कोरोना काल में दर्द बांटे, जनता को लूटें-छलें नहीं

खरी-खरी: आमजन को दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही उम्मीद और राहत

बीते एक वर्ष में दुनिया भर के लोगों ने जो कुछ भोगा या सहा वह किसी बर्बर अभिशाप से कम नहीं है। खास कर हमारे देश ने जो कुछ देखा, अनुभव किया और पाया, उसने कहीं न कहीं भरोसे को छलने और  असुरक्षित भविष्य की कुत्सित मानसिकता को जरूर बढ़ाने का काम किया है। वैश्विक महामारी ने जिस तरह से हमारे देश में कहर बरपाया है, उसकी पीड़ा को न तो महसूस किया जा रहा है, न ही समझा जा रहा है। कुछ हो रहा है तो वह है लोगों की जिंदगी से खिलवाड़। पेड़ के सूखे पत्तों की मानिद बेबस लोग अपनों से बिछड़ रहे हैं। पल-पल यही सोच सवाल बनकर जेहन में उठ रहा है कि क्या आने वाला कल राहत का सन्देशा ला पाएगा? या इसी तरह से मुट्ठी में बंद रेत की तरह तिल-तिल कर अपनों को छिटकता हुआ देखते रहेंगे।

ये सारे कड़वे अनुभव इसीलिए दिलोदिमाग में बार-बार दस्तक दे रहे हैं, क्योंकि जिनके हाथों में हमने अपनी बागडोर सौंप रखी है, उन्होंने कठिन समय में हमसे पिंड छुड़ा लिया। हमें “नीली छतरी” वाले के भरोसे छोड़ दिया। जिस भयानक दौर में मजबूत कांधों और सहारों की जरूरत है, उन्होंने हाथ छिटक लिया। ऐसा नहीं है तो क्यों मुश्किल समय में मदद के लिए जिम्मेदार हाथ नहीं बड़ा रहे हैं। अवसरवादी बनकर जनता से छलावा कर रहे हैं। आम आदमी खुद को लाचार, बेसहारा और पंगु समझ रहा है।

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कोरोना काल में एक तरफ घातक संक्रमण लोगों की जानें ले रहा है तो दूसरी तरफ सरकार और उसके नुमाइंदे तमाशबीन बने हुए हैं। संकट के समय भी जनता को लूट-खसोट रहे हैं। सिर्फ जिंदा लोगों से सरेआम उगाई नहीं हो रही है, बल्कि मरने के बाद भी पार्थिव देह से सौदेबाजी की जा रही है। लाशें, चिताएं, उम्मीदें और जिंदगी सब कतार में पिस रही हैं। देश के मोक्ष धामों, शमशान घाटों या बैकुंठ धामों में रखी अस्थियों से अंदाया जा लगाया जा सकता है की कोरोना काल में कितनों हजारों-लाखों ने अपनों को खोया है। शवों के अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं मिल रही हैं। पैसा देकर, सिफारिश और जुगाड़ से नम्बर आ भी गया तो लकड़ियों के लिए छीना-झपटी मची है। हाल इस कदर खौफनाक है कि अधजली लाशों के ऊपर दूसरे शव को अंत्येष्टि के लिए रख दिया जा रहा। सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में जीवन की उम्मीद लिए लंबी कतारें लगी हैं। एक-एक बेड के लिए मारा-मारी है। बदहाल चिकित्सा व्यवस्था से व्यथित होकर क्या खास और क्या आम सब जीवन बचा लेने की मिन्नतें कर रहे हैं। कोविड संक्रमण ने पूरी व्यवस्था को कतार में खड़ा कर रखा है।

