VMOU: कुलपति जी! भ्रष्टाचार के आरोपों का मीडिया को जवाब नहीं, आपको “हिसाब” देना है

अल्पसंख्यकों के रोजगारपरक प्रशिक्षण को मौलाना आजाद फाउंडेशन से मिला 228.91 लाख का फंड हुआ "लापता"

  • वित्त नियंत्रक ने जताई गबन की आशंका, जांच की मांग की फिर भी वीएमओयू प्रशासन छिपा रहा है जानकारियां 
  • कुलपति ने जानकारी देने से किया इनकार, मीडिया को नोटिस भेजकर विश्वविद्यालय का पक्ष न छापने का बोला झूठ 

TISMedia@Kota वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय प्रशासन (Vardhman Mahaveer Open University) 228.91 लाख रुपए के दुर्विनियोजन (गबन) और निर्माण कार्यों में अनियमित्ताओं सहित भ्रष्टाचार के कई आरोपों का खुलासा होने से बौखला गया है। राज्यपाल कलराज मिश्र के अनियमित्ताओं की जांच के आदेश देने और भ्रष्टाचार से जुड़ी खबरों का खुलासा करने पर वीएमओयू प्रशासन ने अपना पक्ष रखने के बजाय खबरें प्रकाशित करने के लिए  TIS Media को विधिक कार्यवाही करने की धमकी देते हुए नोटिस जारी किया है। जिसके बाद विश्वविद्यालय में वित्तीय अनियमित्ताओं के आरोप और भी गहरा गए हैं। 

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228 लाख के गबन का आरोप 
साल 2021 के जुलाई महीने में वीएमओयू के वित्त नियंत्रक राकेश भारतीय को विश्वविद्यालय के सनदी लेखाकार (सीए) ने ईमेल और 26 एएस (वार्षिक समेकित टैक्स स्टेटमेंट) के जरिए जानकारी दी कि Vardhman Mahaveer Open University kota के स्थाई खाता संख्या AAAJV0817C से दिनांक 04 फरवरी 2021 को धारा 194 (टीडीएस कटौती) के अंतर्गत केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के मौलाना आजाद शिक्षा प्रतिष्ठान (maulana azad education foundation) से 02 करोड़, 28 लाख, 91 हजार 05 सौ रुपए की राशि मिली थी। जिस पर आयकर विभाग ने 04 लाख, 57 हजार, 08 सौ 30 रुपए की आयकर कटौती की है। यह जानकारी मिलते ही वित्त नियंत्रक राकेश भारतीय सन्न रह गए। क्योंकि, वीएमओयू के किसी भी खाते में न तो यह रकम जमा थी और न ही इस फंड की कोई जानकारी वित्त विभाग या विश्वविद्यालय के किसी रिकॉर्ड में दर्ज थी। पूरी यूनिवर्सिटी से पूछताछ करने के बाद भी जब करोड़ों की इस रकम का कोई पता ठिकाना न मिला तो 20 जुलाई 2021 को उन्होंने कुलसचिव, वित्त सचिव, क्षेत्रीय अध्ययन केंद्रों के निदेशकों, लाइब्रेरी, ईएमपीसी और परीक्षा नियंत्रक से लेकर कुलपति कार्यालय को पत्र लिखकर इस फंड के बारे में जानकारी मांगी। बैंक खातों की वास्तविक स्थिति एवं उससे जुड़े विधिक दस्तावेज न मिलने पर जब वित्त नियंत्रक को करोड़ों रुपए के दुर्विनियोजन (गबन) की आशंका हुई तो उन्होंने 30 अगस्त 2021 को प्रमुख शासन सचिव वित्त अखिल अरोड़ा को उच्च स्तरीय जांच कराने के लिए पत्र लिखा।

