जानिए कैसे हुए ईजाद: मोदी युग, गोदी मीडिया, मार्गदर्शक मंडल, जीरो फिगर और 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड
सत्ता के 20 साल और हर साल एक नया विवाद, जानिए नरेंद्र कैसे बने "दुश्मन-पछाड़"
TISMedia@NewDelhi मोदी युग के आज 20 साल पूरे हो गए। 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद शुरू हुई सियासी पारी साल 2014 में गुजरात से निकल कर पूरे देश पर छा गई। मोदी न सिर्फ प्रधानमंत्री बने, बल्कि लगातार दूसरी बार भी सत्ता पर काबिज रहने में भी सफलता पाई। मोदी युग की शुरुआत हुए दो दशक बीत चुके हैं, लेकिन इन 20 सालों में बीसियों बार विवादों में घिरे। बावजूद इसके न उनकी सियासी सफलता रुकी और न ही ताकत में कोई कमी आई। उल्टे विपक्ष को हर बार मुंह की खानी पड़ी। विपक्ष ही नहीं अपनों ने भी उन्हें न जाने कितनी बार घेरने की कोशिश की, लेकिन नरेंद्र दामोदर दास मोदी हर बार “दुश्मन पछाड़” ही साबित हुए।
“मार्गदर्शक मंडल” या बुजुर्गों को ठिकाने लगाने का तरीका
साल 1987 में नरेंद्र मोदी ने आरएसएस के रास्ते गुजरात से दिल्ली तक का सफर तय किया। शुरुआत लालकृष्ण आडवाणी का सारथी बनने से हुई। हालांकि इस दौरन वह भाजपा की गुजरात इकाई से संगठन सचिव और फिर महासचिव रहे। साल 1990 में मोदी के संगठन मंत्री रहते हुए ही भाजपा ने गुजरात में जबरदस्त जीत हासिल की। इसके बाद 1995 में मोदी राष्ट्रीय सचिव बनकर दिल्ली आए। सिर्फ 3 साल में ही उन्हें राष्ट्रीय संगठन मंत्री बना दिया गया। यही वह साल था जब मोदी ने पहला बड़ा सियासी दांव खेला। 1998 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को टूटने से बचाने के नाम पर मोदी ने शंकर सिंह वाघेला की बजाय केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करवा लिया। लेकिन, साल 2001 में जब केशुभाई पटेल के शासनकाल में भुज में भयानक भूकंप आया और इसी दौरान हुए गुजरात उपचुनावों में हार के बाद उन पर हालात न संभाल पाने के आरोप लगे तो केंद्रीय नेतृत्व ने मोदी से ही पटेल सरकार की रिपोर्ट मांग ली। यह रिपोर्ट ही नरेंद्र मोदी के करियर का टर्निंग पाइंट साबित हुई। इस रिपोर्ट में मोदी ने “अपने ही आदमी” को नाकाबिल साबित कर दिया। जिसके बाद पार्टी ने मोदी को गुजरात में पार्टी मजबूत करने के लिए डिप्टी सीएम बनाकर भेजने का फैसला किया, लेकिन मोदी को मुख्यमंत्री से कम कुछ भी मंजूर नहीं था। आखिरकार 3 अक्टूबर 2001 को मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया। भाजपा ने 2002 का विधानसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा और जबरदस्त जीत हासिल की। इन दोनों वाकयों के बाद शंकर सिंह वाघेला से लेकर केशुभाई पटेल तक के समर्थक मोदी पर अपने साथी नेताओं की ताकत कम करने का आरोप लगाते रहे। इस बात को तब और ज्यादा बल मिला जब साल 2014 में अडवाणी जैसे तमाम दिग्गजों को किनारे लगा मोदी प्रधानमंत्री बन बैठे। इसके बाद तो चर्चाएं आम हो गईं कि मोदी का मार्गदर्शक मंडल यानि बुजुर्ग नेताओं की रवानी।
सबसे बड़ा विवादः गुजरात दंगे
