#फैशन का भूत: फैशन के नाम पर उड़ती भारतीय संस्कृति व सभ्यता की धज्जियाँ
सिनेमा तथा टेलीविज़न ने बदल दिया फैशन प्रति दृष्टिकोण
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आज फैशन के नाम पर भारतीय संस्कृति व सभ्यता की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं | जैसे-जैसे भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी सभ्यता का असर पड़ रहा है, वैसे ही हमारे विचारों, उसूलों, खान-पान, रहन-सहन में बदलाव आता जा रहा हैं | किन्तु यदि प्रमुख बदलाव की बात करे तो मुख्य बदलाव हमारे पहनावे, शिक्षा और बोलचाल में आया है | हमारे अभिनेता और जिन्हें हम अपना आदर्श बना लेते है वो जो महंगे पेंट, शर्ट, कोट, टाई और जूते पहनते है. उनकी नकल आज का शिक्षित पुरुष वर्ग कर रहा है | वही दूसरी और फिल्म जगत में अभिनेत्रियाँ जिस प्रकार से वस्त्र पहनती है, उनकी नकल युवतियाँ कर रही है जो कभी कभार उनके साथ होने वाली बद्सलुकी और छेड़-छाड़ का बडा कारण बन जाता है | आधुनिक समय में फैशन के विविध रूप नजर आ रहे है | फैशन और फिल्म उद्योग के अभिनेता और अभिनेत्रियाँ जिस प्रकार का विज्ञापन करते है उसी प्रकार युवा पीढ़ी द्वारा छोटे छोटे कपड़े, नाभि तक शरीर का प्रदर्शन और सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग आज आम बात हो गयी है | जीवन की दैनिक क्रिया जैसे वार्तालाप, नाचना, खाना-पीना और रहन – सहन भी फैशन के हिसाब से हो गया है |
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फैशन के भूत के असर से कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा है बच्चे, युवा, बूढ़े, महिलाएं आदि सभी वर्गों पर फैशन के भूत का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है | जो बुजुर्ग लोग पहले धोती कुर्ता पहनते थे वह अब पेंट शर्ट व जींस पहनने लगे है | युवा वर्ग फिल्मी अभिनेत्री एवं अभिनेताओं से प्रभावित होकर कटे-फटे और कम कपड़े पहनना आदि को फैशन समझने लगे है, जिसे उनके हमउम्र बेहद पसंद भी करते है | फिल्मी उद्योग से प्रभावित होकर लड़के लड़कियां शराब, सिगरेट, क्लब आदि को फैशन समझने लगी है | यदि बॉलीवुड के अभिनेता एवं अभिनेत्रियां अजीब तरह की हेयर स्टाइल रखती है तो आज के लड़के लड़कियां उसे अपनाने में बिल्कुल भी झिझक नहीं रखते हैं क्योंकि फैशन का भूत उनके सर पर चढ़ा हुआ रहता है | लोगों पर फैशन का भूत इतना बढ़ता जा रहा है कि अगर कोई इस नए जमाने में फैशन के चक्कर से दूर रहता है तो लोग उसका मजाक बनाने लगते है, हँसते है यहाँ तक की सामूहिक रूप से सार्वजानिक स्थान पर उनका मजाक बनाते है | इसी कारण उसे भी नए फैशन को अपनाना पड़ता है |
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फैशन के इस दौर में लड़के लड़कियों को पहचानना भी मुश्किल हो गया है | लड़के लड़कियों की तरह हेयर स्टाइल रखने लगे हैं जिससे उनको पहचानने में मुश्किल होती है वहीं दूसरी ओर लड़कियां लड़कों के जैसी हेयर स्टाइल और जींस शर्ट आदि कपड़े पहनने लगी है जिनसे उनको भी पहचानना मुश्किल होता है | युवा व प्रौढ़ व्यक्ति भी अब फैशनपरस्त हो गये है. चाहे भरपेट भोजन न मिले, रोजगार की सुव्यवस्था हो या न हो, पुरानी पीढ़ी के लोग दुत्कारते रहे, तो भी नई पीढ़ी फैशन परस्ती को सभ्य जीवन का श्रेष्ट प्रदर्शन मानने लगी है. इस प्रकार समाज में उठाना बैठना, वार्तालाप करना, चलना फिरना, खाना-पहनना आदि सब फैशन के अनुसार ढाला जा रहा है |
बालों को रंग बिरंगे रंगों में रंगना अजीब से कपड़े पहन कर घूमना लोग फैशन समझने लगते हैं परंतु वह नहीं जानते उनकी यह फैशन बुजुर्गों और बच्चों के लिए एक हास्य का कारण बन कर रह जाते है | सिर्फ रहन-सहन में ही नहीं बल्कि बोलचाल पर भी फिल्मी और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव देखने को मिलता है लोग अपनी मातृभाषा को छोड़कर इंग्लिश बोलने को फैशन समझने लगते हैं और अपने माता पिता को न जाने किस-किस प्रकार संबोधन देकर पुकारते हैं जो कि भारतीय संस्कृति मैं शोभा नहीं देता | फैशन के नाम पर ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग हो रहा जिससे जिनका यदि डिक्शनरी में वास्तविक अर्थ निकला जाये तो वो अभद्र और अश्लील मतलब निकलते है | साथ ही इस फैशन की होड़ करने के लिए जिस धन की जरुरत होती है उसकी पूर्ति के लिए कुछ युवा तो धनार्जन के नाजायज तरीके अपनाते है, कुछ युवतियाँ सौदर्य प्रतियोगिताओं व बॉलीवुड की चमक धमक के नाम पर अपनी अस्मिता को बेचने पर जरा भी संकोच नही करती है |
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आज फैशनपरस्ती के कारण कई दुष्परिणाम दिखाई दे रहे है. अब धार्मिक क्रियाओं और अनुष्ठानों को दकियानूसी आचरण माना जाता है | युवक-युवतियों की वेशभूषा गंदी सोच को जाग्रत करने वाली बन गई है | तड़क-भड़क एवं आकर्षक वस्त्रों पर काफी धन खर्च किया जा रहा है | सिनेमाओं तथा दूरदर्शन पर ऐसे नग्न अश्लील द्रश्य दिखाए जाते है, मारघाड़ की झलकियाँ भी रहती है | समाज में आये दिन यौनाचार एवं दुराचार के समाचार प्रकाशित होते है, उन सबके मूल कारण में फैशन का भूत और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव ही तो है | अन्यथा भारतीय संस्कृति तो हर धर्म, वर्ग, लिंग में सभ्यता और आदर का भाव सिखाती है | देखा जाये तो हमारी संस्कृति एवं समाज पर फैशन की चकाचौंध का अत्यंत बुरा प्रभाव पड़ रहा है | यह नितांत आवश्यक हो गया है की हमें युवा पीढ़ी को समझाएं की वे जीवन में अपने भविष्य को देखते हुए अपनी प्राथमिकता पर ध्यान दे |
लेखक: प्रकाश योगी
शिक्षक प्रशिक्षनार्थी