अस्पतालों की चौखटों पर उखड़ती सांसें इंतजार में खामोश हो रही हैं। मरीजों के बेड फुल हैं। बरामदों तक में जीवन की भीख मांगती जिंदगियां पसरी हैं। कोई हांफ रहा है तो कोई निस्तेज पड़ा है। कोई अकेले आया है तो किसी को कोई परिजन छोड़ गया है। वेंटिलेटर किसी भी जगह खाली नहीं हैं, फिर भी हर मरीज और उसके परिजन कोविड वार्ड में भर्ती होना चाहते हैं। अपनों की जान बचाने के खुलेआम भ्रष्टाचार का शिकार बन रहे हैं। मौकापरस्त लोग इंजेक्शन, दवा, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन सिलेंडर, पेशेंट बेड आदि का सौदा कर रहे हैं। पैसा नहीं मिलने पर लाशों से सौदेबाजी कर रहे हैं। हजारों की संख्या में लोग इस दुर्व्यवस्था के शिकार होकर मर रहे हैं और सरकारें प्रचार कर रही हैं किआक्सीजन पर्याप्त है, बेड बढ़ा दिये गए हैं। लेकिन असलियत उनसे पूछिये जिनके लोगों की बेड, आक्सीजन, वेंटिलेटर नहीं मिल पाने से जानें जा रही हैं। प्राइवेट अस्पतालों में भी आक्सीजन के लिए हाहाकार मचा है। गंभीर मरीजों को घर भेजा जा रहा है, भले ही वो मरें या जिएं।

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आखिर ऐसा क्यों? यह भी एक बड़ा सवाल है
इस समय अस्पतालों में भर्ती कराने को लेकर हर तरफ दलाल सक्रिय हो गए हैं। लोग बेबसी और मजबूरी के कारण उनके चंगुल में फंस‌ हैं रहे हैं। अस्पतालों के बाहर मरीज के परिजनों से मिल कर रुपया-पैसा लेने के बाद उसी अस्पताल में सब तरह के इंतजाम कर देते हैं, जहां ईमानदारी से जाने पर सुनवाई तक नहीं हुई थी। कुल मिलाकर देखा जाए तो कोरोना ने देश में चिकित्सा व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है। सरकार अक्सर चिकित्सा व्यवस्था बेहतर करने की बातें जरूर करती हैं लेकिन ये सब केवल हवाहवाई होते हैं। ऐसे में बदहाल चिकित्सा व्यवस्था के चलते आम इंसानों की जिंदगी केवल भगवान भरोसे हैं।

ऊपर वाले माफ कर दे, अब सहा नहीं जाता
कभी सोचा नहीं था कि ऐसा वक्त भी देखना पड़ेगा। जिन लोगों से मोहब्बत थी, जिनके साथ दिल का रिश्ता था, वे एक-एक कर साथ छोड़कर चले जा रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर आई तो दिल के टुकड़े-टुकड़े कर गई। कुछ ही वक्त में कितने दोस्त और रिश्तेदार अचानक से अलविदा कह गए और कितने अस्पताल में पड़े हैं। अब वाकई बर्दाश्त नहीं होता। ऊपर वाले केसामने हाथ जोड़कर कहता हूं कि कोई गलती हो गई हो तो माफ कर दो। यह दुनिया तुम्हीं ने बनाई है, हम सब तुम्हारे बच्चे हैं। क्यों ऐसा खेल खेल रहे हो, माफ कर दो, अब सहा नहीं जाता। ये दर्द है उन सभी का जिन्होंने असमय अपनों को खोया है। तंत्र की नाकामी का परिणाम इन्होंने भुगता है। दुखी और लाचार लोगों ने बहते आंसुओं व टूटे दिलों से कहा है कि सरकारों ने अच्छे तरीके से काम किया होता तो ये दिन देखने नहीं पड़ते। कुछ ने बताया कि जरूरतमंदों को आक्सीजन नहीं मिल पा रही है। जो रसूखदार लोग हैं, जिनके एक इशारे पर तमाम काम चुटकियों में हो जाते हैं, वे खुद आक्सीजन के लिए तड़प रहे हैं। उत्तर प्रदेश में एक पूर्व आईएएस ने अपनी बीमार मां को ऑक्सीजन दिलाने के लिए बड़े-बड़े अधिकारियों को बार-बार फोन किया,  पर कहीं सुनवाई नहीं हुई ऑक्सीजन बेचने वाले किसी शख्स से किसी बिचौलिए के जरिए 35 हज़ार रुपए मांगे। पूर्व आईएएस ने अपने बेटे को यह राशि लेकर भी भेज, लेकिन तब तक कोई पचास हज़ार रुपए देकर सिलेंडर ले गया। उनकी मां की सांसें अंत में उखड़ गईं। एक आदमी की पैसे की हवस ने उनके घर में अंधेरा कर दिया। यह ऐसा दौर है जिसमें बूढ़ों से ज्यादा जवानों पर मुसीबत आई है। लगता है जैसे मौत सड़कों पर टहल रही है। इसके बावजूद लोग हैं कि मानते नहीं। सड़कों पर सांसों के दाम लगाने वाले खरीदारों की भीड़ जमा है।

