शार्ली हेब्दो ने फिर की नापाक हरकत, अब हिंदुओं की भावनाएं भड़काने की कोशिश

अजब खब्त है इस अखबार की भी। ये सच है कि दुनिया में तमाम लोग मजहब या धर्म को अपनी पहचान बना कर जी रहे हैं और ये भी कि इस पहचान के लिए वे मर मिटने को तैयार भी हो जाते हैं। शार्ली हेब्दो नाम का ये पंगेबाज अखबार ऐसे लोगों से लगातार पंगे लेता रहा है। इस बार निशाने पर हिन्दू धर्म है।

हिंदुओं के 33 करोड़ देवी देवताओं का उपहास क़रने वाला शार्ली हेब्दो में छपा कार्टून कुछ देर से चर्चा में आया लेकिन जब आया तो छाया हुआ है। दो दिन से ट्विटर, फेसबुक और अब व्हाट्सएप्प ग्रुप में नई नई टिप्पणियों के साथ प्रसारित हो रहे इस कार्टून में कोरोना महामारी में ऑक्सीजन संकट का हवाला है। जमीन पर लेटे बीमारों के बीच कुछ सिलिंडर दिख रहे हैं। फ्रेंच में जो लिखा है उसका आशय है कि हिंदुओं के 33 मिलियन देवता हैं, लेकिन इनमें से एक भी ऑक्सीजन नहीं दे पा रहा है।

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एक ट्वीट पर सौ से ज्यादा रिट्वीट हैं। जाहिर है तमाम लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं, लेकिन ज्यादातर ने इसे हल्के में लेकर टाल दिया है। हिन्दू तो 33 करोड़ यानी 330 मिलियन या फिर 33 कोटि यानी 33 श्रेणियों के देवता मानते हैं। ज्यादातर ट्विटर ज्ञानियों ने बस शार्ली हेब्दो को यही ज्ञान दिया है। कुछ को शंकर भगवान पर इतना भरोसा है कि इसे चुनौती की तरह ले रहे हैं। कुछ दूसरे धर्मों के भगवानों से सवाल पूछ रहे हैं। कुछ पंगेबाज इस बहाने दूसरे धर्म के प्रति भड़ास निकाल रहे हैं तो कुछ ग़ैरहिन्दू, हिंदुओं की गैरत को ललकार भी रहे हैं।

कुछ मस्त लोग भी है जो चाहते हैं कि ऐसी बहस होती रहनी चाहिए ताकि मजहब धर्म को विज्ञान और इंसानियत के जज्बे से ऊपर समझने वालों की खोपड़ी कुछ तो खुले। ससुरे जब दूसरे धर्म वाले को मिलते हैं तो खुद को सेक्युलर और तरक्की पसंद साबित करने लगते हैं, लेकिन अपनों के बीच अंधे हो जाते हैं। इस श्रेणी में हिन्दू ,मुस्लिम, ईसाई सभी तरह के नाम दिख रहे हैं। दिलचस्प है कि हिन्दू धर्म के पोंगापंथियों पर टिप्पणी क़रने वाले भी ज्यादातर हिन्दू ही हैं।

28 अप्रैल को प्रकाशित हुआ कार्टून गुरुवार से ट्विटर पर खूब ट्रेंड कर रहा था। कई लोग जहां इस कार्टून को अपमानजनक बताकर शार्ली हेब्दो के बहिष्कार की मांग कर रहे थे, वहीं कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए इसके समर्थन में भी नजर आए। बानगी देखिये-

Manik_M_Jolly ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है, डियर शार्ली एब्दो आपको बता दें कि हमारे पास 330 मिलियन देवता हैं। जिन्होंने हमें कभी हिम्मत नहीं हारने का ज्ञान दिया है। हम अभिव्यक्ति की आजादी और हर फ्रेंच नागरिक का सम्मान करते हैं। चिंता न करें, आपके ऑफिस या स्टाफ पर हमला नहीं किया जाएगा।

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@ajayrr50 ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है, 33 करोड़ देवी-देवता प्रकृति में निहित है, लेकिन भारतीय समाज आप जैसे देशों से प्रभावित होकर अपने पेड़ों को काट रहा है। हम तो पेड़ों को भी भगवान मानते हैं।
एक यूजर ने लिखा, “हम आहत नहीं हुए, उन्हें जो छापना है छापें। हमें उससे फर्क नहीं पड़ता। शार्ली हेब्दो बस ये जान लो कि वो 33 मिलियन नहीं, 33 कोटि है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील ब्रजेश कलप्पा ने लिखा, “जब शार्ली एब्दो ने इस्लाम को गलत रोशनी में दिखाते हुए कार्टून बनाए थे, तब बीजेपी की IT सेल ने जश्न मनाया था। अब क्या होगा?” @AtrijKasera नाम के यूजर ने लिखा, मैं अब भी फ्रांस और शार्ली हेब्दो के साथ हूं। शार्ली हेब्दो पत्रिका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए जानी जाती है और वह अपना काम कर रही है।

शार्ली हेब्दो ने साल 2015 में पैगंबर मोहम्मद पर कुछ कार्टून प्रकाशित किए थे जिस पर खूब हंगामा मचा था। कार्टून छपने के बाद पैरिस में मैगजीन के दफ्तर पर हमला भी हुआ था। इस हमले में मैगजीन में काम करने वाले 12 लोगों की जानें चली गई थीं। साल 2020 में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून को लेकर फिर से विवाद तब बढ़ गया जब पत्रिका ने उन्हीं कार्टूनों को फिर से प्रकाशित किया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैंक्रो ने भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए इसका समर्थन किया था। इसी विवाद के बीच अक्टूबर 2020 में फ्रांस के एक टीचर सैमुएल पैटी की हत्या कर दी गई थी। आरोपी ने कहा था कि टीचर ने अपनी क्लास में पैगंबर के कार्टून दिखाए थे।

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61 साल की हो चुकी ये पत्रिका बीच में बंद भी हुई। पहले इसका नाम हिरकारी हेब्दो हुआ करता था। सिस्टम इसके निशाने पर हमेशा से रहा। पत्रिका को असली पहचान धार्मिक मामलों पर तंज क़रने से मिली। पाकिस्तान में आजकल इमरान के लिए सरदर्द बना संगठन तो इसी के कार्टून के बहाने धर्म रक्षा के नाम पर इतना मजबूत हुआ है। जाहिर है ऐसे पंगो से इंसानियत वाली सोच की बजाय कट्टरपंथ को ही ज्यादा मजबूती मिल रही है।

लेखकः विनीत सिंह
नामचीन अखबारों, पत्रिकाओं और टीवी चेनल्स में पत्रकारिता एवं पत्रकारिता शिक्षा के क्षेत्र में 20 वर्षों से सक्रिय हैं। अखबार, टीवी और रेडियो के बाद फिलहाल डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कार्यरत हैं। TIS Media के संपादक हैं।

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