मसीहाः कोरोना ने छीने कमाऊ पूत, वो चुपचाप हाथों में रख गया अपनी पूरी कमाई
– कोटा के युवाओं की मदद का तरीका साबित हो रहा मानवता की मिसाल
– खबरें छपवाना तो दूर सोशल मीडिया तक पर नहीं बयां कर रहे अपनी कहानी
TISMedia@कोटा. “जहां तक रास्ता दिख रहा है, वहां तक चलिए, आगे का रास्ता वहां पहुंचने के बाद दिखने लगेगा”…!!! न तो वो रॉबिन हुड सरीखे ग्लेमरस अवतार हैं और ना ही भामाशाह जैसे धनाढ्य, लेकिन दूसरों की आंख से गिरने वाला पानी उनका सीना छलनी कर रहा है। जवान बच्चे और घर के कमाऊ पूत खोने का दर्द नासूर सरीखा है, लेकिन वह मदद की मरहम से उसकी टीस कम करने में जुटे हैं। वो कुछ नहीं कर पा रहे तो खुद की कमाई जरूरतमंदों के हाथों में रख रहे हैं। यकीनन वो कोटा के बेटे बेटियां हैं… जो अखबारी सुर्खियों से परे हर दम लोगों की मदद करने में जुटे हैं।
12 मई 2021… शाम के करीब पांच बजे… फोन की घंटी घनघनाई… डॉ. प्रतीक का नाम फ्लैश हुआ… कॉल रिसीव करते ही पूछा… भैया वो बुजुर्ग दादी और बच्चों की स्टोरी TIS Media पर चल रही है, क्या उनका पता मिल सकता है? मैं ठिठका, हां अभी देता हूं…। दोनों परिवारों के नंबर डॉ. प्रतीक को देने के बाद मैं भूल गया कि उन्हें किस लिए चाहिए थे…!
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16 मई 2021… अरे भैया वो डॉ. प्रतीक को जो नंबर दिए थे हमें भी दे दीजिए…! जब टीम सारथी के शरद खंडेलवाल और नागेन्द्र सिंह रानावत की दूसरी कॉल आई तो माथा ठनका कि आखिर इन लोगों को उन परिवारों के नंबर क्यों चाहिए? आखिर कर क्या रहे हैं यह लोग…। पूछा, तो सभी चुप्पी साध गए… अरे, जाने दीजिए क्या करना। जिसको जो चाहिए था वह मिल गया…! मन फिर भी नहीं माना… खोज खबर ली तो पता चला कि दर्द साझा करने में जुटे थे यह लोग।
19 मई 2021… भैया एक फोटो भेज रहा हूं… देखो यही जानना चाहते थे क्या…? व्हाट्सएप खोला तो मन को सुकून मिला कि चलो कोरोना काल के इस महाबुरे दौर में भी कुछ लोग जिंदा हैं जो न सिर्फ दूसरों का दर्द समझ सकते हैं बल्कि, उसे साझा करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं भले ही उनकी सामर्थ से भी बाहर है।
यह था मसला
कोटा के बालिता इलाके में दुकान चलाने वाले पवन केवट को कोरोना की दूसरी लहर निगल गई। पवन की पत्नी भी कोरोना पॉजिटिव थी। दोनों का इलाज कराने में पवन के पिता की सारी जमा पूंजी खत्म हो गई। वहीं कमाऊ पूत की मौत ने पूरे परिवार की रीढ़ ही तोड़ दी। सात साल की प्रतिज्ञा, पांच साल की पलक और तीन साल की तीसरी बेटी रक्षा को तो पता ही नहीं था कि जिंदगी और मौत क्या होती है… हां उन्हें पता था तो सिर्फ यह कि भूख क्या होती है… दुलार क्या होता है? क्योंकि पहले पिता की मौत और फिर जब मां जिंदगी के लिए अस्पताल में जूझ रही थी तब बुजुर्ग दादा उनकी परवरिश के लिए दिन रात जूझ रहे थे। अकेले पवन की तीन मासूम बेटियां ही सवालों से नहीं जूझ रही थीं… बल्कि, बड़ा सवाल तो केशवपुरा निवासी केशर बाई के आगे मुंह बाए खड़ा था…! कोरोना ने पहले 11 दिनों तक जूझने के बाद उनके इकलौते बेटे राजेंद्र कुमार सेन को छीन लिया और फिर बहू सुनीता को भी यह महामारी निगल गई। पीछे छूट गए तो 80 साल की केशर बाई, मासूम पोता गौरव और मकान बनाने के लिए लिया ढ़ाई लाख का कर्जा…!!! केशर बाई की तो पूरी दुनिया ही उजाड़ दी कोरोना ने, लेकिन वह चाहकर भी आह नहीं भर सकती थी, क्योंकि जैसे ही उसकी आंख से आंसू गिरते मासूम नाती गौरव मां-पिता को याद कर चीत्कार कर उठता। पवन और राजेंद्र की मौत ने परिवार के बुजुर्ग खंभों पर मासूम बच्चों की परवरिश का ऐसा बोझ डाल दिया कि न तो वह झुक सकते थे और न ही टूट सकते थे…।
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मदद को बढ़े हाथ
पवन और राजेंद्र के परिवार के हालात से जब TIS Media ने लोगों को रूबरू करवाया तो कोटा की युवा पीढ़ी अपने बुजुर्ग और बच्चों का हाथ थामने खुद ही उठ खड़ी हुई। डॉ. प्रतीक फिजियोथैरिपिस्ट हैं, लेकिन बीते साल भर से चल रहे कोरोना के हालातों ने उनकी प्रेक्टिस पर खासी चोट की। ऊपर से पत्नी की डिलेवरी होनी थी, लेकिन यह खबर पढ़ने के बाद वह मदद के लिए उठ खड़े हुए। शरद खंडेलवाल सहित उनके दोस्तों ने इसमें उनका साथ दिया तो दिवंगत पवन की मासूम बच्चियों को 15 हजार और दिवंगत राजेंद्र की मां केशर बाई को चुपचाप 25 हजार रुपए की आर्थिक मदद पहुंचा दी। न कोई हल्ला न कोई पीठ थपथपाना… सबकुछ इतनी खामोशी से कि किसी को भनक तक न लगी। वह तो रविंद्र यदि चुपके से फोटो न खींचते तो हमें भी खबर न लगती। टीम सारथी और नागेंद्र का तो यह भी पता नहीं लगा सके हम… पूछने पर सुकून देने वाली मुस्कुराहट और उसके बाद एक ही जवाब मिलता जिसका था उस तक पहुंच गया। “जहां तक रास्ता दिख रहा है, वहां तक चलिए, आगे का रास्ता वहां पहुंचने के बाद दिखने लगेगा”…!!! कोटा के इन युवाओं को साधुवाद जो शहर के साथ खड़े हैं, शहर के लोगों के साथ खड़े हैं… बिना किसी शोर शराबे के।