यौमे शहादत : पाक दिलों की खुशबू हैं हजरत अली…

किसी को लगता था कि धोखे से पीठ में उतारा एक खंजर उनको खत्म कर देगा, जालिम भूल रहा था कि वह शख्सियत मिट्टी के जिस्म का मोहताज ही नहीं था। उनका जिस्म रुखसत हुआ मगर उनकी रूह से पूरी कायनात रोशन हो उठी। उनमें नरमी ऐसी की मोम भी उनके पैतियाने बैठ सीखे। ताकत इतनी की उस दौर का सख्त तपा लोहा भी मुरझा जाए। मोहब्बत इतनी की खुशबू, दुनिया के बाद भी महके। इल्म इतना की लाखों किताबें एक करवट से निकलें।

खि़दमत ऐसी की दुनिया की सबसे शानदार मिसाल। दानशीलता ऐसी की खुद का खून निचौड़ कर जरूरतमंद में बांट दें। इंसाफ ऐसा की तराज़ू का कांटा माशा भर भी इधर उधर न झुके। यूं कहें हर फऩ में तारीख गढऩे वाली नायाब शख्सियत है हजरत अली। जिनकी पैदाइश का गवाह काबा और शहादत के आंसू मस्जिद ने बहाए हों। जिन्हें मिटाने को वक्त भी वह चुना, जब उनका सर खुदा की बारगाह में सजदे में हो। खुदा के सामने झुके सर पर भी पीठ पर वार करके सोचा था कि उन्हें मिटा लेंगे। लेकिन, वह चमक कर घर-घर, नस्ल-नस्ल में रौशन हो गए। ऐसे हैं हमारे हजरत अली।

मेरा दिल जब डूबकर लडखड़़ाता है तो उसे सहारा देते हैं मेरे अली। अली ने सूफिज्म की वह नींव रखी जिसकी आगोश में सारा जहां आ गया। जब उन्होंने मोहब्बत से बाहें फैलाई तो आवाम सर झुका के खड़ी हो गई। हर एक के सवाल, परेशानी, दर्द, तकलीफ में जिसने फाहे का काम किया वह अली थे। जब आंखों में अंधेरा और मुस्तकबिल में कालिख दिखी, तब रौशनी का काम किया शेर-ए-अली ने। मेरे अली ने हर पके दर्द में शिफ़ा का चीरा लगाया। हर तकलीफ़ में मरहम के फाहे रखे। इंसानियत को अपनी मोहब्बत और दूरदर्शी सोच से ऐसा रास्ता दिखाया की इंसानियत की राह आसान हो गई।

जिन्होंने हजारों साल पहले वह कह दिया, जिसकी आज भी उतनी ही जरूरत है, जितनी तब थी। अपने कातिल तक के लिए कहा की इसको सिर्फ इतनी ही सजा देना जितना इसका गुनाह है। सजा गुनाह से बढ़कर न हो। इंसाफ में माशा भर फर्क न आने पाए।
आज 21वां रोजा उनकी शहादत का दिन है। एक कुंठित बीमार दिमाग ने उन्हें खत्म करना चाहा था। 19वीं रमजान को पीठ पर खंजर मारा और आज के रोज हजरत अली जिस्म से आजाद होकर इंसानियत के जर्रे-जर्रे में जिंदा हो गए। अली अपने जिस्म से उठकर आम लोगों की रूह में उतर गए। आज जब हजऱत अली को याद करिए, तो सबसे पहले खुद में सब्र लाइए, हिम्मत को जगह दीजिए, सख़ावत को ज़ेवर बनाइए। इल्म में डूब जाइए और ऐसे मोती चुनिए की इंसानियत मुस्कुराए।

हजऱत अली से सीखिए की गरीब-अमीर के फर्क बिना, मजहब और सोच के फर्क बिना, काले गोरे के फर्क बिना, औरत-आदमी के फर्क बिना इंसाफ और मदद कैसे की जाती है। दुनिया की वह नायाब मिसाल जिसने अपनी बीवी हजऱत फातिमा को बराबर का हक दिया। उनके इल्म ओ हुनर को महकने दिया। उनके किरदार पर पहरे बैठाने की जगह उसे खुलने दिया। बेपनाह मोहब्बत के साथ हौसला बढ़ाया। अपने बच्चों को सच्चाई व हक के लिए शहीद होने का सबक देकर बड़ा किया। उन्होंने जूल्म के खिलाफ झुकने के बजाए डटकर मुकाबला करने का गुर सिखाया। हजरत अली के किरदार से सीखिए अपने परिवार, अपने घर, अपने दोस्तों, जानने वालों को सुधारिए, सिखाइए, खुद को निखारिए। यही हजऱत अली को याद करने का सबसे बेहतर तरीका है।

जो इंसाफ के साथ है, वह हजरत अली के पीछे खड़ा है, जो जूल्म के खिलाफ मजलूम के साथ खड़ा है, उसके सर पर हजऱत अली का हाथ है, जो इल्म के लिए भूख प्यास भूला है, उसकी आंखों की चमक हजऱत अली हैं। जो झुककर परेशान को सहारा दे रहा, उसके कंधों पर हजऱत अली का हाथ है, जो यतीमों को मोहब्बत, इज्जत और मजबूती दे रहा, उसके दिल की खुशबू हैं हजऱत अली, जो हर एक की बराबरी के लिए लड़ रहा, उसकी ढाल हैं हजऱत अली। हर अच्छाइयों की वजह हैं, हमारे हजऱत अली। बस दुआं की सुई की नोक के बराबर भी आपका किरदार हममें आ जाए, तो ज़माना महक जाए।

(साभार, हफीज किदवई, जाने माने लेखक हैं। यह किदवई के निजी विचार हैं।)

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