कोरोना का सबक… बाल कहानी
~रवि शंकर शर्मा
मोहित और रोहित तीसरी और चौथी कक्षा में पढ़ते थे। दोनों भाइयों को अचानक स्कूल भेजना बंद कर दिया गया, क्योंकि उनके स्कूल प्रबंधक की तरफ से मैसेज आया था कि किसी संक्रामक बीमारी के कारण स्कूल को अगली सूचना तक के लिए बंद किया जा रहा है। दोनों भाई बहुत खुश हुए की चलो अब रोज सुबह उठकर तैयार नहीं होना पड़ेगा और होमवर्क से भी छुट्टी मिली। दोनों मजे करने के साथ शाम को कॉलोनी की फील्ड में खूब धमा-चौकड़ी करने लगे। लेकिन तीन दिन भी नहीं बीते कि उनके मम्मी- डैडी ने उन्हें बताया कि वे अब घर के बाहर भी नहीं खेल सकेंगे, क्योंकि जिस बीमारी की वजह से उनका स्कूल बंद किया गया था, अब वह जगह-जगह फैलने लगी है तथा अगले तीन हफ्तों के लिए सब जगह लाॅकडाउन कर दिया गया है। बच्चे तो बच्चे ही ठहरे, वह अपने मां-बाप से प्रश्न करने लगे कि भला उनका बीमारी से क्या लेना-देना और ये लाॅकडाउन कौन सी बीमारी का नाम है। तब उनके मां-बाप ने उन्हें समझाया कि इस बीमारी का नाम ‘ कोरोना ‘ है और यह वायरस जनित संक्रामक बीमारी है। यदि कोई बच्चा कोरोना के संक्रमण से प्रभावित है तो उसके संपर्क में आने से उन्हें भी यह बीमारी पकड़ सकती है। डैडी ने आगे बताया कि बेटा, लाॅकडाउन कोई बीमारी नहीं है, बल्कि बीमारी से बचाने के लिए ही लोगों का कुछ समय के लिए घर से निकलना प्रतिबंधित किया गया है।
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इस पर मोहित व रोहित अपने मां-बाप से एक साथ पूछ बैठे, पर डैडी दवा खाने से तो यह तुरंत ठीक हो जाएगी ना ? यह सुनकर बच्चों के मम्मी-पापा गंभीर हो गए, भला इन छोटे बच्चों को बीमारी की भयावहता के बारे में कैसे बताएं। फिर भी उन्होंने बच्चों को समझाया कि बेटा अभी तक इस बीमारी की कोई दवाई या वैक्सीन नहीं बनी है और इसे ठीक होने में भी बहुत समय लगता है। जिन लोगों की रोगों से लड़ने की क्षमता कम है, उनकी स्थिति काफी खराब भी हो सकती है। मम्मी ने बच्चों को बताया कि क्योंकि यह बीमारी खांसने-छींकने और एक-दूसरे को छूने से संक्रमित हो जाती है, इसलिए इससे बचने की बहुत जरूरत है। खैर यह सब सुनकर बच्चे घर पर ही रहने और खेलने को राजी हो गए।
अब बच्चों के माता-पिता पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह थी कि उन्हें दिन भर व्यस्त कैसे रखा जाए। इसके लिए दोनों ने मिलकर पूरे घर के लिए एक टाइम टेबिल बनाया और बच्चों से कहा कि जैसे वे अपने स्कूल में टाइम टेबिल के अनुसार काम करते हैं, उसी तरह घर पर भी सभी काम करेंगे। बच्चे खुशी-खुशी तैयार हो गए। मम्मी डैडी ने बच्चों को सुबह एक घंटे की रियायत देते हुए 7 बजे से उनके उठने का कार्यक्रम रखा। उठने के बाद मोहित और रोहित नहा-धोकर मम्मी- डैडी के साथ योग करने के लिए बैठने लगे। इस प्रकार उन्होंने सूर्य नमस्कार से लेकर तमाम योग सीख लिए और कुछ व्यायाम भी करने लगे। 9 बजते – बजते उनके पेट में चूहे कूदने लगते तो वे बार-बार रसोई में मम्मी के पास पहुंच जाते। मम्मी जो कुछ भी बनाती जातीं, उसे भी डाइनिंग टेबल पर रखते जाते..और फिर सब बैठकर एक साथ नाश्ता करते। यह मोहित और रोहित के लिए नया अनुभव था, क्योंकि इसके पहले तो वे सुबह-सुबह दूध-ब्रेड खाकर और अपना लंच बॉक्स लेकर जल्दी-जल्दी स्कूल निकल जाते थे। फिर मम्मी-डैडी ने बताया कि वह अपने ऑफिस का काम घर से ही लैपटॉप से करेंगे तो बच्चों को लगा कि इस दौरान वे भी कुछ स्कूल की पढ़ाई कर सकते हैं। इसी बीच बच्चों की ऑनलाइन क्लास भी शुरू हो गईं। इसमें तो मोहित और रोहित को और भी मजा आने लगा। उनके क्लास के सहपाठी भी मोबाइल की स्क्रीन पर दिख जाते थे। फिर दोपहर 2 बजे जब वे मम्मी-डैडी के साथ बैठकर खाना खाते तो उन्हें बहुत अच्छा लगता। मम्मी-डैडी फिर काम पर लग जाते और मोहित-रोहित सो जाते।
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एक शाम मोहित और रोहित जब सो कर उठे तो दोनों ने देखा, डाइनिंग टेबिल पर मेन्यू कार्ड रखा है। उसमें खाने की कई चीजें लिखी हुई थीं, जो उन्हें बहुत पसंद थीं। बच्चों ने पूछा, पर ये डिशेज आएंगी कहां से ? तो डैडी ने बताया कि तुम लोग समझ लो कि किसी रेस्ट्रां में आए हो और जो ऑर्डर करोगे, मम्मी वही बना कर देंगी। बच्चों को पाव-भाजी बहुत पसंद थी तो उन्होंने मम्मी से उसी की फरमाइश कर दी। मम्मी ने झटपट पाव-भाजी तैयार कर दी। फिर क्या था, डैडी ने बच्चों को जब शेफ के अंदाज में वह सर्व की तो बच्चों को बहुत मजा आया। मम्मी-डैडी ने दोनों के लिए ढेर सारे इंडोर गेम्स भी ऑनलाइन मंगा दिए थे, जिससे उनकी जनरल नॉलेज में बढ़ती थी और वह पूरे समय व्यस्त भी रहते थे। धीरे-धीरे बीमारी समाप्त हुई और उनके स्कूल खुल गए। लेकिन इस दौरान बच्चों ने बहुत कुछ सीख लिया था।