नरेंद्र मोदी ने गुजरात पर तो कब्जा कर लिया, लेकिन उनकी हसरतें सिर्फ एक राज्य तक सीमित कहां रहने वाली थीं। वह देश चेहरा बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने हार्डकोर हिंदुत्व का रास्ता अपनाया। जैसे ही उनकी यह छवि लोगों के सामने आना शुरू हुई वैसे ही साल 2002 में उनके साथ सबसे बड़ा विवाद जुड़ गया और वह था गुजरात दंगा। गोधरा कांड के बाद गुजरात में हिंदू-मुस्लिमों के बीच हुए दंगों ने राज्य की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। विपक्ष ने इन दंगों के बाद मोदी पर ही दंगों की साजिश रचने का आरोप लगा दिया। उधर, कुछ और दलों ने कहा कि मोदी ने दंगों के बीच पुलिस को कार्रवाई करने से रोका, जिसके चलते ज्यादा लोगों की जान गई। इन दंगों की वजह से मोदी सिर्फ देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी बड़ी तेजी से उभरे और यह काम किया अमेरिका ने। गोधरा कांड के बाद अमेरिका ने मोदी की देश में एंट्री बैन कर दी। अमेरिका के इस फैसले से मोदी को वैश्विक सुर्खियों में ला खड़ा किया। गुजरात दंगों को लेकर बैठी जांच में भी मोदी को भी आरोपी बनाया गया था, लेकिन उन्हें हर जगह से क्लीन चिट मिल गई। इस घटना को लेकर उनके ही मार्गदर्शक कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने “राजधर्म निभाने” वाली तल्ख टिप्पणी की थी।
गुलबर्ग सोसाइटी केसः तीस्ता सीतलवाड़ को खानी पड़ी मुंह की
28 फरवरी 2002 को गुजरात में दंगों के दौरान अहमदाबाद के चमनपुरा में एक सोसाइटी में गुस्साई भीड़ ने पत्थरबाजी शुरू कर दी थी। आसपास के कई मकानों में आग भी लगा दी गई। इसमें कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की मौत हो गई थी, जबकि 31 लोग घटना के बाद लापता घोषित हुए थे। इस घटना की जांच के बाद लापता लोगों को मृत मान लिया गया था। कुल 69 लोगों की मौत रिकॉर्ड हुई थी। इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने मुख्यमंत्री मोदी को जिम्मेदार बताया था। उनका आरोप था कि मोदी एक सांसद की भी सुरक्षा नहीं कर पाए। तीस्ता ने लंबे समय तक मोदी को घेरना जारी रखा, लेकिन बाद में खुद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग गए और उसके बाद गुलबर्ग सोसाइटी का मामला ही खत्म हो गया।
संजीव भट्टः मोदी को घेरने की साजिश, गंवानी पड़ी नौकरी
संजीव भट्ट गुजरात कैडर के पूर्व आईपीएस अफसर थे, जिन्होंने गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल कर सनसनी पैदा कर दी थी। उन्होंने दावा किया था कि वे सीएम की तरफ से बुलाई उस मीटिंग का हिस्सा थे, जिसमें पुलिस अफसरों को कथित तौर पर दंगाइयों पर कोई कार्रवाई न करने के आदेश दिए गए थे। हालांकि, बाद में मामले की जांच के लिए बनी एसआईटी और सुप्रीम कोर्ट ने भट्ट के आरोपों को झूठा पाया और कहा कि उन्होंने ऐसी कोई बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। 2015 में भट्ट को सेवा से गैरहाजिर रहने के आरोप में आईपीएस पद से हटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया था कि भट्ट कई मामलों में विपक्षी पार्टियों के संपर्क में थे और उन्हें दबाव बनाने के लिए ही खड़ा किया गया था।
मोदी खा गए शशि थरूर का मंत्री पद
अक्तूबर 2012 में हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी रैली के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने शशि थरूर पर परोक्ष हमले के दौरान सुनंदा पुष्कर को ’50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’ करार दिया था। मोदी का ये बयान राजनीतिक हलकों और सोशल मीडिया में चर्चा का मुद्दा बना था। हालांकि, मोदी ने किसी का नाम नहीं लिया और कहा, ‘कांग्रेस के एक नेता थे, जो मंत्री थे। उन पर क्रिकेट से संपत्ति बनाने का आरोप था। भाजपा नेता का इशारा थरूर और उनसे जुड़े 2011 के आईपीएल विवाद को लेकर था जिसमें पुष्कर शामिल थीं और आखिरकार थरूर को मंत्री पद गंवाना पड़ा था।
जब पहली बार ट्विटर पर ट्रेंड हुए मोदी और #PuppyGate
