इस बीमारी ने भी ले ली महामारी की शक्ल, इंसानों को बना सकती है नपुंसक
TISMedia@Bareilly. बीते डेढ़ साल से पूरी दुनिया कोरोना वायरस से फैली महामारी से जूझ रही है। कोरोना की नई नस्ल से आई दूसरी लहर से भारत में त्राहि-त्राहि मची है। वैक्सीनेशन ड्राइव के बावजूद हालात में खास तब्दीली नहीं दिखाई दे रही, हालांकि वैक्सीन के कारगर होने पर सवाल भी हैं। ऐसे में एक अनजान सी बीमारी ब्रुसेल्लोसिस ने खामोशी से महामारी का रूप ले लिया है।
यह बीमारी जानवरों से इंसानों में दाखिल हो चुकी है, इसका किसी को आभास भी नहीं है। पिछले लगभग सात साल में इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो गए, लेकिन नियंत्रण की जगह ये कैंसर की तरह फैलती चली गई। नियंत्रण कार्यक्रम में लगे 27 फीसद से ज्यादा पशु चिकित्सक ही इसकी चपेट में आ गए।
केंद्र सरकार ने बाकायदा पायलट योजना बनाकर पांच साल का राष्ट्रीय ब्रुसेल्लोसिस कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया था, जो अब समाप्त हो चुका है। वर्ष 2013 में शुरू हुए इस कार्यक्रम के लिए केंद्र सरकार ने हर साल 200 करोड़ और प्रदेश सरकारों ने 800 करोड़ रुपये खर्च किए, यानी सालाना एक हजार करोड़ रुपये।
उस समय चिह्नित संक्रमित पशुओं को खरीदकर अलग कर लेने का प्रस्ताव भी आया था लेकिन उस पर सहमति नहीं बनी। इसकी जगह नियंत्रण कार्यक्रम चला, जिसके तहत जांच, टीकाकरण, जागरुकता प्रचार, शोध आदि शामिल रहे।
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क्या है ब्रुसेल्लोसिस?
यह ऐसा संक्रमण है जो जानवरों की कुछ प्रजातियों से इंसानों के शरीर में फैलता है। संक्रमित गाय, बकरी और दूसरे जानवरों के अपॉश्च्युरीकृत डेयरी उत्पादों के सेवन और ब्रुसेल्ला प्रभावित क्षेत्रों में जाने से खतरा अधिक रहता है। मीट प्रोसेसिंग इकाई या बूचडख़ाने में काम करने वाले, शिकारियों और जानवरों में ब्रूसेल्ला का टीकाकरण करने वाले वेटनरी डॉक्टरों में भी यह जीवाणु संक्रमण फैला सकता है। इसके लक्षण फ्लू की तरह दिखाई देते हैं, लेकिन यह फ्लू नहीं होता। फ्लू की तरह लक्षण दिखने के कारण शुरुआत में इसकी पहचान करना थोड़ा मुश्किल होता है।
यह संक्रमण पुरुषों में अधिक होता है। डेयरी फार्म में काम करने वालों में इसका जोखिम अधिक रहता है। खासतौर पर उन जगहों पर, जहां झुंड में जानवर रहते हैं। थकान, सिरदर्द, वजन कम होना आदि इसके आम लक्षण हैं। बुखार होना, जो कि दोपहर के समय तेजी से चढ़ता है। कमर में दर्द होना, शरीर में ऐंठन और दर्द, भूख में कमी और वजन का कम होना, हमेशा सिरदर्द बना रहना, रात में सोते वक्त अधिक पसीना आना, कमजोरी का एहसास भी इस बीमारी के लक्षण हैं।
आमतौर पर बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 5 से 30 दिनों के बाद इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। लक्षणों की तीव्रता और उनसे होने वाली समस्याएं उस ब्रूसेल्ला के प्रकार पर निर्भर करती हैं, जिससे व्यक्ति संक्रमित हुआ है। ब्रूसेल्ला अबोर्टस से हल्के और मध्यम लक्षण दिखते हैं।
ब्रूसेल्ला कैनीस के लक्षण पीडि़त में आते-जाते रहते हैं। कैनीस के लक्षणों में उल्टी और दस्त भी होते हैं। ब्रूसेल्ला सुइस विभिन्न अंगों के हिस्से संक्रमित कर सकता है, जिसे एब्सेसेस कहा जाता है। ब्रूसेल्ला मेलिटेंसिस से तीव्र लक्षणों के साथ शारीरिक विकार सामने आते हैं।
