सरकार को लाखों का चूना लगाने वाले नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त को मिली 7 साल की सजा

एसीबी कोर्ट ने 4 आरोपियों को सजा के साथ 21 लाख के जुर्माने से किया दंडित

कोटा. फर्जी दस्तावेजों से नगर निगम की संपत्ति बेचकर निर्माण विक्रय स्वीकृति जारी कर राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाने के मामले में एसीबी कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया है। न्यायाधीश प्रमोद कुमार मलिक ने कोटा नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त व आरएएस अधिकारी कन्हैयालाल मीणा सहित 4 जनों को 7-7 साल का कठोर कारावास व 21 लाख रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है। वर्ष 2002 में आरोपियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मिली-भगत निगम सम्पति विक्रय कर सरकार को नुकसान पहुंचाया था।

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इनको मिली सजा
नगर निगम कोटा में तत्कालीन आयुक्त कन्हैयालाल मीणा के साथ तत्कालीन लिपिक जगन्नाथ, कनिष्ठ अभियंता बब्बू गुप्ता व आवंटी हरिसिंह को 7-7 साल की सजा सुनाई है। जबकि आरोपी पत्रकार असलम शेर उर्फ मोहम्मद असलम, नगर निगम कार्यालय अधीक्षक जगन प्रसाद, सत्तू उर्फ सत्य प्रकाश शर्मा, निगम कार्यालय सहायक ललित सिंह की मृत्यु होने से उनके विरुद्ध न्यायालय ने कार्रवाई ड्रॉप कर दी है।

ये था मामला
सहायक निदेशक अभियोजन अशोक कुमार जोशी ने बताया 16 फरवरी 2002 को एसीबी के एएसपी यशपाल शर्मा ने प्रकरण की जांच की थी। जिसमें सामने आया कि नगर निगम के कर्मचारी जगन प्रसाद, कार्यालय बाबू ललित सिंह, कनिष्ठ अभियंता बब्बू गुप्ता व कनिष्ठ लिपिक जगन्नाथ ने कंसुआ निवासी हरि सिंह के साथ मिलीभगत कर फर्जी दस्तावेज के आधार पर नगर निगम की संपत्ति भूखंड संख्या 895 वाके शास्त्री नगर दादाबाड़ी को षडयंत्रपूर्वक कंसुआ निवासी हरि सिंह के नाम आवंटित कर राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाया। जबकि, यह भूखंड पूर्व में पत्रकार कांति चंद जैन को आवंटित हुआ था, जो आवंटन पत्र बाद में निरस्त हो गया था।

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ऐसे किया फर्जीवाड़ा
निरस्त होने के बाद यह भूखण्ड नगर निगम कोटा में हस्तांतरित हो गया। इसके बाद यह भूखण्ड नगर निगम की संपत्ति बन गया था। जिसे हथियाने के लिए हरि सिंह ने निगम कर्मचारियों के साथ मिलकर झूठा शपथपत्र तैयार किया। जिसमें मंडी कमेटी चंबल परियोजना कोटा की फर्जी आवंटन पत्र व फर्जी रसीद लगाकर जानबूझकर वास्तविक तथ्यों को छुपाया। इसके बाद निगम कर्मचारी व अधिकारियों ने आवंटी हरि सिंह के साथ मिलीभगत कर उसके पक्ष में भवन निर्माण व विक्रय स्वीकृति के आदेश जारी करवाकर निगम व राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाया।

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यूं निरस्त हुआ भूखंड
मामले का खुलासा होने पर एएसपी यशपाल शर्मा ने आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर जांच शुरू की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। एलआईजीएच योजना के तहत भूखण्ड 895 शास्त्री नगर कांति जैन को आवंटित हुआ था। जिनका 27 अगस्त 1975 को निधन हो गया था। उनके पुत्र नहीं होने व भूखण्ड की किश्तें जमा नहीं करने के कारण आवंटन निरस्त हो गया था। यूआईटी ने इस भूखण्ड सहित अन्य भूखण्डों की पत्रावलियां नगर निगम में स्थानांतरित कर दी थी। इसके बाद इस भूखण्ड की प्रत्रावलियां निगम के खामोश बस्ते में डाल दी गई। जिसकी जानकारी अभियुक्तों को थी। जिन्होंने फर्जी आवंटन-पत्र की फोटोकॉपी के आधार पर हरि सिंह को इस भूखण्ड की निर्माण स्वीकृति, रजिस्ट्री एवं बेचान की स्वीकृति जारी कर दी। जबकि, कांतिचंद की मूल पत्रावली को जानबूझकर अपने कार्यालय में छिपाकर रख दिया और फाइलों में यह लिखा कि पत्रावली मद में नहीं है। इनके फर्जी कागजात के आधार पर नियमन करवाकर प्लॉट को प्रद्युमन कुमार शर्मा को 7,50,000 रुपए में बेच दिया। इस तरह आरोपियों ने षडय़ंत्र कर निगम को लाखों का नुकसान पहुंचाया और निगम के कर्मचारियों व अधिकारियों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए पद का दुरुपयोग किया और राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाया।

कोर्ट ने की टिप्पणी
फैसले में न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए लिखा कि जनतांत्रिक प्रशासन में किसी भी व्यवस्था को संचालित करने का दायित्व लोकसेवकों का होता है। यदि लोकसेवक भ्रष्ट हो जाएं तो, राष्ट्र की जड़ें कमजोर हो जाती हैं। जिसका असर राष्ट्र के विकास पर पड़ता है। वर्तमान प्रकरण में अभियुक्त के आपराधिक कृत्य, अपराध की गंभीरता, प्रकरण के तथ्य व परिस्थितियों को देखते हुए भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कठोरतम दंड का प्रावधान होना जरूरी है।

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