राजनीति एंव महंगाई पर कोरोना का प्रहार 

नियम बनाने वाले राजनेता खुद वोटों के लिए चुनावी रैलीयां कर रहे हैं |

वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व कोविड़-19 महामारी के रोद्र रुप से पीड़ित हैं सन् 2019 में आया यह वायरस ‘सिकंदर महान’ से भी अधिक धातक है | सिकंदर कि तलवार तो फिर भी म्यान में चली जाती थी परन्तु यह वायरस तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा है | इस वायरस के अलग-अलग देशों से अलग-अलग प्रकार के म्यूटेशन-रुप सामने आ रहे है | देश-विदेशों में वेक्सीन लगाने का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है | भारत को स्वदेश में निर्मित तीन वेक्सीनो कों भी मान्यता मिल चुकी है साथ ही वेक्सीन लगाने का कार्य भी लगभग 10% हो गया हैं | फिर भी भारत में यह वायरस 2020 की तुलना में 2021 में ‘बहुत रोद्र’ रुप में दुनिया सामने आया है |

भारतीय नागरिकों पर एक ओर इस महामारी से लड़ने कि चुनौती है तो दूसरी ओर बढती हुई महंगाई में अपने परीवार को पालने की जिम्मेदारी, ऐसे में गरीब/मजदूर परीवार घर चलाये या चिकित्साल्य जाये | क्या करे ? केन्द्र एंव राज्य सरकारें आये दिन बैठको में नित-नई गाईडलाइन जारी रही हैं वही सोशल मीड़िया सबको डराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा हैं। सोशल मीड़िया तो अफवाओ का विश्वविद्यालय बन गया हैं जहाँ पर इस विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के न जाने कौन सी दुनिया का ज्ञान परोसा है |

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सरकारे एक ओर शादी समारोह एंव धार्मिक कार्यक्रमों को रोकने न करने कि सलाह दे रही हैं तो दूसरी ओर निर्वाचन आयोग देश में चुनाव करवा रहा हैं | नियम बनाने वाले राजनेता स्वंय ‘वोटबैकिंग’ के लिए चुनावी रैलीयां कर रहे हैं | क्या ऐसे समय में चुनाव आयोग खूम्बकरण की निन्द सो रहा हैं ? जब सर्वोच्च न्यायालय उसे अपनी जिम्मेदारियों को याद दिलाता है तब जा कर वह रैलीयो पर थोडी पाबंधी लगाता हैं |

कोरोना वायरस अपने ‘ब्रहमास्त्रो’ का प्रयोग भारतीय जनता पर कर रहा है तो दूसरी ओर समस्त राजनेता ‘मन-मोहनी अस्त्र’ का प्रयोग वोट बैकिंग के लिऐ करते नजर आते हैं | इन दोनों अस्त्रों से पीड़ित भारतीय जनता चिकित्साल्यों एंव आर्थिक तंगी के दरवाजो तक पहुंच गई हैं | बाजारों का समय नेताओ के नियमों पर चल रहा हैं | वही व्यापारी वर्ग ‘कालाबाजारी’ करने में व्यस्त हैं | रसोई, गैंस, तेल पैट्रोल, डीजल, अन्य वस्तुऐ धीरे-धीरे किसानों से दूर होती जा रही हैं | चिकित्सालयों  के नजारे और ऑकड़े डराने वाले हैं | हम ऑक्सीजन निर्यात करते हैं आज हमें आयात करनी पड़ रही हैं | हालात यह है कि भारतीय वायु सेना को ऑक्सीजन सिलेण्डर लाने पड रहे हैं |

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मैं सरकार से पूछता हूँ? क्या हुआ चिकित्सा बजट का ? कहाँ गया ‘इंफ्रास्ट्रक्चर? केवल सरकारी ऑकडे फाइलो में ही दर्ज हैं क्या ? चिकित्सालयों के बेड़ों को छोडो ‘राजघानी नई दिल्ली’ में शवों के अन्तिम संस्कार के लिए मुक्तीधामों में दो गज भूमि भी नहीं मिल पा रही ।

उपरोक्त सभी समस्यों की जड़ कौन हैं-सरकार,जनता,व्यापारी या कोरोना महामारी आखिर कौन दोषी हैं,उन परीवारों का जिन्हों अपनो को खो दिया हैं | देश घायल शेर की तरह दर्द से करहा-रहा है |

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मेरी नजर मैं इस वायरस ने देश उन समस्यों को खोज निकाला हैं, जिन पर शायद ही कभी किसी ने ध्यान दिया हो परन्तु अब सरकारों एंव देशवासियों को इस महामारी से बचाव के लिए अपनी-अपनी जिम्मेदारीयों को निष्ठा और ईमानदारी से निभानी होगी | साथ ही भविष्य की तैयारी भी अभी से पूर्ण करनी होगी | सरकार को वृहद् स्तर पर कालाबाजारी, जमाखोरी एंव नियम पालन न करने वालों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए तथा अंत्योदय, बीपील, एपील परीवारों को आवश्यक वस्तुएं उचित मूल्यों पर उपलब्ध करवानी चाहिए | देश में चल रहे चुनावों को भी हालात सुधारने के लिए टाला जा सकता था पर राजनैतिक लालसा ने लोगों को इस महामारी से खुद लड़ने को मजूर कर दिया | लाखों की रैलियों ने जनता को मौत के मुहाने पर खड़ा कर दिया है |

सर्वोच्च न्यायाल्य को सरकारों से पूछना चाहिए कि आप के द्वारा 1 साल से की जा तैयारी कितनी स्टीक व जमीनी स्तर पर कारगर हैं | सरकार के साथ-साथ जनता को भी धैर्य एंव देश के प्रति आत्मविश्वास व सहनशीलता रखनी चाहिए | वैक्सीन लगाने में सरकार एंव जनता को देर नहीं करनी चाहिए | कोरोना को लेकर फैल रही अफवाओ पर ध्यान न दे | जहाँ तक आवश्यक न हो सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का उपयोग न करे तथा उसे जरूरत मंद तक पहुँचाने में सहयोग करें | कोविड़-19 महामारी को चिकित्सकों एंव वैक्सीन पर आत्मविश्वास, दो गज दूरी मास्क है जरूरी के प्रयोग से ही हरा जा सकता है |

लेखक: कुलदीप सिन्देरिया
युवा लेखक व छात्र नेता

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