#TISExclusive जेके और आईएल की तरह मिटने लगा कोटा थर्मल वजूद, हमेशा के लिए बंद हुईं दो यूनिटें

पांच साल की कोशिशों के बाद नवंबर 2020 में मिला था इन्वायरमेंट क्लीयरेंस, फिर भी बंद कर दी इकाइयां

TISMedia@कोटा. गहलोत सरकार ने आखिरकार औद्योगिक नगरी की तबाही का आखिरी अध्याय लिख ही डाला। कोटा सुपर थर्मल पावर प्लांट (KSTPS) के अफसरों की जी तोड़ कोशिशों से इन्वायरमेंट क्लीयरेंस मिलने के बावजूद सूबे की सरकार ने कोटा थर्मल की दो इकाइयों को हमेशा के लिए बंद करने का आदेश जारी कर दिया। जिससे न सिर्फ थर्मल कर्मचारी, बल्कि शहर के लोग भी खासे आक्रोशित हो उठे हैं।

17 जनवरी 1983… राजस्थान के इतिहास में यह तारीख हमेशा सुनहरे अक्षरों में अंकित रहेगी, यही वह दिन था जब 143 करोड़ रुपए की लागत से सूबे में कोयले से बिजली बनाने की पहली इकाई की कोटा में स्थापना की गई थी। ठीक छह महीने बाद कोटा थर्मल पॉवर प्लांट की दूसरी इकाई ने भी पूरे दमखम के साथ बिजली बनाना शुरू कर दिया। 110-110 मेगावाट की यह दोनों इकाइयां 37 सालों बाद भी पूरे दमखम से बिजली बना रही है। इस दौरान तमाम सरकारें आई और गईं, लेकिन किसी ने भी इन बूढ़ी चिमनियों की सुध नहीं ली। कोटा के सियासतदारों को भी कभी होश नहीं आया कि कुछ ही दूरी पर छबड़ा जैसे थर्मल पॉवर प्लांट अपग्रेड कर दिए गए, लेकिन कोटा के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार के खिलाफ कभी आवाज उठा सकते। नतीजन, बिना मरम्मत और तकनीकी सहारे के यह इकाइयां पुराने ही ढर्रे पर दौड़ती रहीं।

साल 2015 में फंसा था पेंच
कोटा थर्मल की 1240 मेगावाट क्षमता की सात इकाइयों के संचालन के लिए थर्मल प्रबंधन ने 27 फरवरी 2015 को आरएसपीसीबी से संचालन सहमति मांगी थी। आवेदन का निस्तारण करने के लिए स्थलीय निरीक्षण करने कोटा थर्मल पहुंचे पर्यावरण अभियंताओं को यहां वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1981 और जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन होते हुए मिला था। इसके बाद बोर्ड ने 21 बड़ी खामियां चिन्हित कर उन्हें सुधारने के लिए थर्मल प्रबंधन को नोटिस दिया था, लेकिन अधिकांश आपत्तियों का चार साल तक निस्तारण नहीं हो सका।

कैग ने दिए थे प्लांट बंद करने के आदेश    
इसी दौरान कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (कैग) ने भी कोटा थर्मल का पॉल्यूशन ऑडिट किया तो कोल यार्ड और कोल क्रेशर पर स्थापित वायु प्रदूषण नियंत्रण मशीन बंद मिली। कोयले के धुएं के साथ राख के कण चिमनियों से बाहर निकलने से रोकने के लिए लगाई गए संयंत्र बंद पड़े थे। इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रीसीपीटेटर्स (ईएसपी) तो लगा था, लेकिन कई फील्ड्स नियमित तौर पर आउट ऑफ चार्ज थे। इसके साथ ही प्लांट का प्रदूषित पानी साफ किए बगैर चम्बल नदी और फ्लाईएश पांड की तरफ फेंका जा रहा था। तमाम कोशिशों के बावजूद भी जब इन ऑडिट आपत्तियों का निस्तारण नहीं हुआ तो कैग ने कोटा थर्मल का संचालन अवैध घोषित कर प्लांट को पर्यावरण सहमति मिलने तक बंद करने की सिफारिश कर दी।

