कोटा चित्रशैली में प्रकृति संग कृष्ण जीवन का चित्रांकन

कृष्ण का रूपांकन कोटा लघु चित्र शैली में

मनोरंजन के लिए लोकोत्सव की परंपरा में कोटा के लघु चित्रों एवं मिति चित्र में लोकोत्सव का परंपरागत स्वरूप ही चित्रित किया गया है | यहां पर कई धार्मिक चित्रों के साथ श्री कृष्ण जी व उनके स्वरूप ब्रजनाथ जी से संबंधित चित्र बहुतायत से बने हैं | इन सभी में प्रकृति को भी विशिष्ट महत्व दिया गया है |

धार्मिक चित्रों में कोटा के राम माधोसिंह को भी अनेक दृश्यों में प्रमुखता से चित्रित किया गया है | छत्र महल के आंतरिक ग्रह प्रवेश द्वार से जुड़ी मिति पर कृष्ण के जीवन से संबंधित चित्रों की भरमार है | जैसे—
कृष्ण एवं गोपियां भवन के मध्य में संगीतमय क्षणों में, प्रेमालिंगन कृष्ण अपनी प्रेयसी के साथ, चीरहरण चित्र में कोटा की परंपरागत शैलखंडों को दर्शाया है, कालिया नाग का दमन करते कृष्ण आदि प्रवेश द्वार की बाई भिति पर अनेक चित्र दिखाई देते हैं, राजप्रासादों में नायक व गोपियों के साथ कृष्ण विश्राम करते हुए, गोपीकाओं के साथ रास रचाते कृष्ण, इस चित्र में अर्धचंद्राकार ऊंचे क्षितिज है जिसमें गोल-गोल मेघों की झालरों का अंकन बहुत ही सुखद है, सागर मंथन करते देवता एवं असुर, भगवान विष्णु की कथा से संबंधित दृश्य, हाथियों की लड़ाई का आनंद लेते विशिष्ट वर्ग, प्रकृति के सुरम्य वातावरण में उड़ते पक्षी तथा गरुडासीन विष्णु लक्ष्मी, गोपियों के साथ नृत्य करते कृष्णा |

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राज महल में भी कई चित्र बने हैं-
गोवर्धन धारण किए कृष्ण, धार्मिक अनुष्ठान करते कृष्ण एवं कुछ जनसमुदाय, गार्यो को चराकर घर लौटते ग्वाले व कृष्णा, अग्नि से घिरे ग्वाले व गार्यो को बचाते हुए कृष्ण
सघन वृक्षों के मध्य राक्षसों का संहार करते कृष्ण, इनके अतिरिक्त बांसुरी बजाते, नृत्य करते, सखियों के साथ जल क्रीड़ा करते, पूतना का दुग्ध पान करते नगर की और ग्वालों और गायों का प्रस्थान आदि कई चित्र हैं जिनमें कृष्ण के साथ पक्षियों, पकृति व भवनों का सुन्दर चित्रण किया है |
कोटा चित्र शैली में ही एक चित्र है जिसे गंगाचार्य द्वारा ‘कृष्ण’ का नाम दिया गया था यह चित्र 1630-40 ई. के मध्य अपारदर्शी जल रंग द्वारा बनाया गया है | यह राजकीय संग्रहालय कोटा में संग्रहित है | इस संपूर्ण चित्र में दो दृश्य हैं नीचे की ओर कृष्ण के मां बाप (नंद बाबा यशोदा) गंगाचार्य का द्वार पर स्वागत करते हुए चित्रित हैं नीचे भूमि तक हल्के हरे रंग से घास को प्रदर्शित किया है आगे की तरफ कुछ घास बनाई गई है जिसमें सफेद ज्वार जैसे फल बनाए गए हैं | चित्र के ऊपरी भाग में आचार्य घर में बैठे हैं और उनके हाथ में जन्मकुंडली जैसा कोई कागज है और वह किसी गणित करती हुई मुद्रा में बैठे हैं | उनके आगे कृष्ण, बलराम, माता यशोदा व नंद बाबा बैठे हैं | दो सेविकाएँ हाथ में फल व पानी का पात्र लिए खड़ी है | भवन सफेद, लाल व हरे रंगों से बनाया गया है और उसमें बने आलो को विभिन्न लाल वहरे पात्रों द्वारा सजाया गया है | चित्र में दरी बिछी हुई है जिसमें पीला बॉर्डर है | मध्य में हरा रंग है और उस पर फूल व पत्तियों के अलंकरण बने हैं | चित्र के ऊपरी बाएं भाग में सफेद मिश्रित नीले रंग से युक्त आकाश बना है | उसके नीचे केले का वृक्ष उसके आसपास आम का वृक्ष बना है, जिस पर मंजरिया लगी हुई है | कुछ फूलों के पौधे हैं जिन में लाल व सफेद रंग के पुष्प बने हैं | पीछे सरो व कदम्ब के वृक्ष भी बने हैं | फूलों के पौधे कनेर के बनाए गए हैं | चित्रकार ने घटना के साथ प्रकृति का चित्रण बहुत ही सजीव व सुंदर प्रस्तुत किया है | मंजरीयुक्त पेड़ में पहले गहरा हरा रंग भर कर उस पर आउट लाइन से पत्तियां बनाई गई है | जिसमें मंजरीयुक्त आम का पेड़ ज्योतिष के अनुसार काफी शुभ माना जाता है |