बिना टेंडर दे दिया ठेका
इसके साथ ही बिना टेंडर के एक फर्म को असाइनमेंट स्कैन करने का लाखों रुपए का ठेका दे दिया। इस आशय की एक चिठी वित्त नियंत्रक ने सरकार को भी लिखी है। जिसमें बताया गया है कि विवि ने असाइनेंट स्कैन करने का काम पहले करवा लिया और फर्म को भुगतान करने की इजाजत वित्त समिति से बाद में मांगी। प्रस्ताव रद्द होने पर दोबारा वित्त समिति की बैठक बुलाई गई। जिसमें सदस्यों पर दवाब बनाकर प्रस्ताव पारित करवाया गया। बैठक ऑनलाइन हो रही थी, लेकिन इसकी रिकॉर्डिंग से कहीं पोल न खुल जाए इसीलिए इस बैठक की रिकॉर्डिंग न करने के बकायदा आदेश जारी किए गए थे। टेंडर और स्टेच्युटरी बॉडी के अप्रूवल के बिना चहेती फर्म को असाइनमेंट ऑनलाइन करने का ठेका देने के अलावा राज्यपाल से गवर्नर आफिस को सूचित किये बिना एवं बिना किसी को चार्ज दिए कुलपति गोदारा का महीनों विश्वविद्यालय की गाड़ी लेकर घूमते रहने एवं बोम में यूनिवर्सिटी एक्ट का उलंघन कर प्रोफेसर का पद खाली रखने जैसी शिकायतें भी की गई हैं।

राज्यपाल ने दिए जांच के आदेश 
राजभवन को वीएमओयू में प्रशासनिक एवं वित्तीय अनियमितताओं की शिकायत मिल रही थी। जिन्हें गंभीरता से लेते हुए राज्यपाल कलराज मिश्र ने 3 सदस्यीय जांच समिति गठित कर दी। राज्यपाल के सचिव सुबीर कुमार की ओर से 29 अक्टूबर को जारी आदेश के मुताबिक राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ एके गहलोत को इस उच्च स्तरीय जांच समिति का समन्वयक बनाया है। उनके साथ भारतीय धरोहर के निदेशक प्रो कृपा शंकर तिवारी और एमएनआईटी जयपुर के प्रो एमएम शर्मा को इस समिति का सदस्य बनाया गया है। राज्यपाल ने इस समिति को एक महीने में जांच पूरी कर रिपोर्ट राजभवन को सौंपने के निर्देश दिए हैं।

#TISMedia ने किया था खुलासा 
वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय में व्याप्त अनियमित्ताओं और भ्रष्टाचार के मामलों का #TISMedia ने 30 अक्टूबर 2021 को  “VMOU: कुलपति पर घोटाले की आंच, राज्यपाल ने बिठाई उच्च स्तरीय जांच” खबर प्रकाशित कर के सबसे पहले खुलासा किया था। इसके बाद 02 नवंबर 2021 को “VMOU: खजाने में लगी 228.91 लाख की सेंध, न खजाना मिल रहा है न खजांची” और 07 नवंबर 2021 को “VMOU: सीखो और कमाओ नहीं “लूटो और खाओ” सरकार सो रही है…” खबर प्रकाशित की थी। जिसके बाद कोटा से लेकर जयपुर तक जमकर हड़कंप मचा। 

कुलपति ने किया पक्ष रखने से इनकार, नोटिस भेजकर बोले पूछा क्यों नहीं?  
वीएमओयू में व्याप्त भ्रष्टाचार का खुलासा करने से पहले #TISMedia ने कुलपति प्रो. आरएल गोदारा से विश्वविद्यालय का पक्ष जानना चाहा। #TISMedia के संपादक विनीत सिंह ने प्रो. गोदारा को व्हाट्सएप मैसेज भेज कर मामले की जानकारी मांगी तो उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया। फोन करने पर पहले तो फोन नहीं उठाया और बाद में खुद कॉल करके बोला कि “अभी खबर प्रकाशित मत करो बैठ कर बात करते हैं।” जब उनसे फोन पर ही जानकारी देने के लिए कहा गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से साफ इन्कार कर दिया। वहीं दूसरी ओर खबरें प्रकाशित होने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने #TISMedia को 12 नवंबर 2021 के दिन एक नोटिस जारी किया। जिसमें वीएमओयू में व्याप्त भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमित्ताओं की खबरों को निराधार एवं भ्रामक बताने के साथ ही खबरें प्रकाशित करने से पहले उच्च अधिकारियों से विश्वविद्यालय का पक्ष न लेने का झूठ बोला गया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि कुलपति से भी कोई उच्च अधिकारी क्या विश्वविद्यालय में कार्यरत है? और यदि है तो उसकी जानकारी विश्वविद्यालय ने सार्वजनिक क्यों नहीं की, ताकि उनसे इस बाबत पूछा जा सकता। 

