Valentines Day Special Story: मूमल, महेंद्र और हर रोज सौ कोस का प्रेम सफर…
महेंद्र एक तेज रफ्तारवाले ऊंट पर सवार होकर हर रोज सौ कोस दूर मूमल से मिलने लोद्रवा (जैसलमेर) जाते, लेकिन एक गलतफहमी की वजह से इन दीवानों के प्रेम का अपने अंजाम तक पहुंचने से पहले ही दुखद अंत हुआ और इनकी प्रेम कथा थार के रेगिस्तान में अमर हो गयी।
कौन थे मूमल-महेंद्र
अमरकोट (सिंध) के राणा वीसलदे के बेटे का नाम महेंद्र था। गुजरात का हमीर जडेजा उसका बहनोई और हमउम्र था। दोनों में खूब जमती थी। एक दिन दोनों शिकार का पीछा करते करते हुए दूर लोद्रवा राज्य (जैसलमेर) की काक नदी के पास आ पहुंचे। उनका शिकार अपनी जान बचा कर काक नदी में कूद गया। शिकार छोड़ इधर-उधर नजर दौड़ाने पर नदी के उस पार उन्हें एक सुंदर बगीचा और उसमें बनी एक दोमंजिली झरोखेदार मेड़ी नजर आयी। आराम करने के इरादे से दोनों ने नदी पार कर बगीचे में प्रवेश किया। वहां महेंद्र की मुलाकात उस बगीचे और मेड़ी की मालकिन मूमल से हुई, जो अपनी सहेलियों और दासियों के साथ वहीं रहती थी।
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ऐसे हुई दोनों की मुलाकात
अपने सेवकों से कह कर मूमल ने उनकी खातिरदारी करायी। आराम कर लेने के थोड़ी देर बाद उसने अपने सेवक से कहलवा कर दोनों में से किसी एक को अपने पास बुलवाया। हमीर चूंकि पद में महेंद्र से बड़ा था, इसलिए महेंद्र ने पहले उसे जाने को कहा। मेड़ी के चौक पर हमीर को एक बाघ बैठा नजर आया। आगे चलने पर एक अजगर फेंटा बांध कर बैठा था। हमीर यह सोच कर भाग खड़ा हुआ कि इतने खतरनाक जानवरों के साथ रहनेवाली मूमल कोई डायन है और पुरुषों को मार कर खा जाती है। तब महेंद्र की बारी आयी। वह जब आगे बढ़ा तो उसे भी वही बाघ नजर आया। उसने अपने भाले से पूरे जोर से उस पर वार किया और बाघ के खाल में भरा भूसा बाहर आ गया। तब वह समझ गया कि मूमल उनकी परीक्षा ले रही है। कांच का फर्श पार कर सीढ़ियां चढ़ कर महेंद्र मूमल की मेड़ी में प्रविष्ट हुआ। आगे मूमल खड़ी थी, जिसे देखते ही महेंद्र ठिठक गया। वह ऐसी लग रही थी जैसे काले बादल में बिजली चमकी हो। एड़ी तक लंबे काले बाल मानो काली नागिन सिर से जमीन पर लोट रही हो। चंपे की डाल जैसी कलाइयां, बड़ी-बड़ी सुंदर आंखें, ऐसी लग रही थीं जैसे मद भरे प्याले हो, तपे हुए कुंदन जैसा बदन का रंग, वक्ष जैसे किसी सांचे में ढाले गये हों, पेट जैसे पीपल का पत्ता, अंग-अंग जैसे उफन रहा हो।
परवान चढ़ा प्रेम
महेंद्र मूमल को ठगा-सा देखता ही रहा. उसकी नजरें मूमल के चेहरे को एकटक देखते जा रही थीं. दूसरी ओर मूमल मन में कह रही थी, क्या तेज है इस नौजवान के चेहरे पर और नयन क्या खंजर हैं! दोनों की नजरें आपस में ऐसे गड़ीं कि हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं.
आखिर मूमल ने नजरें नीची कर महेंद्र का स्वागत किया़ दोनों ने खूब बातें कीं, बातों ही बातों में दोनों एक-दूसरे को कब दिल दे बैठे पता ही न चला और न ही पता चला कि कब रात खत्म हो गयी और कब सुबह का सूरज निकल आया. उधर हमीर को महेंद्र के साथ कोई अनहोनी ना हो जाये, सोच कर नींद ही नहीं आयी़ सुबह दोनों अपनी-अपनी राजधानी जाने को तैयार हुए़ महेंद्र का मूमल को छोड़ कर वापस जाने का मन तो नहीं था, पर मूमल से फिर लौटने का वादा कर वह विदा हुआ। दोनों वहां से चल दिए पूरे रास्ते महेंद्र को मूमल के अलावा कुछ और नजर नहीं आ रहा था।
चीतल को मिली प्रेम की सजा
अमरकोट पहुंच कर महेंद्र ने मूमल से मिलने की एक युक्ति लगायी। उसने ऊंटों के टोले में ऐसा ऊंट तलाशा जो रातोंरात लोद्रवा जा कर सुबह होते ही वापस अमरकोट आ सके। जल्द ही उसकी यह तलाश चीतल नाम के ऊंट के रूप में पूरी हुई। फिर क्या था! हर रोज महेंद्र सज-धज कर चीतल पर सवार हो, मूमल के पास लोद्रवा जा पहुंचता। तीसरे पहर वह फिर चीतल पर चढ़ता और सुबह होने से पहले अमरकोट आ पहुंचता। यह सिलसिला लगभग आठ महीने चला। महेंद्र विवाहित था, उसकी सात पत्नियां थीं। धीरे-धीरे उन्हें महेंद्र और मूमल के प्रेम के बारे में भनक लग गयी और यह भी कि हर रात वह चीतल नाम के ऊंट पर सवार होकर मूमल से मिलने जाता है। ईर्ष्या से जल-भुन चुकीं महेंद्र की पत्नियों ने चीतल के पैर तुड़वा दिये।
