगम शाहजहां अच्छी तरह जानती थीं कि सल्तनत में खुशहाली तभी आएगी जब खेतों में पैदावार अच्छी होगी। लेकिन भोपाल में अक्सरकर पीने तक के पानी के लाले पड़ जाते थे। ऐसे में उन्होंने न सिर्फ प्याऊ लगवा कर पीने के पानी का इंतजाम किया, बल्कि सिंचाई के लिए नहरें भी खुदवाई। लोग करों के बोझ तले न दबें और खुशहाल जिंदगी जी सकें इसके लिए तमाम बेजा टैक्स खत्म किए। अक्टूबर 1900 में इन्हें कैंसर हो गया। ग्यारह महीने तक इस बीमारी से जूझने के बाद आखिरकार उन्होंने आंखें मूंद ली।
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विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मसाजिद
नवाब बेगम शाहजहां को उनकी तामीर कराई गई इमारतों के लिए भी हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने जिन इमारतों का निर्माण कराया, उनमें से एक भोपाल की शानदार मस्जिद ताजुल मसाजिद दुनियाभर में खासी मशहूर है। आज से तीस साल पहले तक यह मस्जिद विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती थी। अब विश्व में कई बड़ी मस्जिदें बन गई हैं, लेकिन फिर भी यह विश्व की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। यह चार लाख वर्ग मीटर में बनी है और एक ही वक्त में 1,75,000 नमाजियों के लिए गुंजाइश रखती है।
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तामीर कराई थी इग्लैंड की पहली मस्जिद
नवाब बेगम शाहजहां को सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं इग्लेंड में भी बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। नवाब बेगम एक बार इग्लैंड के दौरे पर गईं, लेकिन उन्हें नमाज अता करने के लिए कहीं मस्जिद दिखाई न दी। पूछने पर पता चला कि उस वक्त इग्लैंड में लोग अपने घरों पर ही नमाज अता किया करते थे। फिर क्या था, बेगम नवाब ने मुस्लिम स्कॉलर्स के कहने पर मस्जिद का निर्माण करा दिया। यह इग्लैंड की पहली मस्जिद थी। जिसे आज शाहजहां मसजिद वोवकिंग के नाम से जाना जाता है।
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बेगम ने भी तामीर कराया था ताजमहल
आगरा के ताजमहल को तो दुनिया जानती है, लेकिन क्या आपको पता है कि एक ताजमहल बेगम शाहजहां ने भी बनवाया था। जिसे आज दुनिया भोपाल के ताजमहल के तौर पर जानती है। आगरा का ताजमहल मूलतः कब्रिस्तान है, लेकिन भोपाल का ताजमहल एक जिंदा घर। दरअसल, बेगम शाहजहां ने अपने रहने के लिए भोपाल में महल बनवाया और इसे नाम दिया रंगमहल। इसके निर्माण में 13 साल से ज्यादा का वक्त लगा। पूरी इमारत संगमरमर के सफेद पत्थरों से बनाई गई। जिसमें दुनियाभर से लाए गए बेशकीमती पत्थर भी जडवाए गए। जब इमारत बनकर तैयार हुई और लोगों को देखने के लिए बुलाया गया तो उनकी जुबां से खुद ही निकल पड़ा… अरे यह तो ताजमहल है। बस इसके बाद नवाब बेगम शाहजहां के इस महल को भोपाल का ताजमहल कहा जाने लगा।
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पढाई पर था खास जोर
नवाब बेगम शाहजहां को इमारतें बनवाने, शासन चलाने और किताबें लिखने का ही शौक नहीं था, बल्कि वह पढ़ाई पर खासा जोर देती थी। इसीलिए उन्होंने अपनी सल्तनत में हर 10 कोस पर एक स्कूल बनवाया। इतना ही नहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बनाए जाने में भी इन्होंने दिल खोलकर मदद की। इनकी बेटी नवाब सुल्तान बेगम और नवासे नवाब हमीदुल्ला खान एएमयू के चांसलर भी रह चुके हैं। बावजूद इसके, अफसोस यह है कि मुगलिया सुल्तान शाहजहां को तो पूरी दुनिया याद करती है, लेकिन भोपाल की इस महिला नवाब बेगम शाहजहां को इतिहास के पन्नों में दबा दिया गया। उनके काम ही नहीं उनकी यादों को भी भुला दिया गया।
(लेखक- खुर्शीद अहमद, मूलरूप से उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। सऊदी अरब की इमाम यूनिवर्सिटी से अरबी भाषा और साहित्य में परास्नातक करने के बाद फिलहाल कतर में कार्यरत हैं)