असहाय चीत्कार के बीच कोड़ा फटकारते धूर्त हुक्मरानों का अट्टाहास…

बरेली का कोविड अस्पताल… 300 बिस्तरों के इस अस्पताल का उदघाटन कोरोना ने ही किया…  पूरा अस्पताल सिर्फ एक फिजिशियन के हवाले हैं…!  एक दो लोगों का नर्सिंग स्टाफ था वह नदारद है… स्टाफ के नाम पर यहां चंद सफाई कर्मी ही बचे हैं…। सफाईकर्मी ही कैथ लगा देते हैं… भर्ती मरीजों को पानी और दवा दे देते हैं…! कई मर्तबा तो यह भी नसीब नहीं होता…! अस्पताल में  कुछ कमजोर और बुजुर्ग मरीज भी भर्ती हैं… आलम यह है कि उनसे बिस्तर पर हिला तक नहीं जाता…शौच और पेशाब बिस्तर पर ही निकल जा रहा है…। सोचकर देखिए, वह जिंदा नर्क भोग रहे हैं। मरीजों से फुल यह अस्पताल महज एक चिकित्सक के सहारे चल रहा है, लेकिन मरीजों की मौत का सिलसिला इतना तेज है कि डॉक्टर साहब के सामने इलाज से बड़ा काम मृतका का डेथ सर्टिफिकेट बनाना हो गया है।  – आशीष आनंद

26 अप्रैल रात पौने ग्यारह बजे दिल्ली से पत्रकार साथी का वाट्सएप मैसेज आया- मरीज का नाम गजेंद्र कुमार, उम्र 62 साल, बरेली, ऑक्सीजन लेवल गिरता जा रहा है…. सांसों के लिए पिछले पांच घंटे से हॉस्पिटल हॉस्पिटल घूम रहे हैं, लेकिन बेड नहीं मिला। जीवन बचाने के लिए तत्काल मरीज को भर्ती करना जरूरी है। वेंटीलेटर बेड चाहिए। अगर फोन से कोई मदद हो पाए तो कर दीजिएगा। ऑक्सीजन सेचुरेशन 60 है।

मैंने स्थानीय एक पत्रकार साथी, जो हेल्थ बीट के रिपोर्टर हैं, उनसे मदद मांगी। उन्होंने टटोलकर बताया कि सबसे अच्छी स्थिति जिस अस्पताल में है, वहां भी पांच वेटिंग है। दिल्ली के साथी को हालात के बारे में बता दिया गया। कोई सूरत बने राहत की, इस उम्मीद पर काफी देर तक फोन खटखटाते रहे, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।

सुबह साढ़े ग्यारह बजे संदीप का मैसेज आया- वो व्यक्ति गुजर गए। फिर भी आपने जो कोशिश की उसके लिए शुक्रिया। इस मैसेज को पढ़ते ही जैसे कलेजे पर हथौड़ा सा पड़ गया। कितने असहाय हो गए हैं सब।

कल ही की बात है, ऐसा ही एक केस था। ऑक्सीजन के लिए एक परिवार भागदौड़ करते परसाखेड़ा इंडस्ट्रियल एरिया पहुंचा, जहां लंबी कतार थी। आखिर एक अस्पताल में दूसरे मरीज ने उनको कुछ देर के लिए अपना सिलिंडर देकर राहत दी…लेकिन…लखनऊ के बड़े सरकारी अस्पताल के डॉक्टर मित्र ने बताया कि तीन दिन तक हमारे यहां के लैब टैक्नीशियन की पत्नी ऑक्सीजन के लिए तड़पकर मर गई, न बेड मिला न ऑक्सीजन। यहां वीआईपी लोगों से ही फुर्सत नहीं है, नेता और नौकरशाह हर बेड के हकदार हैं।