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रुकमणी मंगल सीरीज के कई चित्र हैं जो राव माधसिंह ट्रस्ट म्यूजियम में संग्रहित है | इन प्रतीकात्मक चित्रों का धार्मिक महत्व विशेष है | एक अन्य चित्र वासुदेव देवकी के विवाह का चित्र है यह भी रुकमणी मंगल का ही चित्र अपारदर्शी जल रंगों व स्वर्ण रंगों से बना हुआ है |
एक अन्य चित्र जो कि रुकमणी मंगल का मुख्य पृष्ठ पर चित्रित है कोटा गढ़ में संग्रहित है | यह 1660-70 ई के मध्य अपारदर्शी जल रंगों से बना है | संपूर्ण चित्र को बहुत ही सुंदर प्रकृति के साथ चित्रित किया गया है | हर जगह मनुष्य का भगवान का प्रकृति के साथ तारतम्य दर्शाया गया है | इस दृश्य में एक राजकीय व्यक्ति किसी साधु के समक्ष नतमस्तक होते प्रार्थना करते चित्रित है साथ एक सेवक चित्रित हैं और चित्र के ऊपरी भाग में भगवान विष्णु व मां सरस्वती भी चित्रित है ऐसा लगता है जैसे कोई महत्वपूर्ण घटना घट रही हो | इस चित्र में साधु को सफेद कुटिया के बाहर केसरिया धोती में बाघ की खाल के ऊपर बैठे बनाया है | वह किसी चबूतरे जैसी जगह पर बैठे हैं | जिसके नीचे पत्थर की चट्टाने जैसी बनी है और उसके नीचे शेर के मुख जैसे पत्थर की आकृति से पानी गिर रहा है | उनकी कुटिया के पीछे सफेद तना व गहरी हरी पत्ती वाला पारस पीपल तथा उसी के साथ बनयान वृक्ष चित्रित है | चित्र के दाएं तरफ मध्य भाग में दो आम के पेड़ के साथ जामुन का पेड़ चित्रित है |
एक अन्य चित्र रुक्मणी हरण- इस चित्र में श्री कृष्ण रुकमणी को भगाते हुए चित्रित हैं | चित्र में सैनिक, घोड़े हाथी, नारियां सभी का चित्रण बहुत ही सुंदर है | ऊपर सूर्य बना होने से दिन की घटना का वर्णन करता है | चित्र के मध्य में स्लेटी व सफेद मिश्रित रंग से कुंड बनाया है | संपूर्ण चित्र में केले के पेड़ और लाल फूल वाली बेल को भी संयोजित तरीके से चित्रित किया गया है | चित्र को तीन भागों में बांटा गया है | ऊपर राजसी पुरुष कुछ मंत्रणा कर रहे हैं | मध्य में कुछ नारियां पूजा अर्चना करती हुई मंदिर के समक्ष बनाई गई हैं | और निचले भाग में मंदिर के बाहर श्री कृष्ण रुक्मणी का हाथ पकड़ते हुए उनका हरण करते हुए रथ पर चित्रित किये गये है | संपूर्ण चित्र पूरी घटना को बहुत ही सुनियोजित तरीके से प्रदर्शित करता है |

