#TIS_Campaign कोटा थर्मल को बेचने की थी साजिश, कहीं गहलोत भी तो नहीं हुए “शिकार”

वसुंधरा राजे सरकार ने तीन पॉवर प्लांटों को बंद करने के लिए खत्म कर दिए थे 245 पद

TISMedia@Kota. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने साल 2018 में राजस्थान के तीन थर्मल पॉवर प्लांटों को निजी कंपनियों को बेचने की अंदरखाने पूरी तैयारी कर ली थी। भाजपा सरकार ने तीनों थर्मल पॉवर प्लाटों की परिचालन कार्य क्षमता निरंतर घटने और खराब वित्तीय स्थिति का हवाला देकर कोटा थर्मल (Kota Super Thermal Power Station) के साथ साथ छबड़ा और कालीसिंध तापीय विद्युत गृह ( Chhabra And Kalisindh power plants ) को निजी हाथों में बेचने की योजना बनाई थी।

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बेचने से पहले बंद करने थे प्लांट
कोटा थर्मल सहित तीनों थर्मल पॉवर प्लाटों को बेचने से पहले वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार ने पहले इन्हें बंद करने की योजना बनाई। इसके लिए कोटा थर्मल की सभी इकाइयों को ज्यादा से ज्यादा बंद रखा जाने लगा और प्लांट को घाटे में धकेलने की कोशिशें तेज हो गईं। इतना ही नहीं योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए वसुंधरा सरकार ने 18 जून 2018 को एक आदेश जारी कर सहायक अभियंता से लेकर मुख्य अभियंता तक तकनीकी अधिकारियों के 151 और अधीनस्थ तकनीकी कर्मचारियों के 94 पद खत्म कर दिए। वसुंधरा सरकार ने यह योजना इतनी गोपनीय ढ़ंग से बनाई थी कि ऊर्जा विभाग तो छोड़िए थर्मल के कर्मचारियों और अधिकारियों तक को इसकी भनक तक न लगी। हालांकि, भाजपा सरकार इस योजना को अंजाम तक पहुंचाती इससे पहले ही चुनाव सिर पर आ गए और सरकार के खास अफसरों को यह फाइल डंप करनी पड़ी।

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गहलोत सरकार को भी रखा अंधेरे में
वसुंधरा राजे के सत्ता से बाहर होने के बावजूद ऊर्जा विभाग में बैठे उनके खास अफसरों ने अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनते ही भाजपा सरकार की योजना को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिशें तेज कर दी। आलम यह था कि इन खास अफसरों ने गहलोत सरकार को इसकी भनक तक नहीं लगने दी, लेकिन कांग्रेस की सरकार ( Congress government ) बनने के बाद भी ऊर्जा विभाग ने खत्म हुए पदों के आधार पर कार्मिकों के तबादले शुरू कर दिए, तब जाकर मामले का खुलासा हुआ। 21 जून 2019 को जब पत्रकार विनीत सिंह ने इस मामले को प्रमुखता से उजागर किया तब कोटा से लेकर जयपुर तक हड़कंप मच गया। तीन थर्मल पॉवर प्लांट बंद करने की साजिश का खुलासा होते ही ऊर्जा संयंत्रों के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। यह हड़ताल करीब 20 दिन चली।

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गहलोत ने पलट दिया था फैसला
राजस्थान के तीन थर्मल पॉवर प्लांटों को बंद करने की साजिश की खबर जब नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( Cm Ashok Gehlot ) को लगी तो उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल एवं मंत्रिपरिषद की बैठक ( cabinet meeting ) में कोटा थर्मल, छबड़ा और कालीसिंध तापीय विद्युत गृह की परिचालन कार्य क्षमता और वित्तीय स्थिति की समीक्षा की। जिसमें उल्लेखनीय सुधार होने के कारण राज्य कैबिनेट ने इन पॉवर स्टेशनों का विनिवेश ( disinvestment ) नहीं किए जाने के प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया। इसके साथ ही तकनीकी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के 245 पद खत्म करने के वसुंधरा सरकार के फैसले पर भी रोक लगा दी। लेकिन, इस बार कोटा थर्मल की दो इकाइयों को बंद करने का आदेश जारी होने के बाद थर्मल कर्मचारी आशंका जता रहे हैं कि कहीं थर्मल पॉवर प्लाटों के निजीकरण की कोशिश में जुटी लॉबी ने गहलोत को भी गुमराह तो नहीं कर दिया।

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सरकारी प्लांटों का विनिवेश आत्मघाती
उल्लेखनीय है कि भारतीय लेखा व महानिरीक्षक (सीएजी) की ऑडिट रिपोर्ट में राज्य विद्युत उत्पादन निगम के सभी पॉवर प्लांटों का विनिवेश करना आत्मघाती कदम बताया था। 17 फरवरी,2017 को उर्जा विभाग के प्रमुख शासन सचिव को दी गई ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य सरकार व आरवीयूएनएल अपने संयंत्रों से सस्ती बिजली की उपलब्धता को देखते हुए उनके ऑपरेशन सिस्टम को पुनगर्ठित व मजबूत करे। अर्नेस्ट एवं यंग कंपनी की सिफारिश पर राज्य सरकार व आरवीयूएनएल ने कालीसिंध एवं छबड़ा थर्मल में राज्य सरकार की इक्विटी को किसी सरकारी या निजी कंपनी में विनिवेश करने के लिये 23 फरवरी,2016 को भाजपा सरकार ने इसे स्वीकृति दे दी थी, जिस पर गहलोत सरकार ने अभी तक रोक लगा कर रखी थी।

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