आरएसपीसीबी की गिरी गाज  
इसके बाद जून 2018 में आरएसपीसीबी ने दंडात्मक कार्रवाई करते हुए सातवीं इकाई की संचालन सहमति रद्द करने के साथ ही 4.65 लाख रुपए का आवेदन शुल्क भी जब्त कर लिया था। इतना ही नहीं बाकी छह यूनिटों की संचालन सहमिति पेडिंग में डाल 14.07 लाख रुपए का आवेदन शुल्क भी डैफर कर दिया था। इस दौरान कोटा थर्मल में तैनात रहे अफसरों ने भी लापरवाही की हदें पार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कोटा सुपर थर्मल पावर प्लांट प्रबंधन ने तीन साल तक  खामियों को दुरुस्त करने की बजाय वायु प्रदूषण की जांच के लिए लगाए गए ऑनलाइन मॉनीटरिंग सिस्टम को ही खराब कर दिया। नतीजतन, थर्मल की चिमनियों के जहरीला धुआं उगलने पर भी हालात सामान्य दिखाई देते रहे, लेकिन राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जब मैनुअल मॉनीटरिंग की तो पूरी पोल खुल गई। जांच में खुलासा हुआ कि पर्यावरण सहमति हासिल करने के लिए थर्मल प्रबंधन वायु प्रदूषण की ऑनलाइन मॉनीटरिंग तक को छेडऩे से बाज नहीं आया। चिमनियां जमकर धुआं और राख बाहर फेंक रही थी, बावजूद इसके ऑनलाइन पॉल्यूशन मॉनीटरिंग में प्रदूषण का स्तर सामान्य से भी कम आ रहा था। आरएसपीसी के कोटा क्षेत्रीय कार्यालय ने जब प्रदूषण की मैनुअल जांच की तो खतरनाक स्तर पर मिला। जांच के दौरान खुलासा हुआ कि केएसटीपीएस के इंजीनियरों ने ऑनलाइन मॉनीटरिंग सिस्टम को ही खराब कर दिया।

दावों तक ही सिमटे रहे अफसर
थर्मल की खामियां दूर करने के लिए अफसरों ने हर बार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आश्वासन दिया, लेकिन जब भी एक्शन प्लान मांगा गया, अधिकारी पीछे हट गए। तीन साल में तीन बार प्रदूषण नियंत्रण संयत्रों को चालू करने का दावा किया गया, लेकिन तीनों बार स्थलीय जांच में झूठ साबित हुआ। पांच साल पहले हुई जांच के दौरान आरएसपीसीबी को जो स्थिति मिली, वही हर बार के सत्यापन में सामने आई। इसके लिए कैग ने थर्मल की बदहाली के लिए आला अफसरों को जिम्मेदार माना और जमकर फटकार भी लगाई थी। बावजूद इसके उन पर कोई असर नहीं पड़ा। जांच में खुलासा हुआ कि थर्मल प्रबंधन ने सीवेज और औद्योगिक कचरे के निस्तारण के लिए कोई इंतजाम नहीं किए। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के निर्देश दिए गए, लेकिन प्रबंधन ने इसका जवाब तक नहीं दिया। थर्मल परिसर में फ्लाईएश और कोयले की वजह से होने वाले प्रदूषण को रोकने का भी कोई इंतजाम नहीं किया गया। कोयले की बारीक राख को उड़ने से रोकने के लिए प्लो फीडर के ऊपर पानी का छिड़काव करने के लिए वाटर नोजल तक पिछले एक दशक से बंद पड़े थे।

