वाह! उत्तीम मियांः सिर्फ 115 साल में बसा दिया 800 लोगों का भरा पूरा गांव
झारखंड के कोडरमा जिले में बसा अनोखा गांव, एक ही खानदान के 800 लोग हैं यहां के बाशिंदे
- कोरोना से पूरी तरह महफूज रहा झारखंड के घने जंगलों के बीच बसा एक ही परिवार का यह गांव
- आंगनबाड़ी, स्कूल और मदरसा तक यहां मौजूद, पूरा गांव लगवा चुका हैं कोरोना की वैक्सीन
TISMedia@Ranchi एक तरफ तो लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बेकाबू होती आबादी की लगाम खींचने की कोशिशों को लेकर बहस चल रही है, वहीं दूसरी ओर दुनिया के सामने झारखंड का एक ऐसा गांव सामने आया है जहां एक ही शख्स से पैदा हुए कुनबे ने सिर्फ 115 साल में पूरा गांव बसा दिया। गांव भी छोटा मोटा नहीं, बल्कि 800 लोगों की आबादी वाला भरा पूरा कुनबा यहां बसा है।
मिजोरम का एक गांव है बटवंग… जिसके बाशिंदे जियोना चाना ने इसे दुनिया भर में मशहूर कर दिया था… वह भी अकेले के दम पर। चौंकिए मत, यह सुर्खियां भरे ही जियोना के लिए शौहरत देने वाली हों, लेकिन आबादी का जिक्र छिड़ते ही मिजोरम जैसे छोटे राज्य और भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए हर वैश्विक मंच पर शर्मिंदगी का शबब बन गई थीं।
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कौन था जियोना चाना
जियोना चाना दुनिया के सबसे बड़े परिवार का मुखिया था। जिसकी जून 2021 में करीब 77 साल की उम्र में मृत्यु हो गई। मरने से पहले उनके अजीबो-गरीब शौक ने बटवंग में करीब-करीब एक मुहल्ले की आबादी जितना बड़ा परिवार खड़ा कर दिया। जियोना ने एक दो नहीं बल्कि 39 शादियां करने का रिकॉर्ड बनाया। उनकी इन पत्नियों से 94 बच्चे पैदा हुए। जिनकी 14 बहुएं और 33 पोते-पोतियों के साथ एक प्रपौत्र यानि आबादी बढ़ाने का सिलसिला चौथी पीढ़ी तक जा पहुंचा था। दुनिया के इस सबसे बड़े परिवार के रहने के लिए एक दो नहीं बल्कि 100 कमरे वाला मकान बनवाना पड़ा था।
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खाने की खपत कि पूछो मत
आप यह जानकर हैरत में पड़ जाएंगे कि उनके सबसे छोटे बेटे पारलियाना की उम्र 55 साल है। यानि, जब जियोना सिर्फ 24 साल के थे तब यह पैदा हुआ। इस परिवार के खाने की खपत का अंदाजा लगाना तक आपके लिए मुश्किल है, क्योंकि एक छोटा-मोटा परिवार इतना खाना साल भर में खा पाता है। यह परिवार रोजाना करीब 45 किलो चावल, 25 किलो दाल, 60 सब्जियां, 20 किलो फल, 30-40 मुर्गे और दर्जनों अंडे खाता है। जियोना ने इतनी शादियां क्यों की? इसका जवाब देते हुए पारलियाना कहते हैं कि वह मिजोरम की एक लुप्त प्राय समझी जाने वाली जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। इस जाति में कई शादियां करने की परंपरा है।
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उत्तीम मियां ने कमजोर किया जियाना का दावा
उत्तीम मियां… कोरोना काल से पहले गुमनाम इस शख्स से दुनिया रातों रात वाकिफ हो गई। कोरोना के कहर से बचने वाले बड़ी आबादी के इलाकों की छानबीन शुरू हुई तो अचानक दुनिया के नक्शे पर उभरा झारखंड का काडरमा जिले का “नादकरी ऊपर टोला”…! नाम के मुताबिक तो इसकी पहचान एक ऐसे टोले या दल से होती है जहां एक ही कुनबे के लोग बसे हों, लेकिन जब लोग यहां पहुंचे तो पता चला कि यह कुनबा इतना बड़ा है कि पूरा गांव ही बसा दिया…! हां, चौंकना लाजमी है, क्योंकि उत्तीम मियां के परिवार में एक दो नहीं 800 से भी ज्यादा लोगों का नाम शुमार है।
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115 साल और 800 बच्चे
