किताब: रोंगटे खड़े कर देगी मुगलिया सल्तन की नींव हिलाने वाले इस जाट योद्धा की सच्ची कहानी
वरिष्ठ पत्रकार भानू प्रताप सिंह के शोध पर आधारित है पुस्तक हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट
TISMedia@Agra इतिहास की किताबें मुगलिया सल्तनत की वाहवाहियों से भरी हुई हैं, लेकिन उनकी चूलें हिला देने वाले योद्धाओं की जानकारियां जुटाने में आम लोगों की बात तो छोड़िए इतिहासकारों तक के पसीने छूट जाते हैं। एक ऐसी ही वीर योद्धा थे हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट। वीर गोकुला ने मुगलिया सल्तनत के सबसे खूंखार बादशाह औरंगजेब को कड़ी टक्कर दी थी। वीर गोकुला के खौफ का आलम यह था कि औरंगजेब ने उनके शरीर के दर्जनों टुकड़े करवा दिए थे, लेकिन इसकी कीमत उसे ताजमहल से लेकर बादशाह अकबर की कब्र लुटवाकर चुकानी पड़ी। वीर गोकुला जाट के पराक्रम को लिपिबद्ध किया है आगरा के वरिष्ठ पत्रकार भानू प्रताप सिंह ने।
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भारत के इतिहास में हमें अधिकांशतः मुगल काल के बारे में पढ़ाया जाता है। पाठ्य पुस्तकें बाबर, अकबर, शाहजहां और औरंगजेब की शान से भरी हुई हैं। आततायी, क्रूर, कट्टर और हिन्दुओं को शत्रु मानने वाले औरंगजेब के बारे में ऐसी-ऐसी बातें गढ़ी गई हैं कि आश्चर्य होता है।औरंगजेब को तो ‘जिन्दा पीर’ तक बताया गया है। औरंगजेब ने मंदिरों को ध्वस्त किया। काशी विश्वनाथ मंदिर और केशवराय मंदिर मथुरा ध्वस्त करके मस्जिद बनाई। औरंगजेब ने सत्ता प्राप्ति के लिए हर तरह की क्रूरता की। अपने भाई मुरादबख्श, दारा शिकोह और शाह शुजा को मरवा दिया। इतना ही नहीं, अपने अब्बू बादशाह शाहजहां को आगरा किले के मुसम्मन बुर्ज में सन 1658 से 1666 तक कैद रखा। यहीं उसकी मृत्यु हुई। उसने हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया। हिन्दुओं को जबरिया मुस्लिम बनाया। सिक्कों पर कलमा खुदवाया। इस तरह के घटनाक्रमों के बारे में बहुत मामूली जानकारी दी गई है।
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इसी कट्टर मुस्लिम बादशाह औरंगजेब ने वीर गोकुल सिंह यानी गोकुला जाट की हत्या अंग-अंग कटवाकर की। यह घटना एक जनवरी, सन 1670 को आगरा में पुरानी कोतवाली के चबूतरे पर हुई। इसके तत्काल बाद केशवराय मंदिर (श्रीकृष्ण जन्मस्थान, मथुरा) को तुड़वाकर मस्जिद खड़ी कर दी, जिसे ईदगाह कहा जाता है।औरगंजेब केशवराय मंदिर को तब तक नहीं तुड़वा पाता जब तक कि वीर गोकुल सिंह जाट जीवित रहते। इसलिए पहले श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर के रक्षक वीर गोकुल सिंह की हत्या क्रूरता से कराई। गोकुल सिंह के चाचा उदय सिंह की खाल खिंचवा ली। वह भी इसलिए कि गोकुल सिंह और उदय सिंह ने हिन्दू धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म अपनाने से इनकार कर दिया था। अगर वह मुस्लिम बन जाते तो जीवित रहते और जमींदारी भी वापस मिल जाती।
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वीर गोकुल सिंह ने मुगल शासन के खिलाफ किसान क्रांति का अलख जगाया। इसका भी कारण था। मुगल सिपाही लगान वसूली के नाम पर अत्याचार कर रहे थे। हिन्दुओं की बहन बेटियों के साथ खुलेआम दुष्कर्म कर रहे थे। लगान न देने पर हिन्दुओं के पशुओं को खोल ले जाते, बहन-बेटियों को उठा ले जाते। हिन्दुओं के लिए पूजनीय गाय का मांस खाते। हिन्दुओं को धर्मपरिवर्तन के लिए मजबूर करते। वीर गोकुल सिंह के बलिदान का बदला जाट वीरों ने ताजमहल लूटकर, अकबर का मकबरा (सिकंदरा) में भूसा भरवा कर और अकबर की कब्र खोदकर हड्डियों को जलाकर लिया। इसके निशान आज भी मौजूद हैं।
यह पुस्तक ऐसे ही वीर गोकुल सिंह के बलिदान की महागाथा है। ऐसा वीर गोकुल सिंह जिसके साथ इतिहासकारों ने अन्याय किया। गोकुल सिंह के लिए एक पंक्ति तक नहीं लिखी। यह काम इसलिए किया कि वीर गोकुल सिंह ने औरगंजेब के छक्के छुड़ा दिए थे। औरंगजेब की झूठी शान बनाए रखने के लिए वीर गोकुल सिंह का नाम किताबों से तो गायब कर दिया लेकिन आम जनता के मस्तिष्क पटल से गायब नहीं कर सके। किंवदंतियों में गोकुल सिंह आज भी जीवित हैं और सदा रहेंगे। वीर गोकुल सिंह जैसा दिलेर संसार में नहीं हुआ है। अगर गोकुल सिंह सिख धर्म में जन्मे होते तो उनकी स्वर्ण प्रतिमाएं लग गई होतीं।
इस पुस्तक में कई रहस्योद्घाटन भी किए गए हैं। वीर गोकुल सिंह का आगरा में वास्तविक बलिदान स्थल खोजा गया है। गोकुल सिंह के वंशज आज भी गांव में रहते हैं। गोकुल सिंह की बहन भँवरी कौर के बलिदान का रोमांचक वर्णन है। तिलपत युद्ध का रोमांचक खाका खींचा गया है। वीर गोकुल सिंह को मदद करने वाले माथुर वैश्य समाज पर भी औरंगजेब ने कहर बरपाया। इसका विस्तृत खुलासा पुस्तक में किया गया है। आनंद शर्मा जी और प्रदीप जैन जी के सहयोग से पुस्तक प्रकाशित हुई है।
लेखकः डॉ. भानु प्रताप सिंह ‘चपौटा’
प्रकाशकः निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, आगरा
पुस्तक का मूल्यः 299 रुपये
प्रचार के लिए मूल्यः 250 रुपये (डाक खर्च फ्री)
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