ये कैसी विडंबना, महंगाई भी तिल-तिल मार रही !

कोरोना से जूझ रहे हमारे इस देश में हर पल चारो तरफ से शोक, संताप और मातम से भरी सूचनाएं आ रही हैं। मनहूस खबरें दिल बैठाने का काम कर रही हैं। “मेरा क्या होगा?” यह सवाल दिन-रात खाए जा रहा है। जीने के लिए क्या करें, ये डर सताए जा रहा है। ऊपर से जेब का संकट आने वाले संकट और कठिन समय की दस्तक दे रहा है। घर-परिवार को पालने की चिंता दिन दुगुनी रात चौगुनी हो रही है। कोरोना काल ने काम-धंधे तो छीन ही लिए, पर जीवन बसर करने के लिए जो थोड़ी बहुत पूंजी बचाकर रखी थी, उसे महंगाई डायन तेजी से निगल रही है। जीवन बचाने के संघर्ष और जुगत में लगे आमजन को कोरोना का संक्रमण इतनी तेजी से नहीं मार रहा, जितनी तेजी से महंगाई ने लील रखा है।

दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह भी है कि किसी सरकार और उसके जिम्मेदार अधिकारियों को इसकी रत्ती भर परवाह नहीं है। वह इसलिए कि उन्होंने आपदा काल को कमाई का अवसर बना दिया। जितना दर्द और तकलीफें बढ़ेंगी, उनकी जेबें उतनी ही भरेंगी। कालाबाजारी का नंगा नाच खेला जा रहा है और सब खड़े होकर तमाशा देख रहे हैं। घर परिवारों पर यकायक बढ़ा ये बोझ किसी को दिखाई नहीं दे रहा है, क्यों? बीते एक वर्ष की बात करें तो कोरोना काल की पहली और दूसरी लहर ने सिर्फ हजारों-लाखों लोगों को काल कलवित नहीं किया, करोड़ों की दो जून की रोटी को भी छीन लिया है। काम-काज नहीं होने से लोग बेहद परेशान हैं। परिवार को पालने के लिए हाथ पैर मारते हैं। जैसे-तैसे व्यवस्था भी करते हैं, लेकिन इस एक साल में महंगाई ने जिस कदर ऊंचाइयां छुई है, उसने आम आदमी को बेदम कर दिया।

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पेट भरने और गृहस्थी चलाने के लिए जरूरी आटा, दाल, चावल, तेल, घी, शक्कर आदि के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो गई है। खासकर एक महीने में लॉकडाउन और कर्फ्यू की घोषणा के बाद से जमाखोरों की पौ बारह हो गई है। संकट के समय लोगों की मदद करने के बजाय वे लोगों को लूटने का काम कर रहे हैं। जीवन बचाने के लिए जरूरी दवाइयों के दाम आसमान पर है। उनको स्टॉक करके मनमाने दामों में बेचा जा रहा है। लोगों की जिंदगी से खुलेआम सौदेबाजी की जा रही है। कोई इस पाप को रोकने के लिए आगे नहीं आ रहा। रोम जल रहा है और नीरो बंसी बजा रहा है। अव्यवस्थाओं का बोलबाला है और जनता लुट रही है। हर चीज़ की क़ीमत दोगुनी हो गई है। अगर आप फल, सब्जियां या किराने का सामान ख़रीदते हैं तो 1500 से दो हजार रुपए का बिल बन जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक के कुछ महीने पहले कराए गए उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण में भी महंगाई से मार की पीड़ा निकलकर सामने आई। सर्वेक्षण में स्पष्ट रूप से सामने आया कि उपभोक्ताओं का विश्वास अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है।

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कोरोना काल से पहले और कोरोना काल के दौरान खाद्य पदार्थों की जितनी कीमत नहीं बढ़ी थी, उतनी कोरोना संक्रमण काल के बाद बढ़ते दिख रही है। इसकी वजह से महंगाई चरम पर है। खाद्य तेल और दाल की कीमतों में हुए भारी इजाफे से आम लोगों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है और सरकार से वह महंगाई पर लगाम लगाने की गुहार लगा रहे हैं। पेट्रोल और डीजल के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं। नए साल में पेट्रोल और डीजल की कीमतों ने रिकॉर्ड ऊंचाई हासिल की है। इससे महंगाई भी बढ़ी हैं। डीजल के दाम बढ़ने से न सिर्फ किसानों की सिंचाई लागत बढ़ जाती है, बल्कि माल भाड़ा महंगा हो जाता है। माल भाड़ा महंगा होने से हर तरह की वस्तुओं के दाम बढ़ने की आशंका रहती है। आम लोगों का मानना है कि महंगाई बढ़ी है, लेकिन इनकम नहीं बढ़ पाई है। खाद्य पदार्थों के मूल्य में बेतहाशा वृद्धि से आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है, जिससे उबरना सब चाहते हैं, लेकिन उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही है। रोज कमाने खाने वाले लोगों पर तो आफत टूट पड़ी है। आज सब्जियों के अलावा किराना सामान और आवश्यक खाद्य पदार्थों के दाम में भी बढ़ोतरी हुई है। दुकानदार भी बढ़ती महंगाई से परेशान हैं। आम आदमी के जीवन पर इन सबका असर दिखना शुरू हो गया है। ईंधन के दाम बढ़ते ही परिवहन सहित हर चीज के दाम बढ़ जाते हैं। करोड़ों लोग इस वक्त बिना रोजगार के हैं। ऐसे में महंगाई का बोझ लोग कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे? इसी सवाल का जवाब जनता जानना चाहती है।

(लेखकःराजेश कसेरा राजस्थान के जाने-माने पत्रकार हैं। राजेश कसेरा, राजस्थान पत्रिका सहित कई प्रमुख हिंदी समाचार संस्थानों में पत्रकार से लेकर संपादक के तौर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं।)

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