जन-तंत्र का खून चूस रहे भ्रष्टाचार के पिस्सू !

बड़ा सवाल : राजस्थान को रिश्वतखोरों से कब मिलेगी मुक्ति ?

शौर्य और वीरों की भूमि राजस्थान को रिश्वतखोरों के चंगुल से कब पूरी तरह से मुक्ति मिलेगी ? इस यक्ष प्रश्न को बुझने वाला आजादी के बाद से नहीं मिल पाया है। कई सरकारें आईं-कई गईं, लेकिन भ्रष्टाचार के ‘राक्षस’ से कोई भी जीत नहीं दिला पाया। उलटे सबने भ्रष्टाचार को सिंचित व पोषित करने का काम किया। सिक्कों और नोटों की खनक के बोझ तले तंत्र की ढिलाई और नाकामी दबती चली गई। इसका खमियाजा आम जनता को उठाना पड़ा। आजादी के बाद से भ्रष्टाचार का दानव सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ा है और उसका पेट भरने का नाम नहीं ले रहा है। रिश्वतखोरी के पोषक रक्तबीज की मानिद इस तरह फैले हैं कि जहां लालच की बूंद गिरी, ये पनप कर और कई गुना ताकतवर हो जाते हैं।

हाल में रेवेन्यू बोर्ड में पकड़े गए रिश्वतखोरों के पास से मिली अकूत संपत्ति और लाखों की नकदी ने फिर साबित कर दिया कि भ्रष्टाचारियों में किसी तरह का कोई खौफ नहीं है। इसकी गवाही खुद सरकार के आंकड़े बताते हैं। बीते तीन महीने में राजस्व विभाग में ही रिश्वतखोरी के 15 प्रकरण सामने आए। इससे साफ है कि राजस्व विभाग में किस तरह से भ्रष्टाचार की बेल फल-फूल रही है। इसके दीगर पुलिस की बात करें तो वह राजस्थान का सबसे भ्रष्टतम विभाग है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के आंकड़ों की बात करें तो बीते तीन महीनों में प्रदेश में रिश्वतखोरों के खिलाफ हुई धरपकड़ की कार्रवाई में 22 घूसखोर पुलिस विभाग से पकड़े गए हैं। भ्रष्ट कार्मिकों की सूची में दूसरे स्थान पर पंचायतीराज विभाग के रहे हैं, जहां ट्रैप की 17 कार्रवाई हुई है। राजस्थान में एसीबी ने इस वर्ष जनवरी से मार्च तक 109 घूसखोर ट्रैप किए, जो महाराष्ट्र के बाद सर्वाधिक हैं। एनसीआरबी के अनुसार महाराष्ट्र एसीबी सर्वाधिक घूसखोर अफसरों को पकड़ती है। इस दौरान उन्होंने 210 कार्मिकों को घूस लेते पकड़ा। इसी एसीबी ने 2019 में 74 रिश्वतखोरों को पकड़ा था।

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ऐसा कतई नहीं है कि भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए राज्य सरकार ने कमतर प्रयास किए हों। एसीबी ने 1064 नंबर की हेल्पलाइन डेस्क बना रखी है, लेकिन शिकायतें उम्मीद के अनुरूप नहीं आतीं। लोग डरते हैं कि कहीं उनका नाम या पहचान सामने आ गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। शिकायत पर एक्शन हो चाहे न हो, पर वे संबंधित विभाग या कार्मिक के रडार पर आ जाएंगे। यह डर एसीबी के पास आने वाली शिकायतों में भी साफ तौर पर दिखाई देता है। एसीबी के टोल फ्री नंबर पर इस साल 900 शिकायतें दर्ज हुईं, पर ट्रैप की कार्रवाई सिर्फ 10 में हो पाई। इसी तरह से वाट्सएप नंबर पर मिली 6 हजार 124 सूचनाओं में से 28 पर एक्शन हो पाया। ये संख्या साफतौर पर बताती है कि सैकड़ों-हजारों लोग प्रतिदिन घूसखोरों से रूबरू होते हैं और चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते। फिर भी कुछ लोगों ने मौजूदा तंत्र के ऊपर विश्वास जताया और भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए। इसका असर यह आया कि आईएएस, आईपीएस, आरपीएस, आरएएस समेत कई ऊंचे रैंक के अधिकारी व कर्मचारी घूस लेते पकड़े गए।

