आपातकाल, यातनाएं और अटल: पुलिस ने प्लास से खींच लिए थे सारे नाखून, हिल गई थी पूरी दुनिया

TISMedia@विनीत सिंह 
23 जून 2003…अटल जी’ से मेरी पहली मुलाकात की यही तारीख थी… आपातकाल पर कुछ खास लिखने की ललक मुझे उन तक खींच ले गई… सोचा तो था कि आधे घंटे में निपटा कर लौट आऊंगा… लेकिन जब एक कमरे के घर में कदम रखा तो जाना कि यहां तो बलिदानों की पूरी दुनिया बसी पड़ी थी…असल में इस शख्स का नाम था वीरेंद्र कुमार…लेकिन हौसले इतने अटल थे कि… इस जन नायक के नाम के साथ ही जुड़ गया अटल…
जेपी मूवमेंट का युवा तुर्क
इस किस्से की शुरुआत हुई जेपी मूवमेंट से… बात 1975 की शुरुआत की है.. जब यूपी के सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा एक सभा को संबोधित करने बरेली आए…एबीवीपी के इस तेजतर्रार नेता ने बहुगुणा को मंच से नीचे उतारकर उनके मुंह पर काला रूमाल फेंक दिया…हड़बड़ाए बहुगुणा जमीन पर गिर गए और भगदड़ मच गई… जैसे-तैसे पुलिस की कड़ी सुरक्षा में उन्हें पहले कोतवाली ले जाया गया… जहां से कपड़े बदलकर वह जीआईसी के मैदान में सभा को संबोधित करने पहुंच गए… लेकिन यह युवा तुर्क कहां मानने वाला था… पुलिस ने जब इन्हें जीआईसी में नहीं घुसने दिया तो साथियों की मदद से कॉलेज की चार दीवारी ही गिरा दी…और मंच पर चढ़कर बहुगुणा से माइक छीन लिया…यह मामला अभी निपटा भी नहीं था कि 24 जून 1975 की रात प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी… वीरेंद्र को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आंदोलन फैलाने की जिम्मेदारी मिली थी… विपक्ष के संदेश एक शहर से दूसरे शहर पहुंचाना और विरोध प्रदर्शन के ठिकाने तय करने का काम दिया गया…।
मुखबिरी-गिरफ्तारी
इस दौरान जनसंघ समेत विपक्षी दलों के बड़े-बड़े नेता गिरफ्तार हो चुके थे, लेकिन वीरेंद्र अभी भी पुलिस की पकड़ से कोसों दूर थे…जो भाजपा आपात काल के विरोध का श्रेय लेते नहीं थकती… उसी के बरेली महानगर अध्यक्ष रमेश आनंद ने वीरेंद्र की मुखबिरी कर दी… 28 अक्टूबर 1975 की शाम को अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात रहे बरेली के कोतवाल हाकिम राय ने वीरेंद्र को उनके घर से धर दबोचा… तलाशी के दौरान अलमारी से पोस्टरों का बंडल मिला…तो वह भड़क गया। वीरेंद्र को बड़ी खामोशी से पेट्रोल जीप नंबर एक से कोतवाली तक लाना, लेकिन वह पूरे रास्ते सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते आए। जिससे हाकिम राय खौल गया। कोतवाल हाकिम राय ने वीरेंद्र के साथियों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आंदोलन की रणनीति उगलवानी चाही, लेकिन वह कामियाब नहीं हो सका।
यातनाओं का दौर
बड़े-बड़े अपराधियों का मुंह खुलवाने का दम भरने वाले हाकिम राय एक लड़के के सामने खुद को कमजोर पड़ता देख आग-बबूला हो गया। उसने रमेश आनंद को भी गिरफ्तार करवा लिया और उनके सामने ही वीरेंद्र अटल को बेइंतहा पीटने लगा। खुद थक गया तो छह सिपाहियों को बारी-बारी यह काम दिया, लेकिन वीरेंद्र फिर भी नहीं टूटे। हाकिम राय इतने पर भी नहीं रुका उसने मातहतों को एक प्लास खरीदने के लिए बाजार में भेज दिया। 