#Karwa_Chauth_ Special: पति की उम्र लंबी हो इसीलिए सुहागिनें यहां नहीं रखती करवाचौथ का व्रत
विनीत सिंह/मथुरा. करवाचौथ का मौका हो और सुहागिनें व्रत न रखें ऐसा असंभव है, लेकिन एक जगह ऐसी भी है जहां महिलाएं न तो करवाचौथ का व्रत रखती हैं और न ही इस दिन वह कोई साज-श्रंगार करती हैं। चौंकिए मत यह सच है। मथुरा जिले के सुरीर कस्बा स्थित बघा मोहल्ले में यह परंपरा कोई एक दो रोज से नहीं बल्कि पूरे 200 साल से चली आ रही है।
भैंसे को लेकर छिड़ा था विवाद
सुरीर कस्बे के इस मोहल्ले की सबसे बुजुर्ग 97 वर्षीय महिला सुनहरी देवी बताती हैं कि इस अनोखी प्रथा के पीछे छिपी है श्राप की कहानी। यह श्राप दिया था सती ने। कौन थी वह सती ? पूछने पर सुनहरी देवी बताती हैं कि करीब 200 साल पहले नौहझील क्षेत्र के गांव राम नगला का एक युवक ससुराल से अपनी पत्नी को विदा कराकर घर लौट रहा था। लेकिन, जैसे ही नवदंपति की भैंसा गाड़ी सुरीर कस्बे से होकर गुजरी, बघा मोहल्ले के लोगों ने उसे रोक लिया और गाड़ी में जुते भैंसे को अपना बताने लगे। भैंसों को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि मामला खून खराबे तक जा पहुंचा। जिसमें अपनी पत्नी को विदा कराकर ले जा रहे युवक की हत्या कर दी गई।
सती ने दिया श्राप
भैंसा गाड़ी में बैठी नवविवाहिता के सामने ही उसके पति की हत्या की गई थी। अपनी आंखों के सामने भीड़ के हाथों पति को मरता देख वह महिला इस कदर गुस्से से भर उठी कि उसने पूरे मुहल्ले के लोगों को श्राप दे डाला कि जिस तरह में बिलख रही हूं, तुम्हारी पत्नियां भी बिलखेंगी। इतना ही नहीं श्राप देने के बाद वह महिला अपने पति के साथ सती हो गई।
200 साल बाद भी श्राप का असर
इस घटना के बाद बघा मोहल्ले में अनहोनी घटनाओं का दौर शुरु हो गया। कई नवविवाहिताएं विधवा हो गई। हालात ऐसे हो गए कि मुहल्ले के लोग अपने बच्चों की शादी करने तक से घबराने लगे। आखिर में कस्बे के बुजुर्गों ने सती के श्राप से मुक्ति के लिए क्षमा याचना तक की। लेकिन, इसके बाद भी कोई हल नहीं निकला तो फिर बघा मुहल्ले की महिलाओं ने करवा चौथ और अहोई अष्टमी का व्रत करना बंद कर दिया। इतना ही नहीं इस दिन इस मुहल्ले की महिलाओं ने श्रंगार तक करना बंद कर दिया। इसके बाद जाकर नव विवाहित युवकों की मौत का सिलसिला थमा।
मंदिर का कराया निर्माण
इस साल भी बघा मुहल्ले में पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत नहीं रखा गया। क्योंकि, मुहल्ले की नवविवाहिताओं राधा देवी, रुक्मिणी, प्रेमवती, रामवती, पूनम और जयंती देवी आदि के परिजन उनसे करवा चौथ का व्रत रखने के लिए मना कर चुके हैं। क्योंकि उन्हें डर है कि 200 साल से चली आ रही परंपरा टूटी तो सती माता का कहर उनके सुहाग की जिंदगी निगल सकता है। हालांकि ग्रामीणों ने सती माता के श्राप से मुक्त होने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए यहां सती माता के मंदिर का भी निर्माण करवाया है। जहां गांव की सारी सुहागिनें रोज पूजा-अर्चना करने जाती हैं। इतना ही नहीं गांव के लोग कोई भी शुभ कार्य करने से पहले माता को शीश झुकाते हैं।