एंबुलेंस के मांगे 35 हजार तो पिता ने कंधे पर उठाया बेटी का शव, कार की सीट पर बांधकर ले गए घर

TISMedia@कोटा. कोरोना के मजबूत पंजों ने इंसानियत का दम घोंट कर रख दिया। जैसे-जैसे कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर मजबूत होती चली गई, ठीक वैसे-वैसे इंसानियत कमजोर होने लगी। आलम यह है कि कंधों पर स्वजनों की लाशें ढ़ोने का दौर अब भी नहीं रुक रहा। वजह सिर्फ इतनी है कि आपदा को अवसर बनाने से न एंबुलेंस चालक चूक रहे हैं और ना ही अस्पताल प्रबंधन और कर्मचारी। हालिया वाकया कोटा के सरकारी अस्पताल का है। जहां वार्ड बॉय ने कोरोना संक्रमित के शव को वार्ड से निकाल कर पार्किंग तक ले जाने के एक हजार रुपए मांग लिए। जबकि उसे इस काम की तनख्वाह खुद सरकार दे रही है। और जब शव बाहर आ गया तो एंबुलेंस चालक ने करीब 80 किमी की दूरी 35 हजार रुपए से रत्ती भर कम में तय करने से साफ मना कर दिया। ऐसे में एक गमजदा पिता को श्मशान से पहले ही घर तक ले जाने तक के लिए कंधा देना पड़ा। व्यवस्था से हारा पिता आखिर में बेटी के शव को कार की सीट पर बेल्ट बांधकर झालावाड़ ले गया।

सूबे के मुखिया से लेकर मंत्री, अफसर और संतरी तक कोरोना पीड़ितों के लिए मदद के दरवाजे खोलने का जमकर ढ़िंढोरा पीट रहे हैं। लेकिन, ढ़ोल की पोल आए दिन खुलती ही रहती है और खुलती भी ऐसी है कि सफाई तक देते नहीं बनती। दावा तो यह है कि कोरोना संक्रमित मरीजों को अस्पताल और मृतकों के शवों को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए सरकार ने एंबुलेंस का किराया तय कर दिया है। लाखों रुपए खर्च करके इस किराया सूची की सूचना को जन-जन तक पहुंचाया गया। कहीं कोई कोर कसर न छूट जाए इसके लिए बकायदा मॉनीटरिंग कमेटियां तक गठित की गईं, लेकिन जब दावों की हवा निकली तो सब लापता हो गए। मदद के इन दावों की कोटा में जमकर हवा निकल रही है। ऐसी कि कोई व्यक्ति शव को आगे वाली सीट पर बांधकर ले जाता नजर आ रहा है तो कोई कार में पिछे वाली सीट पर रखकर ले जाते। तस्वीरें नुमाया होने के बावजूद न तो चिकित्सा विभाग, न मेडिकल कॉलेज और ही अस्पताल प्रबंधन ने ध्यान दिया और न ही परिवहन विभाग से लेकर जिला प्रशासन के किसी हाकिम को आवाम की सुध आई।

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एंबुलेंस चालक ने मांगे 35 हजार
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक झालावाड़ निवासी सीमा (34) 7 मई को मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसकी मृत्यु के बाद शव को अस्पताल वार्ड से बाहर लाने के लिए भी परिजनों को काफी मुशकिल का सामना करना पड़ा। परिजनों ने बताया कि शव को बाहर ले जाने के लिए वार्ड बॉय ने एक हजार रुपए की मांग की। पैसा नहीं देने पर उसन शव को हाथ भी नहीं लगाया। परिजन शव को स्ट्रेचर की मदद से बाहर लेकर आए। इसके बाद जब एंबुलेंस चालक से शव को झालावाड़ ले जाने की बात की तो, एक चालक ने 35 हजार रुपए किराया मांगा। इस पर परिजनों ने जब कहा कि प्रशासन ने किलोमीटर के अनुसार वाहन चलाने के लिए कहा है। तो भी ज्यादा रुपए मांग रहे हो। तो, दूसरे चालक ने 18 हजार और तीसरे ने 15 हजार की डिमांड की लेकिन परिजनों ने कहा कि वे 5000 रुपए से ज्यादा नहीं दे सकते। काफी गिड़गिड़ाने के बाद भी एंबुलेंस ड्राइवर नहीं माने। ऐसे में मजबूर पिता ने खुद की कार से ही शव को ले जाने का फैसला लिया और बेटी के शव को जैसे-तैसे कंधे पर उठाकर खुद कार की आगे वाली सीट पर रखा और बेल्ट से बांध दिया। इस बीच वहां एक और परिजन शव को अपनी कार में रखकर ले जा रहे थे। वहां भी कोई वार्ड बॉय नहीं था। उन्होंने खुद ही शव को स्ट्रेचर से उठाकर कार में रखा।

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परिजनों का अस्पताल प्रशासन पर आरोप
मृतका के परिजन ने बताया कि झालावाड़ निवासी सीमा (34) पिछले 18 दिनों से नए अस्पताल में भर्ती थी। एचआरसीटी जांच में सीटी स्कोर 22/25 था, और सैचुरेशन 31 रह गया था। गम्भीर हालत में उसे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। इलाज से धीरे-धीरे उसकी सेहत में सुधार आने लगा। बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के सैचुरेशन 60 के ऊपर पुहंच गया था। उसे आईसीयू के हाई फ्लो ऑक्सीजन पर रखा गया था।
इस के साथ ही परिजनों ने आरोप भी लगाया कि अस्पताल में किसी जानकार चिकित्सक का मरीज भर्ती हो गया। जिसकी वजह से 20 मई को डॉक्टर्स ने उसे सामान्य वार्ड में शिफ्ट करने के लिए कहा। परिवार स्टाफ और डॉक्टर्स के सामने गिड़गिड़ाया कि अभी इसे आईसीयू में ही रहने दो। इसे हाई फ्लो ऑक्सीजन की जरूरत है। लेकिन किसी ने उनकी न सुनी और बोले की दूसरे गम्भीर मरीज को शिफ्ट करना है। आईसीयू बेड खाली करना होगा। परिजनों ने बताया कि जनरल वार्ड में प्रोपर ऑक्सीजन नहीं थी और अचानक जनरल वार्ड में शिफ्ट करने की वजह से उसकी 23 मई को मौत हो गई।

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