मोदी ने आम चुनाव से पहले 2013 में रॉयटर्स को एक इंटरव्यू दिया था। इसमें गुजरात दंगों पर जब उनसे पूछा गया कि क्या जो कुछ हुआ था, उसका उन्हें दुख है? इस पर मोदी ने कहा था, “दुख तो होता ही है। अगर कुत्ते का बच्चा भी कार के नीचे आ जाए तो भी दुख होता है।” मोदी के इस बयान के बाद ट्विटर पर #PuppyGate ट्रेंड होने लगा और लोगों ने आरोप लगाया कि मोदी ने गुजरात दंगों में मारे गए लोगों की तुलना कुत्ते के बच्चे से कर दी। हालांकि, बयान पर बवाल होने पर मोदी ने खुद ट्विटर के जरिए सफाई दी। उन्होंने ट्वीट किया, “हमारी संस्कृति में जीवन का हर रूप अनमोल और पूज्यनीय माना जाता है।”
जब “जीरो फिगर” पर मचा बवाल
2012 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू किया, तब उनके गुजरात मॉडल को भी जोर-शोर से प्रचारित किया गया। हालांकि, इस बीच विपक्ष ने गुजरात में फैले कुपोषण पर भाजपा को घेर लिया। दरअसल, पूरा विवाद राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की एक रिपोर्ट आने के बाद खड़ा हुआ था, जिसमें गुजरात में सेहत और कुपोषण की स्थित चिंताजनक बताई गई थी। देश के बड़े औद्योगिक राज्यों में स्वास्थ्य के मामले में गुजरात को इस रिपोर्ट में बहुत नीचे दर्शाया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में स्वास्थ्य का स्तर राष्ट्रीय स्तर और कुछ गरीब राज्यों से भी नीचे था। इसे लेकर जब मोदी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने यह कह कर विवाद को और बढ़ा दिया था कि लड़कियां सुंदर दिखने की चाहत में सेहत से खिलवाड़ करती हैं। मोदी ने इंटरव्यू के दौरान कहा था कि गुजरात में मध्यम वर्गीय लोगों की तादाद ज्यादा है। यह लोग अपनी सेहत से ज्यादा अपनी सुंदरता व फिगर पर ध्यान देते हैं, इसलिए ऐसे लोग कुपोषण का शिकार होते हैं।
ऐसे इजाद हुआ “गोदी मीडिया”
नरेंद्र मोदी पर देर-सबेर मीडिया को साधने के आरोप भी लगते रहे हैं। इस मामले में उन्हें बेहद माहिर समझा जाता है। आलम यह है कि मीडिया के एक धड़े को अब “गोदी मीडिया” तक कहा जाने लगा है। आखिर सवाल उठता है कि मीडिया घराने गाहे-बगाहे सत्ता और “राज-घरानों” को साधने के लिए बदनाम होते ही रहते हैं, लेकिन यह शब्द कैसे इजाद हुआ। मोदी से जुड़े इस विवाद की शुरुआत हुई थी साल 2013 में, जब एक अखबार ने दावा किया था कि मोदी ने उत्तराखंड में आई त्रासदी के बीच 15 हजार लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। बात इतने तक ही सीमित होती तो भी लोग भूल जाते, लेकिन अखबार मोदी से इस कदर प्रभावित था कि उसने इसे “मोदी का रैंबो ऐक्ट” यानि बहादुरी भरा काम तक करार दे दिया था। हालांकि, जब मोदी पर इस दावे को लेकर सवाल उठे, तो अखबार गुपचुप तरीके से माफी मांगकर अपनी बात से पीछे हट गया। लेकिन इसी के बाद मोदी के समर्थक मीडिया धड़े को “गोदी मीडिया” कहा जाने लगा।
गुजरात में लोकायुक्त की तैनाती
गुजरात में लोकायुक्त की तैनाती को लेकर भी लंबे समय तक विवाद चला। राज्य में 2009 में कमला बेनीवाल के राज्यपाल का पद संभालने के बाद सरकार ने कई बार लोकायुक्त नियुक्ति के लिए नाम उनके पास भेजे। लेकिन कभी नेता प्रतिपक्ष, तो कभी गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की आपत्ति रही। इसके बाद जब बेनीवाल ने मुख्य न्यायाधीश के प्रस्ताव पर आरए मेहता का नाम लोकपाल बनाने के लिए तय किया, तो मोदी सरकार इसके खिलाफ पहले गुजरात हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गई। लेकिन उसे दोनों ही अदालतों में सफलता नहीं मिली।
तोगड़िया बन गए थे मोदी की मुसीबत