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गोपियों व कृष्ण के रासलीला का दृश्य 1680ई. में अपारदर्शी जल रंगों व स्वर्ण रंगों व धात्विक रंगों से निर्मित किया गया है | यह चित्र मोर मुकुट धारी कृष्ण व राधा प्रेमी युगल के साथ नृत्य करती गोपियों का चित्रण है | कृष्ण व राधा मध्य में प्रेमी युगल के रूप में तख्त पर बैठे हैं | उनके चारों तरफ गोपियां घेरा बनाए नृत्य कर रही हैं | सब के गले में सफेद पुष्प माला आठ की आकृति जैसी बनाई गई है | ऊपर नीले आसमान में चांद व तारे रात्रि के दृश्य को इंगित करते हैं | सभी प्रसन्न मुद्रा में है लाल रंग मध्य में बनाया है जो प्रेम की अग्नि को दर्शाता है | संपूर्ण चित्र में मंजरी लगे आम वृक्ष, कदंब, जामुन और केले के पेड़ों को बहुत ही सुंदर रूप में संयोजित किया गया है |
एक अन्य चित्र महाराव अर्जुन सिंह दरी खाने में कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हुए है यह चित्र 1720-25 ई में बनाया गया है | इसमें पूरे गढ़ पैलेस के अंदर का दृश्य मल्टीपल व्यू प्वाइंट से चित्रित किया गया है | कृष्ण द्वारा गोपी वस्त्र हरण चित्र भी बहुत ही आकर्षक बनाया गया है | एक अन्य चित्र बृज नाथ जी की गरुड़ पर सवारी यह बहुत ही सुंदर चित्र है | इसमें आसमान में बहुत सारे रंग भरे गए हैं | आसमानी केसरिया, हल्का बैंगनी सफेद, गहरा नीला व लाल रंगों से आकाश बनाया गया है | उनके बीच वध्य बजाते हुए कुछ नारी आकृतियां (अप्सरायें) बनाई गई है | एक पेड़ बनाया गया है मध्य भूमि में पीली भूमि बनाई गई है, उस पर गरुड़ के ऊपर भगवान को सवारी करते हुए चित्रित किया गया है | भूमि में स्लेटी व सफेद रंग से जल बनाया गया है |

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अक्षय तृतीया पर बृजनाथ जी की आरती करते हैं हुए महाराव किशोर सिंह जी का चित्र 1831ई. में अपारदर्शी जल रंगों व धात्विक स्लेटी रंग से बनाया गया है | इसमें श्री कृष्ण जी की प्रतिमा के आगे महाराव आरती कर रहे हैं | आगे पानी का संगमरमर का पात्र बनाया है जिसमें कमल के फूल डाले हुए हैं | कमल के फूल भगवान ब्रजनाथ जी को भी चढ़ा रखे हैं | इस तरह के चित्र भगवान बृज नाथ जी की सेवा करते हुए कोटा चित्र शैली में बहुत बने हैं | पीली छतरी वाले राज सिंहासन पर बैठे नीलवर्ण या ब्रजनाथ जी इस चित्र में इनका अभिनंदन करते हैं ब्रह्मा, विष्णु व शिव को भी चित्रित किया गया है तथा इनके पीछे कतार बद्ध कोटा के शासक व सरदार खड़े हैं | वहीं कोटा के राजचिन्ह गरुड़ को भी अभिवादन की मुद्रा में दर्शाया गया है | इस चित्र में विशेष प्रकार की पगड़िया जो मुकुट के सामान तिकोनी है बनाई गई हैं | कुछ अन्य चित्रों में मदमस्त हाथी के दांत उखाड़ते ब्रजनाथ जी, चंबल नदी के मध्य नौका में सवार बृजनाथ जी व विशिष्ट व्यक्ति आईना दिखाते हुए, चंबल नदी के पार काली बग्गी में सवार बृजनाथ जी व राव माधव सिंह, भील व कावड़िए, एक प्रमुख चित्र में बृज नाथ जौकी सुसज्जित हाथी पर सवारी निकल रही है | अनुचर और महाराव, उनका परिवार, अन्य व्यक्ति हरे मैदान रूपी भूमि पर पैदल चल रहे हैं |
इस तरह से लघु चित्र शैली व मिति चित्रण में श्री कृष्ण के विभिन्न क्रियाकलापों व ब्रजनाथ जी को कोटा के कलाकारों ने हृदय की अनुभूतियों से परिपूर्ण किया है | उन्होंने चित्रित किए जाने वाले विषयों को सम्यक् अनुभूत किया है | इन चित्रों में संयोजन, रूप विन्यास इतना सफल एवं सशक्त है कि दर्शक चित्रों के माध्यम से उन्हीं भावों की अनुभूति करने लगता है जिससे प्रेरित होकर चित्र रचना की गई है | इसी रूपात्मक स्थिति के आधार पर कलाकृति, कलाकार एवं दर्शक में संबंध स्थापित करते हैं | अनुभूति कला का आत्म तत्व है तथा अभिव्यक्ति शरीर का तत्व है | बिना शरीर के आत्मा का अस्तित्व संभव है, लेकिन आत्मा रहित शरीर शव के समान है | कोटा शैली के चित्रों की अभिव्यक्ति के पीछे अनगिनत गहन संवेदनशीलता व आध्यात्मिकता निहित है |

लेखक: डॉ.मुक्ति पाराशर
कला इतिहासकार व साहित्यकार

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