Mission UP: योगी का रास्ता रोकने में जुटे 85 किसान संगठन, 27 सितंबर को “बंद” से शक्ति प्रदर्शन
17 सितंबर को जिला मुख्यालय पर किसान और अन्य जन-संगठनों की होंगी बैठकें
TISMedia@Lucknow किसान आंदोलन का रुख अब उत्तर प्रदेश की ओर मुड़ने लगा है। सूबे की सत्ता में योगी आदित्यनाथ की वापसी को रोकने के लिए एक दो नहीं बल्कि 85 किसान संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। राज्य स्तर पर बकायदा संचालन समिति गठित की गई है। जो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों तक सूबे से लेकर जिले, तहसील और गांव कस्बा स्तर पर योगी सरकार के खिलाफ आंदोलन की न सिर्फ रणनीति बनाएगी, बल्कि इस रणनीति को अंजाम तक भी पहुंचाएगी। किसानों के इस जुटान का पहला शक्ति प्रदर्शन 27 सितंबर को भारत बंद के ऐलान से होगा। हालांकि, इसका यूपी में कितना असर होगा इसे लेकर अभी तक संदेह ही बना हुआ है।
दिल्ली की सीमाओं को घेरकर बैठे किसानों को 11 सितंबर को पूरे 288 दिन हो गए। बावजूद इसके न तो सरकार उनकी सुनने को राजी है और ना ही वह पूछे हटने को। देश की राजधानी में चल रहा यह जुटान पश्चिम बंगाल के चुनावों तक जा पहुंचा था, लेकिन जितनी इसकी चर्चा थी उतना असर नहीं दिखा, लेकिन अब किसान नेताओं ने हिंदी भाषी गढ़ में भाजपा और उसकी सरकारों के खिलाफ सियासी रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनावों को देखते हुए किसान नेताओं का पूरा फोकस इन दो राज्यों का सियासी समीकरण बनाने-बिगाड़ने पर जुट गया है।
किसान नेताओं की चुनावी रणनीति
दिल्ली के सियासी समर में हाथ खाली रहने के बाद किसान नेताओं ने अब चुनावी मैदान में जोर अजमाइश का इरादा बनाया है। शुरुआत पंजाब से हुई। जहां संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से जुड़े पंजाब के 32 किसान संगठनों ने शुक्रवार को आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक सभी गैर-भाजपा राजनीतिक दलों की एक बैठक बुलाई। बैठक में किसान नेताओं ने राजनीतिक दलों से समर्थन मांगा और तय हुआ कि जो सियासी संगठन किसानों के साथ खड़े होंगे और उनके आंदोलन का समर्थन करेंगे किसान भी उनके साथ खड़े होंगे, लेकिन चौकाने वाली बात यह रही कि किसान नेताओं ने आंदोलन के समर्थन का सियासी फायदा न उठाने की अपील की। जो किसी भी सूरत में संभव नहीं होता दिखता। किसान संगठनों ने तो यहां तक दावा किया कि सभी राजनीतिक दल पंजाब में किसान आंदोलन का समर्थन करेंगे और राजनीतिक प्रचार से दूर रहेंगे। समझौते का उल्लंघन करने वालों को किसान विरोधी माना जाएगा और किसान उनका विरोध करेंगे।
अब बात यूपी की
पंजाब ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने ऐसी ही एक “सियासी बैठक” गुरुवार को लखनऊ में आयोजित की। हालांकि इस बैठक में कोई राजनीतिक दल तो शामिल नहीं हुआ, लेकिन 85 किसान संगठन जरूर एक ही मंच पर खड़े दिखे। जिन्होंने यूपी के सिंहासन पर योगी की वापसी रोकने के लिए विधानसभा चुनावों तक व्यापक आंदोलन करने की रणनीति बनाई। किसान नेताओं ने तय किया कि वह भाजपा और योगी सरकार की किसान विरोधी नीतियों से गांव-गांव जाकर किसानों को जागरुक करेंगे। इसके लिए जिला और तहसील ही नहीं ग्राम पंचायत स्तर तक संगठनात्मक ढ़ांचा तैयार किया जाएगा। जो नियमित आंदोलन, प्रदर्शन और धरने आदि आयोजित करेंगे। व्यापक आंदोलनों की शुरुआत 27 सितंबर को भारत बंद के साथ की जाएगी। जिसे सफल बनाने के लिए यूपी के सभी जिला मुख्यालय पर 17 सितंबर को किसान और अन्य जन-संगठनों की बैठकें आयोजित की जाएंगी। इतना ही नहीं गन्ना मूल्य और अन्य ज्वलंत स्थानीय मुद्दों, प्रत्येक मंडल में महापंचायतों की तिथि आदि मुद्दों पर निर्णय 27 सितंबर के बाद उत्तर प्रदेश एसकेएम की बैठक में लिए जाएंगे।
तीन सदस्यीय समिति करेगी समन्वय
आंदोलन की योजना बनाने और उसे क्रियान्वित कराने के लिए बैठक में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया। समिति में हरनाम वर्मा, डीपी सिंह और तेजिंदर सिंह विर्क को शामिल किया गया है। यह समिति भारत बंद की गतिविधियों का समन्वय करेगी और बाद में इसका विस्तार किया जाएगा। समिति गठित होने के बाद पहली बार मीडिया से बात करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने भाजपा नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल के किसान नेताओं के खिलाफ बार-बार दिए जा रहे अनर्गल बयानों की निंदा की। उन्होंने कहा, ”ग्रेवाल किसानों को गुंडा कह रहे हैं। कुछ दिन पहले ग्रेवाल ने एक महिला पत्रकार के खिलाफ भी अपमानजनक टिप्पणी की थी। इस तरह का व्यवहार भाजपा नेताओं के असली चरित्र को उजागर कर रहा है।”
दूसरे राज्यों पर भी नजर
चुनावी राज्यों के बाद किसान नेताओं ने उनके पड़ौसी राज्यों पर भी नजर गढ़ाई हुई है। वहां भी आंदोलनों की रणनीति तैयार की जा रही है, लेकिन थोड़ी धीमी गति से। जैसे राजस्थान में एसकेएम का राज्य सम्मेलन सूबे की राजधानी या किसी प्रमुख शहर के बजाय दिल्ली सीमा पर किसानों के जुटान स्थल शाहजहांपुर मोर्चा पर आयोजित किया गया। सम्मेलन ने आंदोलन के निर्माण और एसकेएम के संदेश को सभी गांवों तक पहुंचाने का संकल्प लिया, लेकिन इस काम को अंजाम देने के लिए यूपी, उत्तराखंड और पंजाब की तरह माइक्रो प्लानिंग नहीं की गई। इसके अलावा महाराष्ट से लेकर मध्य प्रदेश तक भी आंदोलन की रणनीति तो बनी, लेकिन वह साइकल मार्च तक ही सीमित रह गई। इस रणनीति के मुताबिक प्रहार किसान संगठन के 50 किसानों की साइकिल मार्च 11 सितंबर को महाराष्ट के वरुड से शुरू होकर मध्य प्रदेश के मुलतापी होते हुए 19 सितंबर को गाजीपुर मोर्चा और 20 को सिंघु मोर्चा पर पहुंचेगा।