निश्चित उद्देश्य और एकाग्रता के साथ युवा अपना भविष्य रचे

युवा पीढ़ी की सोच और भविष्य

आज का युवा कल का नागरिक है, परन्तु आजकल युवा पीढ़ी की सोच तुरंत दान और महाकल्याण पर ही आधारित हो गयी है। न ही वो काम करना चाहते है न उसके परिणाम पर अधिक ध्यान देना ही नहीं चाहते  है। आज के परिवेश को ना जाने क्या हो गया है? सोच कर बड़ा ही आश्चर्य होता है कि जिस युवा पीढ़ी पर सब को नाज़ हुआ करता था आज उसी की सोच पर हमें स्वयं ही पछतावा होता नज़र आता है। नये-नये खोज के परिणाम हमारे सामने आये तो सही लेकिन कभी ना सोचा था कि उसके साथ-साथ उसके दुष्परिणाम भी हमारे सामने होंगे। युवा मोबाइल के चंद अक्षरों को पढ़ व टाइप कर अपनी ज़िन्दगी को चलाये जा रहा है। रिश्ते की समझ नहीं रह गई है। रिश्ते की गहराई को समझने वाले माता-पिता को आज की संताने विलन और न जाने क्या-क्या समझने लगी है? किससे कहे, यहाँ अपना कुछ भी समझ नहीं आता ?

युवा पीढ़ी के किस्से कहानियां यहाँ तक की जिंदगी के अद्भुत पल भी मोबाइल में ही बंद हो कर रहे गये है। ऐसे में ये सपना देखना की उनका कल कैसा होगा वह अंधकार में है वे आज की तो छोड़ो कल की भी एक सुरक्षित योजना नहीं बना पा रहे है। उनके सामने अपने भविष्य और करियर की साफ तस्वीर ही नहीं है | युवा ये निश्चय ही नहीं कर पा रहा है की उसे भविष्य में करना क्या है ? सुरक्षा के लिये सीमा पर तैनात सुरक्षा प्रहरी देश की खातिर अपनी जान को खतरे में डाल कर देश को सुरक्षित रखे हुये है। इन युवाओं से प्रश्न पूछना चाहिए की आपने ज़रा सा भी इनके जज्बे को सलाम किया है? क्या कभी किस शहीद की याद में आंसू बहा कर उनके गम में अपना गम मिला कर देखा? युवा की संवेदना केवल सोशल मीडिया पर केवल वाक् युद्ध करने तक सीमित रह गई है | यह समय का बदलाव ही तो है जिसने हमें इस दौर पर आज लाकर खड़ा कर दिया है। बार-बार यही ख्याल ध्यान में आता है कि ना जाने कब वो पुराने दिन वापस लौट कर आयेंगे और हमारा जीवन फिर उन पुराने दिनों की और लौट आयेगा।

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युवा पीढ़ी को चाहिए की वे घर के अपने जीवित भगवान को पहले पूजे क्योंकि अपने मंदिर में रखे भगवान को बाद में भी पूज सकते है। घर के भगवान हमारे माता-पिता है उनके प्रति हमारी अटूट आस्था होनी चाहिये ताकि उनका आशीर्वाद हमें हमारे जीवन में आगे बढ़ने के लिये हमेशा हमारा मार्गदर्शन करता रहे | चाहे कुछ भी हो जाये घर के इन भगवान को कभी ना रूठने ना दे। युवाओं को चाहिए की बचपन में जिन माता-पिता ने आपका हाथ थामा था आज उनके इस बुढ़ापे में उनका हाथ थाम कर सिर्फ यह कहना कि आप उनके साथ है। उनका बुढ़ापा काटने के लिये यही शब्द पर्याप्त है। क्योंकि इस अवस्था में उन्हें ना तो पैसों का और ना कोई दूसरा लालच उनके मन में होता है। उनके हाथ हमेशा आपके लिये दुआ में उठेगें। आधुनिकता की दौर में हम शामिल तो हो लेकिन अपने फर्ज को निभाने से कभी पीछे ना हटे। आज का समय इतना बदल चुका है। लोगों के लिये रिश्ते कुछ कागज के चंद टुकड़ों के तरह से ही बनकर रह गये है। जो कुछ ही क्षण में ही बिखर के रह जाते है, इसलिये उन रिश्तों की अहमियत समझे जिन्हें आपको अपनी ज़िन्दगी में निभाना है। सोच ऐसी रखो कि सामने वाले को आपके ऊपर गर्व महसूस हो। हर रिश्ता अपने आप में पवित्र होता है बस आपकी सोच अच्छी होनी चाहिये और आपको उस रिश्ते को देखने का नजरिया सकारात्मक होना चाहिये। माता-पिता के द्वारा निर्धारित रिश्तों को निभाने की अहमियत हम सभी में आवश्यक रूप से होनी चाहिये।