प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी अपने साथी नेताओं के बयानों की वजह से भी कई बार विपक्ष के निशाने पर आ गए। ऐसा ही एक बयान विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया का था, जब उन्होंने कथित तौर पर हिंदू बहुल इलाकों में बसे मुसलमानों को बलपूर्वक निकालने की बात कही थी। इस मामले में चुनाव आयोग ने उनके भाषण का टेप भी मांग लिया था। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि तोगड़िया का बयान मोदी की बांटने वाली राजनीति का ही हिस्सा है। इसे लेकर जब विवाद ज्यादा बढ़ा, तो मोदी ने खुद ट्वीट कर कहा था- “इस तरह के बयान देने वालों से मैं अपील करता हूं कि वे ऐसे बयान देने से बचें।” हालांकि बाद में तोगड़िया को “ठिकाने” लगाने के आरोप भी मोदी पर लगे।
पहले शौचालय, फिर देवालय
हिंदूवादी संगठनों की तरफ से मोदी पर एक बार फिर तब निशाना साधा गया था, जब उन्होंने एक रैली के दौरान कहा था कि देश में पहले शौचालय बनने चाहिए और फिर देवालय यानी मंदिर। एक समारोह में मोदी ने कहा था कि हिंदुत्ववादी नेता की छवि होने के बाद भी उनमें यह बात कहने का साहस है। उन्होंने कहा, ‘मुझे हिंदुत्ववादी नेता कहा जाता है। मेरी छवि मुझे ऐसा कहने नहीं देगी, लेकिन मुझमें यह कहने का साहस है। वाकई मेरी सोच है-पहले शौचालय, फिर देवालय।’ उनके इस बयान पर विपक्ष को तो उन्हें घेरने का मौका मिला ही। ऊपर से विश्व हिंदू परिषद ने मोदी पर जबरदस्त हमले किए। प्रवीण तोगड़िया ने कहा है कि मोदी के बयान से हिंदुओं की भावनाओं को चोट पहुंची है और हिंदुओं का अपमान हुआ है, इसलिए भाजपा को माफी मांगनी चाहिए।
“सेल्फी” ले ले रे…
नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के दौरान एक और मामले में विवाद में घिरे थे। चुनाव के एक चरण के दौरान उन्होंने भाजपा के चुनाव चिह्न ‘कमल’ के स्टिकर को हाथ में पकड़कर भाषण दिया था। साथ ही मतदान करने के बाद कमल के निशान के साथ सेल्फी भी पोस्ट की। इसे लेकर काफी विवाद हुआ था और विपक्ष ने इसकी शिकायत बाद में चुनाव आयोग से भी की। आखिर में चुनाव आयोग ने मोदी को ऐसी किसी भी गतिविधि से बचने की हिदायत दी थी।
नाम वाला सूटः आखिर करना पड़ा नीलाम
विवादों से मोदी का नाता पीएम बनने के बाद भी नहीं छूटा। जनवरी 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मुलाकात के वक्त एक खास बंद गला सूट पहना था। इस सूट पर पीले रंग की लंबी पट्टियां थी, जिस पर उनका पूरा नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी लिखा था। मोदी के इस सूट की कीमत शुरुआत में 20 लाख बताई गई और समय के साथ विपक्ष ने इसे 15 लाख और 10 लाख रुपये का सूट भी बताया और लगातार मोदी को घेरने की कोशिश की। हालांकि, बाद में सामने आया कि सूट को हीरा कारोबारी रमेश कुमार भीखाभाई विरानी ने मोदी को गिफ्ट किया था। विरानी ने अपने बयान में कहा था कि मैंने गुजरात वाइब्रेंट के दौरान मुलाकात पर उन्हें सूट गिफ्ट किया था। इस सूट को 2017 में नीलाम कर दिया गया।
कब आएंगे 15 लाख रुपए
