NIA Raid on PFI: क्या है PFI और इसके ठिकानों पर NIA ने क्यों की देश भर में छापेमारी
वर्ष 2004 में कई संगठनों के विलय से बना था पीएफआई यानि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया
- केरल में कई राजनीतिक हत्यों में भी पीएफआई की संलिप्तता आ चुकी है सामने
- एंटी सीएए प्रोटेस्ट, किसान आंदोलन, लव जिहाद और जुमा हिंसा में आ चुका है नाम
TISMedia@NewDelhi पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है। संगठन का कहना है कि वह पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक की आवाज उठाता है। संगठन के विकिपीडिया पेज के हिसाब से इसकी स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF, दक्षिण भारत परिषद मंच) के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। बताया जाता है कि इसकी शुरुआत केरल के कालीकट से हुई। लेकिन, अब इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में है।
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पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानि पीएफआई गुरुवार को अचानक देश भर में चर्चा का विषय बन गया। नेशनल इनवेस्टिगेशन (NIA) ने 12 राज्यों में फैले सैकड़ों ठिकाने पर छापेमारी की और 100 से ज्यादा सदस्यों को गिरफ्तार किया। केरल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना में भी बड़े पैमाने पर कार्रवाई हुई। इस दौरान एनआईए ने पीएफआई के चेयरमैन ओएमए सलाम, राष्ट्रीय सचिव वीपी नजरुद्दीन, राष्ट्रीय परिषद सदस्य, प्रो. पी कोया, राजस्थान राज्य प्रमुख प्रदेश अध्यक्ष आसिफ मिर्जा, केरल राज्य प्रमुख सीपी मोहम्मद बशीर शामिल को गिरफ्तार किया। सबसे ज्यादा लोगों को केरल से गिरफ्तार किया गया है जिसे पीएफआई का गढ़ माना जाता है। ऐसा नहीं है कि इस तरह की कार्रवाई पीएफआई पर पहली बार की जा रही है, लेकिन एक साथ इतनी बड़ी कार्यवाही पहली बार हुई है।
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पीएफआई और उसका काम
वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिणी राज्यों में इस तरह के कई संगठन बने। इनमें राष्ट्रीय विकास मोर्चा, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु की मनिथा नीति पासारी के भी नाम थे। 2006 में इन तीनों संगठनों का विलय हो जाता है और उसे पीएफआई का नाम दे दिया गया। संगठन का कहना है कि वह देश में मुसलमानों और दलितों के लिए काम करता है और मध्य पूर्व के देशों से आर्थिक मदद भी मांगता है। पीएफआई का मुख्यालय केरल के कोझीकोड में था, लेकिन बाद में उसे देश की राजधानी दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया। ओएमए सलाम पीएफआई चेयरमैन हैं और ईएम अब्दुल रहमान वाइस चेयरमैन हैं। पीएफआई खुद को एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन बताता है। यह संगठन वर्ष 2006 में तक खूब सुर्खियों में आया था जब दिल्ली के राम लीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था जहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। संगठन का दावा है कि वह देश के 23 से ज्यादा राज्यों में है।
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विवादों से पुराना नाता
पीएफआई पर भड़काऊ नारेबाजी, हत्या से लेकर हिंसा फैलाने तक के आरोप लग चुके हैं। इसी साल मई में संगठन की एक रैली में एक बच्चे से भड़काऊ नारे लगवाए गए थे। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था और केरल पुलिस ने 20 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार भी किया था। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने हस्तक्षेप करते हुए पुलिस से जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। इस मामले केरल हाई कोर्ट ने भी प्रदेश सरकार को फटकार लगाई थी। हालांकि पीएफआई का विवादों से पुराना नाता रहा है। पीएफआई ने केरल के चेलारी में एकता मार्च निकाला था। इस रैली में आरएसएस की ड्रेस पहने युवकों को जंजीर से बंधा हुआ दिखाया था जिस पर काफी विवाद मचा था।
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हत्या से लेकर हिंसा फैलाने तक का आरोप
संगठन पर केरल में कई हिंदूवादी संगठनों की नेताओं की हत्या में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा टेरर लिंक, दिल्ली-यूपी में सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुए प्रदर्शन को फाइनेंस करने, हिजाब मुद्दे को सुलगाने और हाथरस कांड के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप भी लगता रहा है। 2017 में केरल पुलिस ने लव जिहाद के मामले सौंपे थे, जिसमें पीएफआई की भूमिका सामने आई थी। वहीं 2016 में कर्नाटक में आरएसएस नेता रूद्रेश की हत्या में भी पीएफआई का नाम आया था।
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आतंकी गतिविधियों में लिप्तता