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किसने क्या कहा और क्यों कहा यह सोचने पर ध्यान देने से अच्छा है कि हम केवल अपने कर्म पर ही ध्यान दे ताकि हमारी नज़र हमेशा सफलता की ओर रहे जिसमें हमारे प्रयासों से सफलता हमारे कदमों को अवश्य चूमें | सुनो सबकी, लेकिन सही सोच को अपने दिमाग से सोचो कि सही क्या है, वरना दूसरों को सोच से ऐसा ना हो जाये कि हमारा जीवन पूर्णतया ख़राब हो जाये | वक़्त का दस्तूर है कि वक़्त पर सलाह देने वाले तो बहुत मिल जायेगें लेकिन वक़्त ख़राब होने पर तमाशा देखने वाले और तमाशा देख तालियाँ बजानेवाले ही रह जायेंगे। एक सीमा तक दोस्तों की दोस्ती भी अच्छी है। जिस अवस्था में इस दोस्ती की शुरुआत होती है उसे कहते है लकड़पन की अवस्था जिसमें हर तरह के दोस्त मिल जाते है जो चाहे तो आपकी दुनिया को बदल दे और चाहे तो आपकी दुनिया को ही उजाड़ कर रख दे। इस संसार में ऐसे दोस्त मिलना भी बहुत मुश्किल है जो आपके आंसूओं को एक ही नज़र में तुरंत पहचान ले और आपके दुःख में कंधे से कंधे मिलाकर खडा हो जाना उसका सिर्फ इतना करना ही आधी परेशानियों को दूर करने के समान हो जायेगा। एक बार अच्छे दोस्त से दोस्ती हो जाये तो इसे निभाना दोनों ही दोस्तों का काम है। एक दूसरे पर विश्वास होना भी जरुरी भी है। विश्वास के आधार पर ही दोस्ती पूरे जीवन पर निभाई जा सकती है। सोच अच्छी होनी चाहिये ताकि किसी के भी सामने आपकी दोस्ती की मिसाल दी जा सके |कुछ रिश्ते और उनकी सोच समय से पहले ही बड़ी हो गयी है। जीवन ने कुछ ना कुछ ऐसा समय से पहले ही दिखा और सिखा दिया कि उनका बस यही कहना होता है कि बहुत हो गया अब तो भगवान माफ़ करे, उनकी कब तक ऐसे ही परीक्षा होती रहेगी, कभी तो उन परीक्षाओं का अंत आयेगा | परिणामों के इंतज़ार में ज़िन्दगी यूँ ही चलती जा रही है। जिंदगी के इस सबक में उनकी सोच बहुत ही अधिक बदल चुकी है। जिस पर विश्वास किया उसी से धोखा मिला और ना जाने क्या-क्या आरोप-प्रत्यारोप का सामना करना पड़ा जाता है।

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आज का समय वक़्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का है और इसके साथ-साथ अपनी सोच को भी संकीर्णता के पर्दे से बाहर निकलने का है। माना कि युवा पीढ़ी की सोच बदल चुकी है, लेकिन उसे बदलने में कहीं ना कहीं कुछ जिम्मेदारी हमारे वातावरण की भी हो जाती है। इसलिये हमें अपनी सोच में अपनी समझ को भी शामिल अवश्य कर लेना चाहिये। स्क्रीन और रियल लाइफ में अंतर को समझे और अच्छी तरह से समझाएं कि जो सब कुछ स्क्रीन पर दिखाई दे रहा है वो रियल लाइफ में भी हो ऐसा हर बार संभव नहीं होता है। इसलिये इन दोनों लाइफ को अपने जीवन में अलग ही रखे ताकि आपका अपना जीवन सुखमय बन सके। युवाओं का दौर है लेकिन इसका जो भी मायने हो, उसे हमें हर हाल में सुरक्षित रखना ही होगा और इसके साथ ही एक नया कल हमारे सुनहरे भविष्य के लिये हमारा बाहें फैलाये इंतज़ार कर रहा होगा बस उसका इंतज़ार कीजिये उसका फ़ल अवश्य ही मीठा होगा चाहे कुछ पल की देरी ही सही कोई बात नहीं एक नई सोच एक नया आयाम हमें जरुर देगी। बस आप से अपेक्षा है कि आप अपने जीवन में कभी भी अपने मार्ग से भटके नहीं और एक निश्चित उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये आगे बढते जाये सफलता अवश्य ही मिलेगी, सोच अच्छी रखे।

लेखक: डॉ. धीरज सोनी
प्राचार्य व निदेशक सोनी क्लासेज

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