मोदी ने 2014 के आम चुनाव से पहले कहा था कि वे स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा काले धन की एक-एक पाई भारत में लाएंगे। मोदी ने यहां तक कहा था कि अगर विदेश में जमा पूरा काला धन वापस भारत आ जाए, तो हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये तक आ जाएंगे। लेकिन, विपक्ष ने मोदी के इस बयान को तोड़ मरोड़ कर ऐसे पेश किया जैसे वह हर भारतीय को उसके खाते में 15 लाख रुपए देने वाले हैं। इस भाषण के लिए विपक्ष मोदी को न जाने कितनी बार घेर चुका है। राहुल गांधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं ने मोदी से काला धन वापस लाने को लेकर जानकारियां मांगीं। यह मुद्दा 2019 के चुनाव में फिर उछला, जब विपक्ष ने पूछा कि नोटबंदी से कितना काला धन जब्त हुआ और गरीबों के खाते में आने वाले 15 लाख रुपये कहां हैं? लेकिन, भाजपा इस भाषण की वीडियो फुटेज दिखा हर बार विपक्षी हमले की हवा निकाल देती है।
अवॉर्ड वापसी: मोदी विरोधियों को पहली बार कहा गया “गैंग”
लोकसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल करने के बाद मोदी को बड़ा झटका साल 2015 में बिहार चुनाव के दौरान लगा था। तब भाजपा पर धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए अवॉर्ड वापसी अभियान की शुरुआत हुई। इस अभियान के तहत देशभर के 30 से ज्यादा साहित्यकारों और लेखकों ने खुद को मिले सम्मान लौटा दिए। इस लिस्ट में उदय प्रकाश, कृष्णा सोब्ती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, केकी दारूवाला, अंबिकादत्त, मुनव्वर राणा समेत कई बड़े नाम शामिल रहे। इस अभियान के चलते प्रधानमंत्री मोदी की छवि को पहली बार धक्का लगा था। जवाब में भाजपा कार्यकर्ताओं ने मोदी विरोधियों को “गैंग” तक कह डाला था। हालांकि, मोदी के इस विरोध की हवा तब निकल गई, जब कई लोगों ने अवार्ड वापस करने का ऐलान करने के बाद भी पुरस्कार स्वरूप मिली राशि और सम्मान नहीं लौटाए।
विदेशी जमीन पर की कांग्रेस की फजीहत
मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जर्मनी यात्रा के दौरान एक सभा में कहा था कि भारत की छवि अब स्कैम इंडिया से बदलकर स्किल इंडिया की हो रही है। इसके अलावा कनाडा दौरे पर मोदी ने कहा था कि जिन्हें गंदगी करनी थी, वो तो गंदगी कर के चले गए। साफ हम कर रहे हैं। मोदी के इन बयानों के बाद विपक्ष ने उन पर जमकर निशाना साधा और पिछली सरकारों की उपलब्धियां गिनाईं। कांग्रेस ने तो मोदी पर विदेश में भारत की छवि खराब करने का आरोप लगाया। हालांकि, इसके बाद से ही भाजपा के एक धड़े ने हर मुश्किल और मुसीबत के लिए कांग्रेस और नेहरू को जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया। जिसे लेकर आज तक भी मीम्स बनाए जाते हैं। हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम से कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ।
डिग्री का सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर सवाल भी कई बार उठाए जा चुके हैं। इसे लेकर विपक्ष भी हमलावर रहा। दरअसल, दिल्ली के एक वकील ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से आरटीआई के जरिए पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी मांगी थी। यूनिवर्सिटी ने दो बार जानकारी के देने से इनकार कर दिया। इससे पहले केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 1978 के डीयू के बीए पास करने वालों के रिकॉर्ड की पड़ताल करने का निर्देश दिया था। हालांकि, बाद में यह विवाद भी भाजपा की ओर से जवाब आने के बाद खत्म हो गया।
आंदोलनजीवी VS तानाशाही
प्रधानमंत्री मोदी पर पहले कार्यकाल से लेकर दूसरे कार्यकाल तक जबरदस्त बहुमत के साथ सरकार चलाने और ताकत का इस्तेमाल करते हुए कई अहम विधेयकों को कानून बनवा लेने का आरोप लगा। पहले जमीन अधिग्रहण अध्यादेश, फिर सीएए-एनआरसी, इसके बाद यूएपीए कानून में संशोधन और अब तीन कृषि कानूनों पर पीएम मोदी लगातार पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों और विपक्षी पार्टियों के निशाने पर हैं। इन्हीं कानूनों के चलते मोदी पर कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने तानाशाही रवैया रखने का आरोप भी लगाया है।