उत्तरप्रदेश के सभी वाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पेज-ग्रुप पर किसी न किसी की ऑक्सीजन की गुहार देखी जा सकती है। इसके बावजूद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सीधा हुक्म आया है कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, इस तरह की अफवाह फैलाने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी। उन डॉक्टरों की संपत्ति सीज कर दी जाएगी, डिग्री कैंसिल कर दी जाएगी, जो स्वास्थ्य व्यवस्था की कोई कमी उजागर करेंगे। ट्विटर पर दादा जी के लिए ऑक्सीजन की गुहार लगाने वाले एक पर कार्रवाई हो भी गई।

हुक्मरानों के हाथ में कोड़ा है, वे फटकार रहे हैं। पुलिस, नौकरशाहों के जरिए सिर्फ सख्ती को ही सरकार की जिम्मेदारी समझ रहे हैं। उनका बस चले तो बिना सांस के ही नहीं मुंह में कपड़ा ठूंसकर मार दें, जिससे कोई बोल न सके। यह निष्ठुर बर्ताव हर कोई बर्दाश्त कर रहा है, भले ही वह भाजपा के लिए जान छिड़कता रहा हो। रोड शो, रैलियों, चुनाव में मदमस्त होकर सत्ता के लालची ये वही नेता हैं, जो स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर आयुष्मान योजना को अमृत बता रहे थे। जो कृषि संकट हो या कोई समस्या, माला जपने, मंत्र पढ़ने, दीया जलाने, थाली बजाने में ही निदान खोजने की नसीहतें देते रहे हैं।

यह काम इस वक्त भी नहीं रुका है। सोशल मीडिया में वायरल है कि लखनऊ के भाजपा सांसद और देश के रक्षामंत्री कह रहे हैं, कोरोना काल में औषधि की तरह काम करेगा रामचरित मानस का पाठ, उत्तराखंड के भाजपाई मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत कह रहे हैं, हमें वेदों की ओर लौटना होगा जहां ऋषि मुनि सालों तक बिना ऑक्सीजन के जिंदा रहते थे। हरियाणा के भाजपाई मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर कह रहे हैं, मरे हुए लोग वापस नहीं आएंगे, मौत के आंकड़ों पर बहस बेमानी है।

हद तो तब हो गई जब केंद्र की मोदी सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन ने कहा, सरकार कोरोना की दूसरी लहर के लिए तैयार थी, पिछले साल से तुलना करें तो हम बहुत अच्छी स्थिति में हैं, जीवन जीने की चीजें और जिंदगी सुरक्षित है। हो सकता है कि इसमें से कई फर्जी बातें वायरल हों, लेकिन इस तरह की बयानबाजी सरकार में बैठे लोगों ने जब तब की ही हैं। अधिकांश बयान तो प्रमुख मीडिया में ही प्रकाशित हुए हैं।

इसी असंवेदनशीलता का नतीजा है कि आम लोग कोविड ही नहीं, आम बीमारियों का इलाज न मिल पाने से भी काल के गाल में समाते चले जा रहे हैं। उत्तरप्रदेश के बरेली शहर में, जो तथाकथित स्मार्ट सिटी बतौर घोषित है। यहां के सांसद केंद्रीय श्रम मंत्री हैं, सभी विधायक भाजपा के हैं। यहां कोविड अस्पताल के नाम पर पूर्ववर्ती सपा सरकार का बनवाया 300 बिस्तरों का अस्पताल है। इसका उद्घाटन ही कोविड महामारी ने किया, नहीं तो कल्पना की जा सकती है कि क्या होता। तीन साल पहले रुहेलखंड रीजन में रहस्यमयी बुखार से सैकड़ों मौत का मंजर यहां के लोगों ने देखा है।

हाल में यहां कुछ दिन भर्ती रहे अधिवक्ता यशपाल सिंह ने बताया, मैं तो किस्मत से बचकर निकल आया, घर पर ही बाकी इलाज होगा अब। इस वक्त यह हालात हैं कि मात्र के फिजिशियन के हवाले लोगों का इलाज चल रहा है। लोग बच कम रहे हैं, इसलिए डॉक्टर के पास डेथ सर्टिफिकेट बनाने का काम ही बड़ा हो गया है। स्टाफ के नाम पर कुछ सफाईकर्मी ही बचे हैं। सप्ताहभर पहले तक एक तो नर्सिंग स्टाफ था भी, जो शायद अब नहीं बचा। सफाईकर्मी ही कैथ लगा देते हैं या पानी दे देते हैं। कई बार तो यह भी नहीं होता, चादरें तक नहीं बदल पा रही हैं। कुछ कमजोर और बुजुर्ग बिस्तर से हिल भी नहीं पा रहे तो उनके सामने तो जिंदा नर्क जैसी स्थिति हो गई है।