और पड़ गई दरार
जब महेंद्र को इस बात का पता चला, तो उसने तेज रफ्तार वाले दूसरे ऊंट की तलाश की़ यह एक ऊंटनी थी, जो तेज तो थी, लेकिन उम्र और अनुभव कम होने की वजह से उसे रास्तों की जानकारी कम थी। बहरहाल, रात को महेंद्र एक बार फिर मूमल से मिलने निकल पड़ा और जैसा कि अंदेशा था, वह रास्ता भटक कर लोद्रवा की जगह बाड़मेर पहुंच चुका था। जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने दुगुनी रफ्तार से ऊंटनी को लोद्रवा की दिशा में हांका। इस बीच रात बहुत हो चुकी थी और मूमल सहेलियों के साथ महेंद्र का इंतजार करते सो चुकी थी। उस समय मुमल की बहन सुमल भी मेड़ी में साथ थी। सहेलियों के साथ दोनों बहनों ने देर रात तक खेल खेले थे। सुमल ने खेल में पुरुषों के कपड़े पहन पुरुष का अभिनय किया था और वह बातें करती-करती पुरुष के कपड़ों में ही मूमल के पलंग पर उसके साथ सो गयी थी। महेंद्र मूमल की मेड़ी पहुंचा। सीढ़ियां चढ़ जैसे ही वह मूमल के कक्ष में घुसा, उसने देखा कि मूमल किसी पुरुष के साथ सो रही है। यह दृश्य देखते ही उसे लगा जैसे उसे एक साथ हजारों बिच्छुओं ने काट खाया हो। उसके हाथ में पकड़ा चाबुक वहीं गिर पड़ा और वह चुपचाप उल्टे पांव अमरकोट लौट गया।
बेहाल हुई मूमल
इस घटना के बाद वह मन ही मन सोचता रहा कि जिस मूमल के लिए मैं प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार था, वह ऐसी निकली। जिसके लिए मैं कोसों दूर जाया करता था, वह पर पुरुष के साथ सोयी मिली। धिक्कार है ऐसी औरत पर। सुबह आंख खुलते ही मूमल की नजर जैसे महेंद्र के हाथ से छूटे चाबुक पर पड़ी, वह समझ गयी कि महेंद्र आया था पर शायद किसी बात से नाराज होकर चला गया। उसके दिमाग में कई कल्पनाएं आती रहीं। कई दिनों तक मूमल महेंद्र का इंतजार करती रही कि वह आयेगा तो सारी गलतफहमियां दूर हो जायेंगीं, लेकिन महेंद्र नहीं आया। मूमल उसके वियोग में फीकी पड़ गयी। उसने शृंगार करना, खाना-पीना तक छोड़ दिया।
उसकी कंचन जैसी काया काली पड़ने लगी। उसने महेंद्र को कई चिट्ठियां लिखी पर महेंद्र की पत्नियों ने वह चिट्ठियां महेंद्र तक पहुंचने ही नहीं दी।
वहम दूर करने के चक्कर में त्यागे प्राण
एक दिन मुमल ने खुद अमरकोट जाने के लिए रथ तैयार कराया, ताकि अमरकोट जाकर महेंद्र से मिल उसका वहम दूर किया जा सके। अमरकोट में मूमल के आने व मिलने का आग्रह पाकर महेंद्र ने सोचा, शायद मूमल पवित्र है, लगता है मुझे ही कोई गलतफहमी हो गयी और उसने मूमल को संदेश भिजवाया कि वह उससे सुबह मिलने आयेगा। मूमल को इस संदेश से आशा बंधी। रात को महेंद्र ने सोचा कि देखें, मूमल मुझसे कितना प्यार करती है। सो सुबह उसने अपने नौकर को सिखा कर मूमल के डेरे पर भेजा। नौकर रोता-पीटता मूमल के डेरे पर पहुंचा और कहने लगा कि राणा महेंद्र को रात में काले नाग ने डस लिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। नौकर के मुंह से इतना सुनते ही मूमल पछाड़ खाकर धरती पर गिर पड़ी और पड़ते ही महेंद्र के वियोग में उसके प्राण पखेरु उड़ गये। महेंद्र मूमल की मृत्यु का समाचार सुन कर उसी वक्त पागल हो गया और थार के रेगिस्तान में अपनी मूमल की याद में भटकते हुए प्राण त्याग दिए।
आज भी बाकी हैं निशानियां
हिंदी की जानी-मानी लेखिका डॉ मीनाक्षी स्वामी ने ‘मूमल महेंद्र की प्रेमकथा’ शीर्षक से लिखी किताब में इस प्रेम का बढ़िया चित्रण किया है। थार के रेगिस्तान में आज भी लोकगीतों में यह प्रेमकथा गायी जाती है। मूूमल की कलात्मक मेड़ी का बखान लोक गीतों में भी किया जाता है। जैसलमेर की प्राचीन राजधानी लोद्रवा (जिला मुख्यालय से 14 किमी दूर) में काक नदी के किनारे आज भी मूमल की मेड़ी के अवशेष मौजूद हैं, जो इस अमर प्रेम कहानी के मूक गवाह बने हुए हैं। मरुप्रदेश में सुंदर बेटी या बहू को मूमल की उपमा दी जाती है। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मरु महोत्सव में भी हर साल मिस मूमल सौंदर्य प्रतियोगिता होती है, जिसमें भाग लेने दूर-दराज की कई युवतियां पहुंचती हैं।