कोरोना कहर और जीत का दावा
कोरोना महामारी के दौरान दुनिया में सबसे सख्त लॉकडाउन लगा था। हालांकि, इसका फायदा यह हुआ था कि भारत में जनवरी-फरवरी तक कोरोना मामले 20 हजार से भी कम पर स्थिर हो चुके थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कोरोना को हरा देने का ऐलान कर दिया। उन्होंने लगातार जनता को मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के साथ सावधान रहने की भी अपील की। लेकिन मोदी की आधी बात सुनते हुए लगभग सभी राज्यो ने लोगों के मिलने-जुलने की सभी जगहों को खोल दिया। खुद भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों ने चुनावी रैलियां कीं और कई धार्मिक आयोजन भी हुए। इसका असर यह हुआ कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने जमकर कहर बरपाया और मोदी के कोरोना पर जीत वाले बयान की चौतरफा आलोचना हुई।
राफेल डील पर विवाद
मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार रक्षा से जुड़े एक मुद्दे पर भी लगातार घिरी है। यह मुद्दा है राफेल डील का। दरअसल, भाजपा सरकार ने ही फ्रांस के साथ राफेल फाइटर जेट्स खरीदने की डील फाइनल की। हालांकि, कांग्रेस ने इस समझौते में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और कहा कि डील महंगी हुई और इसे प्रधानमंत्री की ओर से एचएएल की जगह अपने पसंदीदा उद्योगपतियों को सौंपा गया। राफेल पर विपक्ष के विरोध के बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। हालांकि, कोर्ट ने सीएजी जांच के आधार पर राफेल डील मामले में सरकार को राहत दी। मजेदार बात यह है कि जब कांग्रेस इस डील पर सवाल उठा रही थी, तो ज्यादातर समय मोदी चुप ही थे। लेकिन 2019 के चुनाव के दौरान जब मोदी रायबरेली में चुनाव प्रचार कर रहे थे, तो उन्होंने रामचरित मानस का हवाला देते हुए कहा, “कुछ लोग झूठ ही स्वीकारते हैं, झूठ ही खाते हैं और झूठ ही चबाते हैं। मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर सेना को झूठा बताया। अब उसे देश की सर्वोच्च अदालत भी झूठी लगने लगी है। वे न्यायपालिका को भी अविश्वास के कठघरे में खड़ा करते हैं।” उन्होंने कहा, “रक्षा सौदों में पिछली सरकारों ने घोटाला किया। इन सौदों में हमारी ईमानदारी और पारदर्शिता से कांग्रेस बौखला गई है। वह नहीं चाहती कि देश की सेना मजबूत हो।”
मोदी यानि विवादों में भी 21
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही कितने भी विवादों में रहे हों और विपक्ष ने उन्हें घेरने में चाहे जितना जोर लगा लिया हो, लेकिन अभी तक उन्हें टस से मस नहीं करा सका है। आलम यह है कि लोग इस मामले में भी उन्हें सभी पर भारी बताने लगे हैं। यानि मोदी को विवादों में भी 21 कहा जाने लगा है। मोदी अक्सर चर्चाओं में रहते हैं। कभी खुद का छाता पकड़ने की वजह से तो कभी दाढ़ी से स्टाइल और कभी बयानों को लेकर। बड़ी बात यह है कि पूरा विपक्ष उन्हें घेरने में जुटा रहता है, लेकिन मोदी की तरफ से “सफाई” देने की बात तो दूर जवाब तक नहीं आता। अपने फैसलों को लेकर जिस तरह का जिद्दीपन उनमें दिखाई देता है उसे लेकर उनकी पार्टी तक में कोई सवाल नहीं उठा सकता। यही वजह है कि विपक्ष अब उन्हें “तानाशाह” तक कहने लगा है। हालांकि इस आरोप के जवाब में भाजपा सफाई देने की बजाय हमेशा इंदिरा गांधी से लेकर संजय गांधी तक की तस्वीर सामने कर देती है।