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मेल पर मांगे दस्तावेज 
#TISMedia को भेजे गए इस नोटिस में वीएमओयू प्रशासन ने लिखा है कि ई-मेल द्वारा विश्वविद्यालय को तथ्यों से अवगत कराया जाए कि मलिन छवि वाली खबरों का प्रकाशन किन आधारों पर किया गया है” ऐसे में सवाल उठता है कि यदि विश्वविद्यालय की छवि वाकई में धूमिल हुई है तो उच्च अधिकारी इस प्रकरण से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक क्यों नहीं करते? इतना ही नहीं विश्वविद्यालय के अधिकारी वित्त नियंत्रक की ओर से स्किल डवलपमेंट सेंटर के निदेशक प्रो. बी अरुण से लेकर कुलपति प्रो. आरएल गोदारा तक को लिखे गए पत्रों को क्यों दबाना चाहता है। यदि वित्त नियंत्रक ने झूठे आरोप लगाए हैं तो उनके खिलाफ कार्यवाही करना तो दूर उनके पत्रों का जवाब क्यों नहीं दिया गया? मौलाना आजाद फाउंडेशन का फंड और खर्च विश्वविद्यालय के ही वित्त विभाग से क्यों छिपाया गया? #TISMedia को भेजे गए नोटिस के आखिर में लिखा गया है कि “आपका प्रत्युत्तर प्राप्त न होने अथवा संतुष्ट न होने के बाद ही विश्वविद्यालय अग्रिम विधि सम्मत कार्यवाही पर विचार करेगा।” लेकिन, विश्वविद्यालय की संतुष्टि का आधार क्या होगा यह जानकारी नहीं दी गई libido-portugal.com? रही बात विधिक कार्यवाही की तो विश्वविद्यालय प्रशासन यह भूल गया कि #TISMedia बिना दस्तावेजों और सबूतों के कोई भी समाचार प्रकाशित नहीं करता। 

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वीएमओयू की ओर से TISMedia को जारी किया गया नोटिस।

सार्वजनिक करें दस्तावेज, दें जवाब  
वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय ने खबरों के प्रकाशन पर मेल के जरिए गोपनीय जवाब मांगा है और कानूनी कार्यवाही करने की धमकी दी है। #TISMedia विश्वविद्यालय प्रशासन से आग्रह करता है कि यदि उन पर लगे सारे आरोप झूठे हैं तो कुलपति प्रो. आरएल गोदारा और स्किल डवलपमेंट सेंटर के निदेशक एवं परीक्षा नियंत्रक प्रो. बी अरुण वित्त नियंत्रक राकेश भारतीय की ओर से लगाए गए आरोपों का न सिर्फ सार्वजनिक तौर पर जवाब दें, बल्कि मौलाना आजाद फाउंडेशन से अल्पसंख्यक युवाओं के रोजगार परक प्रशिक्षण के लिए मिले फंड का हिसाब सार्वजनिक करें। साथ ही इन सवालों के भी जवाब भी देने की कृपा करेंः- 

  • वीएमओयू को कोई फंड मिला तो उसकी जानकारी वित्त विभाग को क्यों नहीं दी गई?
  • फंड मिलने और उसे खर्च करने के महीनों बाद भी उसका हिसाब और संबंधित दस्तावेज विवि के रिकॉर्ड में क्यों नहीं है?
  • विश्वविद्यालय के खातों में फंड जमा करने के बजाय कहीं और खाते खुलवाकर पैसा जमा करने और केंद्र सरकार से प्राप्त अनुदान को खर्च करने की स्वीकृति किसने दी?
  • फंड खर्चा कौन कर रहा है, किसके आदेश से कर रहा है और पूरा काम कौन देख रहा है?
  • वित्त नियंत्रक के दस्तावेज मांगने पर जानकारी क्यों नहीं दी गई? 
  • वित्त नियंत्रक राकेश भारतीय के आरोप गलत थे तो उनके खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गई? 
  • बोम या एकेडमिक काउंसिल ने वीएमओयू की परीक्षाएं एवं असाइनमेंट ऑनलाइन कराने का प्रस्ताव पास किया है? यदि किया है तो प्रस्ताव और स्पष्ट निर्णय की प्रति सार्वजनिक की जाए? 
  • असाइनमेंट ऑनलाइन चेक कराने का काम विश्वविद्यालय ने ठेकेदार को कब दिया उसने कब काम शुरू किया और उसे भुगतान करने के लिए वित्त समिति में कब प्रस्ताव पास किया गया? 
  • 07 अगस्त 2021 को आयोजित वित्त समिति की बैठक की रिकॉर्डिंग न करने के आदेश किसने और क्यों दिए? 
  • 61वीं और 62वीं वित्त समितियों के मीटिंग मिनिट्स विश्वविद्यालय के पोर्टल पर सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए? 

 

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