29 अक्टूबर 2017 की सुबह वीरेंद्र की जिंदगी की सबसे खौफनाक सुबह थी। कोतवाल हाकिम राय उन्हें लेकर सीओ एके सिंह के कमरे में दाखिल हुआ और मातहतों को प्लास (प्लायर) लाने का हुक्म दिया। इसके बाद हाकिम राय ने सरकार को गिराने की साजिश रचने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गिरोह के सरगना वीरेंद्र का दायां हाथ पकड़ा और एक झटके में अंगूठे का नाखून खींचकर बाहर निकाल लिया। वीरेंद्र की तो छोड़ो उनकी मुखबिरी करने वाले रमेश आनंद तक चीख पड़े। यातनाओं का यह दौर तो अभी शुरु हुआ था। इसके बाद हाकिम राय ने एक-एक कर वीरेंद्र की सभी उंगलियों के नाखून खींच डाले, लेकिन यह युवा तुर्क इतने पर भी नहीं टूटा। हालांकि यातनाओं को देख रमेश टूट गए और संघ के प्रचारकों के ठिकाने बताने को राजी हो गए। दर्द से छटपटाते वीरेंद्र ने यहां भी हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने रमेश को गलत पते बताने के लिए राजी कर लिया।
पूरी दुनिया में मचा हड़कंप
प्रचारकों की तलाश में हाकिम राय वीरेंद्र को लेकर पूरे शहर में घूमा, लेकिन उसे कोई सफलता हाथ नहीं लगी। हाकिम राय ने खून से लथपथ वीरेंद्र को जेल भेज दिया, लेकिन जेल में जब यह खबर फैली तो सारे कैदी वीरेंद्र का इलाज ना होने तक हड़ताल पर चले गए। आखिरकार रात को नौ बजे उनकी घायल उंगलियों पर पट्टियां बांधी गईं। इसी बीच अशोक सिंघल बरेली आए तो उन्हें लोगों ने पूरा घटनाक्रम बताया। सिंघल ने सुब्रह्मण्यम स्वामी से बात की तो उन्होंने यातनाओं भरी इस खबर को बीबीसी लंदन से ब्रॉडकास्ट करवाया। जिसके बाद तो पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया।
वीरेंद्र हो गया अटल
बीबीसी के न्यूज ब्रेक करने के बाद मामला अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक जा पहुंचा। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घिरता देख सरकार ने पूरे घटनाक्रम की जांच शाह आयोग को सौंप दी, लेकिन वहां इंसाफ नही मिल सका, लेकिन इस बीच वीरेंद्र जनता के नायक बन चुके थे और लोगों ने उनके हौसले को देखते हुए नया नाम दे डाला अटल जी। वीरेंद्र अटल जेल से तो छूट गए, लेकिन उन पर जघन्य अपराधों के 15 मामले लाद दिए गए। मीसा में भगोड़ा घोषित कर दिया गया। 1977 में जब चौधरी चरण सिंह ने बरेली में जनसभा की तो उन्होंने ही अटल जी को सभा में हाजिर करावाया। गजब का दिन था वो जब चौधरी चरण सिंह ने अपनी जगह वीरेंद्र अटल को भाषण देने के लिए खड़ा कर दिया। 50-60 हजार लोगों की भीड़ और 40 मिनट से ज्यादा का भाषण… चारों तरफ सन्नाटा पसरा था… बस कुछ सुनाई दे रहा था तो सुबकने की आवाजें… आखिर में चौधरी चरण सिंह उठे और उन्होंने ऐलान किया कि … यूपी में सरकार बदलते ही कोतवाल हाकिम राय, सीओ एके सिंह और जिला कलक्टर माता प्रसाद को सस्पेंड करवा कर जेल भिजवाएंगे… इसके बाद तो पूरा मैदान जयकारों से गूंज उठा। हुआ भी ऐसा ही जब राम नरेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बने तो सबसे पहला आदेश उन्होंने इन तीनों लोगों को सस्पेंड कर जेल भेजने का ही दिया। आज इमरजेंसी की 42वीं साल है और अटल जी को याद किए बिना यह दिन अधूरा ही रहेगा। नमन उनकी बहादुरी को उनके बलिदान को….।

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