75 साल के कमालुद्दीन बताते हैं कि उनके दादा उत्तीम मियां वर्ष 1905 में अपने पिता बाबर अली और बीवी के साथ गिरिडीह जिले के रेंबा बसकुपाय गांव को छोड़कर जंगलों में आ बसे। घर छोड़कर आने की वजह तो नहीं पता, लेकिन जब यह तीनों कोडरमा पहुंचे तो घने जंगलों के बीच उन्होंने अपनी झोंपड़ी बनाई। फिर, जंगलों को साफ कर खेती-बाड़ी का इंतजाम किया। उत्तीम मियां के पांच बेटे मोहम्मद मियां, इब्राहिम मियां, हनीफ अंसारी, करीम बख्श और सदीक मियां हुए। उनकी शादियां कहां और कैसे हुईं, यह तो कोई नहीं बताता, लेकिन इन पांचों बेटों और उनकी बहुओं ने 39 संतानों यानि 26 बेटे और 13 बेटियों को जन्म दिया। उत्तीम मियां के पोते हकीम अंसारी बताते हैं कि शुरुआत में तो आपस में ही चचेरे भाई-बहनों के बीच शादियां हुईं। जिनसे 73 बेटे पैदा हुए और फिर उनके बाद अब कुनबा बढ़कर 800 लोगों का हो चुका है।
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बसा दिया पूरा गांव
82 साल के हकीम अंसारी कहते हैं कि उनके दादा उत्तीम मियां ने जिस गांव को बसाया उसका नाम रखा गया “नादकरी ऊपर टोला”..। टोले का मतलब जैसा कि आप जानते ही हैं कि एक जैसे लोगों का झुंड होता है… ठीक उसी तरह यह गांव उत्तीम मियां की संतानों का ही है। इसमें उत्तीम मियां के परिवार के अलावा कोई दूसरा परिवार आकर नहीं बसा। हां, परिवार के कुछ लोग जरूर रोजी-रोटी की तलाश में गांव छोड़कर शहरों की ओर निकल गए। इन लोगों में से कई की तो सरकारी नौकरी है।
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खुशहाली की कमी नहीं
उत्तीम मियां ने जिन जंगलों को साफ कर खेती-बाड़ी शुरू की थी अब उसे गांव में बचा परिवार संभालता है। धान से लेकर दालें, गेंहू और सब्जियां तक उगाते हैं। हालांकि, अब पहले जैसे हालात नहीं हैं। खेतों की मेढ़बंदी हो चुकी है इसीलिए जिस तेजी से परिवार बढ़ रहा है। आय के साधन कम होते जा रहे हैं। हालांकि गांव, में खुशहाली की कोई कमी नहीं है। पक्के मकान, सड़कें, आंगनबाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र और मदरसे के साथ सरकारी स्कूल और मस्जिदें सबकुछ गांव में है।
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वैक्सीनेशन में मारी बाजी
कोरोना के कहर से पूरी तरह सुरक्षित बचे इस गांव की खबरें जब सामने आईं तो स्वास्थ्य विभाग के लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के जांच दल यहां पहुंचे। उत्तीम मियां के 70 वर्षीय पोते मोइनुद्दीन अंसारी बताते हैं कि कोरोना के दौरान हमने गांव में किसी को नहीं घुसने दिया। जो लोग शहर में या दूसरी जगहों पर रह रहे थे उन्हें भी बोल दिया कि वह अपने घरों में सुरक्षित रहें, लेकिन गांव न आएं। कुछ लोगों को आर्थिक परेशानियां हुईं तो उन्हें मदद भिजवा दी गई। घने जंगलों से घिरा होने के कारण गांव तक कोरोना पहुंच ही नहीं सका। इसीलिए मौत की बात तो दूर एक भी शख्स संक्रमित नहीं हुआ। मोइनुद्दीन कहते हैं कि इसके बाद जैसे ही वैक्सीनेशन शुरू हुआ हमने सारी विवादों को दरकिनार कर वैक्सीन लगवाने की पहल की। आंगनबाड़ी सहायिका अफसाना खातून व सहिया हाजरा खातून ने बताया कि वैक्सीन को लेकर इस गांव में किसी तरह की भ्रांति नहीं है। यहां के करीब 50 फीसद लोग गांव की ही आंगनबाड़ी केंद्र पर वैक्सीन लगवा चुके हैं। आंगनबाड़ी में वैक्सीन खत्म हुई तो यह लोग वैक्सीन लगवाने के लिए सीएचसी मरकच्चो पहुंच गए। उत्तीम मिया के गांव नादकरी लगभग 100 फीसदी लोग वैक्सीन लगवा चुके हैं।