इंसानों के लिए बीमारी का कोई टीका नहीं, न उपचार
द इंडियन जनरल ऑफ मेडिकल रिसर्च के लेख ‘ब्रुसेल्लोसिस इन इंडिया: अ डिसेप्टिव इन्फेक्सश डिजीज’ में कहा गया है कि ब्रुसेल्लोसिस भारत में एक खास लेकिन नजरंदाज बीमारी है। डेयरी उत्पादों की बढ़ती मांग से बीमारी के खतरे के साथ मानव आबादी में इस संक्रमण के प्रसार और तेजी से फैलने की चिंता बढ़ गई है।
शोध पेपरों को प्रकाशित करने वाली वेबसाइट ‘रिसर्च गेट’ में प्रकाशित लेख ‘इकोनॉमिक लॉसेस ड्यू टू ब्रूसेल्लोसिस इन इंडियन लाइवस्टॉक पॉपुलेशन’ में कहा गया है कि ब्रुसेल्लोसिस भारत में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। इसके चलते हो रहे आर्थिक नुकसान की रोकथाम और नियंत्रण रणनीति बनना जरूरी है।
भारत में आयोजित महामारी सर्वेक्षणों से प्रसार डेटा लेकर ब्रुसेल्लोसिस के कारण आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है। विश्लेषण से पता चला कि पशुधन में ब्रुसेल्लोसिस 3.4 अरब अमेरिकी डॉलर के औसत नुकसान के लिए जिम्मेदार है। ये नुकसान इंसानों में बीमारी के आर्थिक और सामाजिक परिणामों के अलावा है।
इससे भी गंभीर बात ‘एपेडिमायोलॉजिकल मॉडलिंग ऑफ बोवायन ब्रुसेल्लोसिस इन इंडिया’ लेख बता रहा है कि मनुष्यों के लिए इस बीमारी का कोई टीका ही नहीं है और न ही कोई क्लीनिकल उपचार है। जबकि कई बार ये जानलेवा रोग हो जाता है। लिवर आदि को निष्क्रिय कर देता है।
”आईवीआरआई के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर भोजराज सिंह का कहना है कि इस बीमारी पर इंसानों के लिए रूस में वैक्सीन बनाई गई है, लेकिन अभी इसकी विश्वसनीयता का सवाल है। आमतौर पर इस बीमारी को डॉक्टर जांचते ही नहीं, न कोई उपचार होता है। एंटीबायोटिक दवा टेट्रासाइक्लीन और स्टेप्टोमाइसिन को छह सात सप्ताह खाने से रोग से आराम मिल जाता है लेकिन ये स्थाई इलाज नहीं है। इन दवाओं के साइड इफेक्ट भी हैं।”
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क्या नपुंसकता और बांझपन का रोग भी बढ़ा रहा ये बैक्टीरिया?
तथ्य है कि ब्रुसेल्ला बैक्टीरिया बांझ और नपुंसक बनाने में सक्षम है। आईवीआरआई के वैज्ञानिक बताते हैं कि बैक्टीरिया महिलाओं की फेलोवियन ट्यूब को बंद कर देता है जिससे फर्टिलाइजेशन नहीं होता। पुरुष से महिला में भी ये पहुंच सकता है। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 29.9 करोड़ पशु दुधारू पशु हैं। शोध जिस तरह का दावा कर रहे हैं, उससे इसकी आशंका बढ़ जाती है कि बड़ी तादाद इस रोग की चपेट में आए जानवरों की हो सकती है। यहां ये भी जानना जरूरी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.90 करोड़ लोग नपुंसक दंपति हैं और 18 फीसद दंपति शादी की उम्र में ही नपुंसक हो जाते हैं।
पिछले एक दशक में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में नपुंसकता का आंकड़ा बढ़ गया है। वहीं सर्वे कंपनी क्विक रिसर्च का डाटा बता रहा है कि तीन करोड़ दंपति संतान पैदा करने योग्य नहीं हैं। इस नपुंसकता या बांझपन में ब्रुसेल्लोसिस की भूमिका को लेकर अभी कोई शोध सामने नहीं आया है, लेकिन वैज्ञानिक इसको एक बड़ी वजह के तौर पर देखना शुरू कर चुके हैं।