साल 2016 में एनआईए ने केरल के कन्नूर में आतंकी संगठन आईएस से प्रभावित अल जरूल खलीफा ग्रुप की मौजूदगी का खुलासा किया था। इसे देश के खिलाफ जंग छेड़ने और समुदायों को आपस में लड़ाने के लिए बनाया गया था। बाद में एनआईए को जांच में पता चला कि गिरफ्तार किए गए ज्यादातर सदस्य पीएफआई से जुड़े थे। इससे पहले 2013 में एनआईए ने पीएफआई के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। चार्जशीट के अनुसार, पीएफआई और एसडीपीआई के एक्टिविस्ट आपराधिक साजिश में शामिल हैं और उन्होंने अपने कैडर को हथियारों और विस्फोटकों की ट्रेनिंग दी थी। ये ट्रेनिंग कन्नूर जिले में लगाए गए आतंकी कैंपों में दी गई। पिछले साले ईडी ने पीएफआई के 26 ठिकानों पर छापे भी मारे थे जिसमें जिलेटिन की छड़ें और डेटोनेटर्स बरामद हुए थे। 2021 में ही इनकम टैक्स विभाग ने भी पीएफआई का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था। विभाग ने सेक्शन 12AA(3) के तहत ये रजिस्ट्रेशन रद्द किया था।
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उठी प्रतिबंध लगाने की मांग
साल 2012 में पीएफआई के टेरर लिंक सामने आने के बाद इस संगठन को बैन करने की मांग उठी थी, लेकिन तत्कालीन केरल सरकार ने उसका समर्थन किया था। साल 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पीएफआई और इसके राजनीतिक दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के आतंकी गतिविधियों जैसे बम निर्माण में शामिल होने के चलते बैन लगाने की मांग की थी। भारत के कई राज्य सरकारें भी समय-समय पर पीएफआई को बैन करने की मांग कर चुकी हैं। सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान यूपी सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस संगठन को पूरी तरह बैन करने की मांग की थी। पिछले साल असम ने भारत सरकार से पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था। असम सीएम का आरोप था कि वे सीधे तौर पर विध्वंसक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।
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लव जिहाद, तब्लीगी जमात, किसान आंदोलन और जुमा हिंसा में आया नाम
पीएफआई का नाम काफी समय से लगाातार विवादों में आ रहा है। यूपी में हाथरस कांड के दौरान सीएफआई का नाम सामने आया था। ईडी ने हाथरस दंगों की साजिश में पीएफआई और उसके स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के पांच सदस्यों के खिलाफ लखनऊ की स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया था। इसके अलावा संगठन का नाम किसान आंदोलन के समय भी आया था। एजेंसियों को किसान आंदोलन के दौरान पीएफआई की ओर से हिंसा का इनपुट मिला था। इसके बाद मेरठ समेत कई स्थानों पर पीएफआई के ठिकानों पर छापे मारे गए थे। नुपुर शर्मा विवाद के बाद यूपी में करीब आठ शहरों में जुमे की नमाज के बाद माहौल को गरमाने की कोशिश की गई थी। कानपुर से लेकर प्रयागराज तक हिंसा को भड़काने की कोशिश की गई। इस संगठन से जुड़े लोगों की गिरफ्तारियां हुईं थीं। सीएए-एनआरसी को लेकर हुए विवाद के समय भी नाम सामने आया था। वहीं 2017 में विवादास्पद लव जिहाद केस की जांच करते हुए, एनआईए ने दावा किया था कि महिलाओं के इस्लाम में धर्मांतरण के दो मामलों के बीच एक पुख्ता सबूत पाया गया था। उस समय एनआईए ने कहा था कि पीएफआई से जुड़े चार लोगों ने केरल निवासी अखिला अशोकन को धर्म परिवर्तन और हादिया नाम रखने के लिए मजबूर किया था।
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हिजाब विवाद में भी रही भूमिका!
कर्नाटक के स्कूलों में हुए हिजाब विवाद में भी इस संगठन का नाम सामने आया था। सरकार की ओर से कर्नाटक हाई कोर्ट में महाधिवक्ता (एजी) प्रभुलिंग नवदगी ने दावा किया था कि सीएफआई ने हिजाब के लिए ढोल पीटना और छाती पीटना शुरू कर दिया है। वे किसी के प्रतिनिधि नहीं हैं। यह एक कट्टरपंथी संगठन है जो आकर हिजाब विवाद पर हंगामा कर रहा है। माना जाता है कि सीएफआई पीएफआई का स्टूडेंट यूनियन है। एसएफआई के साथ संघर्ष के दौरान महाराजा कॉलेज एर्नाकुलम में अभिमन्यु की हत्या में कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया का नाम सामने आया था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जांच के बाद निष्कर्ष निकाला कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे संबद्ध संगठन के साथ-साथ आतंकवादी शिविर चलाने, मनी लॉन्ड्रिंग, विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देकर दंगा का माहौल बनाने के लिए राशि जुटाई गई थी।
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कौन है पीएफआई का चेयरमैन ओमा सलाम?
ओमा सलाम का पूरा नाम मोहम्मद अब्दुल सलाम ओवनगल है। पीएफआई में उसे ओएमए सलाम या ओमा सलाम के नाम से जाना जाता है। सलाम केरल में बिजली विभाग का कर्मचारी था। दिसंबर 2020 में केरल राज्य बिजली बोर्ड (केएसईबी) ने संदिग्ध गतिविधियों के आरोप में निलंबित कर दिया था। सलाम पर कार्रवाई करते हुए बिजली विभाग ने कहा, ‘जांच के दौरान यह पता चला कि ओमा सलाम एक ऐसे संगठन का नैशनल चेयरमैन है, जिसकी कथित संदिग्ध गतिविधियां और पैसों के लेन-देन संदेह के दायरे में हैं। सलाम इन मामलों को लेकर कई जांच एजेंसियों की जांच के दायरे में है।’ सलाम को सस्पेंड करते हुए केरल बिजली बोर्ड ने यह भी कहा कि बिना जरूरी मंजूरी लिए उसने कई बार विदेश यात्राएं भी कीं।