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हालात कितने खराब, किसी को कुछ पता नहीं
भारत की आबादी इतनी ज़्यादा है और लॉजिस्टिक की इतनी समस्या है कि सभी कोरोना मरीज़ों का टेस्ट करना और मरने वालों का सही-सही रिकॉर्ड रखना बहुत मुश्किल है। इसीलिए यूरोप और अमरीका की तुलना में भारत में कोरोना की समस्या का सही आकलन करना बहुत मुश्किल है। दुख की बात तो यह भी है कि अगले कुछ हफ़्तों में हालात और ख़राब होंगे। भारत किसी तरह वायरस को फैलने से रोक भी लेता है तो भी मरने वालों की संख्या बढ़ती रहेगी, क्योंकि इतनी अधिक संख्या में लोग पहले से संक्रमित हो चुके हैं। अभी तो इस बात के भी कोई आसार नहीं हैं कि संक्रमितों की संख्या में कमी आ रही है। संक्रमितों की संख्या कितनी बढ़ेगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि लॉकडाउन और वैक्सीनेशन से कितनी सफलता मिलती है। अमरीका की जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार 26 अप्रैल तक अमरीका में तीन करोड़ 20 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और पांच लाख 72 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे जा चुके है। हर 10 लाख की आबादी पर मरने वालों की संख्या के हिसाब से भी भारत अभी यूरोप और लैटिन अमरीका के कई देशों की तुलना में पीछे है। लेकिन भारत की आबादी इतनी ज़्यादा है और हाल के दिनों में संक्रमितों और इससे मरने वालों की संख्या में इस क़दर इज़ाफ़ा हुआ है कि इससे दुनिया भर को चिंता हो रही है। विशेषज्ञ की मानें तो उन्होंने बताया कि हमने इस तरह के हालात इससे पहले कभी नहीं देखे, जहां कि हेल्थ सिस्टम इतनी बड़ी संख्या में मरीजों के कारण पूरी तरह चरमरा जाए। जब हेल्थ सिस्टम ही ध्वस्त हो जाए तो लोग कई कारणों से अधिक संख्या में मरने लगते हैं और इनकी मौत का ज़िक्र कोरोना से मरने वालों की लिस्ट में शामिल नहीं होता है। इसके अलावा भारत में स्वास्थ्य सेवाएं देने वालों के सामने भी इतनी बड़ी आबादी को सेवा देने की चुनौती है और भारत में कई लोग ऐसे हैं जिनको किसी भी तरह की कोई स्वास्थ्य सेवा हासिल नहीं है। भारत इस वक्त कोरोना वायरस की खतरनाक लहर का सामना कर रहा है और दुनिया में इस महासंकट का एपिसेंटर बन चुका है।  देश में अस्पतालों में बेड्स, ऑक्सीजन की किल्लत है। इस सबके बीच एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि भारत में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उस हिसाब से अगले कुछ हफ्तों में ही अतिरिक्त करीब 5 लाख आईसीयू बेड्स की जरूरत होगी।

(लेखकःराजेश कसेरा राजस्थान के जाने-माने पत्रकार हैं। राजेश कसेरा, राजस्थान पत्रिका सहित कई प्रमुख हिंदी समाचार संस्थानों में पत्रकार से लेकर संपादक के तौर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं।)

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