सरकार ने मौत और बीमारी के आंकड़ों में बाजीगरी का भी खेल शुरू कर दिया है।

इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर मिश्र कहते हैं, आंकड़ों पर मत जाइए, आप उसमें भी नहीं गिने जाएंगे। आंकड़ों का आशावाद पिछले कुछ दिनों से फिर हिलोरे लेने लगा है। प्रदेश से लेकर लखनऊ तक में मरीजों के आंकड़े घट रहे हैं। इसके साथ ही व्यवस्था से लेकर बुद्धिजीवी तक कोरोना के जाने का ऐलान करने लगे हैं। वैसे भी हम भारतीय गजब के सौंदर्यबोध से भरे हैं। जंगल की भयानक आग जिसमें लाखों जीव जलकर स्वाहा हो गए, उनकी लपटों वाली तस्वीर देखकर भी हम ‘वाऊ’ कर लेते हैं। 1998 में गोरखपुर में भयानक बाढ़ आई थी, जिसमें हजारों घर तबाह हो गए थे, उस दौरान भी लोग पॉपकार्न का पैकेट लेकर बाढ़ देखने आते थे।

आंकड़े गुलाबी इसलिए हैं-
– नई डिस्चार्ज पॉलिसी में अगर मरीज को 7 दिन तक कोई दृश्य लक्षण नहीं है तो उसे बिना टेस्ट किए ही डिस्चार्ज किए जाने के आदेश हैं। यानि वह लक्षण बिना पॉजिटिव होकर भी ‘निगेटिव’ हो सकता है।
– कोविड की रिपोर्ट निगेटिव आ रही है, लेकिन CT स्कैन से कोविड पॉजीटिव आ रहे हैं, ये आंकड़ों का हिस्सा नहीं है
– सरकार ने कहा टेस्ट बढ़ाकर 2.5 लाख से अधिक करें, उसके बाद संख्या घटकर 1.90 लाख रोजाना आ गई है, यानि मर्ज बढ़ रहा, लेकिन टेस्ट नहीं।
– कांटेक्ट ट्रेसिंग का पैमाना संक्रमित व्यक्ति से जुड़े 25 लोगों तक पहुंचना है। प्रदेश में औसतन 33 हजार मरीज हैं और टेस्ट 2 लाख से कम, अगर इसे हम कांटेक्ट ट्रेसिंग का भी हिस्सा मान लें, तो हर व्यक्ति महज 6 का आंकड़ा है। यह भी तब है जब ऐसा हो रहा है, हम मान लें। हमारे-आप सबके परिचित में बहुत से लोग प्रभावित है, किसके यहां कितने कांटेक्ट ट्रेस किए गए, आप खुद ही इससे हकीकत परख सकते हैं।
– कोविड से मौतों के सरकारी आंकड़ें व श्मशान के आंकड़ें अंतर साफ बता रहे हैं, भरोसा करना आपकी अपनी श्रद्धा पर है।
– सुदूर क्षेत्रों में टेस्ट न के बराबर हैं, लक्षण वाले बहुत से लोग टाइफाइड व निमोनिया का मरीज मानकर इलाज कर रहे, और दिवगंत हो जा रहे हैं। वे आंकड़ों का हिस्सा नहीं है।

(15 सालों से पत्रकारिता के खांटी हस्ताक्षर आशीष आनंद दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे अखबारों से जुड़े रहे हैं। फिलहाल वह स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं एवं TIS Media की उत्तर प्रदेश टीम का प्रमुख हिस्सा हैं।)

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