इन अधिकारियों में न तो कानून का डर है, न इज्जत जाने का खौफ। पैसों के आगे इन्हें कुछ दिखाई नहीं देता। हाल ही 10 अप्रैल को रेवेन्यू बोर्ड के दो सदस्य घूस लेकर पैसा देने वालों के पक्ष में फैसला दे रहे थे। इनमें से एक आरएएस के घर से 40 लाख रुपए नकद मिले। 18 मार्च को बिल भुगतान की एवज में सवाईमाधोपुर में 3 लाख की घूस लेते डीएफओ फुरकान अली ट्रैप हुआ था। 14 मार्चको दुष्कर्म केस में कार्रवाई के बदले अस्मत मांगने के आरोप में एसीपी कैलाश बोहरा गिरफ्तार हुआ था। 2 फरवरी को दौसा में आईपीएस मनीष अग्रवाल पकड़ा गया था। जनवरी में 10 और 5 लाख रुपए की घूस लेते एसडीएम पिंकी मीणा और पुष्कर मित्तल ट्रैप हुए थे। वहीं, पेट्रोल पंप की एनओसी देने को लेकर पांच लाख की घूस लेते बारां के जिला कलेक्टर व आइएएस अधिकारी इंद्रसिंह राव को पकड़ा गया था। ये तो कुछ बड़े मामले हैं जो चर्चाओं में आ गए। इससे अलग न जाने कितने और बड़े रिश्वतखोर ऐसे हैं जो बिना किसी भय के वसूली में लगे हैं। इनको न गरीब के आसुंओं से सरोकार है, न ही मजलूमों की आह से खौफ। बस, खुद की जेबों को भरना इनकी पहली और अंतिम सोच है।

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भ्रष्टाचार पर लगाम के लिए सिर्फ मजबूत इच्छाशक्ति काफी नहीं है। इस कुप्रथा को जड़ से नेस्तनाबूद करना होगा। तभी “जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए” का नारा बुलंद हो पाएगा।

जीरो टॉलरेन्स की नीति अमल में लानी होगी
भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेन्स की नीति तभी कारगर साबित होगी, जब पूरी ताकत के साथ इसके खिलाफ मुहिम छेड़ी जाएगी। वरना बिना नख-दंत के तो तंत्र पंगु ही बना रहेगा। हमारे राज्य में लोकायुक्त सचिवालय इसकी बड़ी बानगी है। बीते दो वर्ष से खाली पड़े लोकायुक्त के पद को बीते माह भरा गया।  सरकार ने पीके लोहरा को लोकायुक्त तो नियुक्त कर दिया लेकिन लोकायुक्त कार्यालय में पर्याप्त स्टाफ नहीं है। लोकायुक्त के पास प्रदेशभर के भ्रष्टाचार के करीब 8000 से ज्यादा मामले लंबित पड़े हैं। जबकि, लोकायुक्त कार्यालय में अधिकारियों और कर्मचारियों का टोटा है। लोकायुक्त सचिवालय में राज्य के अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ आई शिकायतें फाइल बना कर अलमारियों में रखी हैं। लोकायुक्त सचिवालय में दूसरे विभागों से लगाए कर्मचारियों का डेपुटेशन भी खत्म कर मूल विभाग में भिजवा दिया गया है। लोकायुक्त सचिवालय के हाल इतने बदहाल हैं कि यहां उप लोकायुक्त का पद खाली है। सचिव, अनुभाग अधिकारी, 3 सहायक अनुभाग अधिकारी, यूडीसी, 7 स्टेनोग्राफर, कनिष्ठ लेखाकार और जनसंपर्क अधिकारी के पद रिक्त पड़े हैं। पिछले दिनों प्रमुख एक सचिव, चार-चार निजी सचिव व संयुक्त सचिव, दो उप सचिव, तीन सहायक सचिव और 15 पुलिस प्रकोष्ठ के पद समाप्त कर दिए गए। इन दुर्गम हालात में लोकायुक्त कैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ पाएंगे। सख्त संदेश दे पाएंगे।

(लेखकःराजेश कसेरा राजस्थान के जाने-माने पत्रकार हैं। राजेश कसेरा, राजस्थान पत्रिका सहित कई प्रमुख हिंदी समाचार संस्थानों में पत्रकार से लेकर संपादक के तौर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं।)

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