VMOU: सीखो और कमाओ नहीं “लूटो और खाओ” सरकार सो रही है…
प्रमुख शासन सचिव वित्त को भेजी गबन की शिकायत, 2 महीने बाद भी जवाब नहीं
वित्त नियंत्रक के बार-बार जानकारी मांगने पर भी नहीं मिला खजाने का हिसाब
- वीएमओयू के खातों में पैसा आए बिना हो गई लाखों की टैक्स कटोती
TISMedia@Kota कौशल विकास के नाम पर राजस्थान में खुली लूट मची हुई है। राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम (Rajasthan Skill and Livelihood Development Corporation) से लेकर वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय (Vardhman Mahaveer Open University) तक युवाओं को रोजगार परक प्रशिक्षण देने के नाम पर करोड़ों रुपए हड़पे जा रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि भ्रष्टाचार के इस खेल को आला अफसरों के इशारे पर राजधानी जयपुर में बैठकर अंजाम दिया जा रहा है। एसीबी के छापों से लेकर खुली लूट की शिकायतें मिलने के बावजूद, कोई कार्यवाही करने के बजाय “सरकार” क्यों सो रही है?
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अल्पसंख्यक मंत्रालय के मौलाना आजाद शिक्षा प्रतिष्ठान (maulana azad education foundation) ने कोटा स्थित वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय (VMOU) को 02 करोड़, 28 लाख, 91 हजार 05 सौ रुपए की राशि जारी की थी। जिसका इस्तेमाल कोटा के अल्पसंख्यक युवाओं का कौशल विकास कर उन्हें रोजगार मुहैया कराना था। लेकिन, विश्वविद्यालय के अफसरों ने पूरे कोटा को इसकी भनक तक न लगने दी।
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पैसा नहीं मिला फिर भी टैक्स चुकाया
वीएमओयू के आला अफसरों की कारगुजारी कोटा को भुगतनी पड़ी। दरअसल सीखो और कमाओ योजना के तहत मिला फंड विश्वविद्यालय के खातों में जमा कराया जाना था, ताकि इसका लेखा जोखा रखा जा सकता, लेकिन जिम्मेदार अफसरों ने वित्त विभाग को बताए बगैर अलग से एक बैंक खाता खुलवाया और इस खाते में फंड जमा करने के बाद उसे खर्च भी कर डाला। भ्रष्टाचार का आलम यह था कि सारे खेल पर पर्दा पड़ा रहे इसलिए विश्वविद्यालय के सरकारी खातों से आयकर कटौती भी करवा दी गई। जबकि विश्वविद्यालय सिर्फ उसी आय पर टैक्स दे सकता है जो उसके खातों में जमा हो, लेकिन मौलाना आजाद फाउंडेशन का पैसा जमा हुए बगैर ही वीएमओयू को टैक्स के तौर पर 4 लाख, 57 हजार, 830 रुपए का टीडीएस भरना पड़ गया।
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“साहब” ने मूंदी आंखें
भ्रष्टाचार के इस खेल का खुलासा होने के बाद वीएमओयू के वित्त नियंत्रक राकेश भारतीय ने उद्यमिता एवं कौशल विकास केंद्र के निदेशक को 10 अगस्त 2021 से लेकर 19 सितंबर के बीच कई पत्र लिखे। जिनमें उन्होंने 6 सवालों के जवाब मांगे। पहला, वीएमओयू को कोई फंड मिला तो उसकी जानकारी वित्त विभाग को क्यों नहीं दी गई? दूसरा, फंड मिलने और उसे खर्च करने के महीनों बाद भी उसका हिसाब और संबंधित दस्तावेज विवि के रिकॉर्ड में क्यों नहीं है? तीसरा, विश्वविद्यालय के खातों में फंड जमा करने के बजाय कहीं और खाते खुलवाकर पैसा जमा करने और केंद्र सरकार से प्राप्त अनुदान को खर्च करने की स्वीकृति किसने दी? खर्चा कौन कर रहा है, किसके आदेश से कर रहा है और पूरा काम कौन देख रहा है? इसके साथ ही आखिरी सवाल सबसे गंभीर था कि आखिर “वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय का वित्त विभाग 2.29 करोड़ रुपए को किस खाते में दिखाए और किस एजेंसी से इसकी ऑडिट करवाए”? और यदि करोड़ों के इस खर्च की ऑडिट नहीं करवानी है तो इसकी छूट किसने दी वह आदेश विभाग को दें ताकि वास्तविक स्थिति पता चल सके। चौंकाने वाली बात यह है कि इन सभी पत्रों की प्रतियां कुलपति प्रो. आरएल गोदारा को भी भेजी गईं थी, लेकिन उन्होंने भी इस मामले में कोई कार्यवाही करने के बजाय आंखें मूंद लीं।
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लूटो और खाओ
लाख कोशिशों के बावजूद 02 करोड़, 28 लाख, 91 हजार 05 सौ रुपए न मिलने पर वित्त विभाग ने गबन की आशंका जता 30 अगस्त 2021 को राजस्थान सरकार से मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की गुहार लगाई। वित्त नियंत्रक राकेश भारतीय ने प्रमुख शासन सचिव वित्त अखिल अरोड़ा को घटना की जानकारी देते हुए लिखा कि मौलाना आजाद फाउंडेशन से मिला अनुदान विश्वविद्यालय के खातों में जमा करने के बजाय निदेशक उद्मिता एवं कौशल विकास ने अपने स्तर पर ही खर्च कर दिया। जो धन के दुर्विनियोजन (गबन) की श्रेणी में आता है। कई बार जानकारी मांगने पर भी न तो उन्होंने स्पष्ट जानकारी दी है और ना ही अनुदान से जुड़े दस्तावेज विभाग को सौंपे हैं। इतना ही नहीं अनुदान मिलने और उसके खर्च होने की सारी जानकारी विश्वविद्यालय से छिपाई गई। यदि आयकर की कटौती नहीं होती तो विश्वविद्यालय प्रशासन को इस पैसे का रत्ती भर भी हिसाब नहीं मिलता। कुलपति को भी पूरी जानकारी दी गई। कार्यवाही करने के लिए भी कहा, लेकिन उन्होंने भी पल्ला झाड़ लिया है। ऐसे में करोड़ों रुपए के गबन की आशंका है। इसलिए उच्च स्तरीय समिति से जांच करवाएं।
सो रही है सरकार
“सीखो और कमाओ” के नाम पर “लूटो और खाओ” योजना की विस्तृत जानकारी देने और विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक की ओर से उच्च स्तरीय जांच कर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग करने के बावजूद राजस्थान सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी। प्रमुख शासन सचिव अखिल अरोड़ा के दफ्तर ने विश्वविद्यालय प्रशासन को राकेश भारतीय की शिकायत प्राप्त होने की सूचना तो दे दी, लेकिन 2 महीने बाद भी कार्यवाही के नाम पर सन्नाटा पसरा हुआ है।