मानव जाति को पड़ा महंगा पर्यावरण के साथ खिलवाड़

कोरोना में भौतिक व प्राकर्तिक संसाधनों के कम उपयोग से पर्यावरण हुआ शुद्ध

‘मनुष्य का जीवन पर्यावरण से उसी तरह जुड़ा हुआ  है जिस तरह मछली का जीवन  पानी से’|

‘पर्यावरण’ जो हमारे आस-पास का वातावरण है उसका वास्तविक व वृहद् रूप में अर्थ और महत्व समझना आज हमारे लिए पुन: जानना जरूरी हो गया है | पर्यावरण का संबंध पृथ्वी पर रहने वाले हर मनुष्य जाति और जीव-जंतु के साथ जुड़ा हुआ है | कई वर्षों पहले  तक मानव जाति की संख्या सीमित थी | वहीं मानव संसाधन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे | मनुष्य पहले अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधनों से ज्यादा अपने हाथ – पैरों और शरीर का उपयोग करते थे | इसलिए पर्यावरण सुरक्षित था लेकिन जैसे -जैसे  मानव जाति की संख्या बढ़ने लगी और मनुष्य का विकास होने लगा वैसे – वैसे संसाधन भी बढ़ने लगे | मनुष्य ने आज अपने आरामदायक जीवन को जीने के लिए संसाधन इतने ज्यादा विकसित कर लिए की पर्यावरण, पेड़-पोधे , जीव-जंतु सभी जानवर और खुद मनुष्य जाति आज बुरी तरह खतरे में है | जैसे ही संसाधन बढ़े वैसे ही पर्यावरण धीरे-धीरे संकट की और जाने लगा |

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मानव जाति पूरी तरह पर्यावरण पर निर्भर……………
पानी, पेड़, आग, हवा एवं भोजन मानव जाति के  दैनिक जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिया आधारभूत संसाधन है अर्थात मनुष्य इन सब के बिना न के बराबर है वह अपना जीवन यापन कर ही नहीं सकता | यदि इन्हीं सब पर खतरा मंडराने लगे तो मानव जाति एक दिन खत्म होने की कगार पर होगी | जिस हवा में हम श्वास के रहे है, जिस प्रकार हम पेड़ पोधो और लकड़ी से हम घर बनाकर रह रहे है, सर्दी से हमारे शरीर को बचा रहे है, भोजन और पानी से हमारे शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे है और अगर यह सब खत्म होने लगे तो पर्यावरण के साथ मनुष्य भी नष्ट जाएगा अर्थात सीधा मतलब यह कि मनुष्य इन सब के बिना कुछ नहीं | हम मानव जाति ने पर्यावरण के साथ कितना खिलवाड़  किया है ये तो हम देख ही रहे है आज असली जंगल के स्थान पर कंक्रीट के जंगलों का बोल-बाला हो गया | पहले जगह – जगह पेड़ – पॊधे  और जंगल  हुआ करते थे | लेकिन हमने हमारी जरूरतों के लिए घर बनाने के लिए पेड़ काटना शुरू  किया , जंगलों  और भूमियों पर  मैदान बना दिए और वहां बड़े बड़े मकान, बिल्डिंग खड़े कर दिए | मनुष्यो ने नदियों , तालाबों को गन्दा कर दिया | आज बड़े-बड़े समुद्र, तालाब, नदियां  कचरों के ढेर से अटे पड़े है | पहले मनुष्य अपनी प्यास बुझाने के लिए, घर में खाना पकाने के लिए सीधे नदी, तालाबों के पानी को काम  लिया करते थे परन्तु आज वर्तमान में स्थित यह है कि मनुष्य नहाने में भी तालाबों का पानी काम नहीं ले पा रहा है | उस पानी को साफ करने के लिए भी लाखों की बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग किया जाता है | हम मानव जाति ने अपनी लापरवाही के कारण पर्यावरण को इतना दूषित कर दिया है कि हम एक आपदा से नहीं निपट पा रहे की दूसरी आपदा हमारे समक्ष मुहँ खोले बाहें पसारे खड़ी रहती है |