साल 2022 तक बंद करने की थी तैयारी
अफसरों की लापरवाही और पर्यावरण नियमों की सख्ती के चलते सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ने साल 2019 के नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान में इन यूनिटों को बंद करने का प्रस्ताव तैयार कर लिया। अथॉरिटी पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी यूनिट को साल 2022 तक बंद करने की तैयारी में जुटा था, लेकिन इसी बीच सितंबर 2019 में कोटा थर्मल की कमान बतौर मुख्य अभियंता अजय सक्सेना के हाथ आ गई। उन्होंने अपने कार्यकाल में प्लांट को बंद होता देखने के बजाय थर्मल की खामियों को दूर करने की ठान ली।

साल भर की मेहनत लाई रंग
तत्कालीन मुख्य अभियंता अजय सक्सेना ने कोटा थर्मल को बचाने के लिए त्रिस्तरीय योजना तैयार की। उन्होंने एक साल तक कड़ी मेहनत और संघर्ष कर सबसे पहले कैग और आरएसपीसीबी की ओर से बताई 21 खामियों को दुरुस्त करने का काम किया। इसके बाद दूसरे चरण में कूलिंग प्लांट, फ्लूड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट, एसटीपी लगाने और ईएसपी को दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया। तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण चरण में मुख्य अभियंता ने कैग से लेकर लोक लेखा समित और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आला अफसरों को भरोसा दिलाने में कामियाबी हासिल की कि पर्यावरण नियमों की पालना करने के लिए बड़ी लागत वाले प्रोजेक्ट चरण बद्ध तरीके से पूरे कर लिए जाएंगे। इसके लिए बकायदा समयबद्ध प्लान भी इनके समक्ष रखा गया।

पांच साल बाद मिला था जीवनदान 
कोटा थर्मल के पूर्व मुख्य अभियंता अजय सक्सेना की एक साल की कोशिशों के बाद जब प्रदूषण निवारण मानकों की पूरी पालना सुनिश्चित हुई तो राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इससे पूरी तरह मुतमईन होने के बाद कोटा थर्मल को वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1981 और जल प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 के प्रावधानों के तहत साल 2023 तक के लिए संचालन सहमति जारी कर दी। 6 नवंबर 2020 को इन्वायरमेंट क्लीयरेंस और संचालन सहमति कोटा थर्मल को मिली तो लगा कि न सिर्फ कोटा थर्मल को नया जीवन मिला है, बल्कि प्रदेश के सबसे पुराने प्लांट में पर्यावरण संरक्षण के साथ पूरी क्षमता से विद्युत उत्पादन की मिसाल भी कायम हो गई।

अंदरखाने जारी रही साजिशें 
हालांकि इसके बाद भी कोटा थर्मल को बंद करने की साजिशें अंदरखाने पुरजोर तरीके से चलती रहीं। नतीजन, राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के दफ्तर में बैठे राजधानी के अफसरों ने बिजली उत्पादन में गाइडलाइन के उल्लंघन का दावा कर अप्रैल 2021 में कोटा थर्मल की पहली और दूसरी इकाई को बंद करने का प्रस्ताव तैयार कर राज्य सरकार को भेज दिया। राज्य सरकार ने भी यूनिटों के अपग्रेडेशन की संभावनाएं तलाशने या फिर इन दोनों इकाइयों के बदले 660 मेगावाट की हाईटेक इकाइयां लगाने की बजाय कोटा थर्मल की सबसे उम्रदराज इकाइयों को बंद करने के प्रस्ताव पर मंजूरी का ठप्पा लगा दिया। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने गुरुवार को कोटा थर्मल की पहली और दूसरी इकाई को हमेशा के लिए बंद करने का न सिर्फ आदेश जारी कर दिया, बल्कि आईएल और जेके की तरह कोटा थर्मल का वजूद भी मिटाने की इबारत लिख डाली। आदेश के कोटा पहुंचते ही थर्मल कर्मचारियों में खासा रोष व्याप्त है। आदेश के मुताबिक 30 जून 2021 से कोटा थर्मल की पहली और दूसरी इकाइयों को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाएगा। 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!