शिक्षा का व्यापारीकरण

शिक्षा का अर्थ है-सीख/ज्ञान। जिससे मनुष्य का बौद्धिक विकास होता है। शिक्षा के बिना मानव पशु के समान है, क्योंकि शिक्षा ही सभ्यता और संस्कृति के निर्माण में सहायक होती है और मानव को अन्य प्राणियों की तुलना में श्रेष्ठ बनाती है। यह शिक्षा ना जाने कैसे परिवर्तित होती चली गई और अपने मूलरूप से पूरी तरह बदल गई। अब शिक्षा `अर्थ’ से जुड़ गई है अर्थात शिक्षा का उद्देश्य मात्र `धन’ अर्जित करना रह गया है।

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भारत शिक्षा के बड़े बाजार के रूप में उभर कर सामने आ गया। यहां धन अर्जित करने का माध्यम बन चुकी शिक्षण संस्थाओं में ना तो गुणवत्ता वाले शिक्षक नजर आते हैं और ना ही वह शिक्षा पद्धति जो भारत को दुनिया से अलग रखती है।

आज देश के शिक्षण संस्थाओं में बड़े-बड़े कमरे तो नजर आते हैं परंतु उनमें छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती है। यह शिक्षण संस्थाये शिक्षा की आड़ में अभिभावकों की जेब खाली कराने में कोई कसर नहीं छोड़ती। अध्ययन सामग्री से लेकर विद्यालय की गणवेश व अन्य सहायक सामग्री में इनका कमीशन फिक्स होता है।

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आज के समय में इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य विशेष शैक्षणिक क्षेत्र तो ऐसे बन गए हैं जिनमें प्रवेश के लिए छात्र के मानसिक स्तर के साथ अभिभावक के पास धनराशि भी भरपूर होनी चाहिए ताकि वह इन संस्थाओं को मोटी रकम दे सके।

फीस ना होने के कारण कुछ परिवार तो अपने बच्चों को विद्यालय भेजने में भी असमर्थ हैं। फीस तो है ही उसके साथ-साथ पुस्तकों और गणवेश के खर्चे भी बहुत अधिक हो गए हैं। शिक्षा का व्यवसाय इतना लाभदायक हो गया कि इन शिक्षण संस्थाओं ने पुस्तकों और गणवेश व्यापार करना भी शुरू कर दिया है।

गरीब परिवारों के लिए अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा हेतू निजी विद्यालय में पढ़ाना एक सपना बनकर रह गया है क्योंकि निजी शिक्षण संस्थाओं में फीस के नाम पर बड़ी-बड़ी रखम वसूली जाती है जो सिर्फ पैसे वाले लोग ही अदा कर पाते हैं

यही कारण है कि गांव व शहर के सरकारी विद्यालयों  में मात्र गरीबों के बच्चे होते हैं। अमीर  तो अपने बच्चों को मोटी रकम देकर किसी निजी विद्यालय में भेज देते हैं ताकि वहां उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त हो सके।

अनेक छात्रों के सामने तो यह समस्या खड़ी हो जाती है की- कमाने के लिए पढ़ाई करें या पढ़ाई करने के लिए कमाएं।

शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाना चाहिए और शिक्षा का मौलिक अधिकार सभी बच्चों तक पहुंचाना चाहिए।

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निजी शिक्षण संस्थाओं की फीस सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए तथा वह इतनी हो की निर्धन वर्ग के छात्र भी उनमें आसानी से प्रवेश ले सके, क्योंकि भारत की अधिकतर जनसंख्या गांव निवास करती है जो कि निर्धन वर्ग में आती है।

अगर शिक्षा का व्यापारिकरण नहीं रुका तो निर्धन वर्ग के छात्रों का भविष्य अंधेरे में चला जाएगा जो देश के विकास के लिए एक बाधा है क्योंकि किसी भी राष्ट्र के विकास में उसकी शिक्षित जनसंख्या का विशेष योगदान होता है।

लेखक: प्रकाश योगी
युवा लेखक

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