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मानव जाति ने अपने जीवन को आरामदायक बनाने के लिए बड़ी – बड़ी फैक्ट्रियों , उद्योगों और कई संसाधनों को विकसित किया | खुद के जीवन को खुशहाल बनाने के लिए भूमि, जल, ऊर्जा, प्राकृतिक गेसो, खनिजों आदि संसाधनों का भरपूर आनन्द उठाया आज यही कारण है कि लाखों मानव अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठे | वर्तमान में यदि हम गंगा या प्रयागराज में बहती नदियों का उदाहरण ले तो हम देखेंगे की कैसे मनुष्य ने अपने कृत्यों से प्रकृति को नष्ट किया है | खबरों के मुताबिक गंगा नदी जिसको हम माँ कहते है इतनी पवित्र नदी जिसमें आज हजारों शव बह रहे है | कोरॉना के कारण लगातार हो रही लोगों कि मौतों के बाद जब शवों को जलाने की भी जगह नहीं मिल रही, कई लोगों ने कॉविड के डर से अपने ही लोगों के शवों को ऐसे ही नदियों नालो में बहा दिया है जिससे नदियों का पानी तो दूषित हो ही रहा है साथ ही वहाँ के तटीय क्षेत्र का वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है | खुद गंगा माँ भी इस महामारी के आगे इतनी लाचार है की  जिसने आज एक साथ अपने ही हजारों बच्चों के मृत शरीर को अपनी गोद में लिया हुआ है |  ऐसे में भूपेन हजारिका का गीत ओ गंगा बहती हो क्यूँ? याद आता है | जिसमें बताया गया है की किस तरह नदी के दोनों ओर रहने वाली जनता इस प्राकर्तिक संसाधन के साथ छेड़-छाड़ करने के कारण त्रस्त है | दूसरा उदाहरण देखें तो हाल ही में चर्चा में आ रहा ‘ ताऊ ते’’ नाम का तूफान जो भी मनुष्य के अनियोजित भौतिक विकास का परिणाम हो सकता है | हम मानव जाति इन भयानक कहर के कारण इतना लाचार हो गए है कि चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रहे है | एक के बाद एक संकट मानव जाति को तबाह करता जा रहा है | यह दूसरा खतरा ‘ ताऊ ते ‘ नाम का बवंडर ( तूफान )  कॉरोना का खतरा टला नहीं की इसने दस्तक दे दी है एक तरफ तो कोरोना के संकट ने लोगों को डराया हुआ है, तो दूसरी तरफ इस तूफान से होने वाले नुकसान ने | मौसम विभाग के अनुसार यह तूफान इतना भयानक है कि इसने दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम भारत में मानव जीवन को भारी जन-धन की हानि होने की संभावना है | आज इन सब परेशानियों के कारण हम सचेत तो हुए है लेकिन क्या जब महामारी खत्म हो जाएगी और हमारा जीवन पहले कि तरह सामान्य होने लगेगा तो क्या हम आगे भी इसी तरह रहेंगे जैसे पहले रहा करते थे या पर्यावरण को अभी के जैसे सुरक्षित रखने का प्रयास करेंगे?

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हालांकि इस लॉकडाउन के कारण पर्यावरण पर पड़े अच्छे प्रभाव भी पड़े है – लोगों द्वारा भौतिक व प्राकर्तिक संसाधनों के कम उपयोग से हमारे चारों और का वातावरण शुद्ध हुआ है | वर्तमान में कई हद तक हवा, पानी में आया बदलाव नग्न आखों से देखा जा सकता है | बरसों से प्रदूषित गंगा यमुना का स्वच्छ जल इसका प्रमाण है | सड़क पर वाहनों की कमी के कारण हवा में शुद्धता फैली है| पेड़-पौधों की कटाई ना होने से हरियाली बढ़ी | ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हुआ | यहाँ तक की जिस ओजोन परत के क्षरण को लेकर पूरी दुनिया में चिंताजनक स्थिति बनी हुई थी उसने खुद अपने आप का अनुरक्षण इस वैश्विक लॉकडाउन में कर लिया है | कारखानों, उद्योगों, फैक्ट्रियों के बन्द हो जाने से हवा दूषित होने से बची रही | और इन सबसे ज्यादा फायदा जीव जंतुओं को हुआ | पृथ्वी रूपी घर पर मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों को भी स्वच्छ वातावरण में आजादी के साथ घूमने का स्थान मिला | हम मनुष्यों ने अपने आंनद और भोजन  के लिए जीव – जंतुओं को शिकार बनाया उसके बाद से जीव – जंतुओं की संख्या घटने लगी लेकिन लॉकडॉउन के कारण जंतुओं की संख्या में इजाफा हुआ और जीव – जंतु स्वतंत्र घूमने लगे | देखा जाए तो हम मनुष्य अपनी खुशियों के लिए इतने स्वार्थी हो गए कि हमने पर्यावरण तो क्या जीव – जंतुओं तक को नहीं छोड़ा |

हमारा भविष्य और पर्यावरण की सुरक्षा ……..
हम पर्यावरण के बगैर कितने बेसहारा है ये तो हम समझ ही गए है और इन दोनों उदाहरणों और अच्छे से हमें समझा दिया है | हर वर्ष पर्यावरण कि सुरक्षा के लिए हम संकल्प लेते है| पर्यावरण की सुरक्षा हेतु हर वर्ष 5 जून को ‘ विश्व पर्यावरण  दिवस ‘ के रूप में मनाते है जिसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक स्तर को सुधारने व जागरूकता लाने के लिए की थी| इस दिन तो हम बहुत जोरो-शोरो से पर्यावरण की सुरक्षा हेतु बड़े बड़े संकल्प लेते है, इसकी रक्षा की बातें करते है | पेड़ – पोधे लगाने की बातें करते है | लेकिन हर दूसरे दिन वहीं स्थिति नजर आती है ढ़ाक के तीन पात | अगर हम इस दिन की तरह हर दिन संकल्प ले और लोगों को इसके लिए जागरूक करें, पेड़-पौधे लगाए तो हमें आगे इन सब परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा जो हम आज झेल रहें है | यदि यही चलता रहा तो एक दिन पूरी धरती काल के मुंह में समा जाएगी | मेरी दुनिया, मेरी धरती बर्बाद है |  मानव प्रजाति द्वारा खराब किया गया ग्रह |  हम गुणा-भाग करते रहे और लड़ते-लड़ते खाते रहे जब तक कि कुछ न बचा, और तब हम मर गए |  “हमने न तो भूख को नियंत्रित किया और न ही हिंसा को हमने अनुकूलित किया |  हमने खुद को तबाह कर लिया |  लेकिन हमने पहले अपनी दुनिया को तबाह किया |”

लेखक: कीर्ति शर्मा
शिक्षक प्रशिक्षनार्थी

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