कौन थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय और क्या था राजस्थान से उनका कनेक्शन

कोटा में बिताया था जीवन का खास वक्त, यहीं से निकलकर बने थे जनसंघ के सह संस्थापक

  • जयपुर के धानक्या रेलवे क्वार्टर्स में बीता बचपन, सीकर-झुंझुनू में रहकर पूरी की प्रारम्भिक शिक्षा

TISMedia@Kota भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर आज देशभर में भाजपा कार्यकर्ता उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद कर रहे हैं। इस बीच उनके जीवन में राजस्थान से रहे ख़ास जुड़ाव की यादें भी ताज़ा हो आई हैं। दरअसल, पंडित दीनदयाल के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कालखंड राजस्थान में ही बीता। यहीं वह पले बढ़े और शिक्षा हासिल की। एक तरह से करें तो पंडित दीन दयाल उपाध्याय को मरुधरा ने ही गढ़ा था।

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25 सितम्बर 1916 को जन्में पंडित दीनदयाल के पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर थे। रेलवे की नौकरी होने के कारण पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था। सिर्फ छुट्टी मिलने पर ही वे घर आते थे। लिहाजा दीनदयाल के जन्म के दो वर्ष बाद जब छोटे भाई शिवदयाल ने जन्म लिया, तब पिता ने दोनों बच्चों को उनकी पत्नी रामप्यारी के साथ ननिहाल धानक्या भेज दिया। नाना चुन्नीलाल शुक्ल भी धानक्या में स्टेशन मास्टर थे। ऐसे में दीनदयाल का बचपन रेलवे क्वार्टर्स पर अपने ममेरे भाइयों के साथ ही बीता। उन्होंने चलना-फिरना, बोलना सब यहीं पर सीखा।

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सवाई माधोपुर-कोटा-अलवर भी रहे
पंडित दीनदयाल का अक्षरज्ञान और प्रारम्भिक शिक्षा भी नाना चुन्नीलाल के धानक्या रेलवे क्वार्टर्स पर रहते हुए पूरी हुई। हालांकि जब वे मात्र तीन वर्ष के थे तब उनके पिता का देहावसान हो गया। वहीं मां भी क्षय रोग से पीड़ित रहने के कारण 8 अगस्त 1924 को इस दुनिया से रुखसत हो गईं। ऐसे में दीनदयाल अपने नाना की सेवानिवृति तक धानक्या में ही रहे। इसके बाद वे अपने मामा राधारमण के साथ रहने लगे। उनके मामा ने ही उन्हें सवाई माधोपुर के गंगापुर सिटी के रेलवे विद्यालय में भर्ती करवाया था। कुछ दिन में ही मामा राधारमण का स्थानान्तरण हो गया और पंडित दीनदयाल भी उनके साथ कोटा चले गए। इसके बाद वे अपने चचेरे मामा नारायणलाल जी के साथ अलवर के राजगढ़ चले गए।

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सीकर से किया हाई स्कूल, जीत ‘स्वर्ण पदक’
पंडित दीनदयाल राजगढ़ में शिक्षा प्राप्त कर ही रहे थे कि मामा का स्थानान्तरण सीकर हो गया। इसके चलते उन्होंने सीकर में 1934 में दसवीं की परीक्षा कल्याण हाई स्कूल में अजमेर बोर्ड से पूरी की। इस परीक्षा में वे अजमेर बोर्ड में सर्वोच्च स्थान पर रहे और स्वर्ण पदक प्राप्त किया। तब सीकर के महाराजा कल्याण सिंह ने उन्हें स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया।

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इंटर में भी रहे अव्वल, 20 साल गुजारे मरुधरा में 
फिर इंटरमीडिएट की पढाई उन्होंने झुंझुनू के पिलानी से की। इस परीक्षा में भी वे अव्वल रहे और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने पर एक बार फिर स्वर्ण पदक हासिल किया। इस बार सेठ घनश्याम दास बिरला ने उन्हें स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया। ऐसे में पंडित दीनदयाल का 1916 से लेकर 1936 तक का लगभग 20 वर्ष की आयु तक का जीवन राजस्थान में रहकर ही गुजरा। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए कानपुर चले गए। जिसके बाद वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक से प्रचारक के तौर पर जुड़े और आगे चलकर भारतीय जन संघ के सह-संस्थापक तक बने। उनके कई परिजन अब भी कोटा में रहते हैं।

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