150 रुपए की घूस लेने की सजा: 2 साल की जेल और 30 हजार रुपए का जुर्माना

एसीबी ने बारां तहसील के कैशियर को 9 साल पहले घूस लेते हुए रंगे हाथ दबोचा था

TISMedia@Kota घूस चाहे कितनी भी छोटी हो आपकी जिंदगी तबाह कर सकती है। यकीन न आए तो बारां की सदर तहसील के कैशियर भूपेंद्र सिंह का मुकदमा देख लीजिए। एसीबी ने साल 2012 में उसे 150 रुपए की घूस लेते हुए रंगे हाथ दबोचा था। आरोप साबित होने में भले ही 9 साल लगे, लेकिन घूसखोरी साबित होते ही बुधवार को भ्रष्टाचार निवारण न्यायालय कोटा के न्यायाधीश प्रमोद कुमार मलिक ने उसे दो साल के कठोर कारावास एवं 30,000 रुपए के अर्थदण्ड की सजा सुनाई।

नकल देने के लिए मांगी थी घूस 
सहायक निदेशक अभियोजन अशोक कुमार जोशी ने बताया कि 18 दिसंबर 2012 को परिवादी सरदार सिंह ने एसीबी कार्यालय बारां में शिकायत दर्ज कराई कि बारां  सदर थाने में दर्ज रिपोर्ट पर पुलिस ने मुलजिम के विरूद्ध तहसीलदार में धारा 107, 151 सी.आर.पी.सी. में कार्यवाही पेश की थी। जिसकी मिसल नम्बर 262/2012 एवं मिसल नम्बर 05/2009 की नकल लेने के लिए जब वह तहसील बारां में नियुक्त कनिष्ठ लिपिक एवं कैशियर भूपेन्द्र सिंह से मिला तो उसने नकल देने के लिए 100-100 रुपए प्रति नकल के हिसाब से 200 रुपए की घूस मांगी है।

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डीएसपी ऑफिस के बाहर ली घूस 
शिकायत मिलने के बाद एसीबी ने घूस की मांग का सत्यापन करवाया तो तहसील का कैशियर दोनों नकलें देने के लिए 200 रुपए की बजाय 150 रुपए लेने को ही तैयार हो गया। जिसके बाद एसीबी बारां ने 19 दिसंबर 2012 को ट्रेप आयोजित कर भूपेन्द्र सिंह को पुलिस अधीक्षक कार्यालय के बाहर चाय की होटल पर 150 रूपये की घूस लेते हुए रंगे हाथों धर दबोचा।

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9 साल बाद हुई सजा 
जोशी ने बताया कि अनुसंधान के बाद एसीबी ने न्यायालय में भूपेंद्र सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। जिस पर सुनवाई के बाद अदालत ने बुधवार को यह फैसला सुनाया। इस मामले में दो स्वतंत्र गवाहों चेतन प्रकाऱ और सत्यनारायण को कोर्ट में झूठे साक्ष्य पेश किए। इस मामले में कोर्ट ने दोनों के खिलाफ धारा 344 दण्ड प्रक्रिया सहिता के तहत नोटिस जारी कर उन्